जनगणना कार्यक्रम का स्थगन: कारण व प्रभाव | 30 Mar 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जनगणना कार्यक्रम के स्थगन और उसके कारण व प्रभाव से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं

संदर्भ 

किसी भी देश की नीति निर्धारण के लिये देश के नागरिकों की सही संख्या का पता होना बेहद आवश्यक है। सामाजिक-आर्थिक जानकारी के सही आँकड़ों के आधार पर कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति तक पहुँचा जा सकता है और प्रत्येक वर्ग के लिये सही नीति बनाई जा सकती है। विश्व में जनसंख्या के मामले में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर जनगणना का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2021 में जनगणना का आयोजन दो चरणों में किया जाना है। इसके प्रथम चरण का आयोजन 1 अप्रैल, 2020 से प्रस्तावित था, परंतु वैश्विक महामारी COVID-19 के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये किये गए लॉकडाउन के कारण जनगणना संबंधी गतिविधियाँ ठप्प हो गई हैं। इतना ही नहीं लॉकडाउन का व्यापक प्रभाव राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अद्यतनीकरण की प्रक्रिया पर भी पड़ा है। ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का अद्यतनीकृत डेटा जनगणना-2021 के प्रथम चरण के आँकड़ों के साथ प्रकाशित किये जाने का विचार था। 

इस आलेख में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अद्यतनीकरण की आवश्यकता व प्रक्रिया के साथ इनके महत्त्व और चुनौतियों पर विमर्श किया जाएगा। इसके साथ ही समाधान के संभावित उपायों पर भी चर्चा की जाएगी। 

स्थगन के कारण

  • वैश्विक महामारी COVID -19 मानव से मानव में स्थानांतरित होने वाली बीमारी है, जिसके कारण प्रत्यक्ष जनसंपर्क संभव नहीं है। जनगणना व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अद्यतनीकरण की प्रक्रिया प्रत्यक्ष जनसंपर्क पर आधारित है, जो इस समय बीमारी के स्थानांतरण का कारण बन सकती है। 
  • इस वैश्विक महामारी से निपटने में केंद्र के साथ सभी राज्यों की पूरी प्रशासनिक मशीनरी व्यस्त है, जिससे मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है। 
  • इस संकट से निपटने के लिये सरकार को बड़ी संख्या में धन की आवश्यकता है। जनगणना करने व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अद्यतनीकरण की प्रक्रिया में तकरीबन 13,000 करोड़ रूपए खर्च होंगे। जो इस समय सरकार पर अनावश्यक वित्तीय दबाव उत्पन्न करेगा।
  • जनगणना कार्यक्रम के क्रियान्वयन से सरकार के द्वारा इस महामारी के रोकथाम हेतु की गई लॉकडाउन की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है।

जनगणना से तात्पर्य 

  • जनगणना वह प्रक्रिया है, जिसके तहत एक निश्चित समयांतराल पर किसी भी देश में एक निर्धारित सीमा में रह रहे लोगों की संख्या, उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन से संबंधित आँकड़ों को इकट्ठा कर, उनका अध्ययन किया जाता है तथा संबंधित आँकड़ों को प्रकाशित किया जाता है।
  • भारत अपनी विविधता के लिये जाना जाता है। जनगणना देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, जनसंख्या आदि से संबंधित आँकड़ों के माध्यम से नागरिकों को देश की विविधता और इससे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करती है।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर

  • यह ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है जो नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-ज़िला, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बनाई जाती है।
  • कोई भी व्यक्ति जो 6 महीने या उससे अधिक समय से भारत में रह रहा है या अगले 6 महीने या उससे अधिक समय तक यहाँ रहने का इरादा रखता है, उसे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होता है।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को नागरिकता कानून, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के अनुसार तैयार किया गया है।
  • देश के नागरिकों की पहचान का डेटाबेस एकत्र करने के लिये वर्ष 2010 में इसकी शुरुआत की गई थी।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में पंजीकरण कराना भारत के प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’ के लिये अनिवार्य है।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने के लिये 21 बिंदुओं के आधार पर डेटा एकत्रित किया जाएगा, जबकि वर्ष 2010 का राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर 15 बिंदुओं के आधार पर एकत्रित आँकड़ों के अनुसार तैयार किया गया था।

ऐतिहासिक कालक्रम

  • प्राचीन साहित्य ‘ऋग्वेद’ में 800-600 ई०पू० में जनगणना का उल्लेख किया गया है।
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र (लगभग 321-296 ई०पू०) में कराधान के उद्देश्य से जनगणना को राज्य की नीति (State Policy) में शामिल करने पर बल दिया गया है।
  • मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान प्रशासनिक रिपोर्ट ‘आईन-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योगों और समाज के अन्य पहलुओं से संबंधित विस्तृत आँकड़ों को शामिल किया जाता था।
  • भारत में पहली जनगणना गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल में वर्ष 1872 में की गई थी। हालाँकि देश की पहली जनगणना प्रक्रिया को गैर-समकालिक (देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग समय पर) रूप से पूर्ण किया गया। वर्ष 1881 में पहली बार पूरे देश में एक साथ जनगणना कराई गई।
  • जनगणना-2021 अब तक की 16वीं व स्वतंत्रता के बाद से 8वीं जनगणना होगी।

जनगणना की प्रक्रिया

  • जनगणना में शामिल प्रश्नावली इस प्रक्रिया का प्राथमिक और सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। इस प्रश्नावली में नाम, लिंग, जन्मतिथि, शिक्षा, आय व आय के साधन, वैवाहिक स्थिति जैसे मूलभूत प्रश्न शामिल किये जाते हैं।
  • इसमें शामिल प्रश्नों की सहायता से सरकार नागरिकों के जीवन से जुड़ी अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ एकत्र करती है। यदि इन प्रश्नों में नागरिकों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को अच्छी तरह से शामिल किया जाए तो ये प्रश्न जनसंख्या से जुड़े आँकड़ों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को और अधिक बढ़ा देते हैं। 
  • जनगणना-2021 की प्रक्रिया का निष्पादन दो चरणों में किया जाएगा:
    • पहला चरण: जनगणना के पहले चरण में जनगणना कर्मियों को 1 अप्रैल 2020 से सितंबर माह के बीच घर-घर जाकर घरों और उनमें उपलब्ध सुविधाओं से संबंधित जानकारी एकत्रित करना था, परंतु COVID-19 महामारी के कारण इस चरण को कुछ समय के लिये स्थगित कर दिया गया है।
    • दूसरा चरण: जनगणना के दूसरे चरण में 9-28 फरवरी, 2021 तक पूरे देश में लोगों की गिनती का कार्य संपन्न किया जाएगा।

जनगणना 2021 की विशेषताएँ

  • डिजिटल प्रक्रिया: देश की जनगणना के इतिहास में पहली बार जनगणना के आँकड़ों को मोबाइल एप के माध्यम से डिजिटल रूप में एकत्र किया जाएगा। यह एप बिना इंटरनेट के ऑफलाइन भी काम करेगा। इस व्यवस्था से जनगणना प्रक्रिया में होने वाले विलंब की समस्या को दूर किया जा सकेगा और जनगणना के परिणाम तुरंत प्राप्त किये जा सकेंगे। जबकि पिछले वर्षों में हुई जनगणना के आँकड़ों के मूल्यांकन और इससे जुड़ी रिपोर्ट को प्रकाशित करने में वर्षों लग जाते थे।
  • जनगणना निगरानी और प्रबंधन पोर्टल: जनगणना की प्रक्रिया को आसान बनाने एवं इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये जनगणना निगरानी और प्रबंधन पोर्टल की व्यवस्था की जाएगी। इस पोर्टल के माध्यम से जनगणना में लगे कर्मचारियों और पदाधिकारियों को कम समय तथा अलग-अलग भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी।
  • जाति आधारित जनगणना नहीं: आगामी जनगणना में जातिगत जानकारी नहीं मांगी जाएगी। यद्यपि जनगणना-2011 के सामानांतर ही सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना (Socio-Economic Caste Census-SECC) भी की गई थी परंतु इससे प्राप्त आँकड़ों/जानकारी को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।
  • ट्रांसजेंडर की पहचान: जनगणना-2021 में पहली बार ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की जानकारी, उनकी पहचान के साथ दर्ज की जाएगी, पूर्व की जनगणना में केवल महिला या पुरुष का ही विकल्प शामिल किया गया था।

चुनौतियाँ 

  • जनगणना से संबंधित किसी भी प्रक्रिया में दो प्रकार की त्रुटियों की संभावना होती है- 1. कवरेज से संबंधित, 2. आँकड़ों से संबंधित। अतः जनगणना के दौरान ऐसी त्रुटियों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
  • कई बार अनेक भ्रांतियों, अशिक्षा के कारण या सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने के भय से (जैसे-वर्तमान में नागरिकता से जुड़ा भ्रम) लोग जनगणना में सही जानकारी नहीं दर्ज कराते हैं। उदाहरण के लिये बहुत से लोगों के मन में स्कूल न जाने वाले बच्चों के संबंध में जानकारी जुटाने को लेकर कुछ आशंकाएँ थीं और कई मौकों पर लोगों ने सर्वेक्षणों में इस संदर्भ में उत्तर नहीं दिये।
  • जनगणना की प्रक्रिया में बड़ी संख्या में कर्मचारियों के योगदान की आवश्यकता के साथ ही प्रक्रिया के सफल संचालन के लिये सरकार द्वारा करोड़ों रुपए का आवंटन किया जाता है। सरकारी अनुमान के अनुसार, जनगणना-2021 की प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 9000 करोड़ रूपए का खर्च आएगा।
  • जनगणना प्रक्रिया में आँकड़े एकत्र करने के लिये डिजिटल माध्यम के प्रयोग से जनगणना के दौरान प्राप्त आँकड़ों के मूल्यांकन में अवश्य ही तेज़ी आएगी, परंतु डिजिटल प्रक्रिया की भी अपनी सीमाएँ और चुनौतियाँ हैं। अतः जनगणना के दौरान प्राप्त आँकड़ों की सुरक्षा और इसके भंडारण तथा बैकअप पर भी विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता होगी।

समाधान 

  • जनगणना प्रक्रिया में शामिल प्रगणकों व अन्य कर्मचारियों के उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिये। साथ ही प्रगणकों को जनगणना हेतु प्रेरित/उत्साहित करने के लिये उन्हें समय पर उचित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिये। क्योंकि प्रगणक ही पूरी जनगणना प्रक्रिया का केंद्र बिंदु होते हैं अतः किसी भी प्रगणक के असंतुष्ट होने की स्थिति में डेटा की गुणवत्ता में बाधा आ सकती है।
  • जनगणना कार्यक्रम की पहुँच और प्राप्त डेटा में त्रुटियों को कम करके डेटा की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। इससे न सिर्फ जनगणना में एकत्र आँकड़ों की विश्वसनीयता में वृद्धि होगी बल्कि इससे सरकार को योजनाओं में अपेक्षित बदलाव करने में भी मदद मिलेगी।
  • समाज में जनगणना के महत्त्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता अभियानों का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • लोगों को जनगणना के महत्त्व के प्रति जागरूक और शिक्षित करने के लिये जन-जागरूकता अभियानों में स्थानीय राजनीतिक और धार्मिक नेताओं, छात्रों आदि को शामिल किया जाना चाहिये। साथ ही जनगणना के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये विभिन्न कार्यक्रमों जैसे-नुक्कड़ नाटक आदि का आयोजन किया जा सकता है।

महत्त्व 

  • जनगणना बृहत् स्तर पर आँकड़े एकत्र करने की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसके तहत देश के जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाती है। जो देश के नीति निर्माण के साथ कई अन्य उद्देश्यों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • जनगणना के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों का प्रयोग शासन, प्रशासन, योजनाओं और नीतियों के निर्माण तथा उनके प्रबंधन के साथ सरकार,स्वयंसेवी संस्थाओं, निजी एवं व्यावसायिक निकायों द्वारा चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के मूल्यांकन आदि में होता है।
  • जनसांख्यिकी, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, और कई अन्य क्षेत्रों के विद्वानों तथा शोधार्थियों के लिये भारत की जनगणना से प्राप्त आँकड़े का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा हैं। जनगणना से प्राप्त आँकड़े ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों के लिये उपलब्ध होते हैं, जिससे क्षेत्र विशेष के विकास हेतु आवश्यक निर्णय लिये जा सकते हैं।
  • वित्त आयोग राज्यों के लिये अनुदान का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर करता है। ऐसे में जनगणना से प्राप्त जनसंख्या संबंधी ये आँकड़े राज्यों को दिये जाने वाले अनुदान के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जनगणना के आँकड़ों के आधार पर ही लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है।

प्रश्न- जनगणना से आप क्या समझते हैं? जनगणना की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में इसकी भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।