जैव विविधता और पर्यावरण
COVID-19: पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा
- 14 Mar 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:COVID-19, ट्रिपल रिज़ाॅर्टमेंट मेन्स के लिये:जूनोटिक बीमारियों का पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, COVID-19 का सबसे संभावित वाहक चमगादड़ है तथा इस वायरस ने मध्यवर्ती मेज़बान, जो घरेलू या जंगली जानवर हो सकता है, के माध्यम से मनुष्य में प्रवेश किया है।
मुख्य बिंदु:
- वैज्ञानिकों का मानना है विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि से वन्यजीव अधिवासों में लगातार कमी आ रही है तथा इसके कारण रोगजनकों का प्रसार तेज़ी से पशुधन और मनुष्यों में हो सकता है।
- पिछले कुछ वर्षों में कई ज़ूनोटिक बीमारियाँ विश्व में सुर्खियाँ में रही तथा वे महामारी का कारण बनी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में इन उभरती बीमारियों से हुई आर्थिक नुकसान की लागत 100 बिलियन डाॅलर से अधिक रही।
वन्य आवास में क्षति तथा संक्रामक रोग:
- वैज्ञानिकों का मानना है कि वन्यजीव आवासों की क्षति के कारण मनुष्यों में उभरते संक्रामक रोगों के प्रसार ( Emerging Infectious Diseases- EIDs) में वृद्धि हुई है। ये वन्यजीवों से मनुष्यों में फैलते हैं, जैसे- इबोला, वेस्ट नाइल वायरस, सार्स, मारबर्ग वायरस आदि।
- मनुष्यों में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS) का संचरण मुश्कबिलाव (Civet Cats) से तथा मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome- MERS) का संचरण कूबड़ वाले ऊँटों (अरब के ऊँट) से हुआ।
- वैज्ञानिकों ने वन्य जीवों के आवास में क्षति तथा संक्रामक रोगों के संचरण के मध्य संबंध पर सह विकास प्रभाव (The Coevolution Effect) की अवधारणा दी है।
- इस अवधारणा के अनुसार, जंगल के छोटे विलगित भाग द्वीप के रूप में तथा रोगकारकों के होस्ट का कार्य करते हैं। इससे विभिन्न रोगकारकों की संख्या में वृद्धि होने तथा इनके आसपास की मानवीय आबादी तक पहुँचने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि मनुष्य और प्रकृति दोनों जैवमंडल के ही भाग हैं तथा एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हैं, साथ ही भोजन, दवा, पानी, स्वच्छ हवा आदि के लिये मनुष्य प्रकृति पर निर्भर है, ऐसे में ज़ूनोटिक रोगों के मनुष्य में संचरण की पूरी संभावना होती है।
वन्यजीवों की भूमिका:
वायरस अपनी आनुवंशिक प्रोफाइल को बदलने में सक्षम होते हैं तथा मनुष्यों में इनका संक्रमण दो प्राथमिक तरीकों से हो सकता है-
उत्परिवर्तन:
- प्रतिकृति निर्माण प्रक्रिया के दौरान हुई त्रुटियों को उत्परिवर्तन कहा जाता है। RNA वायरस में यह गुण विशेष रूप से पाया जाता है। उत्परिवर्तन प्रक्रिया में अधिकांश वायरस सफल नहीं हो पाते है परंतु जो वायरस ऐसा करने में सफल हो जाते हैं वे एक नवीन रोग के जनक होते हैं।
ट्रिपल रिज़ाॅर्टमेंट (TRIPLE REASSORTMENT):
- जब कोई स्तनपायी एक साथ दो (या अधिक) श्वसन-वायरस से संक्रमित होता है तो वायरस प्रतिकृति निर्माण के समय इन दोनों वायरसों के आनुवंशिक जीन एक साथ मिल जाते हैं, यथा- वर्ष 2009 में फैली H1N1 महामारी वायरस के पूर्ववर्ती वायरस सूअरों में विद्यमान था तथा इसमें मानव इन्फ्लूएंज़ा वायरस एवं एवियन इन्फ्लूएंज़ा के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान होने से इस महामारी का जन्म हुआ था।
मानव-पशु और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- ज़ूनोटिक रोग मानव स्वास्थ्य, कृषि, अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण की अखंडता को प्रभावित करते हैं। पारिस्थितिक तंत्र की विविधता अधिक होने पर इस रोगकारकों के सभी प्रजातियों को संक्रमित करने की संभावना कम हो जाती है।
COVID-19 एवं पारिस्थितिकी तंत्र:
- COVID-19 एक ज़ूनोटिक रोग है अर्थात् इसका संचरण जानवरों से मनुष्यों में हो सकता है।
- चीन COVID-19 वायरस के प्रति अति संवेदनशील हैं क्योंकि ऐसे स्थान जहाँ मनुष्यों और जानवरों में अनियमित रक्त संबंध स्थापित होता है, वहाँ पर इस वायरस का अधिक प्रसार होता है।
- दुनिया के पशुधन की लगभग 1.4 बिलियन (50%) आबादी के साथ चीन की पारिस्थितिकी को कोरोनावायरस जैसी बीमारियों का खतरा है जो चीन के साथ-साथ दुनिया के बाकी हिस्सों में भी खतरा पैदा कर सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन जंगली जानवरों एवं उनके अंगों की तस्करी का सबसे बड़ा बाज़ार है, ऐसे में वह जंगली जानवरों की तस्करी पर प्रतिबंध लगाने की मुहिम का नेतृत्व कर सकता है। अत: जानवरों से जुड़े उत्पादों के नियमन को वैश्विक स्तर पर लागू करने की दिशा में कार्य करना आवश्यक है।