निर्वाचन आयोग को सशक्त बनाना | 26 Mar 2024
यह एडिटोरियल 20/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Selection and election: On the appointment of Election Commissioners” लेख पर आधारित है। इसमें भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के लिये कार्यकारी पूर्वाग्रह से रहित एक निष्पक्ष चयन पैनल की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय निर्वाचन आयोग (EC), लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, CEC और अन्य ECs (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023। मेन्स के लिये:भारतीय निर्वाचन आयोग की उपलब्धियाँ, भारत के चुनाव आयोग से जुड़े मुद्दे, भारतीय निर्वाचन आयोग को मज़बूत करने हेतु उठाए गए कदम। |
हाल में दो सेवानिवृत्त नौकरशाहों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को त्वरित रूप से निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। ये नियुक्तियाँ वर्ष 2024 में आयोजित आम चुनाव की निर्धारित तिथियों की घोषणा के ठीक दो दिन पूर्व की गईं। वे अब भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) के तीन सदस्यीय पैनल में मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार को सहयोग प्रदान करेंगे।
भारत निर्वाचन आयोग के सदस्यों के लिये एक स्वतंत्र चयन प्रक्रिया पर एक संवैधानिक पीठ द्वारा जारी विचारण के बीच निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे से एक बहस छिड़ गई। इसके साथ ही, आम चुनाव हेतु तिथियों की घोषणा के ठीक पहले बिना किसी स्पष्टीकरण के अरुण गोयल के इस्तीफे से आयोग के कार्यकरण की पारदर्शिता एवं स्वयत्तता के मामले में आशंकाओं की वृद्धि हुई है।
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) क्या है?
- परिचय:
- भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये उत्तरदायी है।
- इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को संविधान के उपबंधों के अनुरूप की गई थी। उल्लेखनीय है कि 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस (National Voters' Day) के रूप में मनाया जाता है। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
- ECI लोकसभा, राज्यसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव के साथ ही राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव का आयोजन कराता है।
- राज्यों में पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनावों से उसका कोई संबंध नहीं है; इनके लिये भारत के संविधान में एक पृथक राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान किया गया है।
- भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये उत्तरदायी है।
- संवैधानिक उपबंध:
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग के गठन का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 324: निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा।
- अनुच्छेद 325: कोई भी व्यक्ति धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष निर्वाचक नामावली या मतदाता सूची में सम्मिलित किये जाने के लिये अपात्र नहीं होगा या इसमें सम्मिलित किये जाने का दावा नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 327: विधान-मंडल के लिये निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल के लिये निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधानमंडल की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन।
- ECI की संरचना:
- आरंभ में आयोग में केवल एक निर्वाचन आयुक्त होता था लेकिन निर्वाचन आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों से, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करे, मिलकर बनेगा।
- वर्तमान में, इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और दो निर्वाचन आयुक्त (ECs) शामिल हैं।
- आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल:
- राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023 के अनुसार CEC और ECs की नियुक्ति करता है।
- उनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, निर्धारित है।
- CEC और ECs का वेतन और सेवा की शर्तें कैबिनेट सचिव के समकक्ष होंगी।
- पद से हटाया जाना:
- वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या कार्यकाल समाप्त होने से पहले भी हटाए जा सकते हैं।
- CEC को केवल संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही एक प्रक्रिया से पद से हटाया जा सकता है, जबकि ECs को केवल CEC की अनुशंसा पर ही हटाया जा सकता है।
भारत निर्वाचन आयोग की अब तक क्या उपलब्धियाँ रही हैं?
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराना:
- भारत निर्वाचन आयोग ने देश भर में कई चुनावों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है, जहाँ यह सुनिश्चित किया है कि वे निष्पक्ष और बिना पूर्वाग्रह के संपन्न हों।
- इसने वर्ष 1947 के बाद से अब तक 17 राष्ट्रीय और 370 से अधिक राज्य चुनावों की अखंडता (स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता) सुनिश्चित की है।
- ‘अन-डॉक्यूमेंटेड वंडर’ के रूप में प्रतिष्ठित:
- यह वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े और सबसे लंबे चुनावों में से कुछ का आयोजन करता रहा है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 के संसदीय चुनावों में 900 मिलियन पात्र मतदाता थे और इसे 39 दिनों में नौ चरणों में संपन्न कराया गया था।
- ‘अन-डॉक्यूमेंटेड वंडर’ (Undocumented Wonder) के रूप में प्रतिष्ठित ECI सार्वजनिक मूल्य के संरक्षक के रूप में उभरा है, जो भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की अखंडता सुनिश्चित करता है।
- समावेशी भागीदारी के लिये पहलें:
- ECI द्वारा उठाए गए कदमों ने यह सुनिश्चित किया है कि गरीब और हाशिये पर स्थित लोग भी उत्साही मतदाता बने रहे हैं और उच्च स्तर वाले एवं अधिक शक्तिशाली समूहों द्वारा किसी धमकी के भय के बिना अधिकाधिक संख्या में चुनावों में भागीदारी करते हैं।
- इसने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों जैसे विशेष प्रावधानों को लागू किया है, साथ ही बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने और रिश्वतखोरी जैसे चुनावी कदाचार को रोकने के उपाय भी किये हैं; इस प्रकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू बनाने में योगदान किया है।
- मतदाता पहचान पत्र का प्रयोग:
- भारतीय मतदाता पहचान पत्र (Voter ID Cards), जिसे आधिकारिक तौर पर निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (Elector's Photo Identity Card- EPIC) के रूप में जाना जाता है, पहली बार वर्ष 1993 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी.एन. शेषन के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था ।
- मतदाता पहचान पत्र पहचान और पते के प्रमाण के रूप में कार्य करते हैं, जिससे मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखने और प्रतिरूपण की घटनाओं को कम करने में मदद मिलती है।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) का उपयोग:
- ECI द्वारा EVMs का उपयोग शुरू करने से मतदान प्रक्रिया व्यापक रूप से सुव्यवस्थित हो गई है, जहाँ इसकी दक्षता बढ़ी है और चुनावी धोखाधड़ी की संभावना कम हो गई है।
- EVMs मतों की गिनती में सटीकता सुनिश्चित करते हैं और इससे भारत में चुनावों की पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता बढ़ी है।
- आदर्श आचार संहिता का कार्यान्वयन:
- ECI सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC) लागू करता है।
- MCC चुनावी प्रक्रिया के दौरान आचरण के लिये दिशानिर्देश तय करती है, जिसमें चुनाव प्रचार, राजनीतिक विज्ञापन और सरकारी संसाधनों के उपयोग पर विभिन्न नियम शामिल होते हैं, जिससे निष्पक्ष एवं नैतिक चुनाव अभ्यासों को बढ़ावा मिलता है।
- प्रौद्योगिकी का अभिनव उपयोग:
- ECI ने चुनावी प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिये प्रौद्योगिकीय प्रगतियों को अपनाया है, जैसे कि मतदाता पंजीकरण पोर्टल, ऑनलाइन मतदाता सत्यापन प्रणाली और मतदाता शिक्षा एवं सूचना प्रसार के लिये मोबाइल ऐप की शुरूआत।
- इन पहलों ने चुनावी प्रक्रिया को अधिक अभिगम्य, पारदर्शी और कुशल बनाया है।
- भारत निर्वाचन आयोग द्वारा डिज़ाइन किया गया cVIGIL (Citizen Vigilance) एक मोबाइल एप्लीकेशन है, जो नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुनाव संहिता के उल्लंघन की रिपोर्ट करने का अवसर देता है।
- मतदाता शिक्षा कार्यक्रमों का कार्यान्वयन:
- ECI ने मतदाता जागरूकता और चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ाने के लिये व्यापक मतदाता शिक्षा अभियान शुरू किये हैं।
- इन पहलों का उद्देश्य नागरिकों को उनके मतदान के अधिकार, मत डालने के महत्त्व और चुनाव के दौरान सूचित विकल्प चुनने के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना है।
भारत निर्वाचन आयोग से संबद्ध विभिन्न मुद्दे क्या हैं?
- संवैधानिक सीमाएँ:
- संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (विधिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
- संविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त निर्वाचन आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी भी आगे की नियुक्ति से अवरुद्ध नहीं किया है।
- चयन समिति में सरकार का प्रभुत्व:
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023 के तहत एक चयन समिति का गठन किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- इस प्रकार, चयन समिति में तत्कालीन सरकार के सदस्यों का बहुमत होता है, जो ECI की स्वतंत्रता को कमज़ोर कर सकता है।
- कार्यकाल की सुरक्षा:
- निर्वाचन आयुक्तों के लिये कार्यकाल की सुरक्षा की गारंटी नहीं है क्योंकि उन्हें औपचारिक महाभियोग प्रक्रिया के बजाय मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अनुशंसा पर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा हटाया जा सकता है। इससे वे असुरक्षित हो जाते हैं और संभावित रूप से उनकी स्वतंत्रता पर असर पड़ता है।
- वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव:
- निर्वाचन आयोग की वित्तीय स्वतंत्रता सीमित है क्योंकि यह वित्तीय मामलों के लिये केंद्र सरकार पर निर्भर है।
- विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रयासों के बावजूद, निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि से प्राप्त नहीं किया जाता है, जिससे केंद्र सरकार पर उसकी निर्भरता और बढ़ जाती है।
- चुनावी कदाचार:
- मतदाता सूची में अनियमितताएँ एवं विसंगतियाँ (जैसे डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ, अशुद्धियाँ एवं अपवर्जन) ऐसे नियमित रूप से बने रहे मुद्दे हैं जो नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकते हैं और चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के साथ छेड़छाड़, मतदाता प्रतिरूपण और मतदाता सूचियों में हेरफेर सहित चुनावी धोखाधड़ी के विभिन्न मामले चुनाव की अखंडता के लिये खतरा पैदा करते हैं।
- चुनावी हिंसा, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या सांप्रदायिक तनाव का इतिहास रहा है, एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है।
- राजनीतिक पूर्वाग्रह के आरोप:
- ECI को उसकी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में राजनीतिक पूर्वाग्रह और पक्षपात के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
- आयोग के आदेश द्वारा राज्य सरकारों के अधीन कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों के अचानक स्थानांतरण के उदाहरण सामने आते रहे हैं।
- राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा MCC के उल्लंघन (जैसे घृणास्पद भाषण, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और नकदी एवं उपहारों का वितरण) के मामले अधिक प्रभावी प्रवर्तन तंत्र की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
- कुछ राजनीतिक दलों और हितधारकों द्वारा ECI पर सत्तारूढ़ दल से प्रभावित होने या चुनावी विवादों एवं शिकायतों को संबोधित करने में निष्पक्ष रूप से कार्य करने में विफल रहने के आरोप लगाये जाते रहे हैं।
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति का अभाव:
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत नामांकन प्राधिकारी के रूप में अपनी भूमिका के बावजूद, निर्वाचन आयोग के पास गंभीर उल्लंघन के मामलों में भी राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
- इसके अतिरिक्त, ECI के पास दलों में आंतरिक लोकतंत्र को लागू करने या दलों के वित्त को विनियमित करने की शक्ति नहीं है।
- अभिगम्यता और समावेशिता:
- मतदाता अभिगम्यता एवं समावेशिता को बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, यह सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं कि सभी पात्र नागरिक मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें।
- दिव्यांग मतदाताओं के लिये अपर्याप्त अवसंरचना, भाषा संबंधी बाधाएँ और दूरदराज या वंचित क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियों जैसे मुद्दे मतदाता भागीदारी में बाधक बन सकते हैं।
भारत निर्वाचन आयोग को सशक्त करने के लिये कौन-से कदम उठाये जाने चाहिये?
- स्वतंत्र चयन समिति का गठन:
- एक स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जाए जिसमें सरकारी अधिकारियों के अलावा विभिन्न हितधारकों के प्रतिनिधि शामिल हों। इस समिति को नियुक्ति प्रक्रिया की निगरानी करनी चाहिये और निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ, 2023 मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शामिल हों।
- निर्वाचन आयुक्तों को सांविधिक सुरक्षा प्रदान करना:
- ऐसा विधान लाया जाए जो उन शर्तों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे जिनके तहत निर्वाचन आयुक्तों को पद से हटाया जा सकता है।
- इस विधान में मनमाने ढंग से बर्खास्तगी को रोकने के लिये कड़े मानदंड और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये।
- पारदर्शी वित्तपोषण तंत्र:
- ECI को धन आवंटित करने के लिये पारदर्शी तंत्र लागू किया जाए, जैसे कि संसदीय विनियोग प्रक्रिया या एक स्वतंत्र बजटीय निरीक्षण समिति के माध्यम से।
- इससे जवाबदेही बढ़ेगी और यह सुनिश्चित होगा कि वित्तपोषण संबंधी निर्णय उचित एवं निष्पक्ष तरीके से लिये गए हैं।
- आनुपातिक दंड की शक्ति:
- उल्लंघन के दोषी पाए जाने वाले राजनीतिक दलों के विरुद्ध विभिन्न तरह के प्रतिबंध एवं दंड लागू कर सकने के लिये (जैसे उनके विशेषाधिकारों का निलंबन और अस्थायी या स्थायी रूप से उनका पंजीकरण रद्द करना) ECI को सशक्त बनाया जाए।
- दंड की गंभीरता उल्लंघन की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिये।
- चुनावी अखंडता बढ़ाना:
- चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये तंत्र को सुदृढ़ करना सर्वोपरि महत्त्व रखता है।
- इसमें चुनावी धोखाधड़ी, मतदाता भयादोहन और कदाचार को रोकने के उपायों को बढ़ावा देने के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम, मतदाता पंजीकरण डेटाबेस और मतपत्र गिनती प्रक्रियाओं की सुरक्षा एवं विश्वसनीयता में सुधार लाना शामिल है।
- आयोग को अधिक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल सिस्टम (VVPATS) स्थापित कर लोगों के बीच अपना विश्वास स्थापित करने की आवश्यकता है।
- प्रौद्योगिकीय एकीकरण:
- प्रौद्योगिकीय प्रगति को अपनाने और चुनावी अवसंरचना के आधुनिकीकरण में निवेश करने से चुनावी प्रक्रिया की दक्षता, पारदर्शिता एवं अखंडता में सुधार हो सकता है।
- इसमें सुरक्षा बढ़ाने और छेड़छाड़ या धोखाधड़ी के जोखिम को कम करने के लिये ब्लॉकचेन-आधारित वोटिंग सिस्टम जैसी उन्नत वोटिंग तकनीकों को अपनाना शामिल है।
- समावेशी भागीदारी:
- चुनावी प्रक्रिया में समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये मतदाता दमन, भेदभाव एवं मताधिकार से वंचना जैसे मुद्दों के समाधान हेतु सक्रिय उपाय करने के साथ ही चुनाव संबंधी निर्णयकारी निकायों में विविध समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- सुनिश्चित किया जाए कि मतदान केंद्र दिव्यांगजनों सहित सभी मतदाताओं के लिये अभिगम्य हों। इसमें रैंप, व्हीलचेयर अनुरूप प्रवेश द्वार, ब्रेल संकेत और स्पर्शनीय वोटिंग मशीनें प्रदान करना शामिल हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- अंतर्राष्ट्रीय चुनावी प्रबंधन निकायों एवं संगठनों के साथ सहकार्यता एवं सहयोग को सुदृढ़ करने से ज्ञान के आदान-प्रदान, क्षमता-निर्माण पहलों और चुनावी प्रशासन में सर्वोत्तम अभ्यासों के अंगीकरण की सुविधा मिल सकती है।
- इससे वैश्विक मंच पर ECI की विश्वसनीयता, प्रभावशीलता और प्रतिष्ठा बढ़ सकती है।
निष्कर्ष:
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) का भविष्य प्रौद्योगिकीय प्रगति को अपनाने, नियामक ढाँचे को सुदृढ़ करने, समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने की इसकी क्षमता में निहित है। निर्वाचन आयोग को सशक्त बनाकर और चुनावों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने एवं निगरानी करने की उसकी क्षमता को बढ़ाकर, भारत लोकतांत्रिक शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर सकता है तथा चुनावी प्रणाली में अपने नागरिकों के बीच भरोसे एवं आत्मविश्वास को बढ़ावा दे सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत निर्वाचन आयोग की परिचालनात्मक प्रभावकारिता से जुड़ी उपलब्धियों एवं चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। भारत निर्वाचन आयोग को सुदृढ़ और सशक्त बनाने के लिये आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022) |