विविधता का संरक्षण, पृथ्वी का संरक्षण | 21 Dec 2022
यह एडिटोरियल 20/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A planet in crisis: on tangible outcomes from biological diversity convention” लेख पर आधारित है। इसमें ‘जैव विविधता अभिसमय’ (CBD) और जैव विविधता संरक्षण से संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत एक विशाल विविधता वाला देश है और विश्व की लगभग 10% प्रजातियों का घर है। इसके पास हज़ारों वर्षों से प्रवाहमान एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है। अधिकांश भारतीय जैव विविधता इस भूमि की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं से जटिल रूप से संबद्ध है।
- दुर्भाग्य से, जनसंख्या विस्फोट, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नीतियों के ढुलमुल कार्यान्वयन के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (IUCN) की पादप एवं जंतु प्रजातियों की लाल सूची के अनुसार, भारत में कम से कम 97 स्तनधारी, 94 पक्षी और 482 पादप प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
- इस तेज़ी से बढ़ते जैव विविधता क्षरण ने दुनिया के देशों के बीच जैव विविधता अभिसमय (Convention of Biological Diversity- CBD) जैसे कई तरह की समझौता वार्ताओं एवं संधियों का मार्ग प्रशस्त किया है। लेकिन प्रजाति विलुप्ति की वर्तमान दर और पैमाना अभूतपूर्व है। इस परिदृश्य में भारत को जैव विविधता संरक्षण की दिशा में गंभीर कदम उठाने चाहिये।
‘जैव विविधता अभिसमय’ क्या है?
- जैव विविधता अभिसमय (CBD) जैव विविधता के संरक्षण के लिये एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से प्रवर्तित है। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
- जैव विविधता का संरक्षण।
- जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
- 196 देशों द्वारा इस अभिसमय की पुष्टि की गई है।
- भारत ने CBD के प्रावधानों को प्रभावी करने के लिये वर्ष 2002 में ‘जैव विविधता अधिनियम’ लागू किया।
जैव विविधता का महत्त्व क्या है?
- उत्तरजीविता की आवश्यकताओं की पूर्ति: संभवतः जैव विविधता का सबसे महत्त्वपूर्ण मूल्य, विशेष रूप से भारत में, यह है कि यह बड़ी संख्या में लोगों के मूलभूत अस्तित्व की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
- जीन (Genes) ग्रह पर सभी जैविक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और पर्यावरणीय तनावों से निपटने के लिये जीवों की क्षमता में वृद्धि करते हैं।
- आज भी ऐसे कई पारंपरिक समुदाय मौजूद हैं जो भोजन, आश्रय और वस्त्र की दैनिक आवश्यकताओं के लिये आसपास के प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण या आंशिक रूप से निर्भर हैं।
- औषध संबंधी महत्त्व: जैव विविधता ने आधुनिक चिकित्सा और मानव स्वास्थ्य अनुसंधान एवं उपचार की प्रगति में वृहत योगदान किया है।
- कई आधुनिक औषध/फार्मास्यूटिकल्स पादप प्रजातियों से प्राप्त होते हैं। इनमें पैसिफिक यू ट्री से प्राप्त एंटी-ट्यूमर एजेंट ‘टैक्सोल’ (Taxol) और स्वीट वर्मवुड से प्राप्त एंटी-मलेरियल ‘आर्टेमिसिनिन’ (artemisinin) शामिल हैं।
- सौंदर्यपरक महत्त्व: प्रत्येक प्रजाति और पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर जीवन की समृद्धि और सुंदरता को बढ़ाते हैं। अत्यधिक विविध वातावरण प्रमुख पारिस्थितिक तंत्र हैं जो सुंदर, शैक्षिक और दिलचस्प मनोरंजन स्थल होने के साथ ही विभिन्न प्रजातियों का संपोषण करते हैं।
- नैतिक महत्त्व: प्रत्येक प्रजाति अद्वितीय है और अपने अस्तित्व का अधिकार रखती है। प्रत्येक प्रजाति सम्मान के योग्य है, भले ही मनुष्य के लिये इसका मूल्य कुछ भी हो। वर्ष 1982 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए ‘वर्ल्ड चार्टर फॉर नेचर’ में इस दृष्टिकोण को मान्यता दी गई थी।
- पारिस्थितिक सेवाएँ: किसी विशेष पर्यावास में मौजूद विशिष्ट जीवन रूप उस वातावरण में अन्य जीवन रूपों के लिये अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण में मदद करते हैं। एक प्रजाति की हानि अन्य प्रजातियों के विलुप्त होने या उनमें परिवर्तन का कारण बन सकती है।
जैव विविधता संरक्षण से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
- पारंपरिक प्रजनन प्रणाली का क्षरण: औद्योगीकरण की प्रगति के साथ वाणिज्यिक कृषि और अधिक कुशल नस्लों की आवश्यकता की वृद्धि हुई है। इससे पारंपरिक प्रजनन प्रणालियों का धीरे-धीरे क्षरण हुआ है और जैव विविधता का नुकसान हुआ है।
- इसके अलावा, प्राचीन प्रजनन प्रणालियों से जुड़े पारंपरिक ज्ञान की लगातार हानि हो रही है।
- वन अधिकारों और वन्यजीव संरक्षण के बीच संघर्ष: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की की पहचान की है कि देश के अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों को जनजातीय/आदिवासी समुदायों के बसावट अधिकारों को मान्यता दिये बिना अधिसूचित किया गया है।
- वन अधिकार अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (वर्ष 2006 का संशोधन) का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों में शासन एवं प्रशासन का लोकतंत्रीकरण करना था, जो अभी तक साकार नहीं हो पाया है।
- विदेशी प्रजातियों का प्रवेश: आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (जिनमें पौधे, जंतु और रोगजनक शामिल हैं), जो एक पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गैर-मूलनिवासी होती हैं, पर्यावरणीय क्षरण का कारण बनती हैं या पारिस्थितिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- CBD रिपोर्ट्स के अनुसार, आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने समस्त जंतु विलुप्ति में लगभग 40% योगदान दिया है।
- ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन: ये पादप एवं जंतु प्रजातियों के लिये खतरा पैदा करते हैं क्योंकि कई जीव वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता के प्रति संवेदनशील होते हैं और यह उनकी विलुप्ति का कारण बन सकता है।
- कीटनाशकों का उपयोग, क्षोभमंडलीय ओज़ोन की वृद्धि और उद्योगों से सल्फर एवं नाइट्रोजन का उत्सर्जन भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण में योगदान देता है।
- समुद्री जैव विविधता का क्षरण: प्लास्टिक अपशिष्ट के कुशल प्रबंधन की कमी के कारण महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक्स डंप किये जा रहे हैं जो समुद्री जीवन का गला घोंट रहे हैं। ये समुद्री जीवों में यकृत, प्रजनन और जठरांत्र संबंधी क्षति का कारण बन रहे हैं और प्रत्यक्ष रूप से समुद्री जैव विविधता को प्रभावित कर रहे हैं।
- आनुवंशिक संशोधन संबंधी चिंता: आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के विघटन के लिये उच्च जोखिम रखते हैं क्योंकि संशोधित जीन से उत्पन्न बेहतर लक्षण किसी एक जीव के पक्ष में हो सकते हैं।
- इस प्रकार, यह अंततः जीन प्रवाह की प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है और स्वदेशी किस्म की संवहनीयता/स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
जैव विविधता संरक्षण से संबंधित हाल की पहलें
- भारत में:
- वैश्विक स्तर पर:
आगे की राह
- संपूर्ण जीवमंडल की रक्षा: संरक्षण केवल प्रजातियों के स्तर तक सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि स्थानीय समुदायों सहित संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर केंद्रित होना चाहिये।
- जैव विविधता की रक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये भारत को और अधिक बायोस्फीयर रिज़र्व स्थापित करने की आवश्यकता है।
- स्वदेशी जीन बैंकः रोगों के अनुकूल होने की क्षमता और इनमें निहित पोषण मूल्य के कारण स्वदेशी किस्म को संरक्षित करना महत्त्वपूर्ण है।
- जीन बैंक स्थापित किये जा सकते हैं जो विभिन्न अनुसंधान संस्थानों को शोध सहायता देने के साथ-साथ स्वदेशी फसलों के संरक्षण में मदद करेंगे।
- प्लास्टिक अपशिष्ट का अपचयन: प्लास्टिक हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में इतना घुलमिल गया है कि इसके अपचयण के लिये जीवाणु/बैक्टीरिया विकसित हो गए हैं। जापान में खोजे गए प्लास्टिक-भक्षी बैक्टीरिया का उत्पादन किया जा रहा है और पॉलियेस्टर प्लास्टिक (खाद्य पैकेजिंग और प्लास्टिक की बोतलों में प्रयुक्त) का अपचयन कर सकने के लिये इन्हें संशोधित किया गया है। यह महासागरों में प्लास्टिक डंपिंग को रोकने और समुद्री जैव विविधता की रक्षा करने का एक सफल तरीका साबित हो सकता है।
- मूल निवासियों के अधिकारों की मान्यता: किसी क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के लिये, वनों पर निर्भर वनवासियों के अधिकारों की मान्यता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि प्राकृतिक पर्यावास की घोषणा।
- जनजातीय लोगों को आमतौर पर सर्वश्रेष्ठ संरक्षणवादी के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे प्रकृति से अधिक आध्यात्मिक रूप से जुड़े होते हैं।
- उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के संरक्षण का सबसे सस्ता और तेज़ तरीका यह होगा कि जनजातीय लोगों के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
अभ्यास प्रश्न: भारत में जैव विविधता के ह्रास के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की चर्चा कीजिये। यह सुझाव भी दीजिये कि भारत जैव विविधता संरक्षण नीतियों को प्रभावी ढंग से कैसे लागू कर सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाQ1. दो महत्वपूर्ण नदियाँ - एक का स्रोत झारखंड में (और ओडिशा में एक अलग नाम से जानी जाती हैं)और दूसरी का स्रोत ओडिशा में - समुद्र में गिरने से पहले बंगाल की खाड़ी के तट से कुछ ही दूरी पहले एक स्थल पर मिलती हैं। यह वन्य जीवन और जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण स्थल और एक संरक्षित क्षेत्र है। यह निम्नलिखित में से कौन सा हो सकता है? (वर्ष 2011) (A) भितरकनिका उत्तर: (A) Q2. भारत की जैव विविधता के संदर्भ में, सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बारबेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और व्हाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट हैं- (वर्ष 2020) (A) पक्षी उत्तर: (A) मुख्य परीक्षाQ. भारत में जैव विविधता का क्या स्वरूप है? जैव विविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है? (वर्ष 2018) |