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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन एवं LiFE

  • 25 Oct 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 20/10/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A new lease of LIFE for climate action” लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये भारत की LiFE पहल की भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत की ‘पर्यावरण के लिये जीवनशैली’ ([Lifestyle for the Environment- LiFE) पहल पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली की दिशा में एक जन आंदोलन के रूप में उभरी है। कोविड-19 ने यह उजागर कर दिया कि मानव जाति की उल्लेखनीय वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के बावजूद हम अभी भी प्राकृतिक जगत की दया पर निर्भर हैं।

  • वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरा पहले की तुलना में कहीं अधिक गंभीर हो गया है। अपव्ययी उपभोक्तावाद (wasteful consumerism) से प्रेरित उपभोक्तावादी समाज (throwaway society) इस गहराते संकट के लिये समान रूप से दोषी है।
  • स्विस रे (Swiss Re) के अनुसार, यदि जलवायु कार्रवाई नहीं की गई तो वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद का 18% तक गँवा सकती है। यह परिदृश्य संवहनीय और पर्यावरण-अनुकूल अभ्यासों की ओर संक्रमण की एक प्रकट आवश्यकता रखता है।

LiFE पहल क्या है?

  • LiFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया था।
  • यह विचार पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली को बढ़ावा देने पर बल देता है जो ‘विवेकहीन एवं अपव्ययी उपभोग’ के बजाय ‘विवेकपूर्ण एवं विचारपूर्ण उपयोग’ पर केंद्रित है।

पर्यावरण संरक्षण के विषय में भारत की उपलब्धियाँ

  • स्थापित विद्युत क्षमता: भारत द्वारा स्थापित विद्युत क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने की प्रतिबद्धता को निर्धारित समय से 9 वर्ष पहले ही प्राप्त कर लिया गया है।
  • इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य: पेट्रोल में 10% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित समय (नवंबर 2022) से 5 माह पूर्व ही प्राप्त कर लिया गया है।
    • यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि वर्ष 2013-14 में यह सम्मिश्रण महज 1.5% और वर्ष 2019-20 में 5% रहा था।
  • नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: REN21 की नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट (GSR 2022) के अनुसार भारत वर्ष 2021 में स्थापित क्षमता के मामले में पवन ऊर्जा में तीसरे, सौर ऊर्जा में चौथे और नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में तीसरे स्थान पर रहा।

भारत में पर्यावरण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • घटते वन, घटती आजीविका: गरीबी और पर्यावरणीय क्षति के बीच एक संबंध पाया जाता है। हमारी आबादी का एक बड़ा भाग खाद्य, ईंधन, आश्रय और चारे की अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिये देश के प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर है।
    • पर्यावरण क्षरण ने गरीबों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है जो अपने आसपास के संसाधनों पर निर्भर होते हैं। इस प्रकार गरीबी की चुनौती और पर्यावरण क्षरण की चुनौती एक ही चुनौती के दो तथ्य हैं।
  • स्वस्थ पर्यावरण का आप्लावन: वन नदियों के लिये जलग्रहण क्षेत्र के रूप में योगदान करते हैं। जल की बढ़ती मांग को देखते हुए वृहत सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से विशाल नदियों के दोहन की योजना बनाई गई है। निश्चित रूप से, ये वनों को जलमग्न कर सकते हैं, स्थानीय लोगों को विस्थापित कर सकते हैं और वनस्पतियों एवं वन्यजीवों को क्षति पहुँचा सकते हैं।
    • इसके साथ ही, भारत में कई शताब्दियों से कृषि और अन्य उपयोगों के दबाव के कारण वन क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं। विशाल क्षेत्र जो कभी हरे-भरे थे, आज बंजर भूमि के रूप में पड़े हैं।
  • अनियमित खनन गतिविधियाँ: निर्माण सामग्री की भारी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उत्खनन और अन्य खनन गतिविधियों के कारण कई पहाड़ियाँ गायब हो गई हैं। उदाहरण: अरावली हिल्स, राजस्थान।
    • इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा मांग की पूर्ति के लिये अभी भी ताप विद्युत संयंत्रों पर निर्भर है, जिसके परिणामस्वरूप कोयला खनन दरों में वृद्धि हुई है।
  • अनुपयुक्त ठोस-अपशिष्ट प्रबंधन: भारत में सर्वाधिक दबावकारी पर्यावरणीय मुद्दों में से एक अपशिष्ट की समस्या भी है। देश में प्रति वर्ष लगभग 277 मिलियन टन ‘म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट’ (MSW) का उत्पादन होता है ।
    • वर्तमान में कुल एकत्रित अपशिष्ट के लगभग 5% का ही पुनर्चक्रण किया जाता है, 18% का कंपोस्ट बनाया जाता है और शेष को लैंडफिल साइटों पर डंप कर दिया जाता है।

पर्यावरणीय क्षरण से निपटने हेतु सरकार की प्रमुख पहलें

आगे की राह

  • उत्तरदायी उपभोग की ओर आगे बढ़ना: उपभोग के सामाजिक, पर्यावरणीय एवं आर्थिक प्रभावों पर विचार करने, हरित उत्पादों की खरीद, बेहतर उपभोग - कम बर्बादी (consuming better – wasting less) और एक अधिक संवहनीय उपभोग पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, वर्तमान ‘टेक-मेक-यूज़-डिस्पोजल’ अर्थव्यवस्था (‘take-make-use-dispose’ economy) से एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) की ओर संक्रमण शुरू करने की आवश्यकता है।
  • संवहनीय आवागमन (Sustainable Mobility): नए बसों की खरीद और सार्वजनिक परिवहन के डिजिटलीकरण के साथ ई-बसों को अपनाने, बस कॉरिडोरों एवं बस रैपिड ट्रांजिट तंत्रों की स्थापना के साथ सार्वजनिक परिवहन पर पुनर्विचार करने एवं उस पर भरोसे की पुनर्बहाली हेतु कार्य करने की आवश्यकता है ।
    • विद्युतीकरण को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न इलेक्ट्रिक फ्रेट कॉरिडोर का विकास भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों को प्राप्त कर सकने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • ‘प्रो-प्लैनेट-पीपल’ (Pro-Planet-People): भारत के समृद्ध पारंपरिक ज्ञान और अंतर्निहित जलवायु-अनुकूल व्यवहार के कारण हम यह उत्तरदायित्वपूर्ण स्थिति रखते हैं कि विश्व में जलवायु कार्रवाई पर व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित कर सकने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाएँ।
    • विश्व को भारत की LiFE पहल से अवगत कराने की आवश्यकता है जो लोगों को ग्रह-समर्थक लोगों (pro-planet people) के रूप में एकजुट करने—सभी लोगों को उनके विचारों एवं कार्यकरण में ‘ग्रह का, ग्रह के लिये और ग्रह द्वारा जीवनशैली’ (Lifestyle of the planet, for the planet and by the planet) के बुनियादी सिद्धांतों पर एकजुट करने, पर लक्षित है।
  • पर्यावरण जागरूकता: स्कूली पाठ्यक्रम में पर्यावरण जागरूकता को प्राथमिकता से शामिल करना चाहिये, जबकि शहरी स्थानीय निकाय एवं पंचायत इसे ज़मीनी स्तर तक पहुँचाने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
  • इको-डिज़ाइन (Eco-Design) को बढ़ावा देना: उत्पाद विकास प्रक्रिया के सभी चरणों में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन को बनाए रखने की आवश्यकता है, जबकि ऐसे उत्पादों के लिये प्रयास किया जाना चाहिये जो अपने पूरे जीवन चक्र में न्यूनतम संभव पर्यावरणीय प्रभाव डालते हों।
    • उदाहरण: पादप-आधारित जैवनिम्नीकरणीय बर्तन (साल वृक्ष के पत्ते) और कुल्हड़ में चाय का उपयोग।
    • फ्यूरोशिकी (Furoshiki) एक जापानी पारंपरिक रैपिंग कपड़ा है जो पर्यावरण के अनुकूल है और उपहारों को लपेटने, सामान ले जाने या सजावट के रूप में उपयोग किया जाता है।
      • पुन: प्रयोज्य फ्यूरोशिकी पारंपरिक प्लास्टिक रैपिंग पेपर का एक संवहनीय विकल्प हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: पर्यावरणीय संवहनीयता के लिये वर्तमान ‘टेक-मेक-यूज़-डिस्पोज’ अर्थव्यवस्था से एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण आवश्यक है। भारत की LiFE पहल के संदर्भ में स्पष्ट कीजिये।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रारंभिक परीक्षा

Q. UNEP द्वारा समर्थित 'कॉमन कार्बन मेट्रिक' को किसके लिए विकसित किया गया है: (वर्ष 2021)

(A) दुनिया भर में निर्माण कार्यों के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन
(B) दुनिया भर में वाणिज्यिक फैनिंग संस्थाओं को कार्बन उत्सर्जन व्यापार में प्रवेश करने में सक्षम बनाना
(C) सरकारों को अपने देशों के कारण समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने में सक्षम बनाना
(D) एक इकाई समय में दुनिया द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाले समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करना

उत्तर: (A)

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