अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की नीतियों पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का प्रभाव
- 10 Nov 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत और दोनों देशों के संबंधों तथा अन्य क्षेत्रों में भारत के हितों पर इस चुनाव परिणाम के प्रभाव व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों का निर्णय वहाँ के स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ वैश्विक राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता रखता है। गौरतलब है कि हाल ही में संपन्न हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन को विजयी घोषित किया गया है। इस चुनाव के परिणाम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के काफी नज़दीक रहे कई सहयोगी देशों जैसे- इज़राइल और सऊदी अरब के लिये थोड़ी निराशा का कारण बन सकते हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका और इज़राइल के संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई तथा अमेरिकी मध्यस्थता के परिणामस्वरूप अब्राहम एकाॅर्ड के माध्यम से इज़राइल और कुछ खाड़ी देशों के बीच संबंधों की बहाली ट्रंप की विदेश नीति की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। वहीं ईरान के प्रति ट्रंप की कठोर नीतियों ने सऊदी अरब को क्षेत्र के अपने सबसे बड़े शत्रु के खिलाफ एक मज़बूत बढ़त प्रदान की थी। अमेरिकी प्रशासन में आने वाले इस बदलाव से भारत और अमेरिका के संबंधों में किसी प्रकार की गिरावट का कोई संकेत नहीं है परंतु ईरान तथा चीन जैसे कई अन्य महत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील मुद्दों पर अमेरिका की नीति में बदलाव भारतीय हितों को प्रभावित कर सकता है।
भारत-अमेरिका संबंध:
- 1990 के दशक में भारतीय आर्थिक नीति में बदलाव और दक्षिण एशिया की राजनीति में भारत की भूमिका बढ़ने के साथ-साथ भारत-अमेरिका संबधों में सुधार देखने को मिला।
- वर्ष 2009 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से दोनों देशों के संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, इस दौरान अमेरिका ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Supplier Group-NSG) का सदस्य बनाए जाने का समर्थन किया।
- दोनों देशों के बीच कई महत्त्वपूर्ण समझौतों और सैन्य सहयोग में वृद्धि हुई [भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (वर्ष 2008), लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement), वर्ष 2016 आदि] तथा अमेरिका ने भारत को पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का सदस्य बनने में सहयोग के साथ अफगानिस्तान और मध्य एशिया के संदर्भ में भारत की नीतियों का समर्थन किया।
- वर्ष 2017 में राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल की शुरुआत के बाद भी दोनों देशों के संबंधों में और अधिक व्यापकता देखने को मिली इस दौरान अमेरिका से सैन्य हथियारों तथा प्राकृतिक गैस के आयात में भारी वृद्धि हुई।
- इस दौरान क्वाड की भूमिका में हुआ सुधार भी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। साथ ही हाल में दोनों देशों के बीच ‘2+2 वार्ता’ के दौरान ‘भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते’ (BECA) पर हस्ताक्षर किये जाने से भारतीय सेना की क्षमता में वृद्धि होगी।
द्विपक्षीय व्यापार और निवेश :
- गौरतलब है कि इस दौरान दोनों देशों के व्यापार में वृद्धि के कारण भारत का व्यापार अधिशेष 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्तीय वर्ष 2001-02) से बढ़कर 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्तीय वर्ष 2019-20) तक पहुँच गया (वित्तीय वर्ष 2017-18 में सर्वाधिक 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर )।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान भारत ने अमेरिका से कुल 35.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं का आयात किया जो भारत के कुल आयात का लगभग 7.5% है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान भारत द्वारा अमेरिका को किया कुल निर्यात 53 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा जो भारत के कुल वार्षिक निर्यात का लगभग 17% है।
- इसके अतिरिक्त अमेरिकी सेवा क्षेत्र के कुल आयात में भारत की भागीदारी लगभग 5% है, वर्ष 2005 से वर्ष 2019 के बीच इसमें 14% की दर से वार्षिक वृद्धि देखी गई, वर्ष 2019 में अमेरिका द्वारा सेवा क्षेत्र में भारत से किया गया कुल आयात 29.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का तक पहुँच गया।
- व्यापार के अलावा अमेरिका प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मामले में भारत के लिये निवेश का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, अप्रैल 2000 से भारत में हुए कुल 476 बिलियन अमेरिकी डॉलर की FDI में अमेरिकी निवेशकों की हिस्सेदारी लगभग 6.5 % (30.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) रही।
- FDI के अतिरिक्त भारत के कुल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में एक-तिहाई हिस्सेदारी अमेरिकी निवेशकों की रही है, सितंबर 2020 के आँकड़ों के अनुसार, देश में कुल 33.22 लाख करोड़ रुपए की FPI में अमेरिकी निवेश 11.21 करोड़ रुपए का रहा।
- बाइडन प्रशासन के तहत दोनों देशों के बीच व्यापार के क्षेत्र में बड़े सुधारों को अपनाए जाने का अनुमान है, अतः इन सुधारों के माध्यम से इस क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2017-18 के बाद आई गिरावट को दूर किया जा सकेगा।
भारत-ईरान संबंधों पर प्रभाव:
- ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की सख्ती के कारण भारत को ईरान से अलग होना पड़ा जिसके चलते भारत को ईरान से होने वाले कच्चे तेल के आयात को रोकना पड़ा जो ईरान द्वारा भारत को कम कीमत पर उपलब्ध कराया जा रहा था।
- अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान में भारत के सहयोग से चल रही रेल परियोजना को भी रोकना पड़ा।
- बाइडन प्रशासन के लिये स्थानीय राजनीतिक दबाव के कारण ईरान के संदर्भ में अमेरिकी नीति को शीघ्र बदलना या JCPOA को उसके पूर्व स्वरूप में लागू करना कठिन हो सकता है।
- परंतु इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिये बाइडन प्रशासन द्वारा ओमान या किसी अन्य मध्यस्थ के साथ ईरान से वार्ता और समझौतों को पुनः शुरू करने का प्रयास किया जाएगा।
- ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों में कमी के बाद भारत आसानी से ईरानी कच्चे तेल का आयात कर सकेगा और ईरान को भारत से दवाइयों एवं अन्य वस्तुओं का निर्यात करना भी संभव होगा।
- इसके साथ ही भारत ईरान में कच्चे तेल और अवसंरचना से जुड़ी अन्य परियोजनाओं में निवेश करने में अधिक दबाव नहीं महसूस करेगा।
क्वाड और चीन के प्रति अमेरिकी नीति का प्रभाव:
- भारत लंबे समय से क्वाड को एक सैन्य गठबंधन के रूप में प्रदर्शित करने से बचता रहा है, बल्कि भारत का उद्देश्य इसे क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने तक ही सीमित रखने से संबंधित रहा है।
- गौरतलब है कि हाल ही में ऑस्ट्रेलिया को मालाबार सैन्य अभ्यास में शामिल किये जाने के बाद चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर व्यावसायिक दबावों के माध्यम से अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी।
- भारत के लिये जहाँ एक तरफ क्वाड समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र (विशेषकर हिंद महासागर) में चीनी आक्रामकता को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है, वहीं यदि वर्तमान अमेरिकी सरकार की अपेक्षाओं के अनुरूप इसे दक्षिण चीन सागर में अधिक सक्रिय किया जाता है तो यह भारत और चीन के बीच गतिरोध को अनावश्यक रूप से बढ़ा सकता है।
- साथ ही यदि बाइडन प्रशासन के तहत चीन के प्रति अमेरिका सुलह का प्रयास करता है तो चीन की आक्रामकता से निपटने में भारत कमज़ोर पड़ सकता है।
- क्वाड से अलग होकर देखा जाए तो हाल के वर्षों में चीन की सैन्य शक्ति में हुई व्यापक वृद्धि को नियंत्रित करने के प्रयासों में अमेरिका सफल नहीं रहा है, बल्कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा विभिन्न संधियों और वैश्विक मंचों (जैसे-पेरिस समझौता, विश्व स्वास्थ्य संगठन या अन्य सैन्य संधियों) से अमेरिका को अलग करने के निर्णय ने चीन को अनावश्यक बढ़त प्रदान की है।
अन्य मुद्दे:
- ट्रंप प्रशासन के जिन फैसलों से भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है उनमें से अफगानिस्तान का मुद्दा सबसे प्रमुख है।
- अमेरिका द्वारा वर्तमान परिस्थिति में अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को पूरी तरह से वापस बुलाने से अफगानिस्तान में चरमपंथी समूहों की सक्रियता बढ़ने के साथ क्षेत्र की शांति और स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्तमान में अफगानिस्तान में तालिबान और अमेरिका समझौता बहुत आगे बढ़ चुका है और ट्रंप के अगले लगभग दो महीने के कार्यकाल के दौरान इस संदर्भ में लिये गए निर्णय क्षेत्र में दशकों से चल रहे शांति के प्रयासों की दिशा बदल सकते हैं, साथ ही जो बाइडन के लिये भी अफगानिस्तान मुद्दे पर कोई फैसला ले पाना बहुत ही कठिन होगा।
- हालाँकि इसके साथ ही भारत के कई आंतरिक मुद्दों जैसे-कश्मीर और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) आदि पर बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सदस्यों की मुखरता भारत के लिये चिंता का विषय बन सकती है।
व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
- हाल के वर्षों में अधिकांश मामलों में अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में लगातार प्रगति हुई है, परंतु बदलते समय के साथ भारत को दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने हितों की रक्षा हेतु एक व्यापक नीति का विकास करना होगा।
- भारत और अमेरिका के मज़बूत संबंधों के इतिहास को आधार बनाते हुए भारत को सामान्य प्राथमिकता प्रणाली (GSP) और H1B वीज़ा जैसे क्षेत्रों में सुधार सहित जलवायु परिवर्तन तथा आतंकवाद जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने में अमेरिका के साथ साझेदारी को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
आगे की राह:
- अमेरिका के उपराष्ट्रपति के रूप जो बाइडन के वर्ष 2009 से वर्ष 2017 तक के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई थी, इसी प्रकार बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की विदेश नीति में व्यापकता तथा निश्चितता आएगी जो दोनों देशों के संबंधों के लिये बहुत ही लाभदायक होगा।
- बाइडन द्वारा अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान जलवायु संकट, COVID-19 आदि जैसे वैश्विक साझा सहयोग के प्रयासों पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है, अमेरिकी शीर्ष नेतृत्व में इस बदलाव से इन समस्याओं से निपटने में शामिल भारत सहित विश्व के अन्य देशों के प्रयासों को बल मिलेगा।
- गौरतलब है कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ अमेरिकी मुद्रा वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति में स्पष्टता और स्थिरता से COVID-19 के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से उबरने में सहयोग प्राप्त होगा।
- साथ ही साझा सहयोग की इस नीति से शीर्ष बहुपक्षीय मंचों (जैसे- संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन आदि) में अपेक्षित सुधारों को लागू करने मे सहायता मिलेगी।
- हालाँकि ईरान, चीन, अफगानिस्तान के साथ ऐसे ही बहुत से अन्य मामलों में अमेरिका की नीतियों का संबंध भारत के हितों की रक्षा से भी जुड़ा है, ऐसे में इन मुद्दों पर अमेरिका के नए प्रशासन की नीतियों में स्पष्टता के बाद भारत को मज़बूती के साथ अपना पक्ष सामने रखना होगा।
अभ्यास प्रश्न: अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के परिणामस्वरूप आने वाले समय में इसकी विदेश नीति में संभावित बदलाव पर चर्चा करते हुए भारत के हितों और भारत-अमेरिका संबंधों पर इन बदलावों के प्रभाव की समीक्षा कीजिये।