नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


कृषि

GM फसलों के प्रति संतुलित दृष्टिकोण

  • 06 Aug 2024
  • 35 min read

यह एडिटोरियल 24/07/2024 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Need for pragmatism, not ad hocism, on GM” लेख पर आधारित है। इसमें GM सरसों पर सर्वोच्च न्यायालय के विभाजित निर्णय की चर्चा की गई है और भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा नीति की प्रबल आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, बीटी कपास, सूखा-सहिष्णु मक्का की किस्में, गोल्डन राइस, C4 चावल, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, स्टारलिंक कॉर्न, फ्लेवर सेवर टमाटर। 

मेन्स के लिये:

जीएम फसलों से संबंधित लाभ और मुद्दे, भारत में जीएम फसलों के लिये नियामक ढाँचा।

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) सरसों की खेती पर अस्थायी रोक लगा दी है। GM सरसों की खेती की अनुमति दी जाए या नहीं, इस पर न्यायालय की राय विभाजित थी। GM सरसों पर अलग-अलग विचारों के बावजूद, न्यायालय ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की कि भारत को आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों को विनियमित करने के लिये एक स्पष्ट और व्यापक नीति की तत्काल आवश्यकता है। इस नीति को कृषि में GM प्रौद्योगिकी के सुरक्षित और ज़िम्मेदार विकास एवं उपयोग को सुनिश्चित करना चाहिये, साथ ही संभावित जोखिमों को भी संबोधित करना चाहिये।

जबकि नई प्रौद्योगिकियों को पेश करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है, GM फसलों पर सरकार की अनिर्णयता ने कृषि प्रगति और खाद्य सुरक्षा को बाधित किया है। स्पष्ट विनियमनों के अभाव ने आयातित खाद्य उत्पादों में GM सामग्री के बारे में अनिश्चितताओं को भी जन्म दिया है। भारत को इन चुनौतियों को संबोधित करने के लिये विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, जहाँ GM फसलों और अन्य खाद्य पदार्थों के लिये कठोर सुरक्षा प्रोटोकॉल एवं निगरानी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें क्या हैं?

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (Genetically Modified Crops- GMO Crops) उन पादपों को इंगित करती हैं जिनके DNA को आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग कर बदल दिया गया है।
    • इस प्रक्रिया में वांछित लक्षण उत्पन्न करने के लिये नए जीनों (genes) को शामिल करना या मौजूदा जीनों को संशोधित करना शामिल है।
  • वैश्विक अंगीकरण और उपयोग:
    • परिचय: GM फसलों को सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्लेवर सेवर टमाटर (Flavr Savr tomato) के रूप में पेश किया गया था। टमाटर के पकने की प्रक्रिया को धीमा करने और इसके नरम पड़ने एवं सड़ने को विलंबित करने के लिये आनुवंशिक संशोधन के साथ यह टमाटर किस्म विकसित की गई थी।
    • वर्तमान स्थिति: कृषि-जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के अधिग्रहण हेतु अंतर्राष्ट्रीय सेवा (International Service for the Acquisition of Agri-biotech Applications- ISAAA) के हाल के आँकडों से पता चलता है कि भारत सहित 29 देशों में 18 मिलियन से अधिक किसानों ने वर्ष 2019 में 190 मिलियन हेक्टेयर (469.5 मिलियन एकड़) से अधिक भूमि में GM फसलें लगाईं।
  • भारत में GM फसलें
    • स्वीकृत फसल: बीटी कपास (Bt cotton) भारत में खेती के लिये स्वीकृत एकमात्र GM फसल है।
      • बुवाई क्षेत्र: देश में लगभग 11 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जाती है।
    • अनुसंधान एवं परीक्षण: सरसों, चना, अरहर और गन्ना जैसी अन्य फसलें अभी अनुसंधान, क्षेत्र परीक्षण और विचार-विमर्श के विभिन्न चरणों से गुज़र रही हैं।
    • भारत में नियामक ढाँचा: यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत “खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के नियम” (नियम 1989) द्वारा शासित है।
      • नियम 1989 के तहत सक्षम प्राधिकरण अधिसूचित किये गए हैं।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के क्या लाभ हैं?

  • कीटों और रोगों से लड़ने की क्षमता: GM फसलों को कीटों और रोगों से बचाने के लिये इंजीनियर्ड किया जा सकता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिये, बीटी कपास अपना स्वयं का कीटनाशक उत्पन्न करता है, जो बॉलवर्म के संक्रमण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है।
      • इससे न केवल उपज बढ़ती है बल्कि खेती का पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है।
      • बीटी कपास के अंगीकरण से कपास उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे भारत विश्व में अग्रणी कपास उत्पादक देश बन गया है।
      • यह कीट प्रतिरोध उन भूभागों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है जहाँ कीटों के कारण फसल की हानि एक प्रमुख चिंता का विषय है।
  • मौसम-रक्षित खेती (Weather-Proof Farming): GM फसलों को चरम मौसम की स्थिति का सामना करने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण लाभ है।
    • उदाहरण के लिये, सूखा-सहिष्णु मक्का किस्में जल-तनाव की स्थिति में भी पैदावार बनाए रख सकती हैं।
    • यह प्रत्यास्थता अनियमित वर्षा या दीर्घकालिक सूखे की स्थिति वाले भूभागों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है।
    • केन्या जैसे देशों में सूखा-सहिष्णु मक्का ने शुष्क मौसम के दौरान पैदावार में सुधार लाने में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
  • ‘न्यूट्रीशनल पावरहाउस’ – प्रच्छन्न भुखमरी से मुक़ाबला: आनुवंशिक संशोधन के माध्यम से  बायोफोर्टिफिकेशन (Biofortification) फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ा सकता है।
    • बीटा-कैरोटीन से समृद्ध गोल्डन राइस विकासशील देशों में विटामिन A की कमी को दूर करने का लक्ष्य रखता है। 
    • इसके अन्य उदाहरणों में लौह-समृद्ध चावल और जिंक-युक्त गेंहूँ शामिल हैं।
    • पोषण की दृष्टि से उन्नत इन फसलों में कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से निपटने की क्षमता है, विशेष रूप से उन भूभागों में जहाँ विविधतापूर्ण आहार प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है।
  • हरित क्रांति 2.0: GM फसलें प्रायः उच्च पैदावार और बेहतर संसाधन दक्षता का दावा करती हैं।
    • खरपतवार-सहिष्णु फसलें खरपतवार पर अधिक प्रभावी नियंत्रण प्रदान करती हैं, जिससे पोषक तत्वों और जल के लिये प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • उन्नत प्रकाश संश्लेषण या नाइट्रोजन उपयोग के लिये संशोधित फसलें कम निवेश से अधिक उत्पादन प्रदान कर सकती हैं।
      • उदाहरण के लिये, C4 चावल पर अनुसंधान का उद्देश्य चावल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि लाना है।
    • ये प्रगतियाँ बढ़ती वैश्विक खाद्य मांग को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं, साथ ही कृषि भूमि के विस्तार को न्यूनतम किया जा सकता है, जिससे प्राकृतिक पर्यावासों की रक्षा हो सकेगी।
  • पर्यावरण-अनुकूल खेती – कृषि के प्रभाव को कम करना: GM फसलें अधिक सतत्/संवहनीय कृषि पद्धतियों में योगदान दे सकती हैं।
    • खरपतवार-सहिष्णु फसलें प्रायः जुताई-रहित खेती (no-till farming) को संभव बनाती हैं, जिससे मृदा अपरदन और कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
    • कीट प्रतिरोधी फसलें कीटनाशकों के उपयोग को कम करती हैं, जिससे गैर-लक्षित जीवों (non-target organisms) को लाभ मिलता है और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • ‘शेल्फ-लाइफ सुपरस्टार’ (Shelf-Life Superstar)s: GM प्रौद्योगिकी का उपयोग विस्तारित शेल्फ-लाइफ वाली फसलों को विकसित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे कटाई उपरांत होने वाली हानियों (post-harvest losses) में व्यापक कमी आएगी।
    • फ्लेवर सेवर टमाटर, हालाँकि अब इसका उत्पादन नहीं किया जा रहा, पकने की गति को धीमा करने का एक आरंभिक उदाहरण था।
    • विस्तारित शेल्फ लाइफ से शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के बार-बार परिवहन और प्रशीतन से जुड़े ‘कार्बन फुटप्रिंट’ में भी कमी आ सकती है।
      • यह विकासशील देशों में विशेष रूप से प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है, जहाँ प्रशीतन सुविधाओं की कमी और कमज़ोर परिवहन अवसंरचना के कारण बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की बर्बादी होती है।
  • फसलें - औषधि कारख़ानों के रूप में: पादपों को आनुवंशिक रूप से संशोधित कर टीके, एंटीबॉडी और अन्य औषधीय यौगिक तैयार किये जा सकते हैं।
    • यह दृष्टिकोण, जिसे ‘बायोफार्मिंग’ (biopharming) के रूप में जाना जाता है, संभावित रूप से लागत को कम कर सकता है और कुछ दवाओं की पहुँच को बढ़ा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, केले और आलू जैसी फसलों में खाद्य टीकों (edible vaccines) के निर्माण पर अनुसंधान चल रहा है।
    • यद्यपि यह प्रौद्योगिकी अभी भी अनुसंधान चरण में है, फिर भी इसमें टीका और औषधि उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकने की संभावना है।
  • फाइटोरिमेडिएशन चैंपियन (Phytoremediation Champions): कुछ GM पादपों को मृदा से विशिष्ट प्रदूषकों को अवशोषित करने और सांद्रित करने की उनकी क्षमता के लिये विकसित किया जा रहा है, जिस प्रक्रिया को ‘फाइटोरिमेडिएशन’ के रूप में जाना जाता है।
    • पादपों को भारी धातुओं को बेहतर ढंग से अवशोषित करने या कार्बनिक प्रदूषकों को विखंडित करने के लिये संशोधित किया गया है।
    • उदाहरण के लिये, संशोधित पोपलर (poplars) वनस्पति ने दूषित स्थलों को साफ करने की उन्नत क्षमता दर्शाई है।

भारत ने बीटी कॉटन के बाद से किसी भी GM फसल की वाणिज्यिक खेती को मंज़ूरी क्यों नहीं दी है?

  • विनियामक बाधाएँ और नीतिगत असंगतियाँ: GM फसलों के लिये भारत का विनियामक ढाँचा जटिलता और लगातार परिवर्तनों से ग्रस्त रहा है, जिससे अनुमोदन के लिये अनिश्चित वातावरण पैदा होता है।
    • GM फसलों को मंज़ूरी देने के लिये ज़िम्मेदार जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) प्रायः वैज्ञानिक अनुशंसाओं और राजनीतिक दबावों के बीच फँसी रहती है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2009 में GEAC ने बीटी बैंगन (Bt brinjal) के वाणिज्यीकरण की सिफ़ारिश की थी, लेकिन तत्कालीन पर्यावरण मंत्री ने और अधिक अध्ययन तथा सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता का हवाला देते हुए इसे टाल दिया।
    • वैज्ञानिक निकायों द्वारा अनुमोदन देने के बाद राजनीतिक हस्तक्षेप की इस प्रवृत्ति ने नियामक गतिरोध पैदा कर दिया है।
  • सार्वजनिक विरोध और सक्रिय कार्यकर्ताओं का दबाव: पर्यावरण समूहों, किसान संगठनों और कुछ वैज्ञानिकों के कड़े विरोध ने भारत में GM फसल से जुड़ी बहस को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
    • इन समूहों ने जैव सुरक्षा, जैव विविधता की हानि और छोटे किसानों पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के बारे में चिंता जताई है।
    • GM सरसों का मामला इस दबाव का उदाहरण है, जहाँ वर्ष 2017 में GEAC की मंज़ूरी के बाद भी जारी कानूनी चुनौतियों के कारण इसकी वाणिज्यिक खेती को मंज़ूरी नहीं प्राप्त हुई।
  • आर्थिक एवं व्यापारिक पक्ष: GM फसलों पर भारत का रुख आर्थिक एवं व्यापारिक कारकों से भी प्रभावित है।
    • ऐसी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि GM फसलों के व्यापक अंगीकरण से भारत के कृषि निर्यात पर, विशेष रूप से यूरोप जैसे GM-संवेदनशील बाज़ारों में, असर पड़ सकता है।
    • इसके अलावा, बीटी कपास के मामले में पैदावार की वृद्धि तो हुई लेकिन बीज की कीमतों और बाजार संकेंद्रण के बारे में भी मुद्दे खड़े हुए।
    • GM बीज बाज़ार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभुत्व के कारण बीज संप्रभुता और घरेलू बीज कंपनियों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • राजनीतिक और संघीय जटिलताएँ: भारत का संघीय ढाँचा GM फसलों की मंज़ूरी में जटिलता की एक और परत का योग करता है।
    • जबकि समग्र नीति केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है, कृषि राज्य सूची का विषय है, जिससे राज्य सरकारों को कृषि संबंधी निर्णयों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार प्राप्त है।
      • इससे ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं कि राज्यों ने अनुमोदन के बाद भी GM फसलों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल और केरल सहित कई राज्यों ने GM सरसों का विरोध किया था।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: GM फसलों से गंभीर पारिस्थितिक प्रश्न जुड़े हुए हैं। फसलों की जंगली किस्मों में संभावित जीन प्रवाह के बारे में चिंता व्यक्त की गई है, जो खरपतवारों के प्रति प्रतिरोधी ‘सुपरवीड्स’ (superweeds) उत्पन्न कर सकता है।
    • गैर-लक्षित जीवों पर प्रभाव एक अन्य चिंता का विषय है। जबकि बीटी फसलें समग्र कीटनाशक उपयोग को कम करती हैं, वे लाभकारी कीटों को भी प्रभावित कर सकती हैं।
    • इसके अलावा, इस बात पर भी बहस चल रही है कि क्या GM फसलें एकल कृषि या मोनोकल्चर (monoculture) को बढ़ावा देकर जैव विविधता को हानि पहुँचा सकती हैं।
  • स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी अनिश्चितताएँ: यद्यपि अनेक अध्ययनों में पाया गया है कि GM खाद्य पदार्थ उपभोग के लिये सुरक्षित हैं, फिर भी इनके दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।
    • आलोचकों का तर्क है कि वर्तमान सुरक्षा मूल्यांकन सूक्ष्म या दीर्घकालिक प्रभावों का सटीक अनुमान नहीं दे सकते।
      • नई एलर्जी या पोषण सामग्री में परिवर्तन की संभावना के बारे में भी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2000 में स्टारलिंक मक्का विवाद (StarLink corn controversy), जहाँ केवल पशु चारे के लिये अनुमोदित एक GM मक्का किस्म का मानव खाद्य आपूर्ति में प्रवेश हो गया था, ने पर-संदूषण (cross-contamination) को रोकने से जुड़ी चुनौतियों को उजागर किया।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: GM फसलों के अंगीकरण से जटिल सामाजिक-आर्थिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
    • हालाँकि वे पैदावार और किसानों की आय बढ़ा सकते हैं, जैसा कि भारत में बीटी कपास के मामले में देखा गया है, लेकिन इससे बाज़ार संकेंद्रण और बीज कंपनियों पर किसानों की निर्भरता के बारे में चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।
    • GM बीजों और संबंधित आदानों/इनपुट की उच्च लागत छोटे किसानों के लिये भारी पड़ सकती है।
    • GM फसलों के पेटेंट पर मौजूद वैश्विक विवाद (जैसे मोनसेंटो द्वारा किसानों के साथ कानूनी लड़ाई) कृषि में बौद्धिक संपदा अधिकारों के मुद्दों को उजागर करते हैं।
  • नियामक चुनौतियाँ: GM फसलों के लिये प्रभावी नियामक ढाँचा स्थापित करना जटिल है।
    • विभिन्न देशों में अनुमोदन प्रक्रिया और लेबलिंग आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हैं, जिससे व्यापार संबंधी जटिलताएँ पैदा होती हैं।
    • यूरोपीय संघ के कड़े नियम संयुक्त राही अमेरिका के अधिक अनुमोदनकारी दृष्टिकोण के विपरीत हैं, जिसके कारण व्यापार विवाद उत्पन्न होते हैं।
    • विकासशील देशों में प्रायः व्यापक जैव सुरक्षा विनियमन के लिये संसाधनों का अभाव पाया जाता है।
    • विनियमनों की निगरानी और प्रवर्तन की चुनौती, विशेष रूप से छिद्रपूर्ण सीमाओं वाले क्षेत्रों में, जटिलता को और बढ़ा देती है।
  • नैतिक और सांस्कृतिक पक्ष: GM फसलें प्रकृति में मानव हस्तक्षेप की सीमा के बारे में नैतिक प्रश्नों को भी जन्म देती हैं।
    • मानव द्वारा ‘सर्जक’ की भूमिका ग्रहण करने (‘playing God’) और प्रजातिगत बाधाओं को पार करने के नैतिक निहितार्थों के बारे में भी चिंताएँ मौजूद हैं।
    • GM फसलों का मुद्दा खाद्य संप्रभुता और समुदायों के अपने स्वयं के खाद्य प्रणालियों को निर्धारित करने के अधिकार के बारे में व्यापक बहस से भी संबद्ध है।
      • ये नैतिक आयाम GM फसलों से संबंधित वैज्ञानिक एवं आर्थिक पक्षों में जटिलता की परतों का योग करते हैं।
  • सह-अस्तित्व और संदूषण संबंधी मुद्दे: GM और गैर-GM फसलों के सह-अस्तित्व का प्रबंधन व्यावहारिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • पर-परागण (Cross-pollination) के कारण गैर-GM या जैविक फसलों में GM सामग्री की अनपेक्षित उपस्थिति हो सकती है।
    • वर्ष 2013 में ओरेगन (संयुक्त राज्य अमेरिका) के एक किसान को अपने खेत में अनधिकृत GM गेहूँ मिला, जिसके कारण कुछ देशों ने इसके आयात पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया।
    • संपूर्ण आपूर्ति शृंखला में प्रभावी पृथक्करण पद्धतियाँ स्थापित करना जटिल एवं महंगा है।
    • यह मुद्दा विशेष रूप से जैविक किसानों के लिये समस्याजनक है, क्योंकि यदि उनकी फसलें संदूषित हो जाती हैं तो उनके समक्ष प्रमाणीकरण खोने का खतरा रहता है।
  • प्रतिरोध का विकास: लक्षित कीटों और खरपतवारों में प्रतिरोध का विकास GM फसलों की दीर्घकालिक प्रभावकारिता के लिये एक गंभीर खतरा पैदा करता है।
    • बीटी कपास, जो आरंभ में बॉलवर्म के विरुद्ध अत्यधिक प्रभावी रही थी, की प्रभावकारिता में कुछ क्षेत्रों में कीट प्रतिरोध के कारण कमी देखी गई है।
    • इसी प्रकार, ग्लाइफोसेट-प्रतिरोधी फसलों के व्यापक उपयोग के कारण कई क्षेत्रों में ग्लाइफोसेट-प्रतिरोधी खरपतवार भी उग आए हैं।
    • इससे एक ‘टेक्नोलॉजिकल ट्रेडमिल’ (technological treadmill) का निर्माण होता है, जहाँ किसान अपनी पैदावार बनाए रखने के लिये निरंतर विकसित हो रही GM प्रौद्योगिकियों पर निर्भर हो जाते हैं।

भारत में GM फसलों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • पारदर्शी परीक्षण – ‘विश्वास के बीज बोना’: GM फसलों के लिये पारदर्शी, सार्वजनिक रूप से सुलभ क्षेत्र परीक्षणों की प्रणाली लागू किया जाए।
    • एक ऑनलाइन पोर्टल स्थापित किया जाए जहाँ सभी परीक्षण डेटा और परिणाम रियल-टाइम में प्रकाशित किये जाएँ।
    • स्वतंत्र वैज्ञानिकों और हितधारकों को परीक्षणों का निरीक्षण एवं सत्यापन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
    • यह पारदर्शिता आम लोगों के बीच विश्वास निर्माण में मदद कर सकती है और निर्णय-निर्माण के लिये मज़बूत साक्ष्य आधार प्रदान कर सकती है।
  • ‘बायोटेक ब्रिजेज़’ (Biotech Bridges) – सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: सार्वजनिक संस्थानों और निजी कंपनियों के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान के लिये एक ढाँचा तैयार किया जाए।
    • इससे लाभ की मंशा और जनहित के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि GM प्रौद्योगिकी स्थानीय कृषि आवश्यकताओं को पूरा करे।
    • बौद्धिक संपदा और लाभों को साझा करने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित किये जाएँ। ऐसी साझेदारियाँ सार्वजनिक निगरानी बनाए रखते हुए निजी क्षेत्र के नवाचार का लाभ उठा सकती हैं।
    • यह दृष्टिकोण विशेष रूप से भारतीय कृषि परिदृश्यों और पोषण संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप GM फसलों को विकसित करने में भी मदद कर सकता है।
  • ‘ग्रीन जीन बैंक’ (Green Gene Bank) – कृषि विरासत का संरक्षण: स्वदेशी फसल किस्मों को संरक्षित करने के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय जीन बैंक की स्थापना की जाए।
    • पारंपरिक बीजों के संग्रहण, दस्तावेज़ीकरण और भंडारण के लिये धन आवंटित किया जाए।
    • इस पहल से जैव विविधता की सुरक्षा हो सकेगी और GM फसलों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
    • आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के रूप में यह उपाय आनुवंशिक क्षरण के संबंध में विद्यमान चिंताओं को संबोधित करेगा और भविष्य में फसल विकास के लिये विकल्प बनाए रखेगा।
  • ‘फार्मर फर्स्ट’ नीतियाँ (Farmer-First Policies) – ज़मीनी स्तर के किसानों को सशक्त बनाना: ऐसी नीतियाँ विकसित की जाएँ जो GM फसल के अंगीकरण में छोटे और सीमांत किसानों को प्राथमिकता दें।
    • निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भागीदारी के लिये ज़िला स्तर पर किसान समितियों का गठन किया जाए।
    • GM प्रौद्योगिकी अपनाने वाले किसानों के लिये व्यापक प्रशिक्षण और सहायता प्रणाली प्रदान की जाए।
    • GM फसलों की संभावित विफलताओं से किसानों को बचाने के लिये बीमा योजनाएँ लागू की जाएँ।
    • यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि सबसे भेद्य कृषि समुदायों के हित GM फसल नीतियों के केंद्र में हों।
  • पारिस्थितिकी प्रभाव आकलन – पर्यावरणीय सद्भाव का विकास: किसी भी GM फसल को मंज़ूरी देने से पहले दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन को अनिवार्य बनाया जाए।
    • स्थानीय पारिस्थितिक तंत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों की निगरानी के लिये पारिस्थितिक वेधशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित किया जाए।
    • गैर-लक्ष्यित जीवों और जैव विविधता पर प्रभाव का आकलन करने के लिये प्रोटोकॉल विकसित किये जाएँ।
    • संचयी पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करने के लिये आवधिक समीक्षा की प्रणाली लागू की जाए।
  • पोषण संबंधी प्रयास – प्रच्छन्न भुखमरी को लक्ष्य करना: GM फसल अनुसंधान का ध्यान भारत में व्याप्त विशिष्ट पोषण संबंधी कमियों को दूर करने की ओर केंद्रित किया जाए।
    • विभिन्न भूभागों में आवश्यक प्रमुख पोषक तत्वों की पहचान करने के लिये स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ सहयोग स्थापित किया जाए।
    • स्थानीय आहार संबंधी आदतों और कमियों के अनुरूप बायोफोर्टिफाइड फसलें विकसित की जाएँ।
    • पोषण के दृष्टिकोण से संवर्द्धित इन GM फसलों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये पायलट कार्यक्रम लागू किये जाएँ।
    • यह लक्षित दृष्टिकोण GM प्रौद्योगिकी के ठोस स्वास्थ्य लाभों को प्रदर्शित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से इसकी सार्वजनिक स्वीकृति बढ़ सकती है।
  • विनियामक पुनःस्थापना (Regulatory Reboot) – विज्ञान के साथ सुव्यवस्थित करना: GM फसलों के लिये एक स्पष्ट, विज्ञान-आधारित अनुमोदन प्रक्रिया के सृजन के लिये विनियामक ढाँचे में सुधार किया जाए।
    • विभिन्न हितधारकों के प्रतिनिधित्व के साथ एक स्वतंत्र जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण की स्थापना की जाए।
    • अनिश्चितकालीन विलंब से बचने के लिये समयबद्ध निर्णय-निर्माण प्रक्रिया को लागू किया जाए।
    • जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश विकसित किये जाएँ।
    • यह सुव्यवस्थित, पारदर्शी नियामक प्रणाली अनुमोदन प्रक्रिया में विश्वास बढ़ा सकती है और ज़िम्मेदार नवाचार को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • ‘लेबल लॉजिक’ (Label Logic) – उपभोक्ता विकल्प को सशक्त बनाना: GM उत्पादों के लिये एक व्यापक, समझने में आसान लेबलिंग प्रणाली को लागू किया जाए।
    • GM उत्पाद के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार करें कि किन उत्पादों पर लेबलिंग की आवश्यकता होगी।
    • GM लेबलिंग के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के लिये जन जागरूकता अभियान शुरू किये जाएँ।
    • लेबलिंग विनियमों के गैर-अनुपालन के लिये कठोर दंड के प्रावधान किये जाएँ।
    • यह उपाय उपभोक्ताओं के सूचना एवं विकल्प के अधिकार का सम्मान करेगा और अनजाने में GM उत्पादों के उपभोग से संबंधित चिंताओं को कम करने में सहायक होगा।
  • ‘सह-अस्तित्व गलियारे’ (Coexistence Corridors) – विविध कृषि पद्धतियों के बीच संतुलन का निर्माण करना: GM और गैर-GM फसलों के सह-अस्तित्व के लिये दिशा-निर्देश और अवसंरचना का विकास किया जाए।
    • GM और गैर-GM फसलों के बीच पर-परागण को रोकने के लिये बफ़र ज़ोन और अलगाव दूरी (isolation distances) स्थापित किये जाएँ।
    • यह दृष्टिकोण विभिन्न कृषि प्रणालियों के बीच संघर्ष को न्यूनतम करते हुए कृषि विविधता की अनुमति देगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों में सामंजस्य: GM फसलों के लिये सामंजस्यपूर्ण मानक विकसित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सक्रिय रूप से भागीदारी की जाए।
    • प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ पारस्परिक रूप से मान्यता प्राप्त सुरक्षा मूल्यांकन प्रक्रियाएँ स्थापित करने की दिशा में कार्य किया जाए।
    • GM फसल विनियमन और व्यापार में वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यासों के विकास में योगदान किया जाए।
    • यह भागीदारी व्यापार-संबंधी मुद्दों को सुलझाने तथा GM फसल प्रशासन के प्रति अधिक समेकित वैश्विक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
    • भारत नेतृत्वकारी भूमिका निभाकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके हित और चिंताएँ अंतर्राष्ट्रीय GM फसल नीतियों में प्रतिबिंबित हों।

अभ्यास प्रश्न: भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कीजिये और उनके अंगीकरण से जुड़ी चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। इससे संबंधित जैव सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना   
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना  
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)


प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है? (2021)

(a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्द्धन
(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर: B


मेन्स:

प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (2019)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow