शासन व्यवस्था
एक राष्ट्र, एक चुनाव की दिशा में आगे बढ़ना
- 13 Dec 2024
- 34 min read
यह एडिटोरियल “Union Cabinet approves ‘one nation, one election’ Bill” पर आधारित है, जो 12/12/2024 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित महत्त्वाकांक्षी “एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE)” योजना जिसका उद्देश्य भारत की चुनावी प्रक्रियाओं को समन्वित करना है, का उल्लेख किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले एक उच्च-स्तरीय पैनल की सिफारिशों के आधार पर, योजना दो चरणों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने के लिये संवैधानिक संशोधनों की मांग करती है।
प्रिलिम्स के लिये:एक राष्ट्र, एक चुनाव, भारत का चुनावी परिदृश्य, भारत सरकार अधिनियम, 1935, संसदीय स्थायी समिति, भारतीय विधि आयोग, आदर्श आचार संहिता, भारत का निर्वाचन आयोग, अनुच्छेद 356, सरकारिया आयोग, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, 15वाँ वित्त आयोग मेन्स के लिये:भारत में ONOE का ऐतिहासिक विकास, एक राष्ट्र एक चुनाव से संबंधित प्रमुख लाभ और चुनौतियाँ |
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महत्त्वाकांक्षी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE)’ योजना को मंज़ूरी दे दी है, जो पूरे भारत में चुनावी प्रक्रियाओं को समन्वित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले एक उच्च-स्तरीय पैनल की सिफारिशों के आधार पर, प्रस्ताव में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने के लिये कई संवैधानिक अनुच्छेदों में संशोधन करने का प्रयास किया गया है। इस परिवर्तनकारी पहल का उद्देश्य दो चरणों में एक साथ चुनाव मॉडल को लागू करना है, जो संभावित रूप से भारत के चुनावी परिदृश्य में क्रांति ला सकता है।
भारत में ONOE का ऐतिहासिक विकास क्या है?
- स्वतंत्रता-पूर्व संदर्भ
- एक साथ चुनाव की अवधारणा भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत औपनिवेशिक चुनावी प्रणाली में निहित है।
- यद्यपि ब्रिटिश शासन के अंतर्गत विधायी निकायों के लिये विघटन के बावजूद चुनाव संरेखित थे।
- स्वतंत्रता-उपरांत युग (वर्ष 1952-1967)
- पहला आम चुनाव (1952): भारत ने लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिये समकालिक चुनावों के साथ अपनी लोकतांत्रिक यात्रा शुरू की।
- निरंतरता: वर्ष 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित किये गए, जिससे राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्थिरता सुनिश्चित हुई।
- एक साथ चुनाव का विघटन (वर्ष 1968-1969)
- वर्ष 1968-1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय-पूर्व भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया, विशेष रूप से हरियाणा और केरल में।
- वर्ष 1970 में, लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भंग हो गई, जिसके कारण लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के लिये अलग-अलग चुनाव कराए गए।
- ONOE पर पुनः विचार करने का प्रयास
- भारतीय विधि आयोग (170वीं रिपोर्ट, 1999): एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया गया, चुनाव से संबंधित व्यवधानों और लागतों को कम करने पर ज़ोर दिया गया।
- संसदीय स्थायी समिति (वर्ष 2015): चुनावी खर्चों पर अंकुश लगाने और निर्बाध शासन सुनिश्चित करने सहित ONOE के लाभों पर प्रकाश डाला गया।
- NITI आयोग रिपोर्ट (वर्ष 2017): ONOE को पुनः शुरू करने के लिये एक रोडमैप प्रस्तावित किया गया।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुख्य लाभ क्या हैं?
- चुनावी लागत में उल्लेखनीय कमी: एक साथ चुनाव कराने से सरकार और राजनीतिक दलों पर पड़ने वाले भारी वित्तीय बोझ में भारी कमी आ सकती है।
- अनुमान है कि चुनावों की आवृत्ति कम करने से 7,500 करोड़ से लेकर 12,000 करोड़ तक की बचत हो सकती है।
- इसके बजाय इस पैसे को बुनियादी अवसंरचना, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के लिये आवंटित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, लोकसभा चुनाव- 2019 एक ऐतिहासिक चुनाव रहा, क्योंकि वर्ष 1998 में चुनाव खर्च ₹9,000 करोड़ से बढ़कर ₹55,000 करोड़ हो गया।
- शासन को सुव्यवस्थित करना और नीतिगत पक्षाघात को कम करना: बार-बार होने वाले चुनाव सरकारों को लगातार अभियान चलाने के लिये मजबूर करते हैं, जिससे दीर्घकालिक निर्णय लेने में विलंब होता है।
- उदाहरण के लिये, हाल ही में हुए चुनावों के दौरान, उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में आदर्श आचार संहिता के प्रतिबंधों के कारण 24 से अधिक प्रमुख विकास परियोजनाएँ रुकी हुई थीं।
- ONOE आदर्श आचार संहिता के लागू होने को प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार तक सीमित कर देगा, जिससे निर्बाध शासन सुनिश्चित होगा।
- इसके अतिरिक्त, नीति-निर्माण अधिक कुशल हो जाता है क्योंकि सरकारें अल्पकालिक चुनावी लाभों के बजाय विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- मतदाताओं की भागीदारी और मतदान में वृद्धि: बार-बार चुनाव होने से मतदाता थक जाते हैं, प्रायः उपचुनावों और स्थानीय चुनावों में भागीदारी कम हो जाती है।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में 65.79% मतदान हुआ। यह देश भर में चुनावी भागीदारी के मध्यम स्तर को दर्शाता है।
- चुनावों को समेकित करके, ONOE लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से सक्रिय कर सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि मतदाता कम लेकिन अधिक प्रभावशाली चुनावी आयोजनों में भाग लें, संभावित रूप से कुल मतदान में 5-10% की वृद्धि हो सकती है।
- चुनावी कदाचार पर अंकुश: चुनावों की पुनरावृत्ति वोट खरीदने, राज्य के संसाधनों के दुरुपयोग और धनबल के इस्तेमाल के कई अवसर उत्पन्न करती है।
- उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र और झारखंड में वर्ष 2024 के राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ विभिन्न उपचुनावों में, प्रवर्तन एजेंसियों ने 1,000 करोड़ रुपए से अधिक की नकदी, शराब, मादक पदार्थ एवं निशुल्क सामान ज़ब्त किये।
- ONOE चुनाव की समय-सीमा को सीमित करके ऐसी प्रथाओं को बहुत हद तक कम कर सकता है, जिससे चुनाव आयोग की निगरानी अधिक केंद्रित और प्रभावी हो जाएगी।
- सुरक्षा बलों का इष्टतम उपयोग: चुनावों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की आवश्यकता होती है, जिससे उनके प्राथमिक कर्त्तव्य प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत के निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव- 2024 और आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा एवं सिक्किम में विधानसभा चुनावों के दौरान चरणबद्ध तरीके से तैनाती के लिये 3.4 लाख केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) कर्मियों की मांग की, जिससे सीमा एवं आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन में कमी रह गई।
- ONOE इन तैनाती को एक चक्र में समेकित करेगा, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा तैयारियों में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
- आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान को कम करना: बार-बार होने वाले चुनावों से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में व्यवधान उत्पन्न होता है, क्योंकि इससे व्यावसायिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लग जाता है, जैसे- परिवहन प्रतिबंध, शराब की बिक्री और श्रम डायवर्जन।
- उदाहरण के लिये, कर्नाटक सरकार को वर्ष 2023 के राज्य चुनावों के दौरान शराब पर प्रतिबंध लगाने के कारण ₹150 करोड़ के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा।
- चुनावी कार्यक्रमों को संरेखित करके, ONOE निर्बाध आर्थिक गतिविधि सुनिश्चित कर सकता है।
- विकास लक्ष्यों में अधिक संरेखण: एक साथ चुनाव केंद्र और राज्य सरकारों की शर्तों को संरेखित करके सहकारी संघवाद को सुदृढ़ कर सकते हैं।
- वस्तु एवं सेवा कर (वर्ष 2017) के कार्यान्वयन के दौरान, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वित प्रयासों ने नीति के क्रियान्वयन में तेज़ी लाई।
- ONOE ऐसे सहयोग को संस्थागत बना सकता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और जलवायु कार्रवाई जैसे क्षेत्रों में एकीकृत रणनीति सुनिश्चित हो सके, जिससे अधिक सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीय विकास हो सके।
एक राष्ट्र एक चुनाव से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
- संवैधानिक और विधिक जटिलताएँ: ONOE को लागू करने के लिये कई संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता होती है, जैसे कि अनुच्छेद 83, 85, 172 और 356, जो विधानसभाओं के कार्यकाल तथा विघटन को नियंत्रित करते हैं।
- उदाहरण के लिये, राज्य चुनावों को एक साथ कराने के लिये कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल को कम करना या बढ़ाना आवश्यक होगा, जिससे उनकी लोकतांत्रिक वैधता पर प्रश्न उठेंगे।
- इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का दुरुपयोग होने पर समन्वित कार्यकाल बाधित हो सकता है।
- संघवाद के लिये संभावित खतरा: आलोचकों का तर्क है कि ONOE राज्यों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर सकता है, क्योंकि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय अभियानों और एजेंडों से प्रभावित हो सकते हैं।
- वर्ष 2019 के लोकसभा और ओडिशा विधानसभा चुनावों के दौरान, अभियान मुख्य रूप से बालाकोट हवाई हमले जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित थे।
- परिणामस्वरूप, ओडिशा में कृषि संकट और जनजातीय क्षेत्रों में बेरोज़गारी सहित महत्त्वपूर्ण राज्य-स्तरीय मुद्दों पर सार्वजनिक बहस में सीमित ध्यान दिया गया।
- सरकारिया आयोग (वर्ष 1988) ने भी अत्यधिक केंद्रीकरण के विरुद्ध चेतावनी दी थी। यह संविधान में निहित सहकारी संघवाद की भावना को नष्ट कर सकता है।
- वर्ष 2019 के लोकसभा और ओडिशा विधानसभा चुनावों के दौरान, अभियान मुख्य रूप से बालाकोट हवाई हमले जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित थे।
- तार्किक और परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने के लिये बड़े पैमाने पर प्रशासनिक एवं तार्किक योजना की आवश्यकता होगी।
- भारत के चुनाव आयोग (ECI) का अनुमान है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये प्रत्येक 15 वर्ष में नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की खरीद और प्रतिस्थापन के लिये ₹10,000 करोड़ की आवश्यकता होगी।
- इसके अतिरिक्त, 1 मिलियन मतदान केंद्रों (वर्ष 2019 तक) पर एक साथ 900 मिलियन से अधिक मतदाताओं का प्रबंधन करना बहुत-सी चुनौतियों का सामना करता है, खासकर दूर-दराज़ एवं संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में।
- लोकतांत्रिक जवाबदेही में व्यवधान: बार-बार चुनाव एक निरंतर जवाबदेही तंत्र के रूप में कार्य करते हैं, जिससे मतदाता नियमित रूप से सरकारों का आकलन कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में शासन के प्रति जनता का असंतोष झलकता है, जिसके परिणामस्वरूप पूरी तरह से शासन बदल गया।
- ONOE, चुनाव आवृत्ति को कम करके, आवधिक जाँच की इस प्रणाली को कमज़ोर कर सकता है, जिससे सरकारों को अपने कार्यकाल के अंत तक दबाव वाले मुद्दोंका हल करने में विलंब करने की अधिक छूट मिल सकती है।
- राजनीतिक प्रतिरोध और आम सहमति का अभाव: ONOE के विचार को विभिन्न राजनीतिक दलों, विशेष रूप से क्षेत्रीय दलों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो एक समन्वित प्रणाली में अपनी प्रासंगिकता खोने से डरते हैं।
- पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के अनुसार, 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर विचार-विमर्श के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 ने इसका विरोध किया।
- समय से पूर्व विघटन के कारण व्यवधान: यदि किसी राज्य या केंद्र में सरकार का समय से पहले पतन हो जाता है, तो समकालिक चुनाव चक्र बाधित हो जाएगा।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में कर्नाटक सरकार और वर्ष 2022 में महाराष्ट्र सरकार के पतन के कारण अनियोजित चुनाव हुए।
- समय-सीमाओं को समकालिक करने के लिये या तो बार-बार राष्ट्रपति शासन लागू करना होगा, जिससे लोकतांत्रिक अखंडता के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ेंगी, या अंतरिम चुनाव कराने होंगे, जिससे ONOE की लागत-दक्षता कम होगी।
- विलंबित चुनावी न्याय और विवाद समाधान: एक साथ चुनाव होने से न्यायपालिका के लिये चुनाव संबंधी विवादों को निपटाने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- वर्तमान में, चरणों में चुनाव कराने से न्यायालय मामलों को चरणों में निपटा सकते हैं, लेकिन ONOE के कारण एक साथ याचिकाओं की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे समाधान में विलंब होगा।
- वर्ष 2019 के चुनावों में 130 चुनाव याचिकाएँ दायर की गईं, जो सभी आम चुनावों में सबसे अधिक है। ONOE के कारण परिणामों की घोषणा में और विलंब हो सकता है तथा शासन की निरंतरता बाधित हो सकती है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव पैनल की सिफारिशें क्या हैं?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक राष्ट्र, एक चुनाव पैनल ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ कराने के लिये 11 सिफारिशें प्रस्तावित कीं।
- चरणबद्ध समन्वय:
- चरण I: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव तिथियों को एक साथ कराना।
- चरण II: नगरपालिका और पंचायत चुनावों को इनके साथ एक साथ कराना, जो राज्य तथा लोकसभा चुनावों के 100 दिनों के भीतर कराए जाने चाहिये।
- समन्वय की निरंतरता:
- राष्ट्रपति लोकसभा की पहली बैठक की तिथि को 'नियत तिथि' के रूप में घोषित कर सकते हैं, जिससे समन्वय की निरंतरता सुनिश्चित हो सके।
- नई विधानसभाओं के लिये कार्यकाल समायोजन: अगले आम चुनावों के साथ तालमेल बिठाने के लिये नवगठित राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल छोटा किया जा सकता है।
- शासन और कार्यान्वयन:
- कार्यान्वयन समूह: एक समर्पित समूह को एक साथ चुनाव सुधारों के क्रियान्वयन की देखरेख और सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
- विधायी संशोधन:
- अनुच्छेद 324A: पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की सुविधा के लिये प्रस्तावित प्रस्ताव।
- अनुच्छेद 325: सभी चुनावों के लिये एकीकृत मतदाता सूची और फोटो पहचान-पत्र स्थापित करने के लिये सुझाया गया संशोधन।
- अस्थिर सदन और अविश्वास परिदृश्यों का प्रबंधन
- अस्थिर सदन के मामले में चुनाव: यदि अस्थाई सदन या अविश्वास प्रस्ताव होता है, तो नए चुनाव कराए जाएंगे।
- नव-निर्वाचित निकाय केवल तब तक कार्य करेगा जब तक कि मौजूदा लोकसभा या राज्य विधानसभा का कार्यकाल समाप्त नहीं हो जाता।
- कार्यकाल सीमा: नव निर्वाचित लोकसभा के लिये, कार्यकाल केवल अगले समकालिक आम चुनाव तक ही बढ़ाया जाएगा। राज्य विधानसभाएँ तब तक जारी रहेंगी जब तक कि लोकसभा का कार्यकाल समाप्त न हो जाए और उसे पहले भंग न कर दिया जाए।
- अस्थिर सदन के मामले में चुनाव: यदि अस्थाई सदन या अविश्वास प्रस्ताव होता है, तो नए चुनाव कराए जाएंगे।
- परिचालन संवर्द्धन
- चुनाव उपकरणों की खरीद: चुनाव आयोग को सुचारु चुनाव प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये EVM और VVPAT जैसे आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिये सक्रिय रूप से योजना बनानी चाहिये।
- एकीकृत चुनावी अवसंरचना: पैनल ने सभी चुनावों में एकीकृत मतदाता सूची और पहचान-पत्र प्रणाली की सिफारिश की है, जिसके लिये संवैधानिक संशोधन एवं राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के मामले में भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है?
- इंडोनेशिया: इंडोनेशिया ने वर्ष 2019 में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' प्रारूप अपनाया, जहाँ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दोनों विधायी निकायों के सदस्यों का चुनाव एक ही दिन होता है।
- वर्ष 2024 में, इंडोनेशिया ने विश्व के सबसे बड़े एकल-दिवसीय चुनावों का सफलतापूर्वक संचालन किया, जिसमें पाँच स्तरों पर: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, क्षेत्रीय विधानसभाएँ और नगरपालिका चुनाव में लगभग 200 मिलियन मतदाता शामिल थे।
- दक्षिण अफ्रीका: मतदाता राष्ट्रीय विधानसभा और प्रांतीय विधानमंडल दोनों के लिये एक साथ मतदान करते हैं। हालाँकि नगरपालिका चुनाव पाँच वर्ष के चक्र के बाद अलग-अलग आयोजित किये जाते हैं।
- स्वीडन: स्वीडन एक आनुपातिक चुनावी प्रणाली संचालित करता है जहाँ संसद (रिक्सडैग), काउंटी परिषदों और नगर परिषदों में सीटें वोट शेयर के आधार पर आवंटित की जाती हैं।
- ये चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में होते हैं। नगरपालिका चुनाव पाँच वर्ष के चक्र का पालन करते हैं, जो प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार होता है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- संघ शासित प्रदेशों में ONOE का पायलट: अवधारणा के प्रमाण के रूप में संघ शासित प्रदेशों (UT) में ONOE सुधारों को लागू करना शुरू किया जाना चाहिये।
- दिल्ली, पुदुचेरी और चंडीगढ़ जैसे केंद्रशासित प्रदेशों में छोटे निर्वाचन क्षेत्र एवं सरल शासन संरचनाएँ हैं, जो उन्हें पायलट के लिये आदर्श बनाती हैं।
- इससे राष्ट्रीय स्तर पर रोलआउट से पहले ONOE मॉडल को परिष्कृत करने की अनुमति मिलती है।
- क्षेत्रीय तत्परता के आधार पर लचीले चुनाव चक्र: संघ शासित प्रदेशों को समन्वयित करने के बाद, राष्ट्रव्यापी एकरूपता लागू करने के बजाय क्षेत्र-विशिष्ट चुनाव समन्वय शुरू करने के साथ संक्रमण किया जाना चाहिये।
- राज्यों को क्षेत्रीय रूप से समूहीकृत किया जा सकता है (जैसे- उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम) ताकि 5-10 वर्षों में उन क्षेत्रों के भीतर चुनावों को समन्वयित किया जा सके।
- इससे झारखंड या जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य, जो शासन या सुरक्षा मुद्दों का सामना करते हैं, राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय को बाधित किये बिना धीरे-धीरे चुनाव चक्रों को संरेखित करने की अनुमति मिलती है।
- यह दृष्टिकोण संघीय चिंताओं के साथ तार्किक व्यवहार्यता को संतुलित करता है।
- डिजिटल चुनावी प्रबंधन प्रणाली बनाना: ONOE के जटिल लॉजिस्टिक्स को प्रबंधित करने के लिये एक व्यापक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाना चाहिये।
- DEMS मतदाता सूची, मतदान केंद्र आवंटन, उम्मीदवार दाखिल करना और परिणाम प्रबंधन को एकीकृत कर सकता है। पारदर्शिता और सटीकता बढ़ाने के लिये वोट रिकॉर्डिंग एवं गिनती के लिये ब्लॉकचेन-आधारित तकनीक के पायलट की आवश्यकता है।
- यह प्रशासनिक विलंब को कम करता है और सुदृढ़ चुनाव प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के लिये संघीय सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करना: सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि राज्य-स्तरीय मुद्दों को प्रभावित होने से रोकने के लिये तंत्र मौजूद हैं।
- स्थानीय मुद्दों को दृश्यता देने के लिये समकालिक चुनावों के दौरान अनिवार्य क्षेत्रीय बहस या टेलीविज़न राज्य-विशिष्ट मंचों की शुरुआत की जानी चाहिये।
- बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय अभियानों के बावजूद क्षेत्रीय दलों को प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिये राजनीतिक फंडिंग कैप को अनुकूलित किया जा सकता है।
- यह भारत के संघीय ढाँचे के लिये महत्त्वपूर्ण लोकतांत्रिक विविधता की रक्षा करता है।
- चुनाव संसाधन आवंटन के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग: AI क्षेत्र-विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर कार्मिक, EVM और सुरक्षा बलों जैसे चुनाव संसाधनों को आवंटित करने में मदद कर सकता है।
- AI-संचालित सिमुलेशन मतदाता मतदान का पूर्वानुमान कर सकते हैं, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों (जैसे- संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्र) की पहचान कर सकते हैं और संसाधन अनुकूलन सुनिश्चित कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, आपदा प्रबंधन प्रणालियों में उपयोग किये जाने वाले एल्गोरिदम को चुनावों के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
- यह अक्षमताओं को कम करता है और एक साथ चुनाव प्रबंधन में विलंब को रोकता है।
- राज्यों को शर्तों को संरेखित करने के लिये सशर्त वित्तीय प्रोत्साहन: राज्यों को अपने चुनाव चक्रों को ONOE के साथ संरेखित करने के लिये केंद्रीय निधियों के उच्च विकेंद्रीकरण जैसे वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
- अपने विधानसभा कार्यकाल को छोटा या बढ़ाने के लिये सहमत होने वाले राज्य विकास परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त धन प्राप्त कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, 15वें वित्त आयोग ने राज्य प्रदर्शन-लिंक्ड अनुदान की सिफारिश की, एक मॉडल जिसे ONOE अनुपालन के लिये फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। यह जनादेश लगाए बिना सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
- विकेंद्रीकृत चुनाव निगरानी प्रकोष्ठ: विकेंद्रीकृत तरीके से एक साथ चुनावी प्रक्रिया की देखरेख के लिये क्षेत्रीय चुनाव निगरानी प्रकोष्ठ स्थापित किया जाना चाहिये।
- ये प्रकोष्ठ चुनाव आयोग के अधीन काम करेंगे, लेकिन विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिससे केंद्रीय चुनाव आयोग पर बोझ कम होगा।
- यह स्थानीय दृष्टिकोण रियल टाइम समस्या-समाधान और सुचारु संचालन सुनिश्चित करता है।
- सहभागी लोकतंत्र तंत्र के माध्यम से नागरिक जुड़ाव: नागरिकों को समकालिक चुनावों को आकार देने में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जागरूकता बढ़ाने और जनता की राय जानने के लिये सार्वजनिक परामर्श, ऑनलाइन जनमत सर्वेक्षण एवं हितधारक मंचों की मेज़बानी की जानी चाहिये।
- उदाहरण के लिये, केरल के सहभागी बजट मॉडल को ONOE सुधारों पर नागरिक इनपुट एकत्र करने के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
- समकालिक चुनावों के बीच जवाबदेही बनाए रखने के लिये सरकारों के लिये अनिवार्य मध्यावधि समीक्षा शुरू की जानी चाहिये।
- इन समीक्षाओं में सार्वजनिक प्रतिक्रिया सर्वेक्षण, संसदीय प्रदर्शन ऑडिट और RTI-आधारित पारदर्शिता तंत्र शामिल हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, MyGov जैसा एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म निर्वाचित अधिकारियों के लिये नागरिक स्कोरकार्ड होस्ट कर सकता है, जिससे निरंतर जवाबदेही सुनिश्चित होती है। यह इस चिंता को कम करता है कि ONOE शासन पर मतदाता की निगरानी को कम करता है।
- जागरूकता बढ़ाने और जनता की राय जानने के लिये सार्वजनिक परामर्श, ऑनलाइन जनमत सर्वेक्षण एवं हितधारक मंचों की मेज़बानी की जानी चाहिये।
- आकस्मिक चुनाव निधि की स्थापना: सरकार के पतन के कारण अप्रत्याशित चुनावों से निपटने के लिये विशेष रूप से आकस्मिक निधि बनाए जाने चाहिये।
- इस निधि का प्रबंधन चुनाव आयोग द्वारा किया जाएगा और इसका उपयोग सिंक्रोनाइजेशन प्रयासों को बाधित किये बिना मध्य-चक्र चुनाव या उपचुनावों का प्रबंधन करने के लिये किया जाएगा।
- इससे आपातकालीन स्थितियों के दौरान वित्तीय तनाव से बचा जा सकता है और साथ ही ONOE समय-सीमा को बरकरार रखा जा सकता है।
- डिजिटल वोटिंग प्लेटफॉर्म का क्रमिक एकीकरण: NRI या शहरी प्रवासियों जैसे कुछ श्रेणियों के मतदाताओं के लिये सुरक्षित डिजिटल वोटिंग तंत्र पेश किये जाने चाहिये।
- डिजिटल वोटिंग से लॉजिस्टिक बोझ कम हो सकता है और सिंक्रोनाइज्ड चुनावों में व्यापक भागीदारी हो सकती है।
- एस्टोनिया का वर्ष 2005 का डिजिटल वोटिंग मॉडल एक बेंचमार्क के रूप में काम कर सकता है। यह नवाचार समावेशिता को बढ़ाता है और भौतिक संसाधन आवश्यकताओं को कम करता है।
निष्कर्ष:
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" प्रस्ताव भारत के चुनावी परिदृश्य में एक परिवर्तनकारी बदलाव को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य अधिक दक्षता, कम लागत और सुव्यवस्थित शासन लाना है। ONOE के कार्यान्वयन के लिये सावधानीपूर्वक योजना, विधायी संशोधन और संघीय स्वायत्तता को राष्ट्रीय हितों के साथ संतुलित करने की क्षमता की आवश्यकता होगी। वैश्विक उदाहरणों से सीखकर और चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाकर, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुधार एक अधिक सुसंगत एवं कार्यात्मक चुनावी प्रणाली की ओर ले जाएँ, भारत इन चुनौतियों का समाधान कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (ONOE) को लागू करने के संभावित लाभों और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। एक राष्ट्र, एक चुनाव के संबंध में भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. "लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही समय में चुनाव, चुनाव-प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।" चर्चा कीजिये। (2017) |