भारत में रक्षा एकीकरण का उन्नयन | 18 May 2024
यह एडिटोरियल 16/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Has the Chief of Defence Staff post improved India’s combat efficiency?’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत के रक्षा एकीकरण प्रयासों में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर विचार किया गया है और चुनौतियों, समाधानों तथा उन्नत संयुक्त कौशल एवं सामरिक तैयारियों की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये: रक्षा बलों के बीच एकीकरण, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, कारगिल युद्ध,1999, कारगिल समीक्षा समिति, सैन्य मामलों का विभाग, गलवान घाटी संघर्ष, नियंत्रण रेखा, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, राफेल लड़ाकू जेट, मेन्स के लिये: CDS की नियुक्ति के पीछे तर्क, भारत में CDS पद की भूमिका। |
भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता के मामले में स्थायी और महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करता रहा है। वर्ष 2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद के गठन का उद्देश्य समग्र युद्ध क्षमता को बढ़ाना और तकनीकी-रणनीतिक मंथन द्वारा आकार लेती नई आपात स्थितियों के लिये तैयार रहना था। लेकिन अब तक इसकी उपलब्धियाँ मिश्रित ही रही हैं।
हाल की कुछ रिपोर्टों में CDS की विविध भूमिकाओं को सहयोग देने के लिये वाइस CDS और डिप्टी CDS जैसे नए पदों पर विचार करने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही, भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं के बीच एकीकरण को बढ़ाना और निर्बाध सहयोग, एकीकृत रणनीति एवं बेहतर परिचालन प्रभावशीलता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
CDS की नियुक्ति के पीछे तर्क:
- संयुक्त कौशल या जॉइंटमैनशिप (Jointmanship) को बढ़ावा देना: दशकों से थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच एकीकृत योजना एवं संसाधन अनुकूलन की कमी को एक प्रमुख संरचनात्मक कमी के रूप में चिह्नित किया जा रहा था, जो भारत की समग्र युद्ध प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रही थी।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारत के संयुक्त अभियानों में योजना एवं समन्वय का अभाव प्रकट हुआ, जिससे बेहतर एकीकरण की आवश्यकता उजागर हुई।
- एकल सैन्य सलाहकार की स्थापना: CDS की परिकल्पना भारत सरकार के एक सशक्त, एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार के रूप में की गई, जो नागरिक-सैन्य अंतराल को दूर करने तथा सुसंगत रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करेगा।
- CDS से पहले, सरकार को तीनों सेना प्रमुखों से अलग-अलग और कभी-कभी परस्पर विरोधी सलाह प्राप्त होती थी, जिससे एक सुसंगत सैन्य परिप्रेक्ष्य प्राप्त करना कठिन हो जाता था।
- परिचालन तालमेल को बढ़ाना: CDS को एकीकृत थियेटर कमांड की ओर संक्रमण का नेतृत्व करने और संचालन के दौरान सेवाओं के बीच अधिक तालमेल एवं अंतर-संचालन को बढ़ावा देने का कार्य सौंपा गया है।
- वर्ष 2004 के हिंद महासागर सुनामी राहत प्रयासों के दौरान सेवाओं के बीच बेहतर समन्वय से प्रतिक्रिया की प्रभावशीलता में सुधार हो सकता था।
- संसाधन आवंटन को इष्टतम करना: संयुक्त कौशल को बढ़ावा देने के रूप में, CDS से रक्षा व्यय को युक्तिसंगत बनाने और सेवाओं में संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है।
- सामरिक बल प्रबंधन: CDS को दीर्घकालिक रक्षा योजना, बल संरचना और क्षमता विकास की देखरेख करने तथा उभरते सुरक्षा खतरों के साथ सैन्य तैयारियों को संरेखित करने का दायित्व सौंपा गया है।
CDS पद के सृजन की समयरेखा
- वर्ष 1999: के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली कारगिल समीक्षा समिति ने रक्षा मामलों में बेहतर निर्णयन के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे की व्यापक समीक्षा की अनुशंसा की।
- समिति ने रक्षा मंत्रालय और सेवा मुख्यालयों के बीच सहयोग एवं अंतक्रिया के समग्र अध्ययन और पुनर्गठन की भी सिफ़ारिश की।
- वर्ष 2001: कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट के आधार पर मंत्रियों के एक समूह (GoM) ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद के सृजन की अनुशंसा की।
- वर्ष 2001-2019: मंत्री समूह की अनुशंसा के बावजूद, राजनीतिक इच्छाशक्ति और आम सहमति की कमी के कारण किसी भी सरकार ने इस महत्त्वपूर्ण रक्षा सुधार को लागू नहीं किया।
- संयुक्त कौशल एवं एकीकरण में वृद्धि के लिये इटली, फ्राँस, चीन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और जापान जैसे कई प्रमुख देशों में CDS का पद मौजूद रहा है।
- वर्ष 2019: 24 दिसंबर 2019 को सुरक्षा संबंधी मंत्रीमंडलीय समिति ने सेवा इनपुट के एकीकरण के माध्यम से राजनीतिक नेतृत्व के लिये सैन्य सलाह की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ का पद सृजित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
- इस कदम का उद्देश्य बेहतर और अधिक सूचित निर्णय लेने के लिये रक्षा मामलों में विशेषज्ञता विकसित करना तथा उसे बढ़ावा देना था।
- CDS को चीफ्स ऑफ स्टाफ समिति के स्थायी अध्यक्ष और तीनों सेनाओं के सभी मामलों पर रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।
- 31 दिसंबर 2019 को पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया।
- सुरक्षा संबंधी मंत्रीमंडलीय समिति ने सैन्य कार्य विभाग (Department of Military Affairs) के गठन को भी मंज़ूरी प्रदान की।
- यह नया विभाग सैन्य-संबंधी सभी मामलों का प्रबंधन करता है, जबकि रक्षा विभाग (Department of Defence) राष्ट्रीय रक्षा एवं नीति पर ध्यान केंद्रित करता है।
- 28 सितंबर, 2022 को लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त) को भारत के नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में नियुक्त किया गया।
भारत में CDS पद की मिश्रित उपलब्धि में किन कारकों का योगदान रहा है?
- दुखद व्यवधान और नीतिगत असंततता: भारत के पहले CDS जनरल बिपिन रावत का कार्यभार संभालने के लगभग एक वर्ष बाद ही दिसंबर 2021 में एक दुर्भाग्यपूर्ण हवाई दुर्घटना में निधन हो गया।
- भारत सरकार ने अगले CDS की नियुक्ति में नौ माह का समय लगा दिया, जिससे रक्षा नेतृत्व और रणनीतिक योजना की निरंतरता एवं प्रभावशीलता पर असर पड़ा।
- उत्तरदायित्वों का अतिभार: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) को सौंपे गए उत्तरदायित्वों की वर्तमान शृंखला अनावश्यक रूप से बोझपूर्ण प्रतीत होती है।
- आलोचकों का तर्क है कि भूमिकाओं के इस संगम के लिये सैन्य दक्षता, प्रशासनिक कौशल और रणनीतिक राजनीतिक परामर्श के मिश्रण की आवश्यकता होती है, जिससे संयुक्त परिचालन तालमेल को बढ़ावा देने के मुख्य उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने की CDS की क्षमता में कमी आ सकती है।
- सेवाओं के बीच पर्याप्त सहमति का अभाव : CDS की कार्यक्षमता थल सेना, नौसेना और वायु सेना की भिन्न-भिन्न प्राथमिकताओं, परस्पर विरोधी हितों और अलग-अलग दृष्टिकोणों से बाधित हो सकती है।
- रक्षा मंत्री ने हाल ही में स्वीकार किया कि एकीकृत थियेटर कमांड के निर्माण में कई दृष्टिकोणों को ध्यान में रखना होगा, जहाँ उन्होंने तीनों सेनाओं, विशेष रूप से भारतीय वायु सेना, के बीच अलग-अलग दृष्टिकोणों का हवाला दिया।
- तीनों सेनाओं—जिनकी अपनी-अपनी परंपराएँ, संस्कृतियाँ और प्राथमिकताएं हैं, के बीच आम सहमति का निर्माण करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती सिद्ध हुई है।
वे कौन-सी उभरती रक्षा चुनौतियाँ हैं जो भारत की ओर से अधिक एकीकृत एवं समन्वित दृष्टिकोण की मांग रखती हैं?
- दो मोर्चों पर खतरे का परिदृश्य: सीमा पर जारी तनाव और अनसुलझे क्षेत्रीय विवादों के परिदृश्य में भारत को चीन एवं पाकिस्तान के साथ समान रूप से संघर्ष की संभावना का सामना करना पड़ रहा है।
- वर्ष 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में संघर्ष और नियंत्रण रेखा (LoC) पर पाकिस्तान द्वारा लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन (हाल ही में नवंबर 2023 में भी) दोनों मोर्चों पर समन्वित सैन्य तैयारियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- हाइब्रिड युद्ध और सीमापार आतंकवाद: हाइब्रिड युद्ध की चुनौती, जिसमें सीमापार आतंकवाद सहित परंपरागत एवं अपरंपरागत साधन सम्मिलित हैं, के लिये व्यापक और बहुआयामी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
- वर्ष 2020 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और हाइब्रिड युद्ध रणनीति के लिये उनके संभावित उपयोग का हवाला देते हुए ‘टिकटॉक’ सहित कई मोबाइल एप्लीकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया।
- समुद्री सुरक्षा और खुले समुद्र में उपस्थिति की महत्त्वाकांक्षा: चूँकि भारत स्वयं को वैश्विक पहुँच रखने वाली समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है, उसे नौसेना, तटरक्षक बल और अन्य एजेंसियों को शामिल करते हुए एक सुदृढ़ एवं एकीकृत समुद्री रणनीति की आवश्यकता है।
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) अपनी महत्त्वपूर्ण समुद्री संचार लाइनों एवं ऊर्जा आपूर्ति मार्गों के कारण एक सुदृढ़ एवं समन्वित नौसैनिक उपस्थिति और समुद्री क्षेत्र जागरूकता की मांग रखता है।
- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और प्रभाव, जिसमें श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का अधिग्रहण और जिबूती में नौसैनिक अड्डे की स्थापना शामिल है, भारत के समुद्री हितों के लिये रणनीतिक चुनौती पेश करता है।
- सैन्यबल का आधुनिकीकरण और क्षमता विकास: प्रभावशील सैन्यबल आधुनिकीकरण और क्षमता विकास के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जहाँ तीनों सेवाओं की आवश्यकताओं पर विचार किया जाए, पुनरावृत्ति से बचा जाए और अंतर-संचालनशीलता सुनिश्चित की जाए।
- राफेल लड़ाकू जेट या स्वदेशी विमान वाहक (IAC) जैसे नए प्लेटफॉर्मों का अधिग्रहण अन्य सेवा घटकों के साथ संयुक्त प्रशिक्षण एवं एकीकरण की आवश्यकता रखता है।
- अंतरिक्ष सुरक्षा और अंतरिक्ष-प्रतिरोधी क्षमताएँ: विभिन्न सैन्य एवं असैन्य अनुप्रयोगों के लिये अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों पर भारत की बढ़ती निर्भरता के साथ, अंतरिक्ष सुरक्षा सुनिश्चित करना और अंतरिक्ष-प्रतिरोधी क्षमताओं का विकास करना महत्त्वपूर्ण हो गया है। इसके लिये सशस्त्र बलों की ओर से समन्वित प्रयास आवश्यक है।
- वर्ष 2019 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष में एक उपग्रह को मार गिराते हुए 'मिशन शक्ति' का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- आर्कटिक और अंटार्कटिक परिचालन: चूँकि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक एवं अंटार्कटिक क्षेत्रों में नए अवसर और चुनौतियाँ सामने आई हैं, इसलिये भारत ने इन प्रतिकूल वातावरणों में परिचालन के लिये संयुक्त रक्षा क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता को चिह्नित किया है।
भारतीय सशस्त्र बलों के उन्नत एकीकरण के लिये आवश्यक उपाय:
- भूमिका की स्पष्टता बढ़ाना: CDS और तीनों सेवा प्रमुखों के बीच भूमिकाओं के मौजूदा वितरण को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है ताकि कमान एवं नियंत्रण चैनलों का स्पष्ट निरूपण सुनिश्चित हो सके।
- वाइस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और डिप्टी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पदों के सृजन से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ निकाय की प्रभावशीलता को सुव्यवस्थित एवं उन्नत बनाने का अवसर मिलेगा।
- एकीकृत थियेटर कमांड: संयुक्त कौशल एवं संसाधन अनुकूलन को बढ़ावा देने पर लक्षित एकीकृत थियेटर कमांड के दीर्घकालिक लंबित कार्यान्वयन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- सरकार ने हाल ही में अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम की घोषणा की है जो एकीकृत थियेटर कमांड के निर्माण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- ‘क्रॉस-सर्विस रोटेशनल असाइनमेंट’: थल सेना, नौसेना और वायु सेना के अधिकारियों एवं कार्मिकों के लिये क्रॉस-सर्विस रोटेशनल असाइनमेंट का कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
- यह पहल सैन्यकर्मियों को विभिन्न परिचालन वातावरणों से परिचित कराएगी, परस्पर समझ को बढ़ावा देगी और तीनों सेवाओं के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करेगी।
- यह सांस्कृतिक बाधाओं को तोड़ने में भी मदद करेगी और रक्षा परिचालनों पर एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देगी।
- ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) फ्यूजन सेंटर: OSINT फ्यूजन सेंटर की स्थापना की जाए जो सोशल मीडिया, न्यूज़ आउटलेट, शैक्षणिक अनुसंधान और उपग्रह इमेजरी सहित विविध स्रोतों से प्राप्त सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना के संग्रहण एवं विश्लेषण में भूमिका निभाएगी।
- रक्षा योजना-निर्माण एवं परिचालनों के लिये कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि, आरंभिक चेतावनी संकेतक एवं खतरे का आकलन प्राप्त करने के लिये उन्नत डेटा विश्लेषण, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) और भू-स्थानिक खुफिया जानकारी (geospatial intelligence) अनुप्रयोग किया जाए।
- क्वांटम-सिक्योर कम्युनिकेशन नेटवर्क (Quantum-Secure Communications Network): एक क्वांटम-सिक्योर कम्युनिकेशन नेटवर्क का विकास किया जाए जो क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (Quantum Cryptography) और क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (Quantum Key Distribution- QKD) प्रोटोकॉल का लाभ उठाए।
- यह नेटवर्क संयुक्त सैन्य अभियानों, खुफिया जानकारी साझेदारी और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना सुरक्षा के लिये अत्यधिक सुरक्षित एवं अटूट संचार चैनल सुनिश्चित करेगा, साइबर खतरों एवं डेटा उल्लंघनों से सुरक्षा प्रदान करेगा और भारत के रक्षा बलों को पुनः एकीकृत करेगा।
अभ्यास प्रश्न: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। एकीकृत रक्षा योजना-निर्माण तथा परिचालन में समन्वय एवं प्रभावशीलता के सुधार के लिये उपाय भी सुझाइये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008) (a) रक्षा मंत्रालय उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021) प्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) प्रश्न: दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबंधन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। ( 2016) |