राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा: चुनौतियाँ और समाधान | 19 May 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत सरकार की नीति ‘सभी के लिये विद्युत’ (Power For All ) का उद्देश्य वर्ष 2022 तक देश के प्रत्येक व्यक्ति तक सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच प्रदान करना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये सरकार ने हाल ही में विद्युत अधिनियम (Electricity Act ),2003 में कुछ संशोधन करने की घोषणा की है। केंद्र सरकार ने देश के विद्युत क्षेत्र में बड़े सुधार करने के उद्देश्य से ‘विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020’ के मसौदे को मंजूरी दी है। इस मसौदे में शामिल सुधारों में सब्सिडी वितरण हेतु ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ (Direct Benefit Transfer- DBT) की प्रणाली का प्रयोग, विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की वैधता, लागत आधारित दर, विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना और नियामकीय व्यवस्था को मज़बूत बनाना आदि प्रमुख हैं।
इसके साथ ही एक समावेशी राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति (National Renewable Energy Policy) का विकास और शुल्कों का युक्तिकरण शामिल है। बिजली क्षेत्र की अधिकांश समस्याएँ डिस्कॉम (वितरण कंपनियाँ) क्षेत्र के खराब निष्पादन से जुड़ी हुई हैं। इन्हीं समस्यायों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015 में ‘उदय’ (उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना) योजना को लॉन्च किया गया था जो कि विचार की दृष्टि से एक अच्छी पहल थी। कुछ राज्यों में यह पहल सकारात्मक परिवर्तन वाली साबित हुई और कुछ राज्यों में इसे इच्छित लाभकारी परिवर्तन नहीं प्राप्त हो सके।
इस आलेख में विद्युत वितरण में आने वाली चुनौतियाँ, विद्युत अधिनियम में संशोधन के प्रभाव, नवीकरणीय ऊर्जा नीति की आवश्यकता के साथ विद्युत क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया जाएगा।
उदय योजना क्या है?
- नवंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना या ‘उदय योजना’ (UDAY) को स्वीकृति प्रदान की गई।
- उदय को विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की वित्तीय तथा परिचालन क्षमता में सुधार लाने के लिये शुरू किया गया था।
- इस योजना में ब्याजभार, विद्युत की लागत और कुल तकनीकी तथा वाणिज्यिक नुकसान की हानि को कम करने का प्रावधान है। इसके परिणामस्वरूप डिस्कॉम्स लगातार 24 घंटे पर्याप्त और विश्वसनीय विद्युत की आपूर्ति करने में समर्थ हो जाएंगी।
- इस योजना में राज्य सरकार को अपने ऋणों का स्वैच्छिक रूप से पुनर्गठन करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु प्रावधान है।
- उदय योजना के तहत बिजली वितरण कंपनियों को आगामी दो-तीन वर्षों में उबारने हेतु निम्नलिखित चार पहले अपनाए जाने की बात शामिल है जो निम्नलिखित हैं –
- बिजली वितरण कंपनियों की परिचालन क्षमता में सुधार।
- बिजली की लागत में कमी।
- वितरण कंपनियों की ब्याज लागत में कमी।
- राज्य वित्त आयोग के साथ समन्वय के माध्यम से बिजली वितरण कंपनियों पर वित्तीय अनुशासन लागू करना।
विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ
- विद्युत क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्षमता विकास के मामले में भारी वृद्धि देखी है, लेकिन मांग और पूर्ति में असंतुलन के कारण यह क्षेत्र सदैव ही तनाव में रहा है।
- ऊर्जा पर 37वीं स्थायी पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 34 बिजली संयंत्रों में लगभग 1.40 लाख करोड़ रुपए की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets-NPA) हैं।
- बिजली की कीमत के निर्धारण की दुविधा के कारण डिस्कॉम्स जितना अधिक बिजली वितरण उपलब्ध कराते हैं, उतना ही उनका घाटा बढ़ता जाता है। परिणामस्वरूप, यह मांग की कमी बदले में बिजली डिस्कॉम्स को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
- अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि कार्य में विद्युत आपूर्ति के लिये मीटर (Electricity Meter) न होने के कारण ऐसे क्षेत्रों में विद्युत खपत के संदर्भ में विस्तृत आँकड़ों की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है।
- कृषि में विद्युत सब्सिडी के कारण राज्य सरकारों पर आर्थिक दबाव बढ़ा है और यह आर्थिक दबाव विद्युत क्षेत्र के विकास की सबसे बड़ी बाधा रही है, साथ ही वितरक कंपनियों को समय पर भुगतान न मिलने के कारण कंपनियों की स्थिति खराब हुई है।
- बेहतर तकनीक एवं उपकरणों के नवीनीकरण के न होने के कारण उत्पादन केंद्रों से उपभोक्ताओं तक विद्युत् वितरण के दौरान भारी मात्रा में ऊर्जा की हानि एक बड़ी समस्या है।
- सरकार पर सब्सिडी के दबाव को कम करने के लिये क्रॉस-सब्सिडी (किसी एक वर्ग या समूह को कम दरों पर सेवाएँ या उत्पाद उपलब्ध करने के लिये किसी दूसरे समूह से अधिक/अतिरिक्त शुल्क वसूल करने की प्रक्रिया) जैसी नीतियों को अपनाने से औद्योगिक क्षेत्र पर नकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
विद्युत उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका
- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित हमारे योगदानों और एक स्वच्छ ग्रह के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए भारत ने संकल्प लिया है कि 2030 तक विद्युत उत्पादन की हमारी 40 प्रतिशत स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी।
- साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायोमॉस से 10 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5 गीगावाट क्षमता शामिल है।
- इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही भारत विश्व के सबसे बड़े स्वच्छ ऊर्जा उत्पादकों की जमात में शामिल हो जाएगा। यहाँ तक कि वह कई विकसित देशों से भी आगे निकल जाएगा।
- फिलहाल वर्ष 2018 तक में देश की कुल स्थापित क्षमता में तापीय ऊर्जा की 63.84 फीसदी, नाभिकीय ऊर्जा की 1.95 फीसदी, पनबिजली की 13.09 फीसदी और नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 21.12 फीसदी है।
मसौदे में प्रस्तावित सुधार
- लागत आधारित दर और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण
- सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, नियामक विद्युत उत्पादन और उसके वितरण की लागत के आधार पर विद्युत दरों का निर्धारण करेंगे, नियामकों द्वारा निर्धारित दरों में सब्सिडी को शामिल नहीं किया जाएगा।
- किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से सीधे उनके खाते में सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
- नियामकीय व्यवस्था को मजबूत बनाना
- इस मसौदे में अध्यक्ष के अतिरिक्त अपीलीय न्यायाधिकरण की क्षमता को 7 सदस्यों तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। जिससे मामलों के त्वरित निस्तारण हेतु कई पीठों की स्थापना की जा सके, साथ ही न्यायाधिकरण के निर्णयों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये इसे और अधिक सशक्त बनाने का प्रस्ताव भी किया गया है।
- वर्तमान विद्युत अधिनियम के तहत केंद्रीय और राज्य आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिये कई चयन समितियों का गठन करना पड़ता है। जिन्हें अब समाप्त कर क चयन समिति की व्यवस्था का प्रस्ताव किया गया है।
- मसौदे में विद्युत अधिनियम के प्रावधानों और आयोग के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दंडात्मक कार्रवाई के रूप में अधिक जुर्माना लगाए जाने हेतु विद्युत अधिनियम की धारा 142 और 146 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है।
- विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना
- मसौदे में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ‘केंद्रीय प्रवर्तन प्राधिकरण’ की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
- इस प्राधिकरण के पास विद्युत उत्पादन और वितरण से जुड़ी हुई कंपनियों के बीच बिजली की खरीद, बिक्री या हस्तांतरण से संबंधित अनुबंधों की लागू करने के लिये दीवानी अदालत (Civil Court) के बराबर अधिकार होंगे।
- नवीकरणीय ऊर्जा और पनबिजली
- केंद्र सरकार ने देश में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से बिजली के उत्पादन के आवश्यक क्षमता विकास और प्रोत्साहन के लिये एक ‘राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति’ (National Renewable Energy Policy) के निर्माण का प्रस्ताव किया है।
- मसौदे में आयोग को विद्युत वितरकों द्वारा अनिवार्य रूप से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की खरीद की एक न्यूनतम मात्रा निर्धारित करने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से न्यूनतम बिजली खरीदने की बाध्यता न पूरी करने पर जुर्माना लगाने का प्रस्ताव भी किया गया है।
- सीमा पार विद्युत व्यापार
- इसके तहत मसौदे में भारत तथा अन्य देशों के बीच बिजली व्यापार को बढ़ावा देने तथा इसे और अधिक आसान बनाने के लिये आवश्यक प्रावधानों को प्रस्तावित किया गया है।
- फ्रेंचाइजी और उप- वितरण लाइसेंस
- केंद्र सरकार ने इस मसौदे में राज्यों में विद्युत वितरण कंपनियों को किसी क्षेत्र विशेष में विद्युत् वितरण के लिये फ्रेंचाइजी और उप- वितरण कंपनियों को जोड़ने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया है।
प्रस्तावित संशोधनों से लाभ
- ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और सामान्य उपभोक्ताओं के लिये बिजली उपलब्ध कराने के लिये अलग-अलग सप्लाई लाइनों के न होने से राज्य सरकारों को वितरण कंपनियों को अधिक सब्सिडी देने पर विवश होना पड़ा है।
- विद्युत सब्सिडी के भुगतान हेतु ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ की प्रक्रिया अपनाने से किसान या अन्य पात्र लोगों को सहायता सुनिश्चित करने के साथ ही सरकार के आर्थिक बोझ को कम करने में मदद मिलेगी।
- कृषि क्षेत्र में उपभोगताओं के लिये मीटर अनिवार्य करने से किसानों को बिजली और जल के अनियंत्रित दोहन के संदर्भ में जागरूक किया जा सकेगा साथ ही बिजली चोरी की घटनाओं को नियंत्रित कर बिजली खपत की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।
- पिछले कुछ वर्षों में वैश्वीकरण और देश में विदेशी कंपनियों के आने से औद्योगिक क्षेत्र की स्थानीय इकाइयों पर प्रतिस्पर्द्धा का दबाव बढ़ा है, ऐसे में क्रॉस सब्सिडी को कम करने से औद्योगिक क्षेत्र पर पड़ने वाले वाले अतिरिक्त दबाव को कम किया जा सकेगा।
- देश के कई क्षेत्रों में वर्तमान ज़रूरतों के अनुसार विद्युत विभाग में नवीनीकरण न होने या अन्य कारणों से से एक बड़े क्षेत्र को सेवाएँ उपलब्ध कराना एक चुनौती है। ऐसे में फ्रेंचाइजी और ‘उप- वितरक लाइसेंस’ देने के माध्यम से निजी क्षेत्र को जोड़कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
- ऐसे में ‘केंद्रीय प्रवर्तन प्राधिकरण’ की स्थापना के माध्यम से विद्युत क्षेत्र में योजनाओं के क्रियान्वयन और उनकी बेहतर निगरानी में सहायता प्राप्त होगी।
आगे की राह
- वर्तमान समय में कृषि और औद्योगिक क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करने के लिये आसान दरों पर बिजली की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना बहुत ही आवश्यक है।
- वितरक कंपनियों के लिये कृषि क्षेत्र में विद्युत वितरण को किफायती बनाने और कंपनियों के घाटे को कम करने हेतु किसानों को मीटर और ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये।
- विद्युत वितरण के दौरान होने वाली विद्युत हानि ‘ट्रांसमिशन लॉस’ (Transmission Loss) को कम करने के लिये आवश्यक तकनीकी बदलाव किये जाने चाहिये।
- विद्युत क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिये केंद्र व राज्य सरकारों तथा सभी राजनीतिक दलों एवं अन्य हितधारकों के बीच एक सकारात्मक राजनीतिक संवाद का होना बहुत ही आवश्यक है।
प्रश्न- वर्ष 2022 तक ‘सभी के लिये विद्युत’ की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए समाधान के संभावित प्रयासों का विश्लेषण कीजिये।