अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ऊर्जा नीति मसौदे में निहित समस्याएँ एवं समाधान
- 05 Oct 2017
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भूमिका
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत ड्राफ्ट राष्ट्रीय ऊर्जा नीति ( Draft National Energy Policy - DNEP) के मसौदे में इस बात का अनुमान व्यक्त किया गया है कि 2017 से लेकर 2040 के बीच अक्षय ऊर्जा के संबंध में तेज़ी से वृद्धि होने की संभावना है। संभवतः यदि ऐसा होता है तो इससे जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की तीव्रता में भारी कमी आएगी। उल्लेखनीय है कि आर्थिक और जनसंख्या वृद्धि की वज़ह से भारत की वार्षिक प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में 2015-16 में 1075 केडब्ल्यूएच की तुलना में वर्ष 2040 में 2900 केडब्ल्यूएच तक होने की उम्मीद है।
- निकटतम अवधि में पूरे भारत में 100% विद्युतीकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में 2.5 बिलियन डॉलर का निवेश करने की घोषणा की गई है।
- इस घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2018 के अंत तक भारत में हर घर को विद्युतीकृत करते हुए ऊर्जा दक्षता में निरंतर सुधार करना है।
- परंतु, डीएनईपी निरंतर ऊर्जा पारगमन में निहित कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने में विफल साबित हुई है।
कोयले के आधार पर मसौदे का आकलन
- इस तथ्य के बावजूद कि मौजूदा कोयला संयंत्र न्यूनतम क्षमता के साथ संचालित हो रहे हैं, डीएनईपी के अंतर्गत ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता व्यक्त की गई है।
- यह इस बात को प्रमाणित करता है कि वर्ष 2022 तक भारत के कुल बिजली उत्पादन हेतु आवश्यक 67% ईंधन की आपूर्ति कोयले से ही होगी।
इस संदर्भ में विसंगति क्या है?
- इस संदर्भ में पहली विसंगति यह है कि एक ओर तो भारत इस बात का दावा प्रस्तुत करता है कि यह अक्षय ऊर्जा के संबंध में बड़ा कदम उठाएगा और वहीं दूसरी ओर ईंधन की आपूर्ति हेतु कोयले पर इसकी बहुत अधिक निर्भरता अभी भी जारी है।
- यदि नवीनीकरण विकल्पों में वृद्धि होगी तो कोयला आधारित बिजली में भी वृद्धि होगी।
- यह द्वंद्व होना इसलिये भी संभव है क्योंकि वर्ष 2015 में संपन्न हुई पेरिस जलवायु बैठक में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में किसी भी प्रकार की वास्तविक कटौती हेतु भारत द्वारा कोई प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की गई।
- इस संबंध में दूसरी विसंगति यह है कि एक निश्चित समय में संपूर्ण देश का विद्युतीकरण करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये भारत को 2022 में मात्र 741 मिलियन टन और वर्ष 2027 में मात्र 876 मिलियन टन कोयले की ही आवश्यकता होगी।
- लेकिन, समस्या यह है कि कोयला मंत्रालय का वर्ष 2020 तक 1.5 अरब टन कोयला उत्पादन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य अभी भी जारी है। इस 1.5 अरब टन कोयला उत्पादन में से 500 मिलियन टन का उत्पादन निजी कोयला खानों द्वारा, जबकि 1 अरब टन का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा किये जाने की उम्मीद है।
- इन सबके विपरीत डीएनईपी के अंतर्गत इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि कोयला खानों के संबंध में नए आबंटियों का भाग्य क्या होगा? विशेषकर उनका जिन्होंने न केवल ऊँची बोलियाँ लगाई हैं बल्कि बिजली उत्पादन के संबंध में कोयला खदानों के अधिकार भी प्राप्त किये हैं। यदि इस कोयले का इस्तेमाल बिजली उत्पादन में नहीं किया जाएगा तो इसका क्या होगा?
वर्तमान की स्थिति
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 2003 के विद्युत अधिनियम के तहत बिजली उत्पादन को लाइसेंस मुक्त रखा गया है, स्पष्ट है कि निजी खनिकों को बिजली उत्पादन हेतु संयंत्र स्थापित करने के लिये किसी प्रकार का लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है।
- उन्हें केवल ग्रिड के लिये कनेक्शन लेना होगा। चूँकि ग्रिड राज्य के स्वामित्व में आता है, इसलिये केंद्र सरकार के पास कनेक्शनों को स्थगित करने या उनमें देरी करने के संबंध में पर्याप्त शक्ति होती है।
- ध्यातव्य है कि पिछले तीन वर्षों में धीमी औद्योगिक वृद्धि के कारण स्वतंत्र कोयला उत्पादकों को ऊर्जा की कम मांग का सामना करना पड़ रहा है।
- इस संबंध में कोयला उत्पादकों द्वारा सरकार से किसी प्रकार की राहत अथवा समर्थन की उम्मीद की जा रही है। हालाँकि, ऐसे किसी समर्थन के प्राप्त होने की उम्मीद नहीं आ रही है।
- इतना ही नहीं बल्कि परंपरागत बिजली उद्योगों द्वारा भी उच्च स्तरीय बैंक ऋण की समस्या, दिवालियापन एवं अन्य कानूनी कार्यवाहियों का सामना किया जा रहा है।
- डीएनईपी इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ आंतरिक दहन इंजन के क्रमिक प्रतिस्थापन से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर करने में विफल रहा है।
- कई यूरोपीय देशों द्वारा अगले दो दशकों में 100% इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाए जाने के संबंध में योजना तैयार की गई है।
- वस्तुतः ऑटोमोबाइल क्षेत्र में यह परिवर्तन घरों, कार्यालयों और कारखानों में ग्रिड एवं उपभोक्ता स्तरीय बिजली संग्रहण के रूप में किया जा सकता है। हालाँकि, डीएनईपी के अंतर्गत इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर कोई विशेष ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है।
- डीएनईपी के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया है कि वर्ष 2005 से 2016 के मध्य भारत की तेल की खपत में 63% की वृद्धि हुई है, जबकि इसकी कुल परिष्कृत क्षमता में केवल 15% की वृद्धि दर्ज़ की गई है।
- इसी अवधि में देश की गैस की खपत में 38% की वृद्धि दर्ज़ की गई, जबकि वर्ष 2012 से इसके उत्पादन में गिरावट आई है।
समस्याएँ एवं इस संबंध में आवश्यक कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी तरह की अनियमितता से बचने के लिये तेल के वृहद् सामरिक भंडारण की आवश्यकता है।
- जहाँ एक ओर पिछले कुछ वर्षों से भारत अपनी भंडारण क्षमता में वृद्धि कर रहा है, वहीं पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में कमी आई है।
- हालाँकि, यहाँ यह समझना बहुत ज़रुरी है कि तेल के रणनीतिक भंडारण से तेल पर भारत की उच्च निर्भरता के व्यवस्थित कारणों पर किसी तरह का कोई असर होता नज़र नहीं आता है।
- इसके अतिरिक्त डीएनईपी के अंतर्गत भारत की बढ़ती तेल मांग के संबंध में कोई विचार नहीं किया गया है। एक तरफ तो मसौदा नीति यह मानती है कि वर्ष 2040 तक भारत की तेल आयात निर्भरता मौजूदा स्तर 33% से 55% तक पहुँच सकती है, वहीं दूसरी ओर इसके अंतर्गत इस निर्भरता को कम करने के लिये किसी प्रकार के प्रयासों का उल्लेख नहीं किया गया है।
- कुल मिलाकर डीएनईपी के अंतर्गत इस बात की पेशकश की गई है कि देश में तेल की खपत को कम करने के लिये अधिक से अधिक सार्वजनिक परिवहन साधनों और रेलवे का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। अन्यथा इसके दूसरे विकल्प के रूप में इलेक्ट्रिक परिवहनों का सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय ऊर्जा नीति का मसौदा तैयार करने वाली ड्राफ्टिंग समितियों द्वारा अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये स्टोरेज और इलेक्ट्रिक वाहनों में हो रहे प्रतिमान परिवर्तन की जाँच की जानी चाहिये जैसे कि - स्मार्ट ग्रिड, स्मार्ट होम, बैटरी संग्रहण और केंद्रित सौर हीट एवं ऊर्जा इस मसौदे के संदर्भ में जो एक सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न दिमाग में आता है वो ये कि आखिर किन कारणों के चलते भारत द्वारा इन सभी प्रौद्योगिकियों में क्रान्तिकारी पहल आरंभ करने में देरी क्यों की गई? इतना ही नहीं बल्कि भारत ने उपकरणों के निर्माण के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण अवसरों को गंवाया है। संभवतः इस प्रकार की सभी समस्याओं का हल करने के लिये भारत सरकार को और अधिक देरी न करते हुए इस वर्ष के अंत तक ही नई संस्थाओं, संगठनों और वित्त पोषण तंत्रों को अपनाया जाना चाहिये, ताकि नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों को और अधिक प्रोत्साहित किया जा सके।