प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘वुमन इन लीडरशिप इन कॉर्पोरेट इंडिया’

  • 04 Jun 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024, बेरोज़गारी दर, मानव विकास संस्थान (IHD), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)

मेन्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म द्वारा हाल ही में जारी ‘वुमन इन लीडरशिप इन कॉर्पोरेट इंडिया’ शीर्षक रिपोर्ट में भारतीय कॉर्पोरेट जगत में नेतृत्व पदों पर महिलाओं का निरंतर कम प्रतिनिधित्व दर्शाया गया है। 

  • यह प्रतिशत काफी समय से 30% से नीचे स्थिर बना हुआ है।

लिंक्डइन (LinkedIn)

  • लिंक्डइन एक व्यवसाय-उन्मुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसे वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था, जो पेशेवर नेटवर्किंग पर केंद्रित है।
  • फेसबुक या ट्विटर (जो अब X नाम से जाना जाता है) जैसी सामान्य सोशल मीडिया साइट्स के विपरीत लिंक्डइन कॅरियर से संबंधित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत में यह डेटा लिंक्डइन सदस्यों पर आधारित है, जहाँ फर्म के 100 मिलियन से अधिक लोग पंजीकृत हैं

रिपोर्ट के निष्कर्ष क्या हैं?

  •  कॉर्पोरेट्स में महिला प्रतिनिधित्व में स्थिरता:
    • कार्यबल में और वरिष्ठ नेतृत्व पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा 30% से कम रहा है और महामारी के बाद इसमें गिरावट का रुख देखा गया है।
    • इसका कारण नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिये महिलाओं की नई नियुक्तियों में आई मंदी को माना जा सकता है।

Female_Representation_Overall_in_India

  • नेतृत्व में महिलाओं की भूमिका निम्नतम, मध्यम और उच्चतम क्षेत्रों में:
    • निम्नतम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्र: निर्माण, तेल, गैस व खनन और उपयोगिताएँ (11%), थोक तथा विनिर्माण (12%), आवास एवं खाद्य सेवाएँ (15%)।
    • कुछ बेहतर (12%) प्रतिनिधित्व: थोक, विनिर्माण।
    • मध्यम प्रतिनिधित्व: प्रौद्योगिकी, सूचना और मीडिया, वित्तीय सेवाएँ (19%)।
    • उच्चतम प्रतिनिधित्व: शिक्षा (30%) और सरकारी प्रशासन (29%)।
  • कानून का उल्लंघन:
    • रिपोर्ट से पता चलता है कि कंपनी अधिनियम, 2013 जैसे कानून, जो कंपनी बोर्ड में महिला निदेशकों को अनिवार्य बनाता है, का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है।
    • अप्रैल 2018 से दिसंबर 2023 के बीच इस नियम का उल्लंघन करने पर 507 कंपनियों पर ज़ुर्माना लगाया गया। इनमें से 90% सूचीबद्ध कंपनियाँ थीं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024:

  • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2024 में 24.5% रहने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2019 के 23.3% में मामूली वृद्धि है (वैश्विक औसत 47.2% से कम)
  • भारत में महिलाओं के अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार प्राप्त करने की संभावना अधिक है, जहाँ 86% महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार करती हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह आँकड़ा 82% है।
  • कोविड-19 महामारी ने महिलाओं के रोज़गार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी छूटने की संभावना 1.8 गुना अधिक है।
  • महामारी के बाद महिलाओं को श्रम बल में पुनः प्रवेश करने में भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं और लैंगिक भेदभाव में भी वृद्धि हुई है।

श्रम बल भागीदारी दर:

  • यह अर्थव्यवस्था में 16-64 आयु वर्ग की कार्यशील जनसंख्या का वह वर्ग है जो वर्तमान में कार्यरत है या रोज़गार की तलाश में है।
  • जो लोग अभी भी पढ़ाई कर रहे हैं और गृहणियाँ तथा 64 वर्ष से अधिक आयु के लोग श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं माने जाते।

कॉर्पोरेट जगत में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के लिये कौन से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • अचेतन पूर्वाग्रह: महिलाओं की क्षमताओं, नेतृत्व शैलियों और कॅरियर की महत्वाकांक्षाओं के बारे में गहराई से निहित सामाजिक पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी धारणाएँ अनुचित मूल्यांकन एवं उन्नति के सीमित अवसरों को जन्म दे सकती हैं।
  • घर से काम करने के विकल्पों में कमी: हाइब्रिड या घर से काम करने की भूमिकाओं की उपलब्धता में कमी ने ठहराव में योगदान दिया है, क्योंकि ये व्यवस्थाएँ अक्सर कॉर्पोरेट कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • कार्य-जीवन संतुलन की चुनौतियाँ: घरेलू और देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों का असंगत बोझ, जो प्रायः महिलाओं पर पड़ता है, उनके लिये अपने पुरुष समकक्षों के समान प्रतिबद्धता और उपलब्धता का प्रदर्शन करना कठिन बना देता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: प्रवासन और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ महिलाओं की रोज़गार तक पहुँच को और सीमित कर देती हैं। अपर्याप्त शहरी बुनियादी ढाँचा, साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा संबंधी मुद्दे, महिलाओं को नौकरी की तलाश करने और उसे बनाए रखने  में खासकर शहरी क्षेत्रों में हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • मार्गदर्शन और प्रायोजन का अभाव: महिलाओं को अक्सर प्रभावशाली सलाहकारों और प्रायोजकों तक पहुँच कम होती है जो उनके कैरियर की प्रगति के लिये वकालत कर सकें और कॉर्पोरेट परिदृश्य में उनकी मदद कर सकें।
  • नेतृत्व में सीमित प्रतिनिधित्व:वरिष्ठ नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की कमी से रोल मॉडल की कमी दिखाई देती है और महिलाओं के लिये इन पदों पर खुद की कल्पना करना कठिन हो जाता है।

कार्यबल में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) का ढाँचा

  • वेतन अंतर को कम करना:
    • समान मूल्य के काम के लिये समान वेतन सुनिश्चित करने वाले कानूनों को लागू करना।
    • वेतन संबंधी विसंगतियों को उजागर करने और उन्हें दूर करने के लिये वेतन पारदर्शिता उपायों को लागू करना।
    • नौकरी के मूल्यांकन के लिये वस्तुनिष्ठ मानदंडों का उपयोग करना जो लैंगिक रूढ़िवादिता से प्रभावित न हों।
  • व्यावसायिक पृथक्करण का पुनर्निर्माण:
  • सुरक्षित और समावेशी कार्य वातावरण को बढ़ावा देना:
  • कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देना:
    • प्रसव और प्रारंभिक मातृत्व के दौरान माता-पिता को सहायता प्रदान करने के लिये पर्याप्त मातृत्व और पितृत्व अवकाश नीतियाँ प्रदान करना।
    • ऐसे सामाजिक संरक्षण उपायों को डिज़ाइन करना जो कामकाजी परिवारों को सहायता प्रदान करना, जिसमें किफायती बाल देखभाल का विकल्प भी शामिल हों।
  • देखभाल कार्य को महत्त्व देना:
    • उचित वेतन और सभ्य कार्य स्थितियों के साथ गुणवत्तापूर्ण देखभाल नौकरियों को सृजित करने में निवेश किया जाना चाहिये।
    • देखभाल पेशेवरों, जिनमें मुख्यतः महिलाएँ हैं, के लिये नियमों को मज़बूत बनाया जाना चाहिये । 
      • भारत को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के घरेलू कामगार सम्मेलन (घरेलू कामगार सम्मेलन, 2011 (सं. 189) का अनुसमर्थन करने तथा तदनुसार घरेलू कानून बनाने की आवश्यकता है।
  • महिलाओं के रोजगार के लिये संकट लचीलापन:
    • आर्थिक मंदी के दौरान महिलाओं के रोज़गार की सुरक्षा के लिये लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रम या वित्तीय सहायता जैसी नीतियाँ विकसित किया जाना चाहिये।

कॉर्पोरेट नेतृत्व में लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • लचीली कार्य नीतियाँ:
    • महिलाओं के नेतृत्व को बनाए रखने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से कनिष्ठ और मध्यम प्रबंधन स्तर पर क्योंकि यही वह समय होता है जब उन्हें अक्सर कॅरियर की आकांक्षाओं तथा पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।
  • नियुक्ति में 'कौशल-प्रथम' दृष्टिकोण:
    • भावी कर्मचारी की क्षमताओं के बारे में लिंग आधारित धारणा बनाने के बजाय नियुक्ति में 'कौशल-प्रथम' दृष्टिकोण अपनाने से पूर्वाग्रहों को कम करने और योग्यता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें लिंग-आधारित रूढ़िवादिता पर निर्भर रहने के बजाय उम्मीदवार के प्रासंगिक कौशल, योग्यता और अनुभव पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
  • वरिष्ठ नेतृत्व में विविधता को बढ़ावा देना:
    • सरकार सूचीबद्ध कंपनियों को बोर्ड में विविधता लाने के बारे में जागरूकता बढ़ाने की पहल के माध्यम से वरिष्ठ नेतृत्व में विविधता को बढ़ावा दे सकती है।
      • उदाहरण के लिये जापानी अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज के साथ मिलकर "नाडेशिको ब्रांड्स" कार्यक्रम शुरू किया।
      • यह उन कंपनियों के लिये आकर्षक निवेश अवसरों के रूप में रेखांकित है जो महिला सशक्तीकरण और नेतृत्व को प्रोत्साहित करती हैं।
  • महिलाओं के लिये नेटवर्किंग और सहायता समूह स्थापित करना:
    • एक मज़बूत नेटवर्क बनाना: महिला पेशेवरों के मामले में ये समूह संबंधों और सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं तथा महिलाओं को नेतृत्व के मार्ग पर चलने हेतु सशक्त बना सकते हैं।
    • सहकर्मी शिक्षण और समर्थन: इनके माध्यम से महिलाएँ अनुभव साझा कर सकती हैं, एक-दूसरे की सफलताओं और चुनौतियों से सीख सकती हैं तथा एक मज़बूत समर्थन प्रणाली का निर्माण कर सकती हैं।
  • मेंटरशिप और नेटवर्किंग के अवसर:
    • महिलाओं को मार्गदर्शन और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करने से उन्हें कॉर्पोरेट जगत में अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
    • अनुभवी महिला नेता महत्त्वाकांक्षी महिलाओं का मार्गदर्शन और समर्थन कर सकती हैं तथा कॅरियर में उन्नति के लिये अंतर्दृष्टि और रणनीतियाँ साझा कर सकती हैं।
  • साझा अभिभावकीय अवकाश नीतियाँ:
    • इससे पुरुषों और महिलाओं के बीच देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा मिल सकता है।
    • विशेष रूप से निजी क्षेत्र में, सवेतन पितृत्व अवकाश नीति, पुरुषों और महिलाओं के बीच देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।

निष्कर्ष

भारत में कॉर्पोरेट नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में ठहराव एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, जिसे संबोधित करने के लिये ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने और कॉर्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं की पूरी क्षमता को विकसित करने हेतु नीतिगत परिवर्तन, संगठनात्मक सुधार तथा सांस्कृतिक बदलावों सहित बहुआयामी दृष्टिकोण को लागू करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

अनेक प्रयासों और नीतियों के बावजूद भारत में कार्यबल में महिलाओं का अनुपात स्थिर बना हुआ है। इस स्थिरता के कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा उठाए जा सकने वाले कदमों का प्रस्ताव कीजिये। (250 शब्द)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि: (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता निम्न है

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति की परीक्षण कीजिये और सुधार हेतु सुझाव दीजिये। (2023)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2