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भारतीय अर्थव्यवस्था

नीतिगत दरों में अपरिवर्तन: कारण और प्रभाव

  • 07 Aug 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

मौद्रिक नीति, मौद्रिक नीति के विभिन्न साधन

मेन्स के लिये

मौद्रिक नीति में परिवर्तन और अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली ‘मौद्रिक नीति समिति’ की बैठक में प्रमुख मौद्रिक नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक ने रेपो दर (Repo Rate) को 4 प्रतिशत पर तथा सीमांत स्थायी सुविधा दर (Marginal Standing Facility Rate) और बैंक दर (Bank Rate) को 4.25  प्रतिशत पर यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है। 
    • साथ ही केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) को 3.35 प्रतिशत पर बनाए रखा है।
  • ज्ञात हो कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इस वर्ष फरवरी माह से अब तक नीतिगत दरों में कुल 115 आधार अंकों की गिरावट की है।
    • फरवरी 2019 से अब तक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नीतिगत दरों में 250 आधार अंकों की गिरावट की है।

अपरिवर्तन का कारण

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति इस वर्ष जून माह में बढ़कर 6.09 प्रतिशत हो गई, जो कि मार्च माह में 5.84 प्रतिशत थी।
  • इसी के साथ जून माह में खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 2-6 प्रतिशत के लक्ष्य को पार कर गई है।
  • संभवतः यही कारण है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत दरों में बदलाव न करने का निर्णय लिया गया है।
  • इसके अलावा रिज़र्व बैंक घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति को लेकर भी काफी चिंतित है।
  • महामारी के बीच मुद्रास्फीति की अनिश्चितता और अर्थव्यवस्था की कमज़ोर स्थिति ने देश के केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने के लिये मजबूर किया है।
  • संभव है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नीति-निर्माता नीतिगत दरों में कमी करने की बची हुई संभावना को भविष्य में आने वाली अनिश्चितताओं से निपटने पर प्रयोग करने पर विचार कर रहे हैं।

विषम परिस्थिति में अर्थव्यवस्था

  • वर्तमान में रिज़र्व बैंक एक विषम परिस्थिति का सामना कर रहा है, अर्थव्यवस्था में जहाँ एक ओर महँगाई बढ़ती जा रही है, वहीं सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर कम होती जा रही है।
  • ऐसा इसलिये हो रहा है, क्योंकि महामारी ने एक ओर मांग को तो प्रभावित किया ही है, किंतु दूसरी ओर इसने अर्थव्यवस्था में आपूर्ति को भी बाधित किया है। नतीजतन, अर्थव्यवस्था में दो परिस्थितियाँ एक साथ देखने को मिल रही हैं।
  • यह सत्य है कि मुद्रास्फीति को रोकने के लिये रिज़र्व बैंक को ब्याज़ दरों में वृद्धि करनी चाहिये, और सामान्य परिस्थितियों में RBI द्वारा ऐसा किया भी जाता, किंतु इस समय ब्याज़ दरों में वृद्धि करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी साबित हो सकता है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर प्रभाव पड़ेगा।
  • हालाँकि RBI ब्याज़ दरों में कटौती भी नहीं कर सकता है, क्योंकि जून माह में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.09 प्रतिशत पर पहुँच गई है, इस प्रकार यदि RBI ब्याज़ दर में कटौती करता है तो खुदरा मुद्रास्फीति में और अधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे देश के गरीब और संवेदनशील वर्ग के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न हो सकती है। 
  • ऐसी स्थिति में नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा। 

पूर्व में नीतिगत दरों में कटौती

  • RBI ने दावा किया है कि फरवरी 2019 से रेपो दर में 250 आधार अंकों की संचयी कमी ने बॉण्ड, क्रेडिट और मुद्रा बाज़ारों में ब्याज दरों और अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • गौरतलब है कि मई माह में मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट में 40 आधार अंकों की कटौती करते हुए इसे 4 प्रतिशत पर पहुँचा दिया था।
  • RBI का कहना है कि रेपो रेट में कमी किये जाने के कारण बैंकों ने भी अपने ब्याज़ दरों में कमी की है, जिसका लाभ आम ग्राहकों को भी मिला है।

अर्थव्यवस्था का आकलन

  • भारतीय रिज़र्व बैंक का आकलन है कि जहाँ अप्रैल-मई माह में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थी, वहीं बीते कुछ दिनों में अनलॉक के कारण आर्थिक गतिविधियाँ पुनः शुरू हो गई हैं।
    • हालाँकि COVID-19 संक्रमण से संबंधित ताज़ा आँकड़ों ने राज्यों को एक बार पुनः नए सिरे से लॉकडाउन लागू करने के लिये मजबूर कर दिया है।
  • RBI समेत कई अन्य विशेषज्ञ संस्थानों का मानना है कि खरीफ की बुआई के साथ  ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रिकवरी होने की उम्मीद है। 
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये समग्र तौर पर वास्तविक GDP वृद्धि दर नकारात्मक होने की उम्मीद है। RBI का मत है कि महामारी को जितना जल्दी रोक जाएगा, अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही अच्छा होगा।
  • RBI को उम्मीद है की वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही के दौरान मुद्रास्फीति में कुछ कमी देखने को मिलेगी। जून 2020 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 5.8 प्रतिशत से बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई है, हालाँकि अच्छा मानसून और खरीफ फसल आने वाले दिनों में खाद्य कीमतों को कम कर सकते हैं।

तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए ऋण पुनर्गठन ढाँचा 

  • गौरतलब है कि RBI द्वारा घोषित ऋण भुगतान के स्थगन की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो रही है, RBI का अनुमान है कि इस अवधि की समाप्ति के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में काफी वृद्धि दर्ज की जा सकती है।
  • RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि आर्थिक स्थितियाँ और अधिक बिगड़ती हैं, तो गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) अनुपात 14.7 प्रतिशत तक भी पहुँच सकता है।
  • महामारी से प्रभावित तनावग्रस्त क्षेत्रों के लिये एक बड़ी राहत के रूप में RBI ने घोषणा की है कि तनावग्रस्त MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) उधारकर्त्ता 31 मार्च, 2021 तक ऋण के पुनर्गठन (Restructuring of Loans) के लिये पात्र होंगे, हालाँकि यह तभी होगा जब उनके खाते को 1 जनवरी, 2020 तक 'मानक’ (Standard) के रूप में वर्गीकृत किया गया हो।

स्रोत: द हिंदू

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