पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र | 14 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:पश्चिमी घाट, पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA), गाडगिल समिति, पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP), कस्तूरीरंगन समिति मेन्स के लिये: |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा (उन छह राज्यों में से तीन, जहाँ केंद्र सरकार ने पश्चिमी घाटों के संरक्षण हेतु पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) का प्रस्ताव दिया है) ने विकास परियोजनाओं को पूरा करने हेतु निर्धारित ESA क्षेत्रों को सीमित करने का अनुरोध किया है।
पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र:
- परिचय:
- वर्ष 2013 में सरकार ने पश्चिमी घाट की जैवविविधता के संरक्षण हेतु सिफारिशें करने के लिये डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यसमूह का गठन किया, जिससे इस क्षेत्र के धारणीय एवं समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सके।
- इससे पहले माधव गाडगिल समिति (2011) ने भी पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिये अपनी सिफारिशें दी थीं।
- इस समिति ने सिफारिश की थी कि केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात तथा तमिलनाडु में पहचाने गए प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों को ESA घोषित किया जाए।
- इस समिति द्वारा पश्चिमी घाट के केवल 37% भाग (जो गाडगिल समिति की रिपोर्ट में सुझाए गए 64% से काफी कम है) को ही ESA के तहत लाने की सिफारिश की गई।
- वर्ष 2013 में सरकार ने पश्चिमी घाट की जैवविविधता के संरक्षण हेतु सिफारिशें करने के लिये डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यसमूह का गठन किया, जिससे इस क्षेत्र के धारणीय एवं समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सके।
- राज्यों की प्रतिक्रिया:
- इसमें शामिल सभी राज्यों द्वारा पश्चिमी घाटों की सुरक्षा की आवश्यकता को पहचाना गया लेकिन उन्होंने मसौदा अधिसूचना में उल्लिखित क्षेत्र की अनुमत गतिविधियों एवं सीमाओं के संबंध में अपनी चिंताएँ व्यक्त की।
- इन्होंने राज्य के विकास कार्यों को सुविधाजनक बनाने के क्रम में ESA को युक्तिसंगत बनाने का तर्क दिया।
- कर्नाटक ने कस्तूरीरंगन पैनल की रिपोर्ट का विरोध किया, जिसमें स्थानीय लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभावों को माध्यम बनाते हुए 20,668 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ESA के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया था।
- गोवा ने ESA के रूप में प्रस्तावित 1,461 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 370 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कम करने का अनुरोध किया।
नोट:
- ऐसे क्षेत्र जहाँ अनूठे जैविक संसाधन होते हैं और जिनके संरक्षण के लिये विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, MoEF&CC द्वारा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) के रूप में अधिसूचित किये जाते हैं जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी महत्त्व वाले क्षेत्रों में जैवविविधता की रक्षा करना है।
- इसके अतिरिक्त, जैवविविधता के प्रबंधन और संरक्षण के लिये, MoEFCC संरक्षित क्षेत्रों के समीपवर्ती क्षेत्रों को पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Zones- ESZ) भी नामित करता है।
- वर्ष 2002 से, ये क्षेत्र वन्यजीवों के लिये अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये बफर की भूमिका निभाई है, जो अत्यधिक संरक्षित क्षेत्रों को कम सुरक्षा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में परिवर्तित करने के लिये "शॉक एब्ज़ॉर्बर" के रूप में कार्य करते हैं।
ESZ बनाम संरक्षित क्षेत्र |
||
विशेषता |
संरक्षित क्षेत्र |
पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) |
प्राथमिक उद्देश्य |
जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का पूर्ण संरक्षण |
समीपवर्ती संरक्षित क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये बफर ज़ोन के रूप में कार्य करता है |
अवस्थिति |
उच्च पारिस्थितिक मूल्य वाले निर्दिष्ट क्षेत्र |
संरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य) के समीप अवस्थित |
सुरक्षा का स्तर |
उच्चतम स्तर की सुरक्षा |
संरक्षित क्षेत्र पर प्रभाव को कम करने के लिये विनियमित गतिविधियाँ |
विकासात्मक गतिविधियाँ |
अत्यधिक प्रतिबंधित (केवल अनुसंधान, सीमित मनोरंजन उद्देश्यों हेतु) |
विविध प्रकार- कुछ निषिद्ध, कुछ विनियमित, कुछ संवर्द्धित (सतत् प्रथाएँ) |
आजीविका |
स्थानीय समुदाय का आगमन अमूमन प्रतिबंधित |
परंपरागत प्रथाओं और सतत् आजीविका के लिये उपयुक्त |
आकार |
परिवर्तनशील, दायरे में विस्तार संभव |
प्रायः 10 किमी. के दायरे में सीमित, संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में छोटे |
पश्चिमी घाट पर समितियों की सिफारिशें:
- पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल, 2011 (अध्यक्ष: माधव गाडगिल):
- पश्चिमी घाट के सभी क्षेत्रों को ESA घोषित किया जाए तथा श्रेणीबद्ध क्षेत्रों में सीमित विकास की अनुमति दी जाए।
- पश्चिमी घाटों को ESA 1, 2 तथा 3 में वर्गीकृत किया जाए, जिसमें ESA- 1 को उच्च प्राथमिकता दी जाए, जहाँ लगभग सभी विकासात्मक गतिविधियाँ प्रतिबंधित हों।
- शासन की प्रणाली को अधरोर्ध्व (Top-To-Bottom) दृष्टिकोण के बजाय ऊर्ध्वाधर (Bottom-To-Top) दृष्टिकोण (ग्राम सभाओं से) के रूप में निर्दिष्ट किया जाए।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 के अंतर्गत शक्तियों के साथ, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक प्राधिकरण के रूप में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (WGEA) का गठन किया जाए।
- रिपोर्ट की आलोचना इस आधार पर की गई यह यथार्थ से परे है और पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल है।
- कस्तूरीरंगन समिति, 2013: इसमें गाडगिल रिपोर्ट के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया:
- पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ESA के अंतर्गत लाया जाएगा।
- ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध।
- किसी भी ताप विद्युत परियोजना की अनुमति नहीं दी जाएगी और विस्तृत अध्ययन के बाद ही जल विद्युत परियोजनाओं की अनुमति दी जाएगी।
- लाल उद्योग यानी जो अत्यधिक प्रदूषण करते हैं, उन पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाएगा।
- ESA के दायरे से बसे हुए क्षेत्रों और बागानों को बाहर रखा जाएगा, जिससे यह किसानों के पक्ष में होगा।
पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- संरक्षण और विकास में संतुलन: ESA अक्सर आर्थिक विकास की संभावना वाले क्षेत्रों में स्थित होते हैं। इससे संरक्षण लक्ष्यों और विकास परियोजनाओं के बीच टकराव हो सकता है, जिससे स्थानीय समुदायों को आर्थिक अवसरों से वंचित होना पड़ सकता है।
- स्थानीय आजीविका पर प्रभाव: ESA में विनियमन वहाँ रहने वाले समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं और आजीविका को प्रतिबंधित कर सकते हैं। इससे नाराज़गी पैदा हो सकती है तथा संरक्षण प्रयासों में सहयोग में बाधा आ सकती है।
- असंगत नीतियाँ एवं कार्यान्वयन: ESA की नीतियाँ और कार्यान्वयन अलग-अलग क्षेत्रों व राज्यों में अलग-अलग हो सकते हैं, जिससे प्रवर्तन में भ्रम तथा चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं। यह असंगतता उन गतिविधियों के लिये खामियाँ भी पैदा कर सकती है जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
- जागरूकता और भागीदारी का अभाव: कभी-कभी, स्थानीय समुदाय और हितधारक ESA के महत्त्व के बारे में पूरी तरह से अवगत नहीं हो सकते हैं या निर्णय लेने की प्रक्रिया में उचित रूप से शामिल नहीं हो सकते हैं। भागीदारी की यह कमी प्रतिरोध को जन्म दे सकती है और कार्यक्रम की प्रभावशीलता में बाधा डाल सकती है।
आगे की राह
- संतुलित दृष्टिकोण: संतुलित दृष्टिकोण के लिये प्रयास करें, जो सतत् विकास की अनुमति देते हुए पश्चिमी घाट की पारिस्थितिक अखंडता की रक्षा करता है। इसमें मुख्य क्षेत्रों में सख्त नियमों के साथ ESA में शामिल होना और विशिष्ट कम प्रभाव वाली विकास परियोजनाओं के लिये निर्दिष्ट क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।
- वैज्ञानिक प्रभाव मूल्यांकन: ESA पदनाम के लिये आवश्यक न्यूनतम क्षेत्र निर्धारित करने हेतु संपूर्ण, स्वतंत्र वैज्ञानिक मूल्यांकन करना। यह साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने को सुनिश्चित करता है और विकास पर अनावश्यक प्रतिबंधों को भी कम करता है।
- हितधारकों की वचनबद्धता: केंद्रीय सरकारी निकायों, राज्य सरकारों, स्थानीय समुदायों के साथ-साथ पर्यावरण समूहों के बीच खुले संचार एवं सहयोग को सुविधाजनक बनाना। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक समावेशी हो जाती है, जिसमें सभी हितधारकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।
- वैकल्पिक आजीविका विकल्प: ESA में रहने वाले उन लोगों के लिये वैकल्पिक आजीविका विकल्प विकसित करना जो कठोर नियमों से प्रभावित हो सकते हैं। इसमें इको-टूरिज़्म धारणीय कृषि पद्धतियों के साथ-साथ कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना भी शामिल हो सकता है।
- पारदर्शी मॉनिटरिंग: ESA एवं विकास परियोजनाओं की प्रभावशीलता पर नज़र रखने के लिये स्पष्ट तथा पारदर्शी निगरानी तंत्र स्थापित करना। इससे अनपेक्षित परिणाम सामने आने पर सुधार की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा और ज़िम्मेदारीपूर्ण विकास प्रथाओं को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के पश्चिमी घाटों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने हेतु एक संतुलित दृष्टिकोण क्या हो सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में संरक्षित क्षेत्रों की निम्नलिखित में से किस एक श्रेणी में स्थानीय लोगों को बायोमास एकत्र करने और उपयोग करने की अनुमति नहीं है? (2012) (a) बायोस्फीयर रिज़र्व उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. "विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम अपर्याप्त रही है”। सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2018) |