इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिमी घाट पर कस्तूरीरंगन समिति

  • 08 Dec 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कस्तूरीरंगन समिति, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986

मेन्स के लिये:

कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों और इसके विरोध के कारण 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा  केंद्र सरकार को सूचित किया गया है कि वह पश्चिमी घाट पर गठित कस्तूरीरंगन समिति (Kasturirangan Committee report) की रिपोर्ट के पक्ष में नहीं है।

  • कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट ने पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के 37 प्रतिशत को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Area- ESA) घोषित करने का प्रस्ताव दिया है।
  • कर्नाटक सरकार की राय है कि पश्चिमी घाट को ESA घोषित करने से इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा

प्रमुख बिंदु 

  • पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के बारे में:
    • यह संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर स्थित क्षेत्र होता है।
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा ESAs को अधिसूचित किया जाता है।
    • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
  • कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के बारे में:
    • शामिल क्षेत्र: कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में लगभग 60,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित करने का प्रस्ताव किया गया है।
      • इसमें से 20,668 वर्ग किमी क्षेत्र कर्नाटक राज्य में आता है, जिसमें 1,576 गाँव शामिल हैं। 
      • इस क्षेत्र में शामिल ज़्यादातर स्थलों की सीमा, कानूनी रूप से सीमांकित राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, बाघ अभयारण्यों और वन प्रभागों की सीमाएंँ हैं इसलिये उन्हें पहले से ही उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है। 
    • वांछित और प्रतिबंधित गतिविधियाँ: रिपोर्ट में खनन, उत्खनन, रेड कैटेगरी उद्योगों (Red Category Industries) की स्थापना और ताप विद्युत परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है।
      • यह भी कहा गया है कि इन गतिविधियों के लिये अनुमति दिये जाने से पहले जंगल और वन्यजीवों पर ढांँचागत परियोजनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिये।
    • यूनेस्को टैग: रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पश्चिमी घाट के यूनेस्को हेरिटेज टैग (UNESCO Heritage tag) में शामिल होने से इसकी विशाल प्राकृतिक संपदा को वैश्विक और घरेलू स्तर पर मान्यता प्राप्त होती है।
      • 39 स्थल पश्चिमी घाट में स्थित हैं जो (केरल 19), कर्नाटक (10), तमिलनाडु (6) और महाराष्ट्र (4) राज्यों में विस्तारित हैं।
    • राज्य सरकारों की भूमिका: राज्य सरकारों को इस विकास को देखना चाहिये और क्षेत्र के संसाधनों और अवसरों के संरक्षण, बचाव और महत्त्व के लिये एक योजना तैयार करनी चाहिये।

कस्तूरीरंगन समिति द्वारा प्रस्तावित ESA

ESA

  • कर्नाटक सरकार का विरोध:
    • विकासात्मक प्रगति में बाधा: कर्नाटक में व्यापक वन क्षेत्र है और सरकार ने पश्चिमी घाट की जैव विविधता की रक्षा का ध्यान रखा है।
      • राज्य सरकार का मानना ​​है कि रिपोर्ट के लागू होने से क्षेत्र में विकास गतिविधियाँ ठप हो जाएँगी।
    • जन-केंद्रित विकास मॉडल: उपग्रह आधारित चित्रों के आधार पर कस्तूरीरंगन रिपोर्ट तैयार की गई है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है।
      • क्षेत्र के लोगों ने कृषि और बागवानी गतिविधियों को पर्यावरण अनुकूल तरीके से अपनाया है।
      • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है।

आगे की राह:

  • निवारक दृष्टिकोण: जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए जो सभी लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण विवेकपूर्ण तरीके से ही किया जाना चाहिये।
    • यह पुनर्स्थापन/पुनरुद्धार के लिये धन/संसाधनों को खर्च करने की तुलना में आपदाओं की संभावना वाली स्थिति की तुलना में कम खर्चीला होगा।
    • इस प्रकार कार्यान्वयन में और देरी से देश के सबसे बेशकीमती प्राकृतिक संसाधन का क्षरण ही होगा।
  • सभी हितधारकों के साथ जुड़ाव: वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण के बाद संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच आम सहमति की तत्काल आवश्यकता है।
    • वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों तथा मांगों के बारे में समग्र दृष्टिकोण, शामिल अधिकारियों के लिये स्पष्ट रूप से बताए गए उद्देश्यों के साथ इनसे निपटने हेतु रणनीति तैयार होनी चाहिये।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2