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जैव विविधता और पर्यावरण

अपशिष्ट की डंपिंग और दहन- सर्वाधिक प्रदूषणकारी गतिविधियाँ

  • 12 Aug 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (Delhi NCR) में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत अपशिष्ट की खुले में डंपिंग (Dumping) और दहन (Burning) हैं।

प्रमुख बिंदु

  • CPCB ने PWD, CPWD, DDA, DMRC, DSIIDC, NDMC, जैसी एजेंसियों से अगस्त और सितंबर के महीने के दौरान अपशिष्ट की खुले में डंपिंग और दहन के विरुद्ध मुहिम चलाने का निर्देश दिया है।
  • CPCB के अनुसार, सभी एजेंसियों द्वारा वायु प्रदूषण से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिये उठाए गए कदमों का बारीकी से निरीक्षण किया जाएगा और यदि एजेंसियों द्वारा सही कदम नहीं उठाए गए हों तो ऐसी स्थिति में उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है।
  • सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, वन विभाग, दिल्ली पुलिस, फरीदाबाद नगर निगम आदि ने सोशल मीडिया पर की गई शिकायतों के निपटारे हेतु अब तक किसी भी नोडल ऑफिसर की नियुक्ति नहीं की है।

ठोस कचरे की वर्तमान स्थिति

  • मेगासिटी के अधिकांश डंपिंग साइट्स अपनी क्षमता और 20 मीटर की अनुमेय ऊँचाई की सीमा से परे पहुँच गए हैं। अनुमानतः भारत में 10,000 हेक्टेयर से अधिक शहरी भूमि इन डंपसाइटों में बंद हैं।
  • भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन प्रति दिन 200 ग्राम से 600 ग्राम तक होता है।
  • नगरपालिका के कचरे का केवल 75-80% एकत्रित किया जाता है और केवल 22-28% कचरे का प्रसंस्करण और उपचार किया जाता है।

प्रभाव

  • खुले में डंप किये गए कचरे से मीथेन का उत्सर्जन होता है, जो सूर्य की गर्मी को अवशोषित कर वातावरण को गर्म करता है और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है।
  • लीचेट (Leachate) जो कचरे से निकलने वाला एक काले रंग का तरल है, 25 से 30 साल की अवधि में धीरे-धीरे विघटित हो जाता है और फिर मृदा और भूजल को दूषित करता है।

लीचेट

  • लीचेट काले रंग का, दुर्गंध युक्त, विषैला तरल पदार्थ है जो लैंडफिल (कूड़े का ढेर) में कचरे के सड़ने से निकलता है,
  • इसमें कवक और बैक्टीरिया के अलावा हानिकारक रसायन भी मौज़ूद होते हैं।
  • यह लैंडफिल के तल पर जमा हो जाता है तथा भूजल को दूषित करने वाली मिट्टी के माध्यम से नीचे की ओर रिसकर चला जाता है।
  • यह सतह के जल को भी दूषित करता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

(Central Pollution Control Board- CPCB)

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य करने के साथ-साथ पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

आगे की राह

  • यद्यपि ऐसे बहुत से उपाय हैं जिनका इस्तेमाल करके कुछ हद तक इस समस्या को और अधिक भयावह रूप धारण से बचाया जा सकता है। यथा; घरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदर्थों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया जाना चाहिये। कागज़, प्लास्टिक, ग्लास जैसी वस्तुओं को एक अलग थैले में रखा जाना चाहिये जबकि दूसरे अन्य कचरों को अलग।
  • उल्लेखनीय है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Solid Waste Management Rules), 2016 के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने घरों से निकलने वाले कचरे को सूखे कचरे (recyclable) एवं गीले कचरे (compostable) तथा आरोग्यकर कचरे (disposable diapers and sanitary napkins) के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
  • वस्तुतः गीले कचरे के रूप में वर्गीकृत कचरे को जितना जल्द हो सकें, किसी खुले स्थान पर फैला दिया जाना चाहिये ताकि पर्याप्त मात्र में हवा एवं प्रकाश की मौजूदगी के द्वारा इसका भली– भाँति निस्तारण किया जा सके।
  • इस प्रकार के कचरे के ढेर को दो मीटर से अधिक की ऊँचाई तक ही रखा जाता है, साथ ही इसे एक हफ्ते में कम से कम चार बार उल्टा जाता है। ऐसा करने का उद्देश्य यह होता है कि कचरे के ढेर के लगभग प्रत्येक हिस्से को हवा एवं सूर्य का प्रकाश मिल सकें, जिससे कि यह जल्द से जल्द निस्तारित हो सकें, ठीक उसी तरह से जैसे घने वनों में गिरने वाली पत्तियों का ढेर मात्र हवा एवं प्रकाश के सम्पर्क में आने से ही अपघटित हो जाता है।
  • विभिन्न जैवोपचार (Bioramidiation) विधियों का प्रयोग कर नही अपशिष्ट निपटान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि अपशिष्ट प्रसंस्करण के माध्यम से जहाँ एक ओर पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है वहीं दूसरी और निरंतर नए स्थानों की खोज संबंधी परेशानी से भी बचा जा सकता है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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