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भारतीय अर्थव्यवस्था

संसाधन क्षमता पर रणनीति

  • 29 Sep 2018
  • 13 min read

पृष्ठभूमि

भारत की बड़ी आबादी, तेज़ी से शहरीकरण और औद्योगिक उत्पादन में विस्तार से देश के सीमित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हुआ है जो संसाधनों की कमी और भविष्य में इनकी उपलब्धता से संबंधित चिंता के साथ और अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। एक विशाल और बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु संसाधन संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एकीकृत, समेकित और सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। संसाधन दक्षता (RE) में वृद्धि और माध्यमिक कच्चे माल (Secondary Raw Materials-SRM) के उपयोग को बढ़ावा देना इन चुनौतियों का समाधान करने और प्राथमिक संसाधन पर निर्भरता को कम करने के लिये एक उचित और उपयुक्त रणनीति है।

परिभाषा

  • संसाधन दक्षता या संसाधन उत्पादकता किसी दिये गए लाभ या परिणाम और उसके लिये आवश्यक प्राकृतिक संसाधन उपयोग के बीच का अनुपात होती है।
  • संसाधन दक्षता कम-से-कम संभव संसाधन इनपुट के साथ अधिकतम संभव लाभ प्राप्त करने की एक रणनीति है।

भारतीय संसाधन पैनल (Indian Resource Panel-InRP)

  • भारत सरकार ने भारतीय संसाधन पैनल (InRP) की स्थापना की है| यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत गठित एक सलाहकार निकाय है| यह भारत द्वारा सामना किये जाने वाले संसाधन-संबंधित मुद्दों का आकलन करने के लिये भारत-जर्मन द्विपक्षीय सहयोग के समर्थन के माध्यम से और RE के लिये व्यापक रणनीति पर सरकार को सलाह देने के लिये गठित की गई है।
  • InRP अजैविक संसाधनों के उत्पादन पर ध्यान देता है जो भविष्य के लिये जैविक संसाधनों के भौतिक उपयोग द्वारा पूरक ऊर्जा उत्पादन (अयस्क, औद्योगिक खनिज, निर्माण खनिजों) के लिये उपयोग नहीं किया जाता है।
  • निम्नलिखित मानकों के आधार पर संसाधनों का चयन किया गया है:
  • विभिन्न क्षेत्रों में इसके उपयोग के आधार पर सामग्री आधारित आर्थिक महत्त्व
  • निष्कर्षण और उत्पादन के कारण पर्यावरणीय प्रभाव
  • सम्मिलित (embodied) ऊर्जा
  • आपूर्ति जोखिम का निर्धारण निम्नलिखित माध्यम से किया जाता है-
  1. सीमित भू-वैज्ञानिक उपलब्धता और महत्त्व
  2. उच्च आयात निर्भरता
  3. भू-राजनितिक बाधाएँ

संसाधन क्षमता के लिये औचित्य

  1. आर्थिक लाभ
  • RE में संसाधनों की उपलब्धता में सुधार करने की क्षमता है जो उद्योगों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • RE/SRM आपूर्ति बाधाओं या बाधाओं के कारण कीमतों के प्रवाह (क्षणिक परिवर्तन) को कम करने में मदद कर सकता है।
  • आयात निर्भरता और आयात की लागत में कमी आएगी।
  • RE/SRM उद्योगों, विशेष रूप से सामग्री गहन विनिर्माण उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और लाभप्रदता में सुधार कर सकता है।
  • हमारे निर्यात बाज़ार को बढ़ावा देता है।
  • RE/SRM आधारित दृष्टिकोण नए उद्योगों की स्थापना कर सकता है, खासकर रीसाइक्लिंग में जो आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
  • डिज़ाइन और निर्माण में RE/SRM आधारित नवाचार में अत्यधिक कुशल नौकरियाँ सृजित करने की क्षमता है।
  • हरित उत्पाद प्रमाणन, इको-लेबलिंग (eco-labeling) और हरित मार्केटिंग में नई नौकरियाँ सृजित करने की संभावना है।
  • रीसाइक्लिंग अर्थव्यवस्था को व्यापक बनाने के लिये एक सुदृढ़ सरकारी प्रयास के परिणामस्वरूप अनौपचारिक क्षेत्र का उन्नयन और औपचारिक क्षेत्र के साथ इसका एकीकरण होना चाहिये।
  1. सामाजिक लाभ
  • RE रणनीतियों को अपनाने के कारण कम निष्कर्षण दबाव में खनन क्षेत्रों में संघर्ष और विस्थापन को कम करने की क्षमता है, साथ ही स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार की भी क्षमता है।
  • RE गरीबी में कमी और मानव विकास के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों की बेहतर क्षमता और पहुँच में योगदान दे सकता है।
  • RE/SRM अपशिष्ट उत्पादन को कम करने की ओर ले जाएगा जो कम निपटान और संबंधित प्रदूषण को दूर कर शहरों और नदियों/जल निकायों को स्वच्छ रखने में योगदान देगा।
  1. पर्यावरणीय लाभ
  • RE रणनीतियों को अपनाने के कारण कम निष्कर्षण दबाव से पारिस्थितिकीय निम्नीकरण और खनन से जुड़े प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।
  • RE और माध्यमिक संसाधनों के पुन: उपयोग में ऊर्जा बचाने की प्रचुर क्षमता है।
  • कम अपशिष्ट उत्पादन न केवल निपटान (disposal) से जुड़े प्रदूषण को कम करेगा बल्कि संबंधित लागतों को भी बचाएगा।
  • वैश्विक संदर्भ

    • आर्थिक विकास और जनसंख्या वृद्धि के कारण, जो देश वर्तमान में दुर्लभ (कम मात्रा में उपलब्ध) कच्चे माल का आयात कर रहे हैं उन्हें उच्च कीमतों का भुगतान करना होगा या महत्त्वपूर्ण कच्चे माल की आपूर्ति में बाधाओं को स्वीकार करना होगा।
    • वैश्विक स्तर पर UNEP ने प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग और पर्यावरणीय निम्नीकरण से आर्थिक विकास को कम करने वाले पर्यावरणीय प्रभाव और नीतिगत दृष्टिकोण पर स्वतंत्र वैज्ञानिक आकलन करने के लिये 2007 में अंतर्राष्ट्रीय संसाधन पैनल (IRP) की स्थापना एक केंद्रीय संस्थान के रूप में की।

    भारतीय संदर्भ

    • भारत में प्राथमिक कच्चे माल का निष्कर्षण 1970 और 2010 के बीच लगभग 420% बढ़ गया जो एशियाई औसत से कम है लेकिन वैश्विक औसत से अधिक है।
    • निष्कर्षण की तुलना में मात्रा के संदर्भ में भारत के निर्यात और आयात का आकार अभी भी छोटा है। हालाँकि दोनों उल्लेखनीय रूप से बढ़ गए हैं।
    • बायोमास और गैर-धातु खनिज भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण सामग्री समूह हैं और इनका घरेलू निष्कर्षण व्यापार की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत ने सकल घरेलू उत्पाद, संसाधन उपभोग और संसाधन उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया है, लेकिन तुलनात्मक अर्थव्यवस्थाओं के साथ यह कई अन्य देशों से पीछे जा रहा है जो यह बताता है कि सुधार की बहुत ज़रूरत है।

सरकारी योजनाओं और प्राथमिकताओं के साथ आरएस की सर्वांगसमता

  • संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग कई सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, अर्थात्-
  • लक्ष्य 2: शून्य भूख (Zero Hunger)
  • लक्ष्य 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता
  • लक्ष्य 7: वहनीय और स्वच्छ ऊर्जा
  • लक्ष्य 8: उपयुक्त काम और आर्थिक विकास
  • लक्ष्य 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचा
  • लक्ष्य 11: सतत् शहर और समुदाय
  • लक्ष्य 12: ज़िम्मेदारीपूर्ण उपभोग और उत्पादन
  • लक्ष्य 13: जलवायु कार्रवाई
  • लक्ष्य 14: पानी के नीचे जीवन
  • लक्ष्य 15: भूमि पर जीवन
  • RE 2015 पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions-NDC) प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद कर सकता है।
  • राष्ट्रीय आवास और पर्यावास नीति, 2007 (national housing and habitat policy, 2007) और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), 2015 घटकों, सामग्रियों और निर्माण विधियों के लिये उपयुक्त पारिस्थितिकीय डिज़ाइन मानकों को विकसित करने पर ज़ोर देती है।
  • विनिर्माण चरण में "मेक इन इंडिया" जैसे प्रमुख कार्यक्रम जो प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष (TADF) के माध्यम से ऊर्जा कुशल, जल कुशल और प्रदूषण नियंत्रणकारी प्रौद्योगिकियों को विशेष सहायता प्रदान करते हैं, RE और SRM दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • RE द्वारा कम अपशिष्ट उत्पादन स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को पूरा करने में योगदान देगा।
  • MoEFCC एक इको-लेबलिंग योजना चला रहा है।
  • खतरनाक अपशिष्ट से लेकर म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW), निर्माण और विध्वंस (C & D) अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट तथा ई-अपशिष्ट से लेकर सभी प्रकार के अपशिष्ट से निपटने के लिये नीतियाँ मौजूद हैं।

संसाधन क्षमता को मापने के लिये प्रयुक्त संकेतक

  • संसाधन क्षमता = जीडीपी/घरेलू सामग्री खपत
  • इसकी गणना RE = जीडीपी / सामग्री प्रवाह संकेतक (MFA) के रूप में भी की जाती है|

RE रणनीति के संदर्भ में सिफारिशें

  1. प्रमोशन
  • उत्पादों का इको-लेबलिंग और मानक प्रमाणन
  • उत्पाद के विनिर्माण और प्रदर्शन में गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी विकास
  • हरित उत्पादों के बारे में जागरूकता को सुदृढ़ करना
  • बाज़ारों में हरित उत्पादों की उपलब्धता में सुधार
  • हरित उत्पादों की लागत कम करना
  • हरित सार्वजनिक खरीद
  • औद्योगिक क्लस्टर विकास
  1. विनियमन, आर्थिक साधन:
  • वायबिलिटी गैप फंडिंग (viability gap funding-VGF) जो व्यवसायों की बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकती है और प्रौद्योगिकी के पैमाने तथा उन्नयन के निर्माण के साथ प्रतिस्पर्द्धी बन सकती है।
  • जीवन चक्र के दौरान नीतिगत सुधार उनके डिज़ाइन, प्रबलता, एकीकरण या कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • कर सुधार संसाधन कुशल प्रथाओं और सर्कुलर (circular) अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं| मूल्यवर्द्धित करों को खनन, निर्माण और विनिर्माण जैसे मूल्यवर्द्धित गतिविधियों पर लगाया जाना चाहिये।
  1. संस्थागत विकास:
  • यूएलबी, एमएसएमई, साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र सहित आरई / एसआरएम रणनीतियों के अंडरटेकिंग या निरीक्षण के लिये जिम्मेदार प्रमुख कर्त्ताओं (actor) की क्षमता विकास।
  • विकास के लिये एक समर्पित संस्थागत सेट-अप तथा आरई उपायों का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • बेसलाइन डेटा संग्रह और संकेतकों का विकास।
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