US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि | 08 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, विनिमय दर मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था पर US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि का प्रभाव और विकल्प |
चर्चा में क्यों?
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये आक्रामक रूप से ब्याज दरों को बढ़ाने के बाद अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने एक बार फिर अपने मानक ओवरनाइट ब्याज दर को एक-चौथाई प्रतिशत बढ़ाकर 5.00%-5.25% के बीच कर दिया है।
- ओवरनाइट दरें वे हैं जिन पर विभिन्न बैंक एक दिन के लिये ओवरनाइट बाज़ार में एक-दूसरे को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
- कई देशों में ओवरनाइट दर वह ब्याज दर है जिसे केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नीति (भारत में रेपो दर) को लक्षित करने के लिये निर्धारित किया जाता है।
भारत पर इस वृद्धि का प्रभाव:
- अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई है कि फेडरल की ताज़ा बढ़ोतरी का भारत पर भौतिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि RBI ने बढ़ोतरी को रोक दिया है और कच्चे तेल की कीमतों में भी कमी की है।
- घरेलू बाज़ारों के लचीले बने रहने की संभावना है और अगर अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है, तो इसका अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव पड़ेगा।
- यह भी उम्मीद है कि रुपए की मज़बूती और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा जारी खरीदारी से बाज़ार को मज़बूती मिलेगी।
- FII ने पहले ही भारत में निवेश करना शुरू कर दिया है, अप्रैल 2023 में प्रवाह बढ़कर 13,545 करोड़ रुपए और मई में अब तक 8,243 करोड़ रुपए हो गया है।
- इसके अलावा इस वृद्धि को वर्ष 2023 के लिये अंतिम वृद्धि के रूप में देखा जा रहा है और फेडरल रिज़र्व वर्ष 2023 की दूसरी छमाही से दरों में कटौती करना शुरू कर देगा।
- यदि फेडरल रिज़र्व वर्ष के अंत में कटौती का विकल्प चुनता है, तो पूंजी प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है।
- यदि फेडरल रिज़र्व जुलाई 2023 से दरों में कटौती करना शुरू करता है, तो बाज़ारों में तेज़ी से वृद्धि होने की उम्मीद है।
केंद्रीय बैंकों को दर वृद्धि का सहारा:
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है।
- यह उधार लेने हेतु उपलब्ध धन की मात्रा को कम करने के लिये किया जा रहा है, जो अर्थव्यवस्था को धीमा करने और कीमतों को तेज़ी से बढ़ने से रोकने में मदद कर सकता है।
- उच्च उधार लागत के कारण लोग और कंपनियाँ उधार लेने के लिये कम इच्छुक हो सकती हैं, जो आर्थिक गतिविधि एवं विकास को धीमा कर सकती है।
- इसके कारण व्यवसाय कम ऋण ले सकते हैं, कम लोगों को नियुक्त कर सकते हैं और उधार लेने की बढ़ी हुई लागत की वजह से उत्पादन कम कर सकते हैं।
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दर वृद्धि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- पूंजी प्रवाह: US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि से अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है, जो अन्य देशों से पूंजी प्रवाह को आकर्षित कर सकती है। इससे भारत में विदेशी निवेश में कमी आ सकती है, साथ ही यह आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
- रुपए का मूल्यह्रास: इससे रुपए का मूल्यह्रास भी हो सकता है, जिसका प्रभाव भारत के व्यापार संतुलन और चालू खाता घाटे पर पड़ सकता है।
- भारतीय रुपए के मूल्यह्रास के परिणामस्वरूप कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं का आयात महँगा हो सकता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में आयातित मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
- घरेलू उधार लागत: इससे भारत में उधार लेने की लागत में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि निवेशक भारतीय प्रतिभूतियों के बजाय अमेरिकी प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं। इससे घरेलू निवेश में कमी और व्यवसायों एवं व्यक्तियों के लिये उच्च उधार लागत हो सकती है।
- शेयर बाज़ार: इसका असर भारत के शेयर बाज़ार पर भी पड़ सकता है। उच्च अमेरिकी ब्याज दरों से इक्विटी जैसी जोखिम भरी संपत्तियों की मांग में कमी आ सकती है, जिससे भारत में स्टॉक की कीमतों में गिरावट आ सकती है।
- बाह्य ऋण: भारत का बाह्य ऋण ज़्यादातर अमेरिकी डॉलर में दर्शाया गया है, US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि से उस ऋण सेवा की लागत बढ़ सकती है, क्योंकि रुपए का मूल्य डॉलर के मुकाबले गिर सकता है। इससे भारत के बाह्य ऋण के बोझ में वृद्धि हो सकती है एवं अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- बैंक: बैंकिंग उद्योग को ब्याज दरों में वृद्धि से लाभ होता है, क्योंकि बैंक अपने ऋण पोर्टफोलियो को अपनी जमा दरों की तुलना में बहुत तेज़ी से पुनर्मूल्यांकित करते हैं, जिससे उन्हें अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन बढ़ाने में मदद मिलती है।
फेडरल रिज़र्व दर वृद्धि का मुकाबला करने हेतु भारत के पास उपलब्ध विकल्प:
- घरेलू ब्याज दरों को समायोजित करना: RBI, विदेशी निवेशकों को भारतीय बाज़ारों में निवेश करने हेतु आकर्षित करने के लिये US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के जवाब में ब्याज दरें बढ़ा सकता है, जिससे भारतीय मुद्रा की मांग बढ़ेगी एवं इसके मूल्य को बनाए रखने में मदद मिलेगी। हालाँकि यह घरेलू आर्थिक विकास को भी धीमा कर सकता है।
- विदेशी मुद्रा भंडार का विविधीकरण: भारत अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के प्रभाव को कम करने हेतु अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता ला सकता है। उदाहरण के लिये भारत अन्य प्रमुख मुद्राओं जैसे- यूरो, येन और चीनी युआन पर अपनी निर्भरता बढ़ा सकता है।
- अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाना: भारत अपने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और US फेडरल रिज़र्व दर में वृद्धि के प्रभाव को कम करने हेतु अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इसमें नए निर्यात बाज़ारों की खोज, विदेशी निवेश को आकर्षित करना एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को बढ़ाना शामिल हो सकता है।
- घरेलू खपत को प्रोत्साहित करना: यदि फेडरल रिज़र्व की दर में बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो सरकार आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये कर कटौती, सब्सिडी अथवा सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों जैसे उपायों के माध्यम से घरेलू खपत को बढ़ावा दे सकती है।
- कच्चे तेल पर निर्भरता कम करना: अमेरिकी डॉलर के मज़बूत होने के कारण भारत पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभावों में से एक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि है, जिस कारण वस्तुओं की कीमतों में समग्र वृद्धि देखने को मिलती है। इससे निपटने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और इथेनॉल जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय सरकारी बॉण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता/होते है/हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (c) केवल 1 और 2 उत्तर: d प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: b |