संयुक्त राज्य अमेरिका का ऋण सीमा संकट | 26 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राज्य अमेरिका का ऋण सीमा संकट, संविधान का 14वाँ संशोधन, क्रेडिट रेटिंग, विदेशी मुद्रा मेन्स के लिये:राजकोषीय घाटा और भारत सरकार द्वारा इसका प्रबंधन |
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेज़री सेक्रेटरी ने आगाह किया है कि यदि हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स और राष्ट्रपति का व्हाइट हाउस कर्ज़ की सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने हेतु किसी परिणाम पर पहुँचने में विफल रहता है तो 1 जून तक कर्ज़ का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
अमेरिकी ऋण सीमा:
- परिचय:
- ऋण सीमा वह अधिकतम राशि है जो अमेरिकी सरकार को कानूनी रूप से अपने खर्चों एवं दायित्वों को पूरा करने हेतु उधार लेने की अनुमति है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई थी।
- ऋण सीमा का उद्देश्य प्रत्येक व्यय हेतु कॉन्ग्रेस से लगातार अनुमोदन की आवश्यकता के बिना सरकार को खर्च में लचीलापन प्रदान करना है।
- अमेरिकी संविधान के तहत कॉन्ग्रेस के पास सरकारी खर्च को नियंत्रित करने का अधिकार है।
- अभी तक वर्तमान ऋण सीमा 31.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निर्धारित की गई है। इसका मतलब यह है कि कॉन्ग्रेस की मंज़ूरी के बिना सरकार इस राशि से अधिक उधार नहीं ले सकती है।
- ऋण सीमा वह अधिकतम राशि है जो अमेरिकी सरकार को कानूनी रूप से अपने खर्चों एवं दायित्वों को पूरा करने हेतु उधार लेने की अनुमति है।
- वर्तमान गतिरोध:
- वर्तमान गतिरोध में रिपब्लिकन (विपक्षी दल के सदस्य) शामिल हैं, जिनके पास प्रतिनिधि सभा और डेमोक्रेट द्वारा संचालित सरकार में बहुमत है।
- रिपब्लिकन अमेरिकी ऋण सीमा को तब तक बढ़ाने से इनकार (यह तर्क देते हुए कि देश का ऋण अस्थिर है) कर रहे हैं जब तक कि सरकार खर्च में महत्त्वपूर्ण कटौती और अन्य प्राथमिकताओं को शामिल करने हेतु सहमत नहीं होती है।
- वे यह सुनिश्चित करने के लिये कि सरकारी व्यय सीमित है, नकद सहायता, भोजन, टिकट और मेडिकेड जैसे कार्यक्रमों से शर्तें जोड़ना चाहते हैं।
- दूसरी ओर राष्ट्रपति ऋण सीमा को बिना किसी शर्त के स्वीकृत करने पर बल देते हैं, यह कहते हुए कि ऋण पर डिफॉल्ट करना गैर-परक्राम्य है।
- इसने एक गतिरोध को जन्म दिया और साथ ही यदि समय-सीमा से पहले कोई समझौता नहीं किया जाता है तो डिफॉल्ट का संभावित जोखिम है।
सरकार के डिफॉल्ट होने का प्रभाव:
- सरकारी डिफॉल्ट :
- अमेरिकी सरकार अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप उसके ऋण भुगतान में डिफॉल्ट हो सकता है। यह अभूतपूर्व रूप से देश की अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है।
- आर्थिक मंदी:
- डिफॉल्ट होने से अमेरिकी वित्तीय प्रणाली के प्रति विश्वास में कमी आएगी, जिससे वित्तीय बाज़ार अत्यधिक अस्थिर हो जाएंगे। यह व्यवसायों, निवेशों और रोज़गार को प्रभावित करते हुए गंभीर आर्थिक मंदी की स्थिति को प्रदर्शित कर सकता है।
- विश्लेषकों केअनुसार, डॉलर कमज़ोर होगा, शेयर बाज़ार गिरेंगे और लाखों लोग रोज़गारविहीन हो सकते हैं।
- डाउनग्रेड क्रेडिट रेटिंग:
- डिफॉल्ट के परिणामस्वरूप अमेरिकी सरकार की क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड हो सकती है, जिससे सरकार के लिये भविष्य में धन उधार लेना अधिक महँगा हो जाएगा। इससे देश के वित्त पर अधिक दबाव पड़ेगा तथा उधार लेने की लागत में वृद्धि होगी।
- वैश्विक प्रभाव:
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ गहरा संबंध है। डिफॉल्ट का विश्व में व्यापक प्रभाव हो सकता है जिससे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में व्यवधान प्रदर्शित हो सकता है और साथ ही यह वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर सकता है।
ऋण सीमा डिफॉल्ट से बचने के उपाय:
- 14वाँ संविधान संशोधन:
- संविधान का 14वाँ संशोधन राष्ट्रपति को विधायिका के समर्थन के बिना स्वयं की ऋण सीमा को बढ़ाने का अधिकार देता है।
- संविधान के 14वें संशोधन में कहा गया है कि सार्वजनिक ऋण की वैधता पर "प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।" यह इस तथ्य को भी शामिल करता है कि ऋण में चूक असंवैधानिक है और इसे रोकने के लिये कार्रवाई की जा सकती।
- संविधान का 14वाँ संशोधन राष्ट्रपति को विधायिका के समर्थन के बिना स्वयं की ऋण सीमा को बढ़ाने का अधिकार देता है।
- आपातकालीन उपाय:
- कोषागार विभाग के पास कुछ आपातकालीन उपाय होते हैं जिनका प्रयोग वह ऋण सीमा तक पहुँचने के बाद भी सरकार के बिलों का भुगतान जारी रखने के लिये कर सकता है।
- यह उपाय अस्थायी राहत तो प्रदान कर सकते हैं, किंतु यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है।
- ये स्थायी समाधान होने तक यह सरकार को सुचारु रूप से कार्य करने के लिये कुछ समय प्रदान करते हैं।
- द्विदलीय समझौता:
- हालाँकि यदि अंतिम क्षण तक सरकार और विपक्ष के मध्य संवाद जारी रहता है तो संभवतः ऋण सीमा बढ़ाने के लिये द्विदलीय समझौता हो सकता है। इसमें खर्च में कटौती या अन्य वित्तीय उपायों पर समझौता करना तथा इसके लिये आम सहमति व्यक्त करना शामिल है।
पूर्व के उदाहरण:
- ऐसी ही स्थिति वर्ष 2011 में निर्मित हुई थी जब बराक ओबामा राष्ट्रपति थे और प्रतिनिधि सदन (House of Representatives) को विपक्षी दल के सदस्यों द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
- एक समझौते पर पहुँचकर समय-सीमा से कुछ समय पहले संकट का समाधान किया गया था। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति ने संकट समाधान और ऋण सीमा को बढ़ाने के लिये कुल 900 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के खर्च में कटौती को लागू करने पर सहमति व्यक्त की थी।
भारत द्वारा प्रबंधित उधार एवं ऋण दायित्व:
- FRBM अधिनियम के अनुसार, भारत के पास एक औपचारिक ऋण सीमा तंत्र है, लेकिन अमेरिका की तरह पूर्ण राशि के मामले में ऋण सीमा नहीं है। इसलिये अमेरिका में ऋण सीमा की तुलना भारत में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से की जा सकती है।
- भारत में यह लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के प्रतिशत की सीमा में है, न कि संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह एक पूर्ण राशि में।
- भारत सरकार विभिन्न तंत्रों और संस्थानों के माध्यम से उधार एवं ऋण दायित्वों का प्रबंधन करती है, जैसे कि:
- प्रतिभूतियों और बॉण्ड के माध्यम से धन एकत्र करना: यह घरेलू बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों, जैसे ट्रेज़री बिल और सरकारी बॉण्ड जारी करता है।
- राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम: यह भारत में राजकोषीय अनुशासन और ऋण प्रबंधन के लिये एक विधायी ढाँचा प्रदान करता है। यह राजकोषीय घाटे तथा ऋण-से-GDP अनुपात के लिये लक्ष्य निर्धारित करता है, जिसका लक्ष्य दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करना है। सरकार के उधार लेने के निर्णय FRBM अधिनियम में उल्लिखित सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI): RBI देश के उधार और ऋण के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह केंद्र सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है और सरकारी प्रतिभूतियों को जारी करने, नीलामी तथा व्यापार की सुविधा प्रदान करता है। RBI सरकार के नकदी प्रवाह का प्रबंधन भी करता है तथा ऋण लेन-देन के सुचारु निपटान को सुनिश्चित करता है।
अमेरिकी ऋण सीमा का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- ऋण सीमा को बढ़ाने में विफलता तथा बाद में अमेरिकी सरकार के चूक के जोखिम से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ सकती है।
- एक ऋण सीमा संकट अमेरिकी डॉलर की साख तथा इसमें विश्वास को कम कर सकता है, जिससे इसमें मूल्यह्रास हो सकता है। इस मूल्यह्रास का अन्य मुद्राओं और व्यापार संबंधों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- एक ऋण सीमा संकट वैश्विक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और विश्वसनीयता को कम कर सकता है। बाज़ारों में अनिश्चितता और भय के परिणामस्वरूप व्यापार और उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है तथा इसके साथ अमेरिका में ही नहीं बल्कि विश्व भर में आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- रुपए का अवमूल्यन:
- भारतीय रुपए का डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास हो सकता है, जिससे आयात अधिक महँगा हो सकता है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित रूप से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता हैं।
- व्यापार व्यवधान:
- संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है और ऋण सीमा संकट से उत्पन्न कोई भी आर्थिक मंदी भारतीय निर्यात की मांग को कम कर सकती है।
- अमेरिका को कम निर्यात अमेरिकी उपभोक्ताओं पर निर्भर भारतीय उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स इत्यादि।
- विदेशी मुद्रा पर प्रभाव:
- भारत के पास संयुक्त राज्य कोषागार समेत बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार है। अमेरिकी ऋण के डिफॉल्ट या डाउनग्रेड के परिणामस्वरूप इन निवेशों पर नुकसान हो सकता है, जो संभावित रूप से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार तथा समग्र वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।