नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

शहरीकरण और औद्योगीकरण से भूजल स्तर में कमी आना

  • 07 Nov 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), PMKSY, जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना (ABHY)

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन (NAQUIM) कार्यक्रम, भारत में भूजल की कमी के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम, शहरीकरण की भूमिका, भूजल पुनर्भरण के संदर्भ में सरकारी पहल, भूजल प्रबंधन संबंधी मुद्दे, टिकाऊ शहरी जल प्रबंधन के लिये रणनीतियाँ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

डिटेक्शन एंड सोसिओ-इकोनाॅमिक एट्रीब्यूशन ऑफ ग्राउंडवाॅटर डेप्लीशन इन इंडिया (Detection and Socio-Economic Attribution of Groundwater Depletion in India) शीर्षक से हाल ही में किये गए एक अध्ययन में पाँच भारतीय राज्यों में भूजल स्तर में आने वाली कमी में शहरीकरण और औद्योगीकरण की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • प्रभावित राज्य: इस अध्ययन में पाँच हॉटस्पॉट अर्थात् पंजाब और हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और केरल के लिये गंभीर चिंता व्यक्त की गई है:
  • पंजाब और हरियाणा (हॉटस्पॉट I): यह सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहाँ दो दशकों में 64.6 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल की क्षति हुई है।
  • उत्तर प्रदेश (हॉटस्पॉट II): यहाँ सिंचाई की मांग में 8% की गिरावट आई है जबकि घरेलू और औद्योगिक उपयोग में 38% की वृद्धि होने के कारण भूजल में 4% की क्षति हुई है।
  • पश्चिम बंगाल (हॉटस्पॉट III): यहाँ सिंचाई में न्यूनतम वृद्धि (0.09%) हुई है लेकिन अन्य उपयोगों में 24% की वृद्धि के कारण भूजल में 3% की कमी आई है।
  • छत्तीसगढ़ (हॉटस्पॉट IV): यहाँ सभी क्षेत्रों में बढ़ते उपयोग के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई है।
  • केरल (हॉटस्पॉट V): यहाँ उच्च वर्षा के बावजूद भूजल में 17% की गिरावट आई है, जिसका कारण सिंचाई में 36% की गिरावट एवं अन्य उपयोगों में 34% की वृद्धि होना है।

प्राथमिक कारण: 

  • तीव्र शहरीकरण: वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसमें 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा विशेष रूप से फरीदाबाद और गुड़गांव जैसे शहरी क्षेत्रों में (जो कृषि पर बहुत अधिक निर्भर नहीं हैं) होने वाले औद्योगीकरण से यहाँ वर्ष 2012 से भूजल स्तर में तीव्र गिरावट देखी गई।
  • बढ़ती मांग: घरेलू और औद्योगिक जल उपभोग में वृद्धि के साथ ही वर्षा में कमी भी इसका कारण हैं।

नोट:

  • शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 2003 से 2020 के बीच केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) उपग्रह से प्राप्त डेटा का उपयोग किया।

शहरीकरण से भूजल स्तर में कमी को किस प्रकार बढ़ावा मिल रहा है?

  • जल के प्राकृतिक पुनर्भरण में कमी: अभेद्य सतहों से वर्षा जल का भूमि में रिसाव सीमित हो जाता है, जिससे प्राकृतिक भूजल पुनर्भरण में बाधा उत्पन्न होती है।
  • अत्यधिक निष्कर्षण: शहरों में सीमित वैकल्पिक स्रोतों के कारण अत्यधिक एवं अनियमित भूजल निष्कर्षण होता है।
    • शहरी विस्तार के कारण जल की मांग बढ़ रही है और यह भूजल पर अत्यधिक निर्भर (विशेष रूप से जहाँ सतही जल दुर्लभ है) है।
  • प्रदूषण: शहरी अपशिष्ट और अनुपचारित सीवेज से भूजल दूषित हो रहा है, जिससे स्वच्छ जल की उपलब्धता कम होने के साथ गहन जल स्रोतों से निकासी बढ़ जाती है।
  • उच्च निष्कर्षण लागत: अत्यधिक उपयोग के कारण जल स्तर में कमी से पम्पिंग लागत बढ़ जाती है तथा सब्सिडी के कारण कभी-कभी अनियमित निष्कर्षण की समस्या और भी बढ़ जाती है।

भूजल स्तर में कमी के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • भूजल पर अत्यधिक निर्भरता: भारत में कुल जल उपयोग में से 80% सिंचाई के लिये उपयोग किया जाता है जिसमें भूजल की प्रमुख हिस्सेदारी है। जैसे-जैसे खाद्यान्न की मांग बढ़ रही है, सिंचाई के लिये भूजल का दोहन बढ़ने से भूजल कम हो रहा है।
  • अकुशल जल प्रबंधन: अकुशल जल उपयोग, लीक पाइप तथा वर्षा जल को संग्रहित करने एवं संचय करने के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से भूजल की कमी होती है।
  • पारंपरिक जल संरक्षण विधियों में गिरावट: वर्षा जल संचयन, बावड़ी और चेक डैम जैसी पद्धतियों में गिरावट आई है, जिसके कारण भूजल पुनर्भरण के अवसर सीमित हो रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के साथ वर्षा के पैटर्न में बदलाव से भूजल भण्डारों की पुनर्भरण दर प्रभावित होने से उनके समाप्त होने की संभावना बढ़ रही है।
    • वनों की कटाई जैसे कारक (जो मृदा अपरदन का कारण है) से भूमि में रिसने वाले जल की मात्रा में कमी आ सकती है जिससे भूजल भण्डारों के प्राकृतिक पुनर्भरण में कमी आ सकती है।
    • जलवायु परिवर्तन की घटनाएँ जैसे सूखा, बाढ़ और बाधित मानसूनी मौसम से भारत के भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।

भूजल में कमी के क्या प्रभाव हैं?

  • फसल उत्पादन में कमी: भूजल स्तर में कमी के कारण सिंचाई सीमित होने से फसल उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • शहरों में जल की कमी: शहरों में भूजल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है तथा भूजल की कमी के कारण इसकी लागत बढ़ने के साथ जल की उपलब्धता कम हो रही है और नगरपालिका सेवाओं पर दबाव बढ़ रहा है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: भारत में विश्व की 18% जनसंख्या है लेकिन विश्व के मीठे जल संसाधनों का केवल 4% ही भारत में उपलब्ध है।
    • अत्यधिक उपयोग और संदूषण से जल की गुणवत्ता में गिरावट के कारण जलजनित रोगों के साथ भारी धातुओं के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाती है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति: जल स्तर में गिरावट से आर्द्रभूमि, वन और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं जिससे जैवविविधता बाधित होती है।
  • सूखे का खतरा बढ़ना: भूजल की कमी से सूखे के प्रति सहनशीलता कम हो जाती है जिसकी जलवायु परिवर्तन के साथ और अधिक बढ़ने की संभावना रहती है।

भारत में भूजल प्रबंधन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • अतिदोहन: हरित क्रांति से खाद्य सुरक्षा के क्रम में भूजल के उपभोग को बढ़ावा मिला है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर बोरवेल को बढ़ावा मिला।
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार 17% ब्लॉकों में अत्यधिक दोहन हो चुका है तथा उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में जल की काफी कमी हुई है।
  • जलवायु प्रेरित चुनौतियाँ: अनियमित वर्षा और बढ़ते प्रदूषण से जल संकट को और भी बढ़ावा मिला है।
    • भूजल से ग्रामीण घरेलू जल के 85%, शहरी जल के 45% तथा कृषि सिंचाई के 60% से अधिक की पूर्ति होती है, जिससे अनेक क्षेत्र प्रभावित होते हैं।
  • कमज़ोर विनियामक ढाँचा: वर्तमान में विनियमन के तहत केवल 14% अतिदोहित ब्लॉकों को ही कवर किया गया है जिससे अनियंत्रित भूजल निष्कर्षण होता है।
    • जल की कमी के प्रारंभिक चरणों में स्थानीय विनियामक प्रवर्तन के अभाव से जल की कमी को बढ़ावा मिलता है।
  • सामुदायिक भागीदारी और संस्थागत कमज़ोरियाँ:
    • सहभागी भूजल प्रबंधन (PGM) से कुछ क्षेत्रों में समुदायों को सशक्त बनाया गया है लेकिन कमजोर संस्थाओं और आपूर्ति विफलताओं के कारण यह सफलता सीमित हो जाती है।
    • अनौपचारिक भूजल समितियाँ अक्सर परियोजना के पूरा होने के बाद निष्क्रिय हो जाती हैं जिससे दीर्घकालिक रूप से स्थायित्व का अभाव हो जाता है।
  • सब्सिडी और उपयोग:
    • जल पम्पिंग के लिये सब्सिडी वाली विद्युत से अत्यधिक भूजल निष्कर्षण को बढ़ावा मिलता है जिससे भूजल में तेज़ी से कमी आती है।
    • औद्योगिक और घरेलू उपयोग में 34% की वृद्धि हुई है जबकि सिंचाई से संबंधित भूजल की मांग में 36% की गिरावट आई है। 

सतत् भूजल प्रबंधन के लिये रणनीतियाँ क्या हैं?

  • मांग और आपूर्ति को संबोधित करना:
    • आपूर्ति पक्ष: जलग्रहण प्रबंधन और जलभृत पुनर्भरण जैसी पहल महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन इसके लिये पूरक मांग पक्ष उपायों की आवश्यकता है।
    • मांग पक्ष: जल-कुशल सिंचाई (जैसे, ड्रिप प्रणाली) को बढ़ावा देना तथा कम जल-प्रधान फसलों को प्रोत्साहित करना, भूजल संसाधनों पर दबाव को कम कर सकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी:
    • शासन में समुदाय की बढ़ी हुई भागीदारी से स्थिरता में सुधार होता है, जैसा कि परिभाषित जलभृतों (Aquifer) वाले क्षेत्रों में PGM दृष्टिकोण से पता चलता है।
    • प्रभावी प्रबंधन के लिये स्थानीय संस्थाओं को सशक्त बनाना और सामुदायिक स्तर पर क्षमता विकास को समर्थन देना आवश्यक है।
  • विनियामक संवर्द्धन:
    • ब्लॉकों के अतिदोहित चरण तक पहुँचने से पहले स्थानीय स्तर पर व्यापक विनियामक उपाय करने से आगे की कमी को रोका जा सकता है।
    • सतत् भूजल प्रबंधन के लिये जल उपयोगकर्त्ता संघों (WUAs) जैसी संस्थाओं की दीर्घकालिक व्यवहार्यता महत्त्वपूर्ण है।
  • क्रॉस सेक्टोरल सुधार:
    • भूजल के अत्यधिक दोहन के लिये प्रोत्साहन को कम करने वाले क्रॉस सेक्टोरल सुधार, जैसे कि बिजली सब्सिडी में संशोधन, सतत् उपयोग के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • जलवायु-अनुकूल कृषि के लिये समर्थन को पुनःप्रयोजनित करना तथा ऊर्जा नीतियों को जल संरक्षण उद्देश्यों के साथ संरेखित करना संसाधनों के सतत् उपयोग में सहायक हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के भूजल संसाधनों पर शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये तथा उन राज्यों को चिह्नित कीजिये जहाँ भूजल में उल्लेखनीय कमी आई है। संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और शमन के उपाय प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

Q.1 निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता है? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगन
(c) राखीगढ़ी 
(d) रोपड़

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. 'वाटरक्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-सबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020)

प्रश्न 2. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow