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संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस

  • 19 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

 संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस, आर्थिक और सामाजिक परिषद, सारथी

मेन्स के लिये 

भू-स्थानिक सूचनाओं के प्रबंधन और साझाकरण का महत्त्व तथा भारत द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यह घोषणा की गई कि दूसरा संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस (United Nations World Geospatial Information Congress- UNWGIC) का आयोजन वर्ष 2022 में हैदराबाद में किया जाएगा। यह आयोजन भारत के विकसित भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र की एक झलक प्रस्तुत करेगा।

प्रमुख बिंदु 

UNWGIC के विषय में:

  • यह वैश्विक भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन पर विशेषज्ञों की संयुक्त राष्ट्र समिति (UN-GGIM) द्वारा आयोजित किया जाता है। 
  • उद्देश्य: भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन और क्षमताओं में सदस्य राज्यों तथा प्रासंगिक हितधारकों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना।
  • समय-सीमा: इसे प्रत्येक चार वर्ष में आयोजित किया जाता है। इसका पहला आयोजन चीन द्वारा अक्तूबर 2018 में किया गया था।
  • द्वितीय UNWGIC का विषय: 'वैश्विक गाँव को भू-सक्षम बनाना’।

UN-GGIM के विषय में :

  • इसका उद्देश्य वैश्विक भू-स्थानिक सूचना के विकास के लिये एजेंडा निर्धारित करने और प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने हेतु इसके उपयोग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाना है।
    • यह सतत् विकास (Sustainable Development) के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को लागू करने और सबको साथ लेकर चलने के वादे को निभाने की दिशा में काम करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (United Nations Statistics Division) ने वर्ष 2009 में न्यूयॉर्क में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के भू-स्थानिक सूचना विशेषज्ञों के साथ एक अनौपचारिक परामर्शदात्री बैठक बुलाई।
  • वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र सचिवालय से GGIM पर संयुक्त राष्ट्र फोरम के संभावित निर्माण पर विचार सहित भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन के वैश्विक समन्वय पर आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) के अनुमोदन के लिये चर्चा शुरू करने तथा एक रिपोर्ट तैयार करने का अनुरोध किया गया था। 
  • वर्ष 2011 में ECOSOC फोरम वैश्विक भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन पर सियोल घोषणा की स्वीकृति के साथ संपन्न हुआ।

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियांँ:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी शब्द का उपयोग पृथ्वी और मानव समाजों के भौगोलिक मानचित्रण एवं विश्लेषण में योगदान देने वाले आधुनिक उपकरणों की श्रेणी का वर्णन करने हेतु किया जाता है। 
  • प्रागैतिहासिक काल में पहले नक्शे तैयार किये जाने के बाद से ये प्रौद्योगिकियांँ किसी- न-किसी रूप में विकसित हो रही हैं।
  • द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) और शीत युद्ध (1945-1989) के दौरान फोटोग्राफिक व्याख्या करने और मानचित्रण हेतु विज्ञान एवं कला में तेज़ी आई तथा  उपग्रहों एवं कंप्यूटरों के आगमन के साथ इन प्रौद्योगिकियों ने नए आयाम ग्रहण किये।
  • मोटे तौर पर इसमें निम्नलिखित प्रौद्योगिकियांँ शामिल हैं:
    • रिमोट सेंसिंग: यह अंतरिक्ष या एयरबोर्न कैमरा और सेंसर प्लेटफॉर्म से एकत्र की गई इमेज और डेटा है।
    • भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS): जीआईएस पृथ्वी की सतह पर स्थित संबंधित डेटा को कैप्चर करने, स्टोर करने, जांँचने और प्रदर्शित करने के लिये  एक कंप्यूटर सिस्टम है।
    • ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS): यह किसी भी उपग्रह समूह का वर्णन करने वाला एक सामान्य शब्द है जो वैश्विक या क्षेत्रीय आधार पर पोज़िशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) सेवाएंँ प्रदान करता है।
    • 3डी स्कैनिंग: यह किसी वास्तविक वस्तु या पर्यावरण का विश्लेषण करने की प्रक्रिया है, ताकि इसके आकार और संभवतः इसके स्वरूप पर डेटा एकत्र किया जा सके।

भारत की भू-स्थानिक नीति:

  • हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने  भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र के लिये नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • सूचना प्रसार नीति इस क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र के रूप में उदार बनाती है। नई नीति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
    • ओपन एक्सेस:
      • संवेदनशील रक्षा या सुरक्षा संबंधी डेटा को छोड़कर, सभी भारतीय संस्थाओं के लिये मानचित्रों सहित इसके भू-स्थानिक डेटा और सेवाओं तक आसान पहुंँच।
      • यह शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के लाभों की परिकल्पना करता है और भू-स्थानिक जानकारी को सभी के लिये  सुलभ बनाता है। 
      • उदाहरण के लिये स्वामित्व योजना ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाने का प्रयास करती है जिसके माध्यम से ग्रामीण भूस्वामियों को डिजिटल जोत का प्रमाण-पत्र दिया जा रहा है।
    • प्रतिबंध हटाना:
      • भारतीय निगम और नवप्रवर्तक अब प्रतिबंधों के अधीन नहीं हैं और न ही उन्हें भारत के क्षेत्र के भीतर डिजिटल भू-स्थानिक डेटा तथा मानचित्रों को एकत्र करने, तैयार करने, प्रसारित करने, संग्रहीत करने, प्रकाशित करने, अद्यतन करने से पहले पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
    • अन्य हालिया पहलें: केंद्र सरकार ने भू-स्थानिक डेटा की जानकारी को साझा करने के लिये वेब पोर्टल भी लॉन्च किये हैं।
      • सारथी (Sarthi) : भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने सारथी नामक एक वेब भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) विकसित की है। यह उपयोगकर्त्ताओं को अंतिम रूप से अत्यधिक संसाधन के बिना भू-स्थानिक डेटा का विजुअलाइज़ेशन, परिवर्तन और विश्लेषण के लिये एप्लीकेशन बनाने में मदद करेगी।
      • ऑनलाइन मैप्स पोर्टल : सर्वे ऑफ इंडिया के ऑनलाइन मैप्स पोर्टल में राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और तहसील स्तर के डेटा के साथ 4,000 से अधिक मानचित्न/नक्शे हैं जिन्हें अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिये अनुक्रमित किया गया है।
      • मानचित्रण (Manchitran) : नेशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइज़ेशन (NATMO) ने इस पोर्टल पर भारत के सांस्कृतिक मानचित्र, जलवायु मानचित्र या आर्थिक मानचित्र जैसे विषयगत मानचित्र जारी किये हैं।
        • NATMO, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक अधीनस्थ विभाग के रूप में कार्य कर रहा है, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है।
      • भुवन (Bhuvan),  इसरो द्वारा विकसित एवं संचालित एक प्रकार का राष्ट्रीय वेब पोर्टल है, जिसका उपयोग इंटरनेट के माध्यम से भौगोलिक जानकारी (भू-स्थानिक जानकारी) और अन्य संबंधित भौगोलिक सेवाओं (प्रदर्शन, संपादन, विश्लेषण आदि) को खोजने और उनका उपयोग करने के लिये किया जाता है। 
      • एसोसिएशन ऑफ जियोस्पेशियल इंडस्ट्रीज़ ने "भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की क्षमता" (Potential of Geospatial Technologies for the Water Sector in India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। 

स्रोत : पीआईबी

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