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जैव विविधता और पर्यावरण

UNEP उत्पादन अंतराल रिपोर्ट

  • 21 Oct 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन अंतराल रिपोर्ट 

मेन्स के लिये:

ग्रीन हाउस गैस के कारण और प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रमुख शोध संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा वर्ष 2021 के लिये उत्पादन अंतराल रिपोर्ट जारी की गई।

The-Production-Gap

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट का निष्कर्ष:
    • उत्पादन अंतराल में वृद्धि:
      • जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में उत्पादन अंतराल कोयले के परिप्रेक्ष्य में सबसे अधिक है क्योंकि सरकारों द्वारा उत्पादन योजनाओं और अनुमानित वैश्विक स्तर की तुलना में वर्ष 2030 में लगभग 240% अधिक कोयला, 57% अधिक तेल और 71% अधिक गैस का प्रयोग होगा जो भारत के एनडीसी लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस के प्रतिकूल है। 
      • सबसे चिंताजनक बात यह है कि लगभग सभी प्रमुख कोयला, तेल और गैस उत्पादक कम-से-कम वर्ष 2030 या उससे आगे तक अपना उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
    • कोविड-19 के प्रभाव:
      • नोवेल कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) के ठीक होने के बाद के चरण में स्वच्छ ऊर्जा की तुलना में जीवाश्म ईंधन की ओर पूंजी प्रवाह में वृद्धि से उत्पादन अंतर को बढ़ावा मिला है।
        • 20 देशों के समूह (G20) ने महामारी की शुरुआत के बाद से जीवाश्म ईंधन के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किया है और इन देशों में यह क्षेत्र अभी भी महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त कर रहा है।
  • भारत की स्थिति:
    • वर्ष 2016 में जारी भारत के पहले एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) ने 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की "उत्सर्जन तीव्रता" में 33%-35% की कमी का वादा किया।
    • रिपोर्ट में कोयला उत्पादन बढ़ाने की भारत की योजनाओं पर प्रकाश डालने के लिये भारत सरकार की वर्ष  2020 की प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया गया है।
      • सरकार द्वारा वर्ष 2023-24 तक परिकल्पित महत्त्वाकांक्षी आर्थिक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कोयले को ऊर्जा के रूप में प्रयोग करने पर ज़ोर दिया जा रहा है जो 2030 तक लक्षित एनडीसी के आदर्शवादी दृष्टिकोण से भिन्न है।
      • भारत वर्ष 2019 के 730 मिलियन टन से वर्ष 2024 में 1,149 मिलियन टन कोयला उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहा है।
    • भारत का लक्ष्य त्वरित अन्वेषण लाइसेंसिंग, अन्वेषण और गैस विपणन सुधारों जैसे उपायों के माध्यम से इसी अवधि में कुल तेल और गैस उत्पादन में 40% से अधिक की वृद्धि करना है। 
  • सुझाव:
    • जीवाश्म ईंधन के उत्पादन के लिये विकास वित्त संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीयन में कटौती के शुरुआती प्रयास उत्साहजनक हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये ठोस और महत्त्वाकांक्षी जीवाश्म ईंधन बहिष्करण नीतियों द्वारा इन परिवर्तनों का पालन करने की आवश्यकता है।
    • जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों को उत्पादन को बंद करने और दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु भविष्य की ओर ले जाने में अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये।
    • जैसे-जैसे देश मध्य शताब्दी तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिये तेज़ी से प्रतिबद्ध होंगे वैसे ही जीवाश्म ईंधन उत्पादन में तेज़ी से कमी लाने की आवश्यकता होती है, जिसके लिये नवीन जलवायु लक्ष्यों की आवश्यकता होगी।

जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने के लिये भारत द्वारा किये गए उपाय

  • भारत ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्यक्रम: भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने और प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग के नेतृत्व वाला स्वैच्छिक ढाँचा है। 
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य जनप्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के मध्य जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये जागरूकता पैदा करना है।
  • भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत द्वारा भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों को अपना लिया गया है।
  • अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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