भारत में बेरोज़गारी | 13 Mar 2024
प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO), कोविड-19 महामारी, श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर मेन्स के लिये:भारत में बेरोज़गारी तथा इसे संबंधित प्रमुख मुद्दे |
स्रोत: MOSPI
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत की बेरोज़गारी दर में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई, जो विगत तीन वर्षों में सबसे कम है।
- PLFS प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों, जैसे– श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR), बेरोज़गारी दर (UR) आदि तथा गतिविधियों की स्थिति- 'सामान्य स्थिति' और 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' व 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' का आकलन प्रदान करता है।
नोट:
- श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR): इसे जनसंख्या में श्रम बल (यानी काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध) व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio- WPR): WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate- UR): UR को श्रम बल में शामिल व्यक्तियों के बीच बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- गतिविधि स्थिति- सामान्य गतिविधि स्थिति (CWS): किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
- जब गतिविधि की स्थिति सर्वेक्षण की तारीख से पिछले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है, तो इसे व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति के रूप में जाना जाता है।
- गतिविधि स्थिति- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तिथि से पहले पिछले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि स्थिति को व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) के रूप में जाना जाता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- भारत की बेरोज़गारी दर:
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये भारत की बेरोज़गारी दर वर्ष 2023 में घटकर 3.1% के स्तर पर पहुँच गई, जो कि पिछले तीन वर्षों में न्यूनतम है।
- बेरोज़गारी की दर वर्ष 2022 में 3.6% तथा वर्ष 2021 में 4.2% थी।
- वर्ष 2023 में महिलाओं के बीच बेरोज़गारी दर घटकर 3% हो गई है जो कि वर्ष 2022 में 3.3% और वर्ष 2021 में 3.4% थी।
- इसी प्रकार, पुरुषों के लिये यह दर वर्ष 2023 में घटकर 3.2% पर पहुँच गई जबकि वर्ष 2022 में यह 3.7% और वर्ष 2021 में 4.5% थी।
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये भारत की बेरोज़गारी दर वर्ष 2023 में घटकर 3.1% के स्तर पर पहुँच गई, जो कि पिछले तीन वर्षों में न्यूनतम है।
- रोज़गार परिदृश्य में सुधार:
- कोविड-19 महामारी के प्रभाव के बाद केंद्र और राज्यों द्वारा लॉकडाउन हटाए जाने से आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है तथा रोज़गार परिदृश्य में सुधार हुआ है।
- शहरी और ग्रामीण बेरोज़गारी:
- वर्ष 2023 में शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी की दर घटकर 5.2% तक पहुँच गई जो कि वर्ष 2022 में 5.9% और वर्ष 2021 में 6.5% थी। जबकि, ग्रामीण बेरोज़गारी जो कि वर्ष 2022 में 2.8% तथा वर्ष 2021 में 3.3% थी, वर्ष 2023 में घटकर 2.4% हो गई।
- शहरी क्षेत्रों में 15 और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में LFPR वर्ष 2023 में बढ़कर 56.2% तक पहुँच गया, जो कि वर्ष 2022 में 52.8% और वर्ष 2021 में 51.8 प्रतिशत था।
- आर्थिक वृद्धि:
- रोज़गार संबंधी ये सकारात्मक आँकड़े हाल की उन रिपोर्टों के बाद सामने आए हैं जिनमें कहा गया है कि वर्ष 2023-24 की तीसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि 8.4 प्रतिशत हो गई है।
- NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण, खनन और खदान एवं निर्माण जैसे क्षेत्रों ने इस वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- NSO के दूसरे अग्रिम अनुमान, वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये समग्र रूप से भारत की वृद्धि दर 7.6% होने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो जनवरी 2024 में जारी 7.3% के प्रारंभिक पूर्वानुमान से ऊपर है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय:
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय शहरी क्षेत्रों के लिये त्रैमासिक अनुमानों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों हेतु रोज़गार एवं बेरोज़गारी संबंधी विशेषताओं के वार्षिक आँकड़े तैयार करने के उद्देश्य से PLFS का संचालन करता है।
- जुलाई 2017 से जून 2018 के दौरान PLFS में एकत्र आँकड़ों पर आधारित पहली वार्षिक रिपोर्ट मई 2019 में प्रकाशित की गई थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय शहरी क्षेत्रों के लिये त्रैमासिक अनुमानों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों हेतु रोज़गार एवं बेरोज़गारी संबंधी विशेषताओं के वार्षिक आँकड़े तैयार करने के उद्देश्य से PLFS का संचालन करता है।
- PLFS के उद्देश्य:
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति तथा CWS, दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
बेरोज़गारी क्या है?
- परिचय:
- बेरोज़गारी उस स्थिति को संदर्भित करती है जहाँ काम करने में सक्षम व्यक्ति सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश कर रहे हैं लेकिन उपयुक्त नौकरियाँ प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
- बेरोज़गार व्यक्ति वह है जो श्रम शक्ति का हिस्सा है और साथ ही उसके पास अपेक्षित कौशल भी होता है लेकिन वर्तमान में उसके पास लाभकारी रोज़गार का अभाव है।
- मूल रूप से एक बेरोज़गार व्यक्ति वह होता है जो काम करने में सक्षमता के साथ-साथ काम करने का इच्छुक भी होता है और सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश में होता है।
- बेरोज़गारी का मापन:
- देश में बेरोज़गारी की गणना आमतौर पर सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
- बेरोज़गारी दर = [बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल] x 100
- यहाँ, 'कुल श्रम शक्ति' में नियोजित व्यक्तियों के साथ-साथ बेरोज़गार भी शामिल हैं। जो लोग न तो नियोजित हैं और न ही बेरोज़गार हैं, उदाहरण के लिये– छात्र, उन्हें श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं माना जाता है।
- बेरोज़गारी दर = [बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल] x 100
- देश में बेरोज़गारी की गणना आमतौर पर सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
- बेरोज़गारी के प्रकार:
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: कार्यबल के पास मौजूद कौशल एवं उपलब्ध पदों की आवश्यकताओं के बीच के अंतराल में निहित बेरोज़गारी का यह रूप श्रम बाज़ार के प्रणालीगत मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
- चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है, जो व्यापक आर्थिक स्थितियों के लिये नौकरी की उपलब्धता की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
- घर्षणात्मक बेरोज़गारी/संक्रमणकालीन बेरोज़गारी: इसे संक्रमणकालीन बेरोज़गारी भी कहा जाता है, जो नौकरियों के बीच प्राकृतिक संक्रमण से उत्पन्न होती है, यह प्रकार उस अस्थायी अवधि को दर्शाता है जो व्यक्ति नए रोज़गार के अवसरों की तलाश में व्यतीत होते हैं।
- अल्परोज़गार: अल्परोज़गारी, हालाँकि पूर्ण बेरोज़गारी नहीं है, यह अवधारणा उन पदों पर कार्यरत व्यक्तियों से संबंधित है जो अपने कौशल का कम उपयोग करते हैं या अपर्याप्त कार्य घंटे प्रदान करते हैं, जिससे आर्थिक अक्षमता की भावना उत्पन्न होती है।
- छिपी हुई बेरोज़गारी: ऐसे व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो निराशा अथवा अन्य कारकों के कारण सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश नहीं कर रहे हैं, लेकिन स्थिति में सुधार होने पर संभावित रूप से नौकरी बाज़ार में प्रवेश कर सकते हैं।
- प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह इसलिये उत्पन्न होती है क्योंकि कारखाने में अथवा भूमि पर आवश्यकता से अधिक मज़दूर काम करते हैं। अतः श्रम की प्रति इकाई उत्पादकता कम होगी।
भारत में बेरोज़गारी के प्रमुख कारण क्या हैं?
- जनसंख्या का आकार:
- भारत की अधिक जनसंख्या रोज़गार के अवसरों के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाती है, जिससे नौकरी बाज़ार पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
- इस जनसांख्यिकीय चुनौती से निपटने हेतु आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- प्रतिकूल कौशल:
- एक प्रमुख कारण, जहाँ कार्यबल के पास मौजूद कौशल नौकरी बाज़ार की उभरती मांगों के अनुरूप नहीं हो सकते हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिये शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाने पर केंद्रित पहल की आवश्यकता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र की गतिशीलता:
- अनौपचारिक क्षेत्र की व्यापकता बेरोज़गारी पर नज़र रखने और उसका समाधान करने में जटिलताएँ उत्पन्न करती है। इस क्षेत्र को औपचारिक बनाने के साथ विनियमित करने के प्रयास रोज़गार स्थितियों के अधिक सटीक प्रतिनिधित्व करने में योगदान कर सकते हैं।
- नीति क्रियान्वयन में चुनौतियाँ:
- सकारात्मक नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे रोज़गार सृजित करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। नीति कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करने के साथ ही आधारभूत वास्तविकता के साथ तालमेल सुनिश्चित करना अत्यावश्यक है।
- वैश्विक आर्थिक कारक:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभाव, जैसे व्यापार गतिशीलता एवं भू-राजनीतिक बदलाव तथा भारत के रोज़गार परिदृश्य को प्रभावित कर सकते हैं। बाह्य कारकों के प्रति आर्थिक लचीलापन बढ़ाने वाली नीतियाों के निर्माण की आवश्यकता है।
रोज़गार से जुड़ी सरकार की पहल क्या हैं?
आगे की राह
- प्रासंगिक कौशल प्रदान करने हेतु पाठ्यक्रम को अद्यतन करते हुए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ज़ोर देकर एवं रोज़गार क्षमता बढ़ाने हेतु आजीवन सीखने को बढ़ावा देकर शिक्षा को वर्तमान बाज़ार की मांगों के साथ संरेखित करना।
- वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके, नौकरशाही बाधाओं को कम करके तथा उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रमों को प्रस्तुत करके स्टार्टअप के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना।
- ऐसी नीतियाँ बनाना और लागू करना जो रोज़गार सृजन को बढ़ावा दें, जिसमें बुनियादी ढाँचे में निवेश, उद्योग-अनुकूल नियम के साथ-साथ रोज़गार सृजित करने वाले व्यवसायों हेतु वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर:(c) मेन्स:प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |