यूनाइटेड किंगडम की उत्तरी सागर में ड्रिलिंग | 23 Aug 2023
प्रिलिम्स के लिये:यूनाइटेड किंगडम की उत्तरी सागर ड्रिलिंग उत्तरी सागर, 1958 जिनेवा कन्वेंशन, ब्रिटेन की संसद का 1964 का महाद्वीपीय शेल्फ अधिनियम, नेट-शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:यूनाइटेड किंगडम की उत्तरी सागर ड्रिलिंग और इसकी पर्यावरणीय चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में UK के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ाने के उद्देश्य से उत्तरी सागर में ब्रिटिश तट पर अतिरिक्त जीवाश्म ईंधन ड्रिलिंग की योजना का समर्थन किया है, यह जलवायु लक्ष्यों के प्रति UK की प्रतिबद्धता के विपरीत है।
- ड्रिलिंग के लिये उद्योगों को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार उत्तरी सागर संक्रमण प्राधिकरण (NTSA) 33वें अपतटीय तेल और गैस लाइसेंसिंग दौर की देखरेख कर रहा है।
उत्तरी सागर ड्रिलिंग का उद्भव:
- उत्तरी सागर के बारे में:
- उत्तरी सागर उत्तर पश्चिमी यूरोप में स्थित है। इसकी सीमा कई देशों से लगती है, जिनमें पूर्व और उत्तर में नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, नीदरलैंड एवं बेल्जियम तथा यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं।
- यह डोवर जलसंधि और इंग्लिश चैनल द्वारा अटलांटिक से जुड़ा हुआ है, साथ ही ऑर्कनी तथा शेटलैंड द्वीपों व शेटलैंड द्वीपों एवं नॉर्वे के मध्य सीधा महासागर में मिलता है।
- प्रष्ठभूमि
- महाद्वीपीय जलमग्न सीमा पर 1958 का जिनेवा कन्वेंशन पहला अंतर्राष्ट्रीय कानून था जिसने समुद्र तट से सटे महाद्वीपीय सीमा पर देशों के अधिकारों को स्थापित किया और उत्तरी सागर में अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त किया।
- UK की संसद के महाद्वीपीय जलमग्न सीमा अधिनियम,1964 ने अपने तटों के समीप समुद्र तल के नीचे तेल और गैस संसाधनों पर देश के अधिकार क्षेत्र को मज़बूत किया।
- ब्रिटिश पेट्रोलियम (BP) ने 1964 में UK के उत्तरी सागर में पहला अन्वेषण लाइसेंस हासिल किया, जिससे अगले वर्ष प्राकृतिक गैस की खोज हुई।
- हालाँकि ड्रिलिंग कार्यों को असफलताओं का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से 1965 में बीपी-संचालित सी जेम ड्रिलिंग रिग का ढहना।
- इसके बाद 1970 में स्कॉटलैंड के एबरडीन के पूर्व में फोर्टीज़ फील्ड में वाणिज्यिक तेल की खोज की गई और उत्तरी सागर में अगले दशकों में विभिन्न कंपनियों के अन्वेषण प्रयासों में वृद्धि देखी गई।
- यूनाइटेड किंगडम की वर्तमान आवश्यकता:
- यूनाइटेड किंगडम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (Net-Zero Emissions) हासिल करने के बाद भी यूनाइटेड किंगडम की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, लगभग एक-चौथाई अब भी तेल और गैस पर निर्भर रहेगा।
- यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रपति ने तर्क दिया कि अन्य देशों के संभावित अविश्वसनीय स्रोतों पर निर्भर रहने के बजाय घरेलू आपूर्ति का उपयोग करके इन आवश्यकताओं को पूरा करना बेहतर है।
- वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की यूनाइटेड किंगडम की प्रतिबद्धता के बावजूद जलवायु लक्ष्यों के पालन को लेकर चिंताएँ जताई जा रही हैं।
- जलवायु परिवर्तन समिति (Climate Change Committee- CCC) ने अपनी मार्च 2023 की प्रगति रिपोर्ट में बताया कि ब्रिटेन ने दूसरे राष्ट्रीय अनुकूलन कार्यक्रम (National Adaptation Programme) के तहत जलवायु परिवर्तन के लिये पर्याप्त तैयारी नहीं की है।
अपतटीय ड्रिलिंग (Offshore Drilling) से जुड़ी पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
- तेल का रिसाव:
- अपतटीय ड्रिलिंग कार्यों से तेल रिसाव (Oil Spills) का खतरा रहता है, जिसका समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तथा वन्य जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। रिसाव हुए तेल से पक्षियों, समुद्री स्तनधारियों तथा मछलियों का दम घुट सकता है, उनमें इन्सुलेशन की कमी हो सकती है और भोजन खोजने की उनकी क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी:
- ड्रिलिंग प्लेटफाॅर्मों, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी ढाँचे की भौतिक उपस्थिति समुद्री आवासों को प्रभावित कर सकती है।
- ड्रिलिंग कार्यों से होने वाला शोर और कंपन, समुद्री जीवों के नेविगेशन तथा प्रजनन पैटर्न को प्रभावित करके समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचा सकता है।
- जैवविविधता पर प्रभाव:
- ड्रिलिंग संरचनाओं का निर्माण जल के नीचे के आवासों, जैसे- प्रवाल भित्तियों और तलीय समुद्री घास को नुकसान पहुँचा सकता है, ये समुद्री प्रजातियों के लिये प्रमुख प्रजनन स्थल के रूप में काम करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन:
- अपतटीय ड्रिलिंग से प्राप्त जीवाश्म ईंधन को निकालने और जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है, यह अंततः वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में वृद्धि करता है।
- अपतटीय ड्रिलिंग से महासागर भी गर्म होते हैं, जिससे समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है और समुद्री धाराओं में व्यवधान उत्पन्न होता है।
- संसाधनों का क्षरण:
- गहन अपतटीय ड्रिलिंग से तेल और गैस भंडार खत्म हो सकते हैं, जिससे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में इन संसाधनों के नए क्षेत्रों का पता लगाने का दबाव बढ़ जाएगा।
- अम्लीकरण:
- महासागर जीवाश्म ईंधन को जलाने से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा अवशोषित कर लेते हैं, जिससे समुद्र का अम्लीकरण हो जाता है। यह अम्लीकरण समुद्री जीवन विशेष रूप से कैल्शियम कार्बोनेट शैल अथवा कंकाल वाले जीवों, जैसे- प्रवाल भित्तियाँ और शैलफिश को नुकसान पहुँचाता है।