भारत में जनजातीय स्वास्थ्य की स्थिति | 25 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय समुदाय, अनुच्छेद 342, जनजातीय स्वास्थ्य मेन्स के लिये:आदिवासी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ, बुनियादी ढाँचे का प्रभाव और स्वास्थ्य सेवा की पहुँच पर कार्यबल की कमी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में जनजातीय समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भारत की उल्लेखनीय उपलब्धियों, जैसे कि विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना एवं वैश्विक टीकाकरण अभियान में इसके योगदान के बावजूद जनजातीय समुदाय स्वास्थ्य देखभाल में गंभीर असमानताकी स्थिति का अनुभव कर रहे हैं।
- जैसा कि भारत India@75 पर अपनी उपलब्धियों का जश्न मना रहा है, जनजातीय समुदायों हेतु तत्काल समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
भारत में जनजातीय समुदायों की स्थिति:
- जनसांख्यिकी स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदाय देश की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो लगभग 8.9% है।
- कुल अनुसूचित जनजाति आबादी में से लगभग 2.6 मिलियन (2.5%) "विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों" (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTG) से संबंधित हैं, जिन्हें "आदिम जनजाति" के रूप में जाना जाता है, जो सभी अनुसूचित जनजाति समुदायों में सबसे अधिक वंचित हैं।
- वे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पूर्वोत्तर राज्यों एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उच्च संकेंद्रण के साथ विभिन्न राज्यों में फैले हुए हैं।
- भारत में जनजातीय समुदाय देश की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो लगभग 8.9% है।
- सांस्कृतिक स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदायों की अपनी समृद्ध और विविध संस्कृति, भाषा और परंपराएँ हैं।
- उनका प्रकृति के साथ सहजीवी संबंध है और वे अपनी आजीविका हेतु वनों एवं पहाड़ियों पर निर्भर हैं।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, धर्म और शासन के संबंध में उनकी अपनी मान्यताएँ, प्रथाएँ एवं प्राथमिकताएँ हैं।
- संबंधित संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान:
- भारत में कुछ जनजातीय समुदायों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- वे अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक विकास के लिये विशेष प्रावधानों एवं सुरक्षा उपायों के हकदार हैं।
- उनके हितों को विभिन्न कानूनों एवं नीतियों जैसे- 5वें और छठे अनुसूचित क्षेत्रों, वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा अधिनियम 1996 द्वारा सुरक्षित किया जाता है।
- आरक्षित सीटों के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं में भी उनका प्रतिनिधित्व है।
- द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं।
- भारत में कुछ जनजातीय समुदायों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- विकासात्मक स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदाय गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य, रोज़गार, आधारभूत ढाँचे और मानवाधिकारों के मामले में कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
- वे आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और लैंगिक समानता जैसे मानव विकास के विभिन्न संकेतकों पर राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं।
- उन्हें गैर-जनजातीय लोगों तथा संस्थानों से भेदभाव, शोषण, विस्थापन और हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। उनके पास अपने सशक्तीकरण तथा भागीदारी के लिये संसाधनों एवं अवसरों तक सीमित पहुँच है।
- भारत में जनजातीय समुदाय गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य, रोज़गार, आधारभूत ढाँचे और मानवाधिकारों के मामले में कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
प्रमुख जनजातीय स्वास्थ्य मुद्दे:
- कुपोषण:
- जनजातीय लोगों को स्वस्थ रहने के लिये पर्याप्त या उपयुक्त भोजन नहीं मिलता है। वे भुखमरी, स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कद का कम होना), वेस्टिंग (कद के अनुपात में वज़न का कम होना), एनीमिया तथा विटामिन एवं खनिजों की कमी से पीड़ित हैं।
- संचारी रोग:
- गैर - संचारी रोग:
- जनजातीय लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियाँ होने का भी खतरा है।
- एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 13% जनजातीय वयस्क मधुमेह से और 25% उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं।
- जनजातीय लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियाँ होने का भी खतरा है।
- व्यसन:
- उपर्युक्त रोग तंबाकू के उपयोग, शराब के सेवन तथा मादक द्रव्यों के सेवन जैसे कारकों के कारण होते हैं।
- 15-54 वर्ष आयु वर्ग के जनजातीय पुरुषों में 72% से अधिक तंबाकू तथा 50% से अधिक शराब का सेवन करते हैं, जबकि गैर-जनजातीय पुरुषों में क्रमशः 56% तथा 30% तंबाकू और शराब का सेवन करते हैं।
जनजातीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये चुनौतियाँ:
- आधारभूत संरचना का अभाव:
- जनजातीय क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ और आधारभूत संरचना का अभाव।
- स्वच्छ जल और स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच।
- चिकित्सा पेशेवरों की कमी:
- जनजातीय क्षेत्रों में डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य पेशेवरों की सीमित उपस्थिति।
- दूरस्थ क्षेत्रों में कुशल स्वास्थ्य कर्मियों को आकर्षित करने और उनको बनाए रखने में कठिनाई।
- शहरी क्षेत्रों में संकेंद्रण के साथ स्वास्थ्य पेशेवरों के वितरण में असंतुलन।
- संयोजकता और भौगोलिक अवरोध:
- दूरस्थ स्थान और दुर्गम क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंँच में अवरोध हैं।
- उचित सड़कों, परिवहन सुविधाओं और संचार नेटवर्क का अभाव।
- आपातस्थिति के दौरान जनजातीय समुदायों तक पहुँचने और समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करने में चुनौतियाँ।
- सामर्थ्य और वित्तीय अवरोध:
- जनजातीय समुदायों के पास सीमित वित्तीय संसाधन और निम्न-आय स्तर।
- चिकित्सीय उपचार, औषधि और निदान सहित स्वास्थ्य देखभाल व्यय को वहन करने में असमर्थता।
- उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं और बीमा विकल्पों के बारे में जागरूकता का अभाव।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भाषा अवरोध:
- अद्वितीय सांस्कृतिक प्रथाएंँ और मान्यताएंँ जो स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और आदिवासी समुदायों के मध्य भाषा की बाधाएँ, गलत संचार तथा अपर्याप्त देखभाल प्राथमिक रूप में विद्यमान हैं।
- सांस्कृतिक रूप से जनजातीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का सम्मान करने वाली संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव।
- आवश्यक सेवाओं तक सीमित पहुँच:
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण और निवारक देखभाल जैसी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्त उपलब्धता।
- विशिष्ट देखभाल, नैदानिक सुविधाओं और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच।
- जनजातीय समुदायों के बीच स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, निवारक उपायों और स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों के बारे में सीमित जागरूकता का होना।
- अपर्याप्त वित्तपोषण तथा संसाधनों का आवंटन:
- जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के लिये सीमित धनराशि का आवंटन।
- स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांँचे, उपकरण और प्रौद्योगिकी में अपर्याप्त निवेश।
- जनजातीय स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने और लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करने के लिये समर्पित धन की कमी का होना।
जनजातीय स्वास्थ्य पर भारत सरकार की रिपोर्ट:
- वर्ष 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से गठित एक विशेषज्ञ समिति ने भारत में जनजातीय स्वास्थ्य पर पहली व्यापक रिपोर्ट जारी की।
- रिपोर्ट की सिफारिशें:
- जनजातीय क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के तहत यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस को लागू करना।
- ग्राम सभा के समर्थन से आदिवासी समुदायों में प्राथमिक देखभाल हेतु आरोग्य मित्र, प्रशिक्षित स्थानीय आदिवासी युवाओं और आशा कार्यकर्ताओं का उपयोग करना।
- माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के लिये सरकारी चिकित्सा बीमा योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना।
- अनुसूचित क्षेत्रों से बाहर रहने वाले जनजातीय लोगों के लिये जनजाति स्वास्थ्य कार्ड की शुरुआत करना ताकि किसी भी स्वास्थ्य सेवा संस्थान में लाभ प्राप्त करना आसान हो सके।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जनजातीय बहुल ज़िलों में जनजातीय मलेरिया कार्य योजना लागू करना।
- शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करने के लिये गृह-आधारित नवजात शिशु और बाल देखभाल (HBNCC) कार्यक्रमों को सुदृढ़ करना।
- कुपोषण को दूर करने के लिये खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना और एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) को सुदृढ़ करना।
- प्रत्येक तीन वर्ष में जनजातीय स्वास्थ्य रिपोर्ट प्रकाशित करना और जनजातीय स्वास्थ्य की निगरानी हेतु एक जनजातीय स्वास्थ्य सूचकांक (THI) स्थापित करना।
- केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर जनजातीय स्वास्थ्य निदेशालय तथा जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान सेल के साथ एक शीर्ष निकाय के रूप में राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य परिषद की स्थापना करना।
आगे की राह
- आदिवासी आबादी के बीच स्वस्थ रहने की इच्छा और स्वास्थ्य देखभाल वितरण में असमानता को संबोधित करना चाहिये।
- आदिवासी समुदायों को पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को पहचानना और स्वीकार करना चाहिये।
- स्वास्थ्य साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना ताकि वे अपने स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।
- जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों को आकर्षित करने के लिये लक्षित भर्ती और प्रतिधारण रणनीतियों को लागू करना। कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये सड़क नेटवर्क, परिवहन सुविधाओं और संचार नेटवर्क के विकास में निवेश करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रत्येक वर्ष कतिपय विशिष्ट समुदाय/जनजाति, पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण, मास भर चलने वाले अभियान/त्योहार के दौरान फलदार वृक्षों की पौध का रोपण करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-से ऐसे समुदाय/जनजातियाँ हैं? (2014) (a) भूटिया और लेप्चा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के उपबंध निम्नलिखित में से किसलिये किये गए हैं। (2015) (a) अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के लिये उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के अधीन जनजातीय भूमि का, खनन के लिये निजी पक्षकारों को अंतरण को अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022) (a) इससे आदिवासी लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |