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जैव विविधता और पर्यावरण

कोशिकीय विषाक्तता में अतिसूक्ष्म प्रदूषक कणों की भूमिका

  • 13 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक, पार्टिकुलेट मैटर

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण के मानवीय कारक, वायु प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में मानव फेफड़ों की कोशिकाओं में ‘कोशिकीय विषाक्तता’ (Cytotoxicity) की वृद्धि के लिये वायु में उपस्थित अतिसूक्ष्म कणों (Ultrafine Particles) को उत्तरदायी बताया गया है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • इस अध्ययन के लिये जनवरी-दिसंबर 2017 के दौरान IIT, Delhi में स्थापित एक ‘कैसकेड इंपैक्टर मेज़र्मेंट डिवाइस’ (Cascade Impactor Measurement Device) के माध्यम से प्रत्येक माह 6 बार डेटा इकट्ठा किया गया।
  • इस अध्ययन के दौरान वायु में उपस्थित पाँच कणों (2.5, 1, 0.5, 0.25 माइक्रोमीटर और 0.25 माइक्रोमीटर से कम) को फिल्टर के माध्यम से एकत्र किया गया। 
  • अध्ययन के परिणाम के आधार पर विशेषज्ञों ने वायु में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की नियमित निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

अध्ययन का परिणाम: 

  • इस अध्ययन के अनुसार, दिल्ली की वायु में वर्ष भर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (Particulate Matter or PM2.5) में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा अन्य प्रदूषक कणों की तुलना में अधिक पाई गई।
    • अध्ययन के दौरान पाया गया कि मानसून के बाद के समय में PM 2.5 के स्तर में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा 40% से अधिक और मार्च से मई के बीच सर्दियों तथा मानसून से पहले की अवधि के दौरान इनकी मात्रा 30% से अधिक रही। 
    • जबकि जून से सितंबर के बीच मानसून के दौरान PM 2.5 के स्तर में 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों की मात्रा 50% से अधिक पाई गई।
  • मानसून के बाद अक्तूबर से दिसंबर के बीच और सर्दियों (जनवरी-फरवरी) के समय 2.5µm , 1.0µm, 0.5µm और <0.25µm तक के आकार के पार्टिकुलेट मैटर (PM) के कणों की संचयी औसत द्रव्यमान सांद्रता का मान सर्वाधिक पाया गया।

कारण:

  • अध्ययन के अनुसार, मानसून के बाद और सर्दियों में दिल्ली की वायु में पार्टिकुलेट मैटर के उच्च स्तर का एक बड़ा कारण दिवाली के दौरान होने वाली आतिशबाजी और हरियाणा तथा पंजाब जैसे पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा पराली का जलाया जाना है।
  • साथ ही सर्दियों में रात के समय कम तापमान और उच्च आर्द्रता ‘कोहरा-धुंध-कोहरा’ (Fog-Smog-Fog) चक्र में वृद्धि करता है, जिससे पूर्व-मानसून और दक्षिण-पश्चिम मानसून काल की तुलना में इस अवधि के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (PM) की सांद्रता में 2-3 गुना वृद्धि होती है। 

कोशिकीय विषाक्तता में वृद्धि: 

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे अतिसूक्ष्मकणों के संपर्क में आने से (दूसरे आकार के कणों की तुलना में) कोशिकीय विषाक्तता के मामलों में दोगुनी वृद्धि देखी गई।
    • इस अध्ययन के दौरान सबसे अधिक विषाक्तता जनवरी-फरवरी 2017 के बीच देखी गई।

चुनौतियाँ:

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, PM 2.5 के स्तर और 0.25 माइक्रोमीटर से छोटे कणों (PM<0.25) के स्तर में कोई संबंध नहीं है। अर्थात् PM 2.5 के स्तर में गिरावट को PM <0.25 के स्तर में कमी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
  • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standard) में PM2.5 के लिये एक सीमा निर्धारित की गई है (24 घंटे के लिये 60 µg/m3 और वार्षिक रूप से 40 µg/m3), जबकि इसके तहत अतिसूक्ष्म कणों के संदर्भ में कोई विशिष्ट नीति नहीं शामिल की गई है।

आगे की राह: 

  • इस अध्ययन के माध्यम से मानव स्वास्थ्य पर PM 0.25 के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को बढ़ावा दिये जाने के साथ-साथ PM 0.25 और ऐसे ही अन्य हानिकारक कणों की नियमित निगरानी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • साथ ही PM 2.5 की तरह ही वायु में PM 0.25 और इससे छोटे कणों की उपस्थिति की सीमा निर्धारित की जानी चाहिये, जिससे वायु में इनकी अधिकता होने पर समय रहते आवश्यक सुरक्षा उपायों को अपनाया जा सके। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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