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तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची

  • 30 Dec 2021
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, रक्षा क्षेत्र से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

रक्षा और संबंधित चुनौतियों के लिये स्वदेशीकरण का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय (MoD) ने रक्षा विनिर्माण में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिये तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के एक भाग के रूप में 351 प्रणालियों और घटकों के आयात को प्रतिबंधित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वसूली:
    • सभी 351 वस्तुओं को अब रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 में दिये गए प्रावधानों के अनुसार स्वदेशी स्रोतों से खरीदा जाएगा।
      • डीएपी 2020 में निम्नलिखित खरीदारी से संबंधित श्रेणियाँ - खरीद (भारतीय स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित), खरीद (भारतीय), खरीद और बनाना (भारतीय), खरीद (भारत में वैश्विक निर्माण) और खरीद (वैश्विक) शामिल हैं।
  • समय-सीमा:
    • दिसंबर 2022 से 172 प्रणालियों और घटकों के आयात को रोक दिया जाएगा, जबकि 89 वस्तुओं के एक अन्य बैच पर प्रतिबंध दिसंबर 2023 से लागू होगा। तथा 90 वस्तुओं का आयात दिसंबर 2024 से रोक दिया जाएगा।
  • शामिल वस्तुएँ:
    • इस सूची में सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे- हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन, मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (MRSAM) आदि को शामिल किया गया है।
  • महत्त्व:
    • यह आत्मनिर्भर पहल हर वर्ष लगभग 3,000 करोड़ रुपए के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत करेगी।
    • यह आत्मनिर्भरता आत्मनिर्भर भारत की स्थिति प्राप्त करने और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ स्वदेशीकरण को बढ़ावा देगी।
    • यह सूची न केवल स्थानीय रक्षा उद्योग की क्षमता को महत्त्व देती है, बल्कि प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके घरेलू अनुसंधान तथा विकास को भी गति प्रदान करेगी।
    • यह सूची 'स्टार्ट-अप' के लिये एक उत्कृष्ट अवसर भी प्रदान करती है, क्योंकि इस पहल से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को अत्यधिक बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण

  • परिचय:
    • स्वदेशीकरण आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन की क्षमता है।
    • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
    • भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है और अगले पाँच वर्षों में सशस्त्र बलों द्वारा रक्षा खरीद पर लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने की उम्मीद है।
  • भूमिका:
    • सोवियत संघ पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रक्षा औद्योगीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बदलाव लाया।
    • वर्ष 1980 के दशक के मध्य से सरकार ने अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) में संसाधनों का इस्तेमाल किया ताकि डीआरडीओ को हाई प्रोफाइल परियोजनाएँ शुरू करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।
    • रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत वर्ष 1983 में हुई थी जब सरकार ने 5 मिसाइल सिस्टम (पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग) विकसित करने के लिये एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) को मंज़ूरी दी थी।
    • सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्वदेशी प्रयास पर्याप्त नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में सह-विकास और सह-उत्पादन की ओर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • इसकी शुरुआत वर्ष1998 में हुई थी, जब भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का उत्पादन करने के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • आवश्यकता:
    • राजकोषीय घाटा कम करना:
      • भारत दुनिया में (सऊदी अरब के बाद) दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक है।
      • उच्च आयात निर्भरता से राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है।
        • दुनिया में पाँचवाँ सबसे बड़ा रक्षा बजट होने के बावजूद, भारत अपने हथियार प्रणालियों का 60% विदेशी बाज़ारों से खरीदता है।
    • सुरक्षा दृष्टिकोण:
      • रक्षा में स्वदेशीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। यह तकनीकी विशेषज्ञता को बरकरार रखता है और स्पिन-ऑफ प्रौद्योगिकियों एवं नवाचार को प्रोत्साहित करता है जो अक्सर इससे उत्पन्न होते हैं।
      • उरी, पठानकोट और पुलवामा हमलों जैसे लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन से जुड़े खतरों से बचने के लिये स्वदेशीकरण की आवश्यकता है।
    • रोज़गार सृजन:
      • इससे उपग्रह उद्योगों का निर्माण होगा जो बदले में रोज़गार के अवसरों के सृजन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
      • सरकारी अनुमानों के अनुसार, रक्षा संबंधी आयातों में 20-25% की कमी से भारत में सीधे तौर पर अतिरिक्त 100,000 से 120,000 अत्यधिक कुशल रोज़गार सृजन हो सकता है।
    • सामरिक क्षमता:
      • एक आत्मनिर्भर और आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग भारत को शीर्ष वैश्विक शक्तियों में स्थान प्रदान करेगा।
    • देशभक्ति की धारणा:
      • राष्ट्रीयता और देशभक्ति रक्षा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन से बढ़ सकती है, जो बदले में न केवल भारतीय बलों के विश्वास को बढ़ावा देगी बल्कि उनमें अखंडता और संप्रभुता की भावना को भी मज़बूत करेगी।
  • चुनौतियाँ:
    • रक्षा के स्वदेशीकरण के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिये एक संस्थागत क्षमता का अभाव।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत की रसद लागत बढ़ जाती है जिससे देश की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है।
    • भूमि अधिग्रहण के मुद्दे रक्षा निर्माण और उत्पादन में नए प्लेयर्स के प्रवेश को प्रतिबंधित करते हैं।
    • DPP (रक्षा खरीद नीति, जिसे अब DAP 2020 से बदल दिया गया है) के तहत नीतिगत दुविधा ऑफसेट आवश्यकताओं के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। (ऑफसेट एक विदेशी आपूर्तिकर्त्ता के साथ अनुबंधित मूल्य का एक हिस्सा है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र में फिर से निवेश किया जाना चाहिये, या जिसके खिलाफ सरकार प्रौद्योगिकी खरीद सकती है)।
      • केवल सरकार-से-सरकारी समझौते (G2G), एकल विक्रेता अनुबंध या अंतर-सरकारी समझौते (IGA) में अब ऑफसेट क्लॉज़ नहीं होंगे।
      • DAP 2020 के अनुसार, अन्य सभी अंतर्राष्ट्रीय सौदे जो प्रतिस्पर्द्धी हैं और इसके लिये कई विक्रेता हैं, उनके पास 30% ऑफसेट क्लॉज़ जारी रहेगा।
  • संबंधित पहलें:
    • FDI सीमा में वृद्धि: 
      • मई 2020 में रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया था।
    • आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण: 
      • अक्तूबर 2021 में, सरकार ने चार दशक पुराने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) को भंग कर दिया और युद्ध सामग्री से लेकर भारी हथियारों और वाहनों तक के रक्षा हार्डवेयर के निर्माण के लिये सात नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के तहत 41 कारखानों को मिला दिया।
    • डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज:
      • DISC का उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यावसायीकरण करने के लिये स्टार्टअप्स/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
      • इसे रक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
    • सृजन पोर्टल:
      • यह एक वन स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है जो विक्रेताओं को स्वदेशीकरण के लिये उपकरण लेने की सुविधा प्रदान करता है।
    • ई-बिज पोर्टल:
      • ई-बिज पोर्टल पर औद्योगिक लाइसेंस (IL) और औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन (IEM) के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन कर दी गई है। 

आगे की राह 

  • सभी आपत्तियों और विवादों से निपटने के लिये एक स्थायी मध्यस्थता प्रकोष्ठ की स्थापना की जा सकती है।
  • निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि यह कुशल और प्रभावी प्रौद्योगिकी तथा स्वदेशी रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिये आवश्यक मानव पूंजी का संचार कर सकता है।
  • सॉफ्टवेयर उद्योग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं साइबर सुरक्षा जैसी तकनीकों का उपयोग स्वदेशी रूप से "चिप" के विकास और निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
  • DRDO का विश्वास और अधिकार बढ़ाने के लिये उसे वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना।
  • रक्षा उत्पादन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये लंबे कार्यकाल दिये जाने की आवश्यकता है।
  • तीनों सेवाओं के बीच इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये, नौसेना ने स्वदेशीकरण के पथ पर अच्छी तरह से प्रगति की है, मुख्य रूप से इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता, नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो के कारण।
  • एक रक्षा निर्माता के लिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला महत्त्वपूर्ण है जो लागत को अनुकूलित करना चाहती है।

स्रोत: द हिंदू

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