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निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी

  • 03 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

ज़ीका और इबोला वायरस

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में महिलाओ की भागीदारी, महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, सार्वजानिक पटल पर उपलब्ध आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि दुनिया भर के विभिन्न देशों में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रबंधन से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने वाले प्रमुख सलाहकार निकायों में से 85% निकायों में अधिकांशतः पुरुष ही शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • इस अध्ययन के दौरान 87 देशों के 115 निर्णय लेने और प्रमुख सलाहकार निकायों के विश्लेषण में पाया गया कि 85% से अधिक निकायों में अधिकांशतः या पूर्णतः पुरुषों का वर्चस्व है, वहीं 11% सलाहकार निकायों में महिलाओं की प्रमुख भूमिका है, जबकि केवल 3.5% निकाय ही ऐसे हैं जहाँ लैंगिक समानता देखने को मिली है।
  • अध्ययन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य निकायों में भी महिला प्रतिनिधित्त्व की स्थिति कुछ ख़ास नहीं है, उदाहरण के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) की आपातकालीन समिति की पहली, दूसरी और तीसरी बैठक में सदस्यों की संख्या में महिला प्रतिनिधित्त्व क्रमशः 23.8%, 23.8% और 37.5% ही था।

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निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी

आवश्यकता

  • महामारी से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं की कम भागीदारी से महामारी के दौरान महिलाओं के लिये प्रासंगिक मुद्दों को संबोधित नहीं किया जा पाता है, ऐसे में महिलाओं को इस प्रक्रिया में शामिल करने से उनके लिये प्रासंगिक मुद्दों को सही ढंग से संबोधित किया जा सकेगा।
  • कई जानकार मान रहे हैं कि महिलाओं पर कोरोना वायरस महामारी का दीर्घकालीन सामाजिक-आर्थिक प्रभाव देखने को मिलेगा, ऐसे में यदि इन मुद्दों को अभी संबोधित नहीं किया गया तो भविष्य में घातक परिणाम हो सकते हैं।
    • पिछली कई महामारियों जैसे ज़ीका और इबोला आदि का महिलाओं पर काफी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है, प्रायः महामारी के पश्चात् मातृत्त्व मृत्यु और असुरक्षित गर्भपात की दर में बढ़ोतरी देखने को मिलती है।

महत्त्व

  • अध्ययन में कहा गया है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक-से-अधिक महिलाओं को शामिल करने से हमें कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी से संबंधित इस मुकाबले में एक नवीन दृष्टिकोण मिलेगा और महामारी की निगरानी तथा इसका जोखिम प्रबंधन अधिक प्रभावपूर्ण होगा।
  • कई अन्य अध्ययनों में भी सामने आया है कि उन देशों ने महामारी के प्रबंधन के प्रति बेहतर कार्य किया है, जिनका नेतृत्त्व किसी महिला द्वारा किया जा रहा है, साथ ही इन देशों में कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या भी कम है। 

भागीदारी में कमी के कारण

  • महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यकों को महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल न करने के मुख्य कारणों में लैंगिक पूर्वाग्रह, भेदभाव और कार्यस्थल संस्कृति आदि अन्य कारक शामिल है।
    • यद्यपि वैश्विक स्वास्थ्य कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी तकरीबन 70% हैं, किंतु वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने वाली भूमिका में केवल 25% महिलाएँ हैं।
  • इस प्रकार महिलाओं को निर्णयन की प्रक्रिया में शामिल न करके एक विशिष्ट दृष्टिकोण को दरकिनार किया जाता है, जिससे हमारा दायरा काफी सीमित हो जाता है और इस सीमित दायरे में समय के साथ आने वाली नवीन चुनौतियों का सामना करना काफी मुश्किल होता है।

आगे की राह

  • लिंग आधारित कोटा सार्वजनिक क्षेत्र में असमानताओं को समाप्त करने और लैंगिक समानता के माध्यम से प्रभावी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन हो सकता है। 
  • यद्यपि महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व में बढ़ोतरी करना लैंगिक असमानता को दूर करने की दिशा में एक अनिवार्य कदम हो सकता है, किंतु इसे एकमात्र कदम के रूप में नहीं देखा जा सकता है। 
  • नेतृत्त्व में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने से यह ज़रूरी नहीं है कि महिलाओं के साथ होने वाले लैंगिक पूर्वाग्रह में भी कमी आएगी।
  • जानकार मानते हैं कि महिलाओं के प्रति इस दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिये औपचारिक माध्यमों जैसे- रोज़गार संबंधी कानून में बदलाव और सकारात्मक भेदभाव की नीति आदि के साथ-साथ उन अनौपचारिक माध्यमों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, जो महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करते हैं, उदाहरण के लिये कार्य स्थल पर महिला विशिष्ट प्रतिबंधों को समाप्त करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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