कांगो में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने कांगो में दो मिलियन लोगों के घातक इबोला वायरस से ग्रसित होने पर इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • दूसरे सबसे घातक इबोला वायरस प्रकोप के कारण अगस्त 2018 से अभी तक 1,600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
  • अत्यधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इस प्रकोप के प्रमुख कारक हैं-
    • संक्रमण का नियंत्रण और रोकथाम की कमज़ोर स्थिति
    • राजनीतिक परिस्थितियाँ
    • समुदायों में व्याप्त विमुखता (Reluctance)
    • अस्थिर सुरक्षा स्थितियाँ
  • वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा में अक्सर वैश्विक स्तर पर सभी राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित होता है एवं उनका सहयोग भी मिलता है।
  • WHO की रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह का आपातकाल पाँचवी बार लागू हुआ है। इससे पहले जो आपातकाल लागू किये गए उनमें पश्चिम अफ्रीका में इबोला वायरस, अमेरिका में ज़ीका वायरस के प्रकोप, स्वाइन फ्लू, पोलियो उन्मूलन शामिल थे।
  • WHO वैश्विक आपातकाल को एक "असाधारण घटना" के रूप में परिभाषित करता है जो अन्य देशों के लिये एक जोखिम की स्थिति होती है और इससे निपटने हेतु एक समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर (Georgetown University Law Center) के विशेषज्ञों के अनुसार, इबोला के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की मांग बहुत पहले से की जा रही थी। इस घोषणा से प्रभावित क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर हर संभव सहायता मिलेगी।
  • साथ ही विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोई भी देश प्रभावित क्षेत्र की यात्रा एवं व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है तो इससे प्रभावित क्षेत्र में वस्तुओं एवं स्वास्थ्यकर्मियों का प्रवाह बाधित हो सकता है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव वहाँ की जनता और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ता है।
  • इस तरह के प्रतिबंधों के डर से भविष्य में जिस भी क्षेत्र में इस तरह के आपातकाल की घोषणा की जाएगी उसे एक दंड के रूप में देखा जाएगा। इसके परिणामस्वरुप कोई भी देश किसी प्रकार की महामारी से पीड़ित की स्थिति में भी संबंधित जानकारी को उजागर नहीं करेगा, जो न केवल महामारी के प्रसार और जोखिम की स्थिति में वृद्धि करेगा बल्कि इससे जान-माल की क्षति का भारी क्षति एवं अन्य देशों में उसके प्रसार का खतरा भी बढ़ जाएगा।
  • इबोला वायरस के लिये गठित आपातकालीन समिति ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (2005) (International Health Regulations-IHR) के अंतर्गत WHO के महानिदेशक को औपचारिक अस्थायी सिफारिशें जारी करने का सुझाव दिया जो निम्नलिखित हैं:

प्रभावित देशों के लिये सिफारिश

  • निरंतर सामुदायिक जागरूकता, सहभागिता और भागीदारी को मज़बूत बनाते हुए ऐसे क्षेत्र जहाँ जोखिम की संभावना बहुत अधिक है एवं ऐसे सांस्कृतिक मानदंडों एवं विश्वासों की पहचान करना जो सामुदायिक भागीदारी को बाधित करते हैं।
  • सीमा पार स्क्रीनिंग और मुख्य आंतरिक सड़कों पर भी लगातार स्क्रीनिंग जारी रखी जाए। साथ ही दोनों निगरानी टीमों के बीच सूचना के बेहतर आदान-प्रदान की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र और उसके सहयोगियों के साथ समन्वय स्थापित कर सुरक्षा जोखिमों को कम करना, एक सक्षम वातावरण बनाना जिससे रोग-नियंत्रण के प्रयासों को तेज़ी से आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
  • मज़बूत एवं प्रभावी निगरानी के माध्यम से सामुदायिक मौतों को कम करने और वायरस का पता लगाने एवं इस वायरस के आनुवांशिक अनुक्रमण (genetic sequencing) द्वारा बीमारी के फैलने की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिलेगी।
  • WHO के रणनीतिक सलाहकार समूह द्वारा अनुशंसित इष्टतम वैक्सीन रणनीतियाँ जो इस वायरस के प्रकोप को कम करने में सहायक हैं को शीघ्रातिशीघ्र लागू करना।

पड़ोसी देशों के लिये

  • जोखिम वाले देशों को अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आयातित मामलों का पता लगाने और उनके प्रबंधन हेतु तैयारियों को बेहतर करने के लिये तात्कालिक रूप से काम करना चाहिये, जिसमें स्वास्थ्य सुविधाओं को उन्नत बनाना एवं बिना रिपोर्टिंग के सक्रिय निगरानी जैसे पक्ष शामिल है।
  • विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्र में प्रवेश के बिंदुओं पर जोखिम संबंधी संचार और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

सभी देशों के लिये

  • राष्ट्रीय अधिकारियों को सभी एयरलाइनों और अन्य परिवहन एवं पर्यटन उद्योगों के साथ मिलकर काम करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि अंतर्राष्ट्रीय यातायात पर WHO के दिशा-निर्देशों का सही से पालन हो।

Ebola Virus

इबोला वायरस रोग क्या है?

  • इबोला वायरस एक फाइलोवायरस है, जिसकी पाँच भिन्‍न-भिन्‍न प्रजातियाँ हैं। मौजूदा प्रकोप में जिस विशेष वायरस को अलग किया गया है वह जायर इबोला वायरस है।
  • इबोला वायरस रोग एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है जिससे पीड़ित लोगों में 90% तक लोगों की मृत्यु हो जाती है।
  • अफ्रीका में फ्रूट बैट चमगादड़ इबोला वायरस के वाहक हैं जिनसे पशु (चिम्पांजी, गोरिल्ला, बंदर, वन्य मृग) संक्रमित होते हैं। मनुष्यों को या तो संक्रमित पशुओं से या संक्रमित मनुष्यों से संक्रमण होता है, जब वे संक्रमित शारीरिक द्रव्यों या शारीरिक स्रावों के निकट संपर्क में आते हैं। इसमें वायु जनित संक्रमण नहीं होता है।
  • मौज़ूदा प्रकोप के दौरान अधिकांश रोग मानव से मानव को होने वाले संक्रमण से फैला है। इबोला वायरस के संक्रमण होने तथा रोग के लक्षण प्रकट होने के बीच की अवधि 2-21 दिन होती है जिसके दौरान प्रभावित व्यक्तियों से संक्रमण होने का खतरा नहीं रहता है।

लक्षण

  • बुखार (Fever)
  • थकान (Fatigue)
  • मांसपेशियों में दर्द (Muscle pain)
  • सिरदर्द (Headache)
  • गले में खराश (Sore throat)
  • उल्टी दस्त (Vomiting Diarrhoea)
  • आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव (internal and external bleeding)
  • वृक्क एवं यकृत का ठीक प्रकार कार्य न करना, आदि।

निदान:

इबोला को मलेरिया, टाइफाइड और मेनिन्जाइटिस जैसे अन्य संक्रामक रोगों से अलग करना मुश्किल होता है, लेकिन इबोला वायरस के संक्रमण की पहचान निम्नलिखित नैदानिक विधियों का उपयोग करके की जा सकती हैं:

  • एलिसा (ELISA-Antibody-capture enzyme-linked immunosorbent assay)
  • एंटीजन-कैप्चर डिटेक्शन टेस्ट (Antigen-capture detection tests)
  • सीरम न्यूट्रीलाईजेसन टेस्ट (Serum neutralization test)
  • रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (RT-PCR) एस्से (Reverse Transcriptase Polymerase Chain Reaction (RT-PCR) Assay)
  • इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (Electron microscopy)
  • वायरस आइसोलेशन बाई सेल कल्चर (Virus isolation by cell culture)

स्रोत: द हिंदू