मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं कार्यकाल) विधेयक, 2023 | 15 Dec 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारत का चुनाव आयोग, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC), भारत का सर्वोच्च न्यायालय, संविधान का अनुच्छेद 324 मेन्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा ने हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें एवं कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 को मंज़ूरी दे दी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) तथा चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
- इस कानून का उद्देश्य अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामले, 2023 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश के प्रत्युत्तर में नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है।
CEC और EC की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है?
- मार्च 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने CEC और EC की नियुक्ति के संबंध में संविधान के अंगीकरण के उपरांत एक लंबे समय से चले आ रहे विधायी अंतर को समाप्त करते हुए, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में भारत के स्वतंत्र निर्वाचन आयोग (ECI) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक लोकतंत्र का समर्थन करने वाले अन्य संस्थानों की ओर ध्यान आकर्षित किया जिनके पास अपने प्रमुखों/सदस्यों की नियुक्ति के लिये स्वतंत्र तंत्र हैं।
- राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), सूचना आयोग और लोकपाल जैसे उदाहरणों का उल्लेख किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव सुधार पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और चुनाव सुधार पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015) की सिफारिशों पर गौर किया।
- दोनों समितियों ने CEC और EC की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और विपक्ष के नेता की एक समिति का सुझाव दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए (किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' हेतु निर्देश जारी करने के लिये) निर्धारित किया कि CEC और EC की नियुक्ति प्रधानमंत्री, CJI और नेता की एक समिति या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल द्वारा की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि यह तंत्र तब तक लागू रहेगा जब तक संसद इस मामले पर कानून नहीं बना देती।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 का स्थान लेता है।
- यह CEC और ECs की नियुक्ति, वेतन एवं निष्कासन से संबंधित है।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
- CEC और EC की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता, यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता शामिल होगा।
- इस समिति में कोई पद रिक्त होने पर भी चयन समिति की सिफारिशें मान्य होंगी।
- विधेयक में CEC और EC के पदों पर विचार करने के लिये पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने हेतु एक खोज समिति (Search Committee) की स्थापना का प्रस्ताव है।
- खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से निम्न पद वाले दो सदस्य भी शामिल होंगे जिनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान तथा अनुभव होगा।
- CEC और EC की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
- वेतन एवं शर्तों में परिवर्तन:
- CEC और ECs का वेतन एवं सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामान होंगी।
- हटाने/निष्कासन की प्रक्रिया:
- यह बिल संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 324 (5)) को बरकरार रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह निष्कासन की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की अनुशंसा पर हटाया जा सकता है।
- CEC और EC के लिये संरक्षण:
- बिल, CEC और EC को उनके कार्यकाल के दौरान की गई कार्रवाई से संबंधित कानूनी कार्यवाही से बचाता है, बशर्ते कि इस तरह की कार्रवाई आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में की गई हो।
- संशोधन का उद्देश्य इन अधिकारियों को उनके आधिकारिक कार्यों से संबंधित सिविल या आपराधिक कार्यवाही से बचाव करना है।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त किस प्रकार नियुक्त किये जाते हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के भाग XV (चुनाव) में सिर्फ 5 अनुच्छेद (324-329) हैं।
- संविधान CEC और EC की नियुक्ति के लिये एक विशिष्ट विधायी प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 324 मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की ऐसी संख्या, यदि कोई हो, से मिलकर बने चुनाव आयोग में 'चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण' निहित करता है, जिसे राष्ट्रपति समय-समय पर तय करें।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले संघ परिषद् की सलाह पर इनकी नियुक्ति करते हैं।
- विधि मंत्री विचार के लिये प्रधानमंत्री को उपयुक्त उम्मीदवारों के एक निकाय का सुझाव देते हैं। राष्ट्रपति PM की सलाह पर नियुक्ति करते हैं।
- निष्कासन:
- वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या अपने कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व भी उन्हें हटाया जा सकता है।
- CEC को केवल संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान निष्कासन की प्रक्रिया के माध्यम से पद से हटाया जा सकता है।
- CEC की अनुशंसा को छोड़कर किसी भी अन्य EC को निष्कासित नहीं किया जा सकता है।
विधेयक से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- पारदर्शिता और स्वतंत्रता:
- रिक्ति होने पर भी चयन/प्रवरण समिति की अनुशंसाओं को मान्य रखने से कुछ परिस्थितियों के दौरान सत्तारूढ़ दल के सदस्यों का एकाधिकार हो सकता है, जिससे समिति की विविधता एवं स्वतंत्रता कमज़ोर हो सकती है।
- न्यायिक बेंचमार्क से कार्यपालिका नियंत्रण में परिवर्तन:
- CEC तथा EC के वेतन को मंत्रिमंडल सचिव के समान करना, जिनका वेतन कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है, संभावित सरकारी प्रभाव के बारे में सवाल उठाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के विपरीत, जो संसद के एक अधिनियम द्वारा तय किया जाता है, यह उक्त परिवर्तन निर्वाचन आयोग की वित्तीय स्वतंत्रता को संकट में डाल सकता है।
- सिविल सेवकों के लिये पात्रता सीमित करना:
- केवल सरकार के सचिव के समकक्ष पद धारण करने वाले व्यक्तियों के लिये पात्रता को सीमित करने से संभावित रूप से योग्य उम्मीदवार बाहर हो सकते हैं, जिससे ECI में पृष्ठभूमि तथा विशेषज्ञता की विविधता सीमित हो सकती है।
- समतुल्यता की कमी से संबंधित चिंताएँ:
- यह विधेयक उस संविधानिक उपबंध को बनाए रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही निष्कासित करने की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की सिफारिश पर ही निष्कासित किया जा सकता है।
- निष्कासन प्रक्रियाओं में समतुल्यता की कमी निष्पक्षता पर सवाल उठा सकती है।
- यह विधेयक उस संविधानिक उपबंध को बनाए रखता है जो CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही निष्कासित करने की अनुमति देता है, जबकि EC को केवल CEC की सिफारिश पर ही निष्कासित किया जा सकता है।
चुनावी निकाय के सदस्यों की नियुक्ति में वैश्विक प्रथाएँ
- दक्षिण अफ्रीकी मॉडल:
- दक्षिण अफ्रीका में, चयन प्रक्रिया में संवैधानिक न्यायालय के अध्यक्ष, मानवाधिकार न्यायालय के प्रतिनिधि और लैंगिक समानता के समर्थक जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल होते हैं।
- विविध प्रतिनिधित्व पर जोर चुनावी निकाय में व्यापक परिप्रेक्ष्य सुनिश्चित करता है।
- यूनाइटेड किंगडम दृष्टिकोण:
- यूनाइटेड किंगडम में, चुनावी निकाय के उम्मीदवार हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा अनुमोदन के अधीन हैं।
- चयन प्रक्रिया में विधायिका को शामिल करने से इसे जाँच और जवाबदेही का अतिरिक्त स्तर मिलता है।
- संयुक्त राज्य प्रक्रिया:
- अमेरिका में, राष्ट्रपति चुनावी निकाय में सदस्यों की नियुक्ति करता है, और नियुक्तियों के लिये सीनेट द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होती है।
- दोहरी जाँच प्रणाली शक्ति संतुलन सुनिश्चित करती है और एकतरफा निर्णयों को रोकती है।
- अमेरिका में, राष्ट्रपति चुनावी निकाय में सदस्यों की नियुक्ति करता है, और नियुक्तियों के लिये सीनेट द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |