टाटा-मिस्त्री निर्णय | 01 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के फैसले को बदलते हुए साइरस पल्लोनजी मिस्त्री को टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष और निदेशक के पद से हटाने के टाटा समूह के फैसले को सही ठहराया।
प्रमुख बिंदु:
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:
- अल्पसंख्यक शेयरधारक या उनके छोटे शेयरधारक प्रतिनिधियों को निजी कंपनी के बोर्ड में स्वचालित रूप से किसी पद का हक़दार नहीं माना गया है।
- कंपनी अधिनियम 2013 में शामिल प्रावधान केवल सूचीबद्ध कंपनियों के छोटे शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, ताकि ऐसी कंपनियों को अपने बोर्ड में कम-से-कम एक निदेशक को ऐसे छोटे शेयरधारकों द्वारा चुना जा सके।
- क्योंकि मिस्त्री परिवार और शापूरजी पल्लोनजी (SP) समूह छोटे शेयरधारक नहीं हैं, लेकिन अल्पसंख्यक शेयरधारक के लिये ऐसा कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है जो उन्हें टाटा संस के बोर्ड में ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व का दावा करने का अधिकार’ प्रदान करता हो।
- जिन निजी कंपनियों के पास अल्पसंख्यक शेयरधारक हैं, वे उनके लिये एक सक्षम प्रावधान बनाने हेतु स्वतंत्र हैं, लेकिन निजी कंपनियों के बोर्ड में अल्पसंख्यक शेयरधारक को सीट प्रदान करने के लिये कोई वैधानिक दात्यित्व शामिल नहीं है।
अल्पसंख्यक शेयरधारक
- अल्पसंख्यक शेयरधारक किसी फर्म या कंपनी के इक्विटी धारक हैं। यदि ये किसी फर्म की इक्विटी पूंजी के 50% से कम स्वामित्व रखते है तो उन्हें फर्म में अपने मताधिकार की शक्ति का उपयोग करने से वंचित होना पड़ता है।
छोटे शेयरधारक
- कंपनी अधिनियम के अनुसार, छोटे शेयरधारक वे शेयरधारक या शेयरधारकों का समूह हैं जो केवल नाम मात्र 20,000 रुपए से कम मूल्य के शेयर रखते हैं।
कंपनी अधिनियम 2013
- यह एक भारतीय कंपनी कानून है, जो एक कंपनी के निगमन, कंपनी की ज़िम्मेदारियों, निदेशकों, शेयरधारकों और इसके विघटन सहित सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
फैसले का महत्व:
- हालाँकि यह निर्णय सीधे तौर पर अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है, ऐसे शेयरधारकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास शेयरधारकों का बहुमत है या वे कंपनी के प्रवर्तकों (Promoters ) के साथ अनुबंधित हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये उनके पास बोर्ड में पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी होना आवश्यक है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)
- NCLAT का गठन नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिये कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के अंतर्गत किया गया था।
- NCLAT 1 दिसंबर, 2016 से प्रभावी दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016-IBC) की धारा 61 के तहत NCLT द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिये एक अपीलीय अधिकरण भी है।
- NCLAT भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील भी सुनता है ।
- NCLAT, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India) द्वारा दिये गए निर्णयों से असहमत पक्ष के लिये भी अपीलीय निकाय के रूप में कार्य करता है।