सतत् वित्त | 08 Oct 2022
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन मार्केट, MSME, नियामक सैंडबॉक्स। मेन्स के लिये:सतत् वित्त, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण। |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) द्वारा गठित सतत् वित्त पर एक समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कार्बन मार्केट के विकास का सुझाव दिया गया है।
सतत् वित्त:
- निवेश निर्णय के ऐसे विकल्प जो एक आर्थिक गतिविधि के पर्यावरणीय, सामाजिक और शासकीय(ESG) कारकों का ध्यान रखते हैं, उन्हें सतत् वित्त कहा जाता है।
- पर्यावरणीय कारकों में जलवायु संकट को कम करना या सतत् संसाधनों का उपयोग शामिल है।सामाजिक कारकों के अंतर्गत मानव और पशु अधिकार, साथ ही उपभोक्ता संरक्षण शामिल हैं।
- शासकीय कारक सार्वजनिक और निजी दोनों संगठनों के प्रबंधन, कर्मचारी संबंधों और मुआव की पद्धति को संदर्भित करते हैं।
समिति के सुझाव:
- एक स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार का निर्माण, संक्रमण बॉण्ड के लिये ढाँचा, जोखिम कम करने वाले तंत्र को सक्षम बनाना, ग्रीन फिनटेक के लिये नियामक सैंडबॉक्स को प्रोत्साहित करना और दूसरों के बीच वैश्विक जलवायु गठबंधन के निर्माण की सुविधा प्रदान करना है।
- सतत् ऋण के लिये एक समर्पित MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) का निर्माण।
- आपदा बॉण्ड, नगरपालिका बॉण्ड, हरित प्रतिभूतिकरण, मिश्रित वित्त जैसे अभिनव उपकरणों के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
- IFSC में एकत्रीकरण सुविधाओं, प्रभाव निधियों, ग्रीन इक्विटी आदि को सक्षम करना।
- वित्तीय प्रणाली को हरित बनाने की नींव रखने के लिये IFSCA को क्षमता निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
IFSCA:
- स्थापना:
- IFSCA की स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 के तहत की गई थी।
- इसका मुख्यालय गांधीनगर (गुजरात) की गिफ्ट सिटी (GIFT City) में स्थित है।
- भूमिका:
- यह भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों के विकास तथा विनियमन के लिये एक एकीकृत प्राधिकरण है।
- वर्तमान में गुजरात के GIFT सिटी में स्थित IFSC भारत में पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र है।
- IFSCA की स्थापना से पूर्व घरेलू वित्तीय नियामक यथा RBI, SEBI, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) तथा पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) IFSC में व्यवसाय को विनियमित करने का कार्य करते थे।
- सदस्य:
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण में कुल नौ सदस्य होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- इनमें प्राधिकरण का अध्यक्ष, RBI, SEBI, IRDAI और PFRDA का एक-एक सदस्य तथा वित्त मंत्रालय के दो सदस्य होते हैं। इसके अलावा चयन समिति की सिफारिश पर दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
- कार्यकाल:
- IFSCA के सभी सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जो पुनर्नियुक्ति के अधीन होता है।
कार्बन मार्केट:
- कार्बन मार्केट वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से कार्बन उत्सर्जन को खरीदने और बेचने की अनुमति देते हैं।
- क्योटो प्रोटोकॉल के तहत कार्बन मार्केट मौजूद थे, जिसे वर्ष 2020 में पेरिस समझौते के उपरांत बदला जा रहा है।
- कार्बन मार्केट संभावित रूप से उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं, यह कार्य देश अपने दम पर कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये भारत में ईंट भट्टे का प्रौद्योगिकी उन्नयन और उत्सर्जन में कमी दो तरीकों से की जा सकती है:
- विकसित देश जो अपने कमी के लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ है, वह भारत में ईंट भट्ठे को धन या प्रौद्योगिकी प्रदान कर सकता है और इस प्रकार उत्सर्जन में कमी का दावा कर सकता है।
- वैकल्पिक रूप से भट्टे पर निवेश कर सकता हैं फिर उत्सर्जन में कमी कर बिक्री की पेशकश कर सकता है, जिसे कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। इसके साथ ही पार्टी जो अपने स्वयं के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रही है, इन क्रेडिटों को खरीद सकती है और इन्हें अपना क्रेडिट स्कोर दिखा सकती है।
- उदाहरण के लिये भारत में ईंट भट्टे का प्रौद्योगिकी उन्नयन और उत्सर्जन में कमी दो तरीकों से की जा सकती है:
भारत सरकार की संबंधित पहलें:
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना: सरकार ने 13 ऊर्जा गहन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी को लक्षित करते हुए PAT योजना शुरू की है।
- विदेशी पूंजी को प्रोत्साहित करना: सरकार ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में स्वत: मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
- नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन:
- सरकार ने परियोजनाओं के लिये सौर और पवन ऊर्जा की अंतर-राज्यीय बिक्री के लिये अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (ISTS) शुल्क माफ कर दिया है।
- अक्षय खरीद दायित्व (RPO) के लिये प्रावधान करना और अक्षय ऊर्जा पार्कों की स्थापना करना।
- भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान: पेरिस समझौता, जिसे वर्ष 2015 में हस्ताक्षरकर्त्ता देशों द्वारा अपनाया गया था, के तहत भारत ने निर्धारित लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया था।
- अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
- वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक से उत्पन्न हुई है? (2009) (a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्स:प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (2014) |