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शासन व्यवस्था

FCRA प्रमाणपत्र का निलंबन

  • 27 Jul 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल, भारत मूल के कार्डधारक

मेन्स के लिये:

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010, विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल ( Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) ने अपने विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) प्रमाणपत्र को 180 दिनों तक निलंबित करने के गृह मंत्रालय के निर्णय को चुनौती दी है।

  • गृह मंत्रालय (MHA) ने FCRA अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन में CHRI’s के प्रमाणपत्र को निलंबित कर दिया था।

प्रमुख बिंदु: 

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010:

  • भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • व्यक्तियों को MHA की अनुमति के बिना विदेशी राशि स्वीकार करने की अनुमति है।
    • हालांँकि ऐसे विदेशी अंश की स्वीकृति हेतु मौद्रिक सीमा 25,000 रुपए  से कम होगी। 
  • यह अधिनियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि विदेशी अंश प्राप्त करने वाले उस निर्दिष्ट उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये इसे प्राप्त किया गया है।
  • अधिनियम के तहत संगठनों को हर पांँच वर्ष में अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है।

विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020:

  • विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर रोक: अधिनियम लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है। लोक सेवक में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है जो सेवा में है या जिसे सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है या किसी सार्वजनिक कर्तव्य के प्रदर्शन हेतु सरकार द्वारा पारिश्रमिक दिया जाता है।
  • विदेशी अंशदान का अंतरण: अधिनियम विदेशी अंशदान को स्वीकार करने के लिये  पंजीकृत व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी अंशदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
  • पंजीकरण के लिये आधार: अधिनियम विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति, सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों हेतु एक पहचान दस्तावेज़ के रूप में आधार संख्या को अनिवार्य बनाता है।
  • FCRA खाता: अधिनियम में कहा गया है कि विदेशी योगदान केवल भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली की ऐसी शाखाओं जो FCRA खाते के रूप में बैंक द्वारा निर्दिष्ट हैं, में प्राप्त किया जाना चाहिये।
  • प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये विदेशी अंशदान के उपयोग में कमी: अधिनियम प्रस्ताव करता है कि प्राप्त कुल विदेशी धन का 20% से अधिक का खर्च प्रशासनिक कार्यों हेतु नहीं किया जा सकता है। FCRA, 2010 में यह सीमा 50% थी।
  • प्रमाण पत्र का समर्पण: अधिनियम केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति को अपना पंजीकरण प्रमाण पत्र के समर्पण (Surrender of Certificate) की अनुमति देता है।
  • अन्य विनियम:
    • विदेशी अंशदान का दायरा बढ़ाना: मौजूदा नियमों के अंतर्गत किसी भी विदेशी/विदेशी स्रोत द्वारा भारतीय रुपए में दिये गए दान, जिसमें भारतीय मूल के विदेशी जैसे- भारत के विदेशी नागरिक या भारतीय मूल के कार्डधारक शामिल हैं, को भी विदेशी योगदानकर्त्ता के रूप में माना जाना चाहिये।
    • FATF के मानकों को पूरा करना: दिशानिर्देशों में कहा गया है कि गैर-सरकारी संगठनों द्वारा वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) के मानकों के अनुसार अच्छी प्रथाओं का पालन किया जाना चाहिये।
    • इसने गैर-सरकारी संगठनों (NGO) से किसी भी दाता या प्राप्तकर्त्ता की "संदिग्ध गतिविधियों" के विषय में मंत्रालय को सूचित करने और "भर्ती के समय अपने कर्मचारियों की उचित जाँच करने" के लिये कहा।

CHRI का तर्क:

  • निलंबन आदेश FCRA अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित योजना के ढाँचे के विपरीत है और यहाँ तक कि निलंबन आदेश भी बिना कोई जाँच शुरू किये पारित कर दिया गया था।
  • निलंबन आदेश पूरी तरह से गलत तथ्यों पर आधारित था और प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

FCRA से संबंधित मुद्दे:

  • दायरा परिभाषित नहीं है: यह राष्ट्रीय हित या राज्य के आर्थिक हित के लिये हानिकारक किसी भी गतिविधि हेतु विदेशी योगदान की प्राप्ति को प्रतिबंधित करता है।
    • हालाँकि "सार्वजनिक हित" पर कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं है।
  • मौलिक अधिकारों को सीमित करता है: FCRA प्रतिबंधों का संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(सी) के अंतर्गत बोलने की स्वतंत्रता तथा संघ बनाने की स्वतंत्रता दोनों अधिकारों पर गंभीर परिणाम देखा गया है।

राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI)

  • ‘राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल’ (CHRI) एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है, जो राष्ट्रमंडल में मानव अधिकारों के व्यावहारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करता है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली

राष्ट्रमंडल 

  • उत्पत्ति: यह दुनिया के सबसे पुराने राष्ट्रीय राजनीतिक संघों में से एक है। इसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास में खोजी जा सकती हैं, जब कुछ देशों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटेन का शासन था।
    • इनमें से कुछ देश ब्रिटेन के सम्राट को राज्य का प्रमुख मानते हुए स्वशासी बन गए। उन्होंने ‘ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस’ का गठन किया।
    • वर्ष 1949 में राष्ट्रमंडल अस्तित्त्व में आया तब से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और यूरोप स्थित कई स्वतंत्र देश राष्ट्रमंडल में शामिल हो चुके हैं।
  • सदस्यता: राष्ट्रमंडल 54 स्वतंत्र और संप्रभु राज्यों का एक स्वैच्छिक संघ है।
    • इसकी सदस्यता स्वतंत्र एवं समान स्वैच्छिक सहयोग पर आधारित है। रवांडा और मोज़ाम्बिक का ब्रिटिश साम्राज्य से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है।

आगे की राह

  • विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन उन गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज़ को प्रभावित कर सकता है, जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उन अंतरालों को कम करने में सहायता करते हैं, जहाँ सरकार अपना काम करने में विफल रहती है।
  • आवश्यक है कि ये विनियमन राष्ट्रीय सीमाओं के पार संसाधनों के साझाकरण में बाधा न उत्पन्न करें, क्योंकि सीमा पार संसाधनों का साझाकरण वैश्विक समुदाय के कामकाज़ के लिये काफी आवश्यक है और इसे तब तक हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह मानने का कारण न हो कि धन का उपयोग अवैध गतिविधियों के लिये किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू 

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