भारतीय अर्थव्यवस्था
रुपए की मज़बूती
- 11 May 2024
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प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रुपए का मूल्यह्रास, REER, NEER, मुद्रा मूल्यह्रास, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अधिमूल्यन बनाम मूल्यह्रास मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव, भारतीय रुपए की मज़बूती और कमज़ोरी को प्रभावित करने वाले कारक |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पिछले 10 वर्षों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगभग 27.6% कमज़ोर हुआ है।
- प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले इसकी विनिमय दर पर विचार करने पर मुद्रा को वास्तविक मूल्य प्राप्त हुआ है।
भारतीय रुपए की दशकीय यात्रा कैसी है?
- वर्ष 2004 से 2014 तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 44.37 रुपए से गिरकर 60.34 रुपए (26.5%) हो गया।
- वर्ष 2014 से 2024 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 60.34 रुपए से गिरकर 83.38 रुपए (27.6%) हो गया है।
- मुद्रा का अधिमूल्यन और मूल्यह्रास विदेशी मुद्रा बाज़ार में अन्य मुद्राओं के सापेक्ष मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन को संदर्भित करता है।
- वर्ष 2004 और 2024 के बीच, 40-मुद्रा बास्केट NEER के अनुसार रुपए में 32.2% (133.77 से 90.76 तक) की गिरावट आई तथा 6-मुद्रा बास्केट NEER के अनुसार 40.2% (139.77 से 83.65 तक) की गिरावट आई।
- अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की औसत विनिमय दर 45.7% गिरकर 44.9 रुपए से 82.8 रुपए हो गई।
- इसलिये, वर्ष 2004 और 2024 के बीच, केवल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसके मूल्यह्रास की तुलना में, भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के मुकाबले रुपए में थोड़ी गिरावट आई है।
- इसके अलावा 40-मुद्रा और 6-मुद्रा बास्केट दोनों के लिये रुपए का व्यापार-भारित REER पिछले 20 वर्षों में बढ़ा है, जो दर्शाता है कि वर्ष 2004-05 तथा वर्ष 2023-24 के बीच रुपया मज़बूत हुआ है।
- समय के साथ रुपया वास्तविक रूप से मज़बूत हुआ है, जबकि पिछले 10 वर्षों में अधिकांश समय यह 100 या उससे ऊपर रहा है।
विनिमय दर क्या है?
- परिचय:
- विनिमय दर ,वह दर है जिस पर एक मुद्रा का विनिमय दूसरी मुद्रा से किया जा सकता है। यह किसी अन्य मुद्रा के संदर्भ में एक मुद्रा के मूल्य को दर्शाता है।
- विनिमय दरों को आमतौर पर एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिये आवश्यक राशि के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- प्रकार:
- निश्चित विनिमय दर: सरकारें अथवा केंद्रीय बैंक अन्य मुद्राओं के संबंध में अपनी मुद्रा का मूल्य निर्धारित करते हैं और विदेशी मुद्रा बाज़ारों में अपनी मुद्रा खरीद या बेचकर उस मूल्य को बनाए रखते हैं।
- लचीली विनिमय दर: किसी मुद्रा का मूल्य आपूर्ति और मांग के आधार पर विदेशी मुद्रा बाज़ार द्वारा निर्धारित किया जाता है। अधिकांश प्रमुख मुद्राएँ इसी प्रणाली के अंतर्गत संचालित होती हैं।
- प्रबंधित विनिमय दर: निश्चित और लचीली विनिमय दरों का मिश्रण जहाँ सरकारें अपनी मुद्रा के मूल्य को स्थिर करने के लिये कभी-कभी हस्तक्षेप करती हैं।
- विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक:
- ब्याज दरें: किसी देश में ऊँची ब्याज दरें विदेशी निवेश को आकर्षित करती हैं, जिससे उस देश की मुद्रा की मांग बढ़ती है और उसकी विनिमय दर मज़बूत होती है।
- मुद्रास्फीति: यदि किसी देश में उसके व्यापारिक साझेदारों की तुलना में मुद्रास्फीति अधिक है, तो उसकी मुद्रा कमज़ोर हो जाती है क्योंकि उसकी क्रय शक्ति कम हो जाती है।
- आर्थिक विकास: एक मज़बूत और बढ़ती अर्थव्यवस्था किसी देश की मुद्रा में विश्वास को बढ़ावा देती है, जिससे विनिमय दर मज़बूत होती है।
- राजनीतिक स्थिरता: राजनीतिक अस्थिरता विदेशी निवेश को रोक सकती है और देश की मुद्रा को कमज़ोर कर सकती है।
- आपूर्ति एवं मांग: आपूर्ति एवं मांग का मूलभूत सिद्धांत एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि अधिक लोग किसी विशेष मुद्रा (उच्च मांग) को खरीदना चाहते हैं, तो इसकी विनिमय दर मज़बूत हो जाती है।
प्रभावी विनिमय दर (EER) क्या है?
- परिचय:
- किसी मुद्रा की प्रभावी विनिमय दर (EER) अन्य मुद्राओं के मुकाबले उसकी विनिमय दरों का भारित औसत है, जिसे मुद्रास्फीति एवं व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता हेतु समायोजित किया जाता है।
- मुद्रा भार भारत के कुल विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों की हिस्सेदारी से प्राप्त होता है।
- मुद्रा की शक्ति पर प्रभाव:
- किसी मुद्रा की मज़बूती या कमज़ोरी सभी व्यापारिक साझेदारों की मुद्रा के साथ उस मुद्रा की विनिमय दर पर निर्भर करती है।
- भारत के लिये, रुपए की मज़बूती या कमज़ोरी, न केवल अमेरिकी डॉलर, बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के साथ इसकी विनिमय दर पर भी निर्भर करती है।
- इस मामले में, यह देश के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों की मुद्राओं की एक टोकरी के विरुद्ध होगा, जिसे रुपए की "प्रभावी विनिमय दर" अथवा EER कहा जाता है।
- प्रभावी विनिमय दर के प्रकार (EER):
- नाममात्र प्रभावी विनिमय दर (NEER): NEER घरेलू मुद्रा और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के बीच द्विपक्षीय विनिमय दरों का एक सरल औसत है, जो संबंधित व्यापार शेयरों द्वारा भारित होता है।
- NEER मुद्रास्फीति को समायोजित किये बिना अन्य मुद्राओं की एक टोकरी के सापेक्ष मुद्रा की समग्र मज़बूती या कमज़ोरी को मापता है।
- NEER सूचकांक 100 के आधार मूल्य और वर्ष 2015-16 के आधार मूल्य के संदर्भ में हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्राओं की 2 अलग-अलग टोकरी के मुकाबले रुपए के NEER सूचकांक का निर्माण किया है:
- 6 मुद्रा टोकरी: यह एक व्यापार-भारित औसत दर है जिस पर रुपया मूल मुद्रा टोकरी के साथ विनिमय योग्य होता है, जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और हाॅन्गकाॅन्ग डॉलर शामिल होते हैं।
- 40 मुद्राओं की टोकरी: इसमें देशों की 40 मुद्राओं की एक बड़ी टोकरी शामिल है जो भारत के वार्षिक व्यापार प्रवाह का लगभग 88% हिस्सा है।
- वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER):
- REER घरेलू अर्थव्यवस्था और उसके व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति दरों में अंतर के लिये NEER को समायोजित करता है। यह वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्ष मूल्य स्तरों में परिवर्तन को दर्शाता है।
- REER मूल्य स्तरों में बदलावों को ध्यान में रखते हुए किसी मुद्रा की व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता का अधिक सटीक माप प्रदान करता है।
- REER की गणना घरेलू अर्थव्यवस्था के लिये NEER को मूल्य अपस्फीति (जैसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) द्वारा विभाजित करके तथा 100 से गुणा करके की जाती है।
- नाममात्र प्रभावी विनिमय दर (NEER): NEER घरेलू मुद्रा और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के बीच द्विपक्षीय विनिमय दरों का एक सरल औसत है, जो संबंधित व्यापार शेयरों द्वारा भारित होता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रा अवमूल्यन के क्या प्रभाव हैं?
- सकारात्मक प्रभाव:
- निर्यात को बढ़ावा: विदेशी खरीदारों के लिये भारतीय निर्यात किफायती हो गया है, अतः संभावित रूप से मांग बढ़ रही है तथा निर्यात आय में वृद्धि हो रही है।
- आवक प्रेषण: रुपया कमज़ोर होने से विदेशों में श्रमिकों को रुपए के विदेशी मुद्रा आय में परिवर्तित करने पर अधिक रुपए प्राप्त होंगें।
- इससे भारत में प्रयोज्य आय में वृद्धि हो सकती है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- उच्च आयात लागत: तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं सहित आयातित सामान अधिक महँगे हो जाते हैं।
- इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है, जहाँ वस्तुओं और सेवाओं का सामान्य मूल्य बढ़ जाता है, जिससे सामान्य व्यक्ति की क्रय शक्ति प्रभावित होती है।
- महँगा विदेशी ऋण: यदि भारत ने विदेशी मुद्राओं में पैसा उधार लिया है, तो कमज़ोर रुपए का मतलब है कि ऋणग्राही को ऋण चुकाने के लिये अधिक धनराशि देनी होगी।
- इससे सरकार की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ सकता है।
- विदेशी निवेश को हतोत्साहन: रुपए के मूल्य में गिरावट को आर्थिक अस्थिरता के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, जो संभावित रूप से विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है।
- उच्च आयात लागत: तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं सहित आयातित सामान अधिक महँगे हो जाते हैं।
मुद्रा का मूल्य ह्रास एवं अवमूल्यन:
लक्षण |
अवमूल्यन |
मूल्य ह्रास |
कारण |
शासन की नीतियाँ |
बाज़ार की शक्तियाँ (माँग एवं आपूर्ति) |
विनिमय दर प्रणाली |
निश्चित |
अनिश्चित |
वैचारिकता |
आर्थिक लाभ के लिये मुद्रा को कमज़ोर करने की जानबूझकर की गई कार्रवाई |
मूल्य में स्वाभाविक गिरावट |
नियंत्रण |
सरकारी नियंत्रण विनिमय दर |
बाज़ार विनिमय दर निर्धारित करता है, |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति और विनिमय दरों के बीच संबंध का विश्लेषण करें। इस संबंध से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें तथा उन्हें प्रबंधित करने के लिये नीतिगत उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय रुपए की गिरावट रोकने के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा एक सरकार/भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाने वाला सर्वाधिक संभावित उपाय नहीं है? (2019) (a) गैर-ज़रूरी वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण और निर्यात को प्रोत्साहन प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018) |