भारत में चीनी उद्योग की स्थिति | 28 Sep 2024

प्रिलिम्स के लिये:

FRP, SAP, CACP, रंगराजन समिति, WTO, गन्ना उद्योग, EBP कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति, भारत में गन्ना उत्पादन, इसकी संभावनाएँ और चुनौतियाँ

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

चर्चा में क्यों?

भारत के चीनी क्षेत्र में लंबे समय तक अनिश्चितता बने रहने के पश्चात् वर्तमान में इसकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है।

  • वर्तमान सीज़न के लिये उत्पादन अनुमानों में हाल ही में किये गए समायोजनों तथा अक्तूबर माह से शुरू होने वाले आगामी सीज़न के लिये आशावादी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में आपूर्ति की स्थिति में सुधार हो रहा है।

भारत में चीनी उद्योग की स्थिति क्या है?

  • उत्पादन एवं उपभोग डेटा:
    • उत्पादन: भारतीय चीनी मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार इथेनॉल डायवर्ज़न और निर्यात पर प्रतिबंध के बाद चीनी वर्ष (SY) 2024 में सकल चीनी उत्पादन 34.0 मिलियन मीट्रिक टन और निवल उत्पादन 32.3 मिलियन मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
      • अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार, वर्ष 2023-24 में 45.54 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ ब्राज़ील विश्व का शीर्ष चीनी उत्पादक था जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 25% है।
      • भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जिसका विश्व के कुल चीनी उत्पादन में लगभग 19% का योगदान है।
    • खपत और स्टॉक: चीनी की घरेलू खपत 28.5 मिलियन मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जिससे सितंबर 2024 तक शेष स्टॉक (Closing Stock) 9.4 मिलियन मीट्रिक टन हो जाएगा, जो गत वर्ष के 5.6 मिलियन मीट्रिक टन शेष स्टॉक से अधिक है।
    • इथेनॉल उत्पादन: इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ESY) 2024 की पहली छमाही के लिये 320 करोड़ लीटर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें मार्च 2024 तक 224 करोड़ लीटर की आपूर्ति की योजना शामिल थी, जो मिश्रण अनुपात को 11.96% करने पर आधारित था।
  • चीनी उद्योग का वितरण: चीनी उद्योग प्रमुखतः उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्रों में वितरित है:
    • उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब तथा दक्षिण भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश।
    • दक्षिण भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जो उच्च इक्षुशर्करा अथवा सुक्रोज़ सामग्री के लिये उपयुक्त है, जिससे उत्तर भारत की अपेक्षा यहाँ प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उपज होती है।
  • चीनी की वृद्धि के लिये भौगोलिक परिस्थितियाँ:
    • तापमान: 21 से 27°C की ऊष्ण एवं आर्द्र जलवायु।
    • वर्षा: 75 से 100 सेमी.
    • मृदा प्रकार: गहरी, उपजाऊ दुमटी मृदा।
  • चीनी निर्यात:

भारत में चीनी उद्योग का क्या महत्त्व है?

  • रोजगार सृजन: चीनी क्षेत्र अत्यधिक श्रम-प्रधान क्षेत्र है, जो लगभग 5 करोड़ किसानों और उनके परिवारों की आजीविका का साधन है।
    • इससे विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में चीनी मिलों और संबंधित उद्योगों में संलग्न 500,000 से अधिक कुशल श्रमिकों एवं साथ-साथ अनेक अर्द्ध-कुशल श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त होता है।
  • मूल्य-शृंखला संबंध: इस उद्योग का गन्ने की कृषि से लेकर चीनी और ऐल्कोहॉल के उत्पादन तक संपूर्ण मूल्य-शृंखला में योगदान है, जो विभिन्न क्षेत्रों को सहायता प्रदान करता है तथा स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • उपोत्पादों का आर्थिक योगदान: चीनी उद्योग से कई उपोत्पाद उत्पन्न होते हैं, जिनमें इथेनॉल, शीरा (मोलासिस) और खोई शामिल हैं, जो आर्थिक विकास में योगदान करते हैं। 
    • यह एक बहु-उत्पाद फसल बन गई है, जो न केवल चीनी व इथेनॉल के लिये बल्कि कागज़ और बिजली उत्पादन के लिये भी अपरिष्कृत माल के रूप में काम करती है।
  • पशुओं का आहार और पोषण: शीरा, चीनी उत्पादन का एक उपोत्पाद है, जो अत्यधिक पौष्टिक होता है एवं इसका उपयोग पशुओं के आहार और ऐल्कोहॉल के उत्पादन दोनों के लिये किया जाता है, जो कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
  • जैव ईंधन उत्पादन: भारत में अधिकांश इथेनॉल का उत्पादन गन्ने के शीरे से किया जाता है, जो इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के माध्यम से कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • खोई का उपयोग: खोई, चीनी निष्कर्षण के बाद प्राप्त रेशेदार अवशेष है जो ईंधन स्रोत के रूप में कार्य करता है और कागज़ उद्योग के लिये एक आवश्यक कच्चा माल है। कृषि अवशेषों से आवश्यक सेलुलोज़ का लगभग तीस प्रतिशत हिस्सा इसी से प्राप्त होता है।

भारत में चीनी उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जल-गहन फसल: हालाँकि गन्ना एक अत्यधिक जल-गहन फसल है किंतु मुख्य रूप से इसकी कृषि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे मानसून-निर्भर राज्यों में की जाती है, जिससे इन क्षेत्रों में जल की कमी की समस्या और बढ़ जाती है।
  • गन्ने की ऋतुनिष्ठ प्रकृति: गन्ने की ऋतुनिष्ठ उपलब्धता एक चुनौती है क्योंकि कटाई के बाद पेराई में यदि 24 घंटे से अधिक की देरी की जाती है तो इसके परिणामस्वरूप इसमें उपस्थित सुक्रोज़ की हानि होती है।
  • कम चीनी रिकवरी दर: भारतीय चीनी मिलों में चीनी रिकवरी दर 9.5-10% पर स्थिर बनी हुई है, जो कुछ अन्य देशों की 13-14% की दर से बहुत कम है। यह मुख्य रूप से बेहतर गन्ना किस्मों के विकास और फसल की उपज में सुधार करने में प्रमुख प्रगति की कमी के कारण है।
  • अनिश्चित उत्पादन: गन्ने की कृषि की प्रतिस्पर्द्धा अन्य खाद्य और नकदी फसलों जैसे कपास, तिलहन और चावल के साथ होती है, जिसके कारण आपूर्ति में घटत बढ़त और कीमत में अस्थिरता आती है। ऐसा विशेष रूप से अधिशेष अवधि के दौरान होता है जब कीमतों में गिरावट आती है।
  • अल्प निवेश और अप्रचलित तकनीक: अनेक चीनी मिलें, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, पुरानी हैं और अप्रचलित मशीनरी का उपयोग करती हैं, जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है।
  • गुड़ उत्पादन से प्रतिस्पर्धा: यद्यपि गुड़ में पोषण मूल्य अधिक होता है लेकिन चीनी की तुलना में इसमें इक्षुशर्करा प्राप्ति दर कम होती है, जिसके कारण जब गन्ने का उपयोग गुड़ उत्पादन के लिये किया जाता है तो देश को न निवल हानि होती है। 
    • इसके अतिरिक्त, गुड़ मिलें अक्सर चीनी मिलों की तुलना में कम कीमत पर गन्ना खरीदती हैं, जिससे किसान उन्हें अपना गन्ना बेचने के लिये प्रोत्साहित होते हैं, जिससे चीनी उत्पादन पर और अधिक असर पड़ता है।

चीनी उद्योग से संबंधित सरकार की क्या पहले हैं?

  • रंगराजन समिति (2012): इस समिति का गठन चीनी उद्योग में सुधार के लिये अनुशंसाएँ करने के लिये किया गया था जिसकी अनुशंसाएँ निम्नवत हैं:
    • चीनी के आयात और निर्यात पर मात्रात्मक नियंत्रण के स्थान पर उचित प्रशुल्क जैसे समाधान का क्रियान्वन करना तथा चीनी निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध को समाप्त करना।
    • चीनी मिलों के बीच 15 किमी. की न्यूनतम रेडियल दूरी की समीक्षा करना, जिससे उनका एकाधिकार स्थापित न हो और मिलों का किसानों पर असंगत नियंत्रण न हो।
    • उप-उत्पादों के लिये बाज़ार-निर्धारित कीमत का प्रावधान करना और राज्यों को नीतियों में सुधार के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे मिलों को खोई से विद्युत उत्पादित करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • मिलों की वित्तीय स्थिति सुधारने, किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने तथा गन्ना बकाया कम करने के लिये गैर-उगाही (Levy) चीनी की बिक्री पर प्रतिबंध हटाना।
  • उचित एवं लाभकारी कीमत (FRP): कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर, उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) को शामिल करते हुए, गन्ना मूल्य निर्धारण के लिये एक मिश्रित दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया।
  • पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण (EBP) कार्यक्रम: EBP पहल के तहत, गुड़/चीनी आधारित भट्टियों में इथेनॉल उत्पादन क्षमता वार्षिक रूप से 605 करोड़ लीटर तक बढ़ गई है तथा 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रयास जारी हैं।
  • विधायी उपाय:
    • आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955: ECA, 1955 के अंतर्गत चीनी क्षेत्र को नियंत्रित करने की शक्तियाँ प्रदान करते हुए चीनी और गन्ने से संबंधित विनियमन के प्रावधान किये गए हैं।
    • गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966: इसके अंतर्गत गन्ने के लिये FRP का निर्धारण किया गया है और इससे किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित होता है।
    • चीनी (नियंत्रण) आदेश, 1966: यह चीनी के उत्पादन, बिक्री, पैकेजिंग और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियंत्रण से संबंधित है।
    • चीनी मूल्य नियंत्रण आदेश, 2018: इसमें चीनी के लिये न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) का निर्धारण किया गया है और चीनी मिलों के निरीक्षण और भंडारण सुविधाओं की अनुमति प्रदान की गई है।

नोट:

  • उचित एवं लाभकारी कीमत (FRP): FRP का तात्पर्य उस न्यूनतम मूल्य से है जो चीनी मिलों को किसानों को गन्ने के लिये प्रदान की जानी होती है। इसे केंद्र सरकार द्वारा CACP की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के परामर्श से निर्धारित किया जाता है।
  • राज्य परामर्शित मूल्य (SAP): यद्यपि FRP केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है, राज्य सरकारें अपना स्वयं का SAP निर्धारित कर सकती हैं, जिसे चीनी मिलों को किसानों को भुगतान करना होता है, यदि कीमत FRP से अधिक होती है।

आगे की राह 

  • गन्ने हेतु अनुसंधान एवं विकास: गन्ने की कम उपज और कम इक्षुशर्करा प्राप्ति दरों का समाधान करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। अधिउत्पादक, जलाभावसह किस्मों को विकसित करने से दीर्घ अवधि में उत्पादकता और स्थिरता में सुधार हो सकता है।
  • राजस्व बँटवारे के फॉर्मूले का कार्यान्वयन: गन्ने के उचित मूल्य निर्धारण के लिये रंगराजन समिति के राजस्व बँटवारे के फॉर्मूले को अपनाया जाना चाहिये, जो चीनी और उप-उत्पादों की कीमतों पर आधारित है।
  • सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों को अपनाना: विश्वसनीय आँकड़ो के साथ गन्ना की कृषि करने वाले क्षेत्रों का सटीक मानचित्रण करने के लिये उन्नत सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • मूल्य समर्थन तंत्र: ऐसे मामलों में जहाँ फॉर्मूले द्वारा निर्धारित गन्ना मूल्य उचित मूल्य से नीचे हो जाता है, सरकार चीनी बिक्री पर लगाए गए उपकर से निर्मित एक समर्पित निधि के माध्यम से अंतर को पाट सकती है।
  • इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन: सरकार को तेल आयात पर निर्भरता कम करने, अतिरिक्त चीनी उत्पादन का प्रबंधन करने तथा चीनी और ऊर्जा बाज़ार दोनों को स्थिर करने के लिये इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न. भारत के चीनी उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इसके समर्थन के लिये लागू किये गए सरकारी उपायों का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शर्करा उद्योग के उपोत्पाद की उपयोगिता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013)

  1. खोई को, ऊर्जा उत्पादन के लिये जैव मात्रा ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  2. शीरे को, कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये एक भरण-स्टॉक की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।
  3. शीरे को, एथनॉल उत्पादन के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत के दक्षिणी राज्यों में नई चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है? न्यायसंगत विवेचन कीजिये। (2013)