ग्रामीण भारत की स्थिति | 27 Feb 2023
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय बजट 2023-24, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), स्वास्थ्य बीमा, पेंशन। मेन्स के लिये:ग्रामीण भारत की स्थिति, चुनौतियाँ और संभावनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण भारत पहले से ही संकट में है, इसके बावजूद केंद्रीय बजट 2023-24 में आर्थिक विकास को पुनर्रूप में लाने के लिये बहुत कम बजट प्रदान करने के साथ इसने सब्सिडी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की है, हालाँकि कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं के आवंटन में मामूली वृद्धि हुई है।
ग्रामीण भारत के संदर्भ में केंद्रीय बजट:
- कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ:
- पीएम किसान सहित कृषि और संबद्ध गतिविधियों के आवंटन में वित्त वर्ष 2023 में 1.36 ट्रिलियन करोड़ रुपए से लेकर वित्त वर्ष 2024 में 1.44 ट्रिलियन करोड़ रुपए (5.8% की वृद्धि) की मामूली वृद्धि हुई है।
- कृषि अनुसंधान और विकास:
- कृषि अनुसंधान एवं विकास पर आवंटन केवल 9,504 करोड़ रुपए है, हालाँकि यह वित्त वर्ष 2023 में 8,658 करोड़ रुपए से अधिक है।
- यह कृषि सकल मूल्यवर्द्धन का केवल 0.4% है, जबकि अन्य देश कृषि सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 1-2% खर्च करते हैं।
- कृषि सब्सिडी:
- इस बजट में खाद्य सब्सिडी में 31% की कटौती की गई है। पिछले वर्ष के 287,194 करोड़ रुपए की तुलना में अब इसमें 197,350 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
- उर्वरक सब्सिडी में पिछले वर्ष से 22% की कटौती की गई है और अब 175,099 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
- गरीबों हेतु तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas- LPG) पर सब्सिडी 75% घटाकर अब 2,257 करोड़ रुपए कर दी गई है।
- कॉटन कार्पोरेशन द्वारा मूल्य समर्थन योजना के तहत कपास की खरीद का बजट 2022-23 के 782 करोड़ रुपए से घटाकर एक लाख रुपए कर दिया गया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति:
- परिचय:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत की 65% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और 47% आबादी की आजीविका का मुख्य आधार कृषि है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि के प्रभुत्त्व के बारे में आम धारणा के विपरीत लगभग दो-तिहाई ग्रामीण आय अब गैर-कृषि गतिविधियों से उत्पन्न होती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले छह वर्षों में कृषि क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर 4.6% रही है। हालाँकि ऐसे अन्य कई कारण हैं जिनसे कृषि क्षेत्र और ग्रामीण आय काफी प्रभावित हो रही है।
- आर्थिक स्थिति:
- महामारी पूर्व स्थिति:
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा वर्ष 2018-19 के लिये कृषि परिवारों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण ने भारत में एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट का खुलासा किया, जिसका प्रमुख कारण मांग और आपूर्ति की समस्या थी।
- वर्ष 2014 से पहले अर्थव्यवस्था में गंभीर मंदी और बढ़ती मज़दूरी, भारत के उर्वरक-सब्सिडी सुधारों का खराब कार्यान्वयन तथा गैसोलीन की उच्च कीमतों के कारण इनपुट लागत में वृद्धि के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं की चेतावनी के संकेत पहले से ही थे।
- वर्ष 2014 और 2015 में लगातार सूखे की स्थिति बनी रहने के कारण यह समस्या और बढ़ गई।
- लेकिन वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र के पुनरोद्धार होने से पूर्व विमुद्रीकरण ने एक और नई समस्या खड़ी कर दी जिससे कई किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गई।
- तब से अर्थव्यवस्था ने एक तेज़ मंदी का अनुभव किया है, जिसके बाद कोविड महामारी आई है।
- कोविड महामारी के बाद से अर्थव्यवस्था में बड़ी मंदी देखी गई है।
- महामारी के बाद:
- वास्तविक रूप से देखें तो वर्ष 2021-2022 में प्रति व्यक्ति आय अभी भी वर्ष 2018-2019 के स्तर से नीचे रही है तथा वर्ष 2016-2017 एवं वर्ष 2021-2022 के बीच समग्र वृद्धि पिछले चार दशकों में 3.7% के न्यूनतम स्तर पर रही है। .
- महामारी पूर्व स्थिति:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये चुनौतियाँ:
- मुद्रास्फीति:
- ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च मुद्रास्फीति के कारण ग्रामीण आबादी की क्रय शक्ति में गिरावट देखने को मिली है। उच्च मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक ग्रामीण वेतन वृद्धि नकारात्मक रही है।
- हालाँकि सुधार के कुछ संकेत दिखने लगे हैं, परंतु कमज़ोर ग्रामीण मांग तेज़ी से बढ़ रहे उपभोक्ता उत्पादों और अन्य टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के लिये एक समस्या बनी है।
- कृषि क्षेत्र संबंधी मुद्दे:
- भारत में कई ग्रामीण परिवारों के लिये कृषि आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- सिंचाई सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त ऋण सुविधाएँ, कृषि उपज के लिये कम कीमत और अप्रत्याशित मौसम की स्थिति जैसे मुद्दे फसल की विफलता, बढ़ते कर्ज और किसानों की घटती आय का कारण बन सकते हैं।
- ग्रामीण रोज़गार के अवसरों की कमी:
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के सीमित अवसरों ने लोगों को काम की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन करने के लिये मजबूर किया है, जिससे ग्रामीण समुदायों का सामाजिक और आर्थिक विस्थापन हुआ है।
- खराब बुनियादी ढाँचा:
- ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं जैसे- पानी, बिजली, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सुविधाओं तक पहुँच की कमी ने इन क्षेत्रों के विकास एवं वृद्धि की क्षमता को सीमित कर दिया है।
- अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा:
- स्वास्थ्य बीमा, वृद्धावस्था पेंशन और दिव्यांगता लाभ जैसे पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा तंत्र की कमी के परिणामस्वरूप ग्रामीण परिवारों की भेद्यता में वृद्धि हुई है।
- राजकोषीय स्वायत्तता का अभाव:
- पंचायतों के पास कर की दरें और राजस्व आधार निर्धारित करने के संबंध में केवल सीमित शक्तियाँ हैं क्योंकि इस तरह के अभ्यास के लिये व्यापक मानदंड राज्य सरकार द्वारा तय किये जाते हैं।
- परिणामतः ऊर्ध्वाधर अंतर की सीमा और सशर्त अनुदानों की मात्रा बहुत अधिक है।
- यह ग्राम पंचायतों की राजकोषीय स्वायत्तता को कम करता है तथा कर्ज़ लेने एवं विकास की स्वतंत्रता हेतु इसमें कम गुंजाइश है।
भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अनुच्छेद 40 में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिये कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिये आवश्यक हों।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं का गठन ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के निर्माण के लिये किया गया और इन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
- संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में कृषि विस्तार, भूमि सुधार सहित 29 कार्यों को पंचायती राज निकायों के क्षेत्राधिकार में रखा गया है।
- पंचायतों को 11वीं अनुसूची में दर्शाए गए विषयों सहित पंचायतों के विभिन्न स्तरों पर कानून द्वारा हस्तांतरित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजनाएँ तैयार करने का अधिकार दिया गया है।
ग्रामीण सशक्तीकरण से संबंधित पहल:
आगे की राह
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में जलवायु परिवर्तन, बढ़ती उत्पादन लागत और कम उत्पादकता जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिये पुनर्विन्यास की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- सब्सिडी पर फिर से विचार करके बुनियादी ढाँचे और अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है तथा बाजरा, दालों, तिलहन, बागवानी, पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन में विविधीकरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- सर्वेक्षण में ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने और एमएसएमई (MSMEs) के लिये आय और रोज़गार को पुनर्जीवित करने के लिये नीतियों पर भी ध्यान देने का आह्वान किया गया है।
- भारत में राज्य सरकारी व्यय में 60%, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय पर 70%, सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं। केंद्र को कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आय और आजीविका, समावेशी विकास तथा स्थिरता में सुधार के लिये राज्यों के साथ मिलकर कार्य करना है।