मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण | 04 Oct 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:धार्मिक स्वतंत्रता, मूल अधिकार, अनुच्छेद 25। मुख्य परीक्षा के लिये:पूजा स्थलों पर राज्य नियंत्रण संबंधी मुद्दे, मंदिर प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेहिता, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में चढ़ाए जाने वाले पवित्र प्रसाद के रूप में तिरुपति लड्डू को लेकर हाल ही में हुए विवाद से हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर प्रकाश पड़ा है।
- लड्डुओं में मिलावटी घी पाए जाने के बाद इन मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करने की मांग फिर से उठने लगी है।
तिरुमाला वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) मंदिर
- यह तिरुमाला, आंध्र प्रदेश में वेंकट पहाड़ी पर स्थित है, जो तिरुमाला पहाड़ियों की सात पहाड़ियों (सप्तगिरि) में से एक है।
- यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है।
- इस मंदिर का इतिहास समृद्ध है जिसमें पल्लव, चोल और विजयनगर शासकों सहित विभिन्न दक्षिण भारतीय राजवंशों का प्रमुख योगदान रहा है।
- इसमें पारंपरिक दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला है जिसमें ऊँचा गोपुरम (प्रवेश द्वार) और जटिल नक्काशी है।
- इस मंदिर की एक उल्लेखनीय प्रथा यह है कि भक्तगण बाल दान करते हैं।
भारत में पूजा स्थलों का प्रबंधन कैसे किया जाता है?
- हिंदू मंदिर:
- सरकारी नियंत्रण: अधिकांश हिंदू मंदिरों का प्रबंधन राज्य के नियमों के तहत किया जाता है, कई राज्यों ने ऐसे कानून बनाए हैं जो मंदिर प्रशासन पर सरकार को अधिकार प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु का हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) विभाग मंदिर प्रबंधन की देखरेख करता है जिसमें वित्त और मंदिर प्रमुखों की नियुक्तियाँ शामिल हैं।
- आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा तिरुपति मंदिर के प्रबंधन हेतु उत्तरदायी, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के प्रमुख की नियुक्ति की जाती है।
- आय का उपयोग: प्रमुख मंदिरों से प्राप्त राजस्व को अक्सर छोटे मंदिरों और सामाजिक कल्याण पहलों जैसे अस्पतालों, अनाथालयों और शैक्षणिक संस्थानों के रखरखाव हेतु आवंटित किया जाता है।
- विधिक ढाँचा: राज्य को हस्तक्षेप की शक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(2) से प्राप्त होती है जिससे जवाबदेही सुनिश्चित करने के क्रम में धार्मिक प्रथाओं से संबंधित आर्थिक तथा सामाजिक गतिविधियों के विनियमन की अनुमति मिलती है।
- भारत में लगभग 30 लाख पूजा स्थलों में से अधिकांश हिन्दू मंदिर हैं (जनगणना 2011)।
- सरकारी नियंत्रण: अधिकांश हिंदू मंदिरों का प्रबंधन राज्य के नियमों के तहत किया जाता है, कई राज्यों ने ऐसे कानून बनाए हैं जो मंदिर प्रशासन पर सरकार को अधिकार प्रदान करते हैं।
- मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थल:
- सामुदायिक प्रबंधन: मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थलों की देखरेख आमतौर पर समुदाय-आधारित बोर्डों या ट्रस्टों द्वारा की जाती है, जो सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं, जिससे विकेन्द्रीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।
- सिख, जैन और बौद्ध मंदिर:
- सिख, जैन और बौद्ध मंदिरों का प्रबंधन राज्य स्तर पर सरकारी विनियमन के विभिन्न स्तरों के अधीन है, जबकि सामुदायिक भागीदारी की इनके प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- राज्य विधान और हस्तक्षेप:
- धार्मिक बंदोबस्त और संस्थाओं को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध किया गया है जिससे केंद्र और राज्य दोनों को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार है। इससे राज्यों में अलग-अलग विनियामक ढाँचे बन गए हैं।
- कुछ राज्यों जैसे जम्मू और कश्मीर ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन अधिनियम, 1988 के तहत व्यक्तिगत मंदिरों के लिये विशिष्ट कानून बनाए हैं, जो उनके प्रशासन एवं वित्तपोषण की रूपरेखा तैयार करते हैं।
मंदिरों के संबंध में राज्य विनियमन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1810 और 1817 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, मद्रास और बॉम्बे में कानून बनाए, जिससे आय के दुरुपयोग को रोकने के लिये मंदिर प्रशासन में हस्तक्षेप की अनुमति मिल गई।
- धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम (1863): ब्रिटिश सरकार के इस अधिनियम का उद्देश्य मंदिर के नियंत्रण को समितियों को हस्तांतरित करके मंदिर प्रबंधन को धर्मनिरपेक्ष बनाना था लेकिन नागरिक प्रक्रिया संहिता और धर्मार्थ तथा धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम (1920) जैसे विधिक ढाँचों के माध्यम से सरकारी प्रभाव को बनाए रखा गया।
- मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम (1925): इसके तहत हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती बोर्ड की स्थापना की गई, जो एक वैधानिक निकाय था। इसके साथ ही प्रांतीय सरकारों को मंदिर के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया, जिसमें आयुक्तों के एक बोर्ड को निरीक्षण की अनुमति दी गई।
- स्वतंत्रता के बाद:
- 1950 में भारतीय विधि आयोग ने मंदिर के धन के दुरुपयोग को रोकने के लिये कानून की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (TN HR&CE) अधिनियम, 1951 को अधिनियमित किया गया।
- इसमें मंदिरों और उनकी संपत्तियों के प्रशासन, सुरक्षा और संरक्षण के लिये हिंदू धार्मिक तथा धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के गठन का प्रावधान है।
- 1950 में भारतीय विधि आयोग ने मंदिर के धन के दुरुपयोग को रोकने के लिये कानून की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (TN HR&CE) अधिनियम, 1951 को अधिनियमित किया गया।
- लगभग उसी समय धार्मिक संस्थाओं को विनियमित करने के लिये बिहार में बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 पारित किया गया।
धार्मिक मामलों में राज्य के विनियमन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 25:
- अनुच्छेद 25(1) लोगों को अपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है जो लोक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन है।
- अनुच्छेद 25(2) राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने और सामाजिक कल्याण, सुधार के साथ हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिये खोलने के लिये कानून बनाने की अनुमति देता है।
- इसलिये धार्मिक आचरण के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने का मुद्दा, पूजा तक पहुँच प्रदान करने से अलग है।
- धार्मिक मामलों में राज्य के विनियमन से संबंधित न्यायिक उदाहरण:
- शिरूर मठ बनाम आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास मामला, 1954: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला दिया कि धार्मिक संस्थाओं को अनुच्छेद 26 (D) के तहत स्वतंत्र रूप से अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है जब तक कि वे लोक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के विपरीत नहीं होते हैं।
- हालांकि, राज्य धार्मिक या धर्मार्थ संस्थाओं के प्रशासन को विनियमित कर सकता है। इस मामले से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा के क्रम में महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम हुई।
- रतिलाल पानाचंद गांधी बनाम बॉम्बे राज्य मामला, 1954: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धार्मिक प्रथाएँ भी धार्मिक आस्था या सिद्धांतों की तरह ही धर्म का हिस्सा हैं लेकिन यह संरक्षण केवल धर्म के आवश्यक एवं अभिन्न अंगों तक ही सीमित है।
- पन्नालाल बंसीलाल पित्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला, 1996: सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर प्रबंधन पर वंशानुगत अधिकारों को समाप्त करने वाले कानून को बरकरार रखा और इस तर्क को खारिज कर दिया कि ऐसे कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होने चाहिये।
- स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला, 1977: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का प्रचार करने के अधिकार में जबरन धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है। इस फैसले ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों की वैधता को बरकरार रखा।
- शिरूर मठ बनाम आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास मामला, 1954: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला दिया कि धार्मिक संस्थाओं को अनुच्छेद 26 (D) के तहत स्वतंत्र रूप से अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है जब तक कि वे लोक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के विपरीत नहीं होते हैं।
मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग
- RSS द्वारा प्रारंभिक प्रस्ताव (1959): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपना पहला प्रस्ताव पारित किया जिसमें मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की गई, जिसमें धार्मिक संस्थानों के स्व-प्रबंधन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- काशी विश्वनाथ मंदिर मामला (1959): अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) ने उत्तर प्रदेश सरकार से काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन हिंदुओं को वापस करने का आग्रह किया तथा धार्मिक मामलों पर राज्य के एकाधिकार की आलोचना की।
- हालिया घटनाक्रम (2023): मध्य प्रदेश सरकार ने मंदिरों पर राज्य की निगरानी में ढील देने के लिये कदम उठाए हैं जो धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण के पुनर्मूल्यांकन की बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत है।
पूजा स्थलों पर राज्य के नियंत्रण के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?
- राज्य के नियंत्रण के पक्ष में तर्क:
- कुप्रबंधन को रोकना: सरकारी नियंत्रण से मंदिर के धन के प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित होने के साथ इसके दुरुपयोग में कमी आती है।
- सभी जातियों को प्रवेश: राज्य पर्यवेक्षण से सामाजिक सुधारों को लागू करने में मदद मिलती है, जैसे सभी जातियों के लोगों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश की अनुमति देना।
- कल्याणकारी गतिविधियाँ: बड़े मंदिर, अस्पतालों और स्कूलों जैसी कल्याणकारी गतिविधियों के लिये धन मुहैया कराते हैं। सरकारी निगरानी से सुनिश्चित होता है कि इन निधियों का उपयोग सार्वजनिक भलाई के लिये किया जाए।
- व्यावसायीकरण से संरक्षण: राज्य द्वारा मंदिरों को निहित स्वार्थों से होने वाले शोषण से बचाया जा सकता है।
- राज्य नियंत्रण के विरुद्ध तर्क:
- धार्मिक स्वतंत्रता: संविधान का अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करने के अधिकार की गारंटी देता है और राज्य का अत्यधिक हस्तक्षेप इस अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: मंदिरों पर राज्य नियंत्रण के परिणामस्वरूप अक्सर राजनीतिक हस्तक्षेप होता है, मंदिर के संसाधनों में हेराफेरी की जाती है और धन का गैर-धार्मिक उद्देश्यों में उपयोग किया जाता है।
- भेदभावपूर्ण: हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को भेदभावपूर्ण माना जाता है, क्योंकि अन्य धार्मिक पूजा स्थलों पर समान नियंत्रण नहीं लगाया जाता है।
- सांस्कृतिक स्वायत्तता: मंदिर सांस्कृतिक केंद्र हैं और उनका प्रबंधन स्थानीय समुदाय के हितों (न कि राज्य के) में होना चाहिये।
आगे की राह:
- धार्मिक और प्रशासनिक क्षेत्रों का पृथक्करण: प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिये धार्मिक कार्यों और धर्मनिरपेक्ष प्रशासनिक कार्यों के बीच स्पष्ट रेखा खींचना आवश्यक है।
- सुशासन सिद्धांत: राज्य के अधिकारियों से मिलकर एक राज्य स्तरीय मंदिर प्रशासन बोर्ड का गठन किया जा सकता है, जो मंदिर प्रबंधन समिति (TMC) और स्थानीय मंदिर स्तरीय ट्रस्टों के साथ मिलकर कार्य करेगा, जिसमें पुजारी एवं समुदाय के सदस्य शामिल होंगे, ताकि विभिन्न प्रशासनिक कार्यों की देखरेख की जा सके।
- हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1991 में भी ऐसे मंदिर प्रशासन बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है।
- विशेष प्रयोजन वाहन (SPV): सभी मंदिरों के लिये विकास पहलों को संभालने के लिये एक मंदिर विकास और संवर्द्धन निगम (TDC) बनाया जाना चाहिये, जिसमें पर्यटन, मंदिर नेटवर्किंग, अनुसंधान संवर्द्धन, आईटी संवर्द्धन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: केरल में देवास्वोम मॉडल, जो जवाबदेही और पारदर्शिता पर ज़ोर देता है, मंदिर प्रबंधन में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये एक प्रभावी ढाँचे के रूप में कार्य करता है।
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