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सुरक्षा

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी

  • 08 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (Solid Fuel Ducted Ramjet) टेक्नोलॉजी का सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण लंबी दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल के स्वदेशी संस्करण के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है।

प्रमुख बिंदु

सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी: 

  • यह टेक्नोलॉजी एक मिसाइल प्रणोदन प्रणाली है जो रैमजेट इंजन (Ramjet Engine) सिद्धांत की अवधारणा पर आधारित है।
  • यह प्रणाली एक ठोस ईंधन पर आधारित है जो ईंधन के दहन के लिये आवश्यक ऑक्सीजन को हवा से लेती है, जिसको एयर एयर-ब्रीदिंग (Air-breathing)  कहते हैं
    • ठोस-प्रणोदक रॉकेटों के विपरीत, रैमजेट उड़ान के दौरान वायुमंडल से ऑक्सीजन लेता है। इस प्रकार यह वजन में हल्का है और अधिक ईंधन क्षमता वाला होता है।
  • DRDO ने वर्ष 2017 में SFDR को विकसित करना शुरू किया और जिसका वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में सफल परीक्षण किया गया।

महत्त्व:

  • DRDO को SFDR तकनीक का सफल परीक्षण लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइल विकसित करने में सक्षम करेगा।
  • वर्तमान में ऐसी तकनीक दुनिया के कुछ देशों के पास ही उपलब्ध है।
  • हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें SFDR तकनीक का उपयोग करके लंबी दूरी हासिल कर सकती हैं क्योंकि उन्हें ऑक्सीडाइज़र की आवश्यकता नहीं होती है।
  • SFDR पर आधारित मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ान भरती है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन:

रैमजेट

  • रैमजेट इंजन (Ramjet Engine), एयर ब्रीदिंग इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (forward motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (rotating compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है।
  • रैमजेट 3 मैक (ध्वनि की गति से तीन गुना) के आसपास सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से काम करते हैं और अधिकतम मैक 6 की गति तक इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • जब वाहन हाइपरसोनिक गति पर पहुँच जाता है तो रैमजेट इंजन की दक्षता कम होने लगती है।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था।
  • इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था।
  • रक्षा बलों द्वारा विभिन्न प्रकार की मिसाइलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम के तहत पाँच मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता को मान्यता दी गई।
  • IGMDP को औपचारिक रूप से 26 जुलाई, 1983 को भारत सरकार की मंज़ूरी मिली।
  • IGMDP के अंतर्गत विकसित मिसाइल हैं:
    • पृथ्वी - सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि – सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • त्रिशूल – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • आकाश – सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग -  तीसरी पीढ़ी की  टैंक भेदी मिसाइल।

स्रोत: पी.आई.बी.

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