अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान से सुरक्षा संबंधी खतरा
- 26 Aug 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), TAPI पाइपलाइन, UNSC, SCO, BRICS मेन्स के लिये:अफगानिस्तान में तालिबान शासन की बहाली का भारत एवं विश्व पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन की बहाली के बाद रूस और जर्मनी की सरकार के प्रमुखों के साथ संपर्क स्थापित किया। अफगानिस्तान में स्थिरता इस क्षेत्र की शांति और सुरक्षा से जुड़ी है और भारत इसका कोई अपवाद नहीं है।
- अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच मतभेदों तथा तालिबान को सुविधा प्रदान करने में पाकिस्तान की भूमिका के बावजूद रूस ने UNSC, SCO एवं BRICS जैसे अन्य मंचों पर द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय रूप से भारत के साथ काम करने में रुचि दिखाई है।
प्रमुख बिंदु
अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी:
- वर्ष 2020 में अमेरिका ने तालिबान के साथ (कतर की राजधानी दोहा में) एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की पूर्ण वापसी की परिकल्पना की गई थी।
- हालाँकि उस समझौते में प्रमुख दोष यह था कि इसमें अफगान सरकार को बाहर कर दिया गया था।
- इसके अलावा वे तालिबान लोकतांत्रिक सरकार को वैध शासक के रूप में नहीं देखते हैं और वे संविधान के शासन या लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते हैं।
- इसलिये अमेरिकी सैनिकों की वापसी के तुरंत बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में राजधानी काबुल सहित प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा कर लिया।
- इसने सीमा पार आतंकवाद, मानवीय संकट और नई भू-राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में विभिन्न चिंताओं को उठाया है।
अफगानिस्तान से निष्कासित आतंकवादी भारत के लिये खतरा:
- सीमा पार आतंकवाद: भारत सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे से चिंतित है, जो अब तालिबान शासन के वापस आने के बाद बढ़ सकता है।
- लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह, जो तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं और जिन्हें पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है, क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये खतरा हैं।
- धार्मिक कट्टरवाद: सभी कट्टरपंथी समूहों की तरह तालिबान को अपनी धार्मिक विचारधारा को राज्य के हितों की अनिवार्यता के साथ संतुलित करने में परेशानी होगी।
- नए क्षेत्रीय भू-राजनीतिक विकास: चीन-पाकिस्तान-तालिबान के बीच नई क्षेत्रीय भू-राजनीतिक धुरी का निर्माण हो सकता है, जो भारत के हितों के खिलाफ हो सकता है।
- आर्थिक नुकसान: तालिबान के वापस आने से अफगानिस्तान में भारत का निवेश खतरे में पड़ जाएगा। यह अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया के लिये कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बाधित करेगा।
- उदाहरण के लिये चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), TAPI पाइपलाइन।
अफगानिस्तान के साथ संबंधों में भारत की राजनयिक भागीदारी:
- हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) की बैठक की अध्यक्षता की।
- इस बैठक में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन द्वारा विचार हेतु ब्रिक्स काउंटर टेररिज़्म एक्शन प्लान को अपनाने हेतु सिफारिश की गई।
- कार्ययोजना का उद्देश्य निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग के मौजूदा तंत्र को और अधिक मज़बूती प्रदान करना है:
- आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटना।
- आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग पर अंकुश।
- आतंकवादियों की यात्रा पर अंकुश।
- सीमा नियंत्रण।
- क्षमता निर्माण।
- क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 31वें विशेष सत्र में भारत द्वारा अफगानिस्तान में गंभीर मानवाधिकार चिंताओं और स्थिति पर विभिन्न चिंताओं को उठाया गया।
आगे की राह:
- तालिबान के साथ बातचीत: तालिबान से बात करके भारत निरंतर विकास सहायता के बदले विद्रोहियों से अपनी सुरक्षा गारंटी की मांँग कर सकता है।
- भारत, तालिबान को पाकिस्तान से अपनी स्वायत्तता की संभावना तलाशने हेतु भी राजी कर सकता है।
- वैश्विक आतंकवाद से लड़ना: वैश्विक समुदाय को आतंकवाद की वैश्विक चिंता के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है।
- इस संदर्भ में अब ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक कन्वेंशन’ (1996 में भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित) को अपनाने का समय आ गया है।
- क्षेत्रीय सहयोग: तालिबान के पुनरुत्थान के साथ अफगानिस्तान से एक राजनीतिक समझौते में भारत और तीन प्रमुख क्षेत्रीय देशों जिनमें चीन, रूस और ईरान शामिल हैं, के हित आपस में जुड़े हुए हैं।
- इसलिये इस मोर्चे पर समान विचारधारा वाले देशों से सहयोग की ज़रूरत है।