सामाजिक न्याय
विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना
- 31 Aug 2022
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प्रिलिम्स के लिये:विमुक्त,घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT), संबंधित आयोग और समितियाँ, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास और कल्याण बोर्ड (DWBDNC), DNT के लिये योजनाएँ। मेन्स के लिये:अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, भारत में गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों की स्थिति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, SEED (विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना) के तहत लाभ प्राप्त करने के लिये केवल 402 ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए हैं।
- सरकार के पास उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 1400 समुदायों के 10 करोड़ जनसंख्या इन समूहों से संबंधित हैं।
विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना (SEED):
- परिचय:
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में विमुक्त/घुमंतू/अर्द्ध-घुमंतू (SEED) समुदायों के आर्थिक सशक्तिकरण की योजना शुरू की गई थी।
- इसका उद्देश्य इन छात्रों को मुफ्त प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग प्रदान करना, परिवारों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना, साथ ही आजीविका पहल के माध्यम से इन समुदायों के समूहों का उत्थान करना एवं आवास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- घटक:
- इन समुदायों के छात्रों को सिविल सेवा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, MBA आदि जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये मुफ्त कोचिंग।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के प्रधानमंत्री आवास योजना (PMJAY) के माध्यम से स्वास्थ्य बीमा।
- आय सृजन हेतु आजीविका
- आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से)।
- विशेषताएँ:
- यह वर्ष 2021-22 से अगले पाँच वर्षों में 200 करोड़ रुपए का खर्च सुनिश्चित करेगा।
- गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DWBDNC) के लिये विकास और कल्याण बोर्ड को इस योजना के कार्यान्वयन का काम सौंपा गया है।
- विभाग द्वारा ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया गया है जो निर्बाध पंजीकरण सुनिश्चित करेगा और इन समुदायों पर डेटा के संग्रह के रूप में भी कार्य करेगा।
विमुक्त , घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ:
- ये सबसे सुभेद्य और वंचित समुदाय हैंं।
- विमुक्त ऐसे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम से शुरू होने वाली कानूनों की एक शृंखला के तहत 'जन्मजात अपराधी' के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था।
- इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में निरस्त कर दिया गया और इन समुदायों को ‘विमुक्त’ कर दिया गया था।
- इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें विमुक्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी खानाबदोश थे।
- खानाबदोश और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
- ऐतिहासिक रूप से घुमंतू और विमुक्त जनजातियों की कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
- जबकि अधिकांश विमुक्त समुदाय, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में वितरित हैं, वहीं कुछ विमुक्त समुदाय SC, ST या OBC श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं।
- आज़ादी के बाद से गठित कई आयोगों और समितियों ने इन समुदायों की समस्याओं का उल्लेख किया है।
- इनमें संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में गठित आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 भी शामिल है।
- वर्ष 1949 की अनंतशयनम् आयंगर समिति (इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त किया गया था)।
- काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
- वर्ष 1980 में गठित मंडल आयोग ने भी इस मुद्दे पर कुछ सिफारिशें की थीं।
- संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग (NCRWC), 2002 ने भी माना था कि विमुक्त समुदायों को अपराध प्रवण के रूप में गलत तरीके से कलंकित किया गया है और कानून-व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण के अधीन किया गया है।
- NCRWC की स्थापना न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में हुई थी।
- एक अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी यायावर/खानाबदोश आबादी (Nomadic Population) निवास करती है।
- भारत में लगभग 10% आबादी विमुक्त और खानाबदोश है।
- जबकि विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, खानाबदोश जनजातियों की आबादी में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।
DNT के संबंध में विकासात्मक प्रयास :
- पृष्ठभूमि:
- तत्कालीन सरकार द्वारा वर्ष 2006 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिये एक राष्ट्रीय आयोग (De-notified, Nomadic and Semi-Nomadic Tribes- NCDNT) का गठन किया गया था।
- इसकी अध्यक्षता बालकृष्ण सिदराम रेन्के (Balkrishna Sidram Renke) द्वारा की गयी इस आयोग ने वर्ष 2008 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- आयोग के अनुसार “यह विडंबना है कि ये जनजातियाँ किसी तरह हमारे संविधान निर्माताओं के ध्यान से वंचित रही हैं।
- वे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विपरीत संवैधानिकअधिकारों से वंचित हैं।
- रेन्के आयोग ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर उनकी जनसंख्या लगभग 10.74 करोड़ होने का अनुमान लगाया था।
- इदाते आयोग:
- राष्ट्रीय आयोग का गठन वर्ष 2015 में श्री भीकू रामजी इदाते की अध्यक्षता में किया गया था।
- इस आयोग को विभिन्न राज्यों में इन समुदायों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में इन समुदायों की पहचान और उचित सूची बनाने का कार्य सौंपा गया था ताकि इन समुदायों के विकास हेतु एक व्यवस्थित दृष्टिकोण का विकास किया जा सके।
- इस आयोग की सिफारिश के आधार पर, भारत सरकार ने वर्ष 2019 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिये विकास और कल्याण बोर्ड ( Development And Welfare Board For Denotified, Nomadic, And Semi-Nomadic Communities- DWBDNC) की स्थापना की।
- तत्कालीन सरकार द्वारा वर्ष 2006 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिये एक राष्ट्रीय आयोग (De-notified, Nomadic and Semi-Nomadic Tribes- NCDNT) का गठन किया गया था।
- DNT के लिये योजनाएँ:
- DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
- यह केंद्रीय प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
- वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
- वर्ष 2017-18 से "अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के कल्याण के लिये काम कर रहे स्वैच्छिक संगठन को सहायता" योजना का विस्तार DNT के लिये भी किया गया।
- DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: