खनिज अधिकारों पर राज्यों द्वारा करारोपण शक्ति को स्वीकृति | 25 Jul 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, संघ सूची, रॉयल्टी और कर, महत्त्वपूर्ण खनिज, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:खनन क्षेत्र, भारत के खनन क्षेत्र का महत्त्व, शासन और नीति, औद्योगिक विकास |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने खनिज अधिकारों पर करारोपण से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करते हुए अपने वर्ष 1989 के निर्णय को खारिज कर दिया है तथा इस संदर्भ में राज्य की शक्ति की पुनः पुष्टि की है।
- नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिये गए इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि खनिज रॉयल्टी पर संसद और राज्यों के पास कितना अधिकार है।
सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया?
- मामले की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय सुनाया कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा संघ सूची की प्रविष्टि 54 के तहत खनन विनियमन पर केंद्र का प्राथमिक अधिकार है।
- राज्यों को केवल रॉयल्टी वसूलने की अनुमति थी और अतिरिक्त करारोपण की अनुमति नहीं थी। न्यायालय ने रॉयल्टी को कर के रूप में वर्गीकृत किया और उन पर कोई भी उपकर राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
- वर्ष 2004 में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने वर्ष 1989 के एक निर्णय में मुद्रण संबंधी त्रुटि का सुझाव दिया था, जिसमें यह संकेत दिया गया कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है। इसके परिणामस्वरूप मौजूदा 9 न्यायाधीशों की पीठ ने इस निर्णय की समीक्षा की।
- वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय सुनाया कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा संघ सूची की प्रविष्टि 54 के तहत खनन विनियमन पर केंद्र का प्राथमिक अधिकार है।
- वर्ष 1989 के निर्णय को खारिज किया: सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय सुनाया कि वर्ष 1989 का वह निर्णय गलत था, जिसमें खनिजों पर रॉयल्टी को MMDRA, 1957 के तहत कर के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- राज्य बनाम केंद्रीय प्राधिकरण: न्यायालय ने इस तर्क पर ज़ोर दिया कि खनिज अधिकारों पर करारोपण शक्ति पूरी तरह से राज्यों के पास है, जबकि संसद केवल खनिज विकास में बाधाओं को रोकने के लिये सीमाएँ लगा सकती है।
- इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि संसद को संविधान की सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है, जो राज्य की शक्तियों को नियंत्रित करती है तथा यह कर नहीं, बल्कि प्रतिबंध लगाने तक सीमित है।
- संसद राज्यों के खनिज अधिकारों पर करारोपण के तरीके पर प्रतिबंध लगा सकती है, लेकिन वह सीधे कर नहीं लगा सकती। ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि खनिज विकास में बाधा न आए।
- इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि संसद को संविधान की सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है, जो राज्य की शक्तियों को नियंत्रित करती है तथा यह कर नहीं, बल्कि प्रतिबंध लगाने तक सीमित है।
- असहमतिपूर्ण राय: चेतावनी दी गई कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर करारोपण की अनुमति देने से सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत भूमि और भवनों पर भी करारोपण का प्रयास किया जा सकता है, जिससे संघीय प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी तथा खनिज मूल्य निर्धारण एवं विकास में एकरूपता समाप्त हो जाएगी।
- परिणामस्वरूप राज्य पुनः खनिजों पर करारोपण शुरू कर देंगे, जिससे कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न होगी तथा भारत में धातु विकास सहित अन्य प्रतिकूल आर्थिक परिणाम सामने आएंगे।
- खनिज मूल्य निर्धारण और विकास हितों में एकरूपता सुनिश्चित करने तथा राज्यों को खनिज अधिकारों पर करारोपण से रोकने के लिये संसद को हस्तक्षेप करना होगा।
रॉयल्टी और टैक्स में क्या अंतर है?
- वर्ष 2021 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 'रॉयल्टी' और 'कर' के बीच अंतर को रेखांकित किया था।
- रॉयल्टी: यह पार्टियों के बीच एक समझौते से उत्पन्न होती है। यह अनुदानकर्त्ता द्वारा प्राप्त अधिकारों और विशेषाधिकारों के लिये भुगतान किया गया मुआवजा है।
- रॉयल्टी भुगतान का अनुदान प्राप्तकर्त्ता को दिये गए लाभ या विशेषाधिकार के साथ सीधा संबंध होता है।
- यह समझौते के लिये विशिष्ट होता है और अक्सर संसाधनों के दोहन या अनुदानकर्त्ता द्वारा दिये गए विशेषाधिकार के उपयोग से जुड़ा होता है।
- उदाहरण: न्यायालय ने हिंगिर-रामपुर कोल कंपनी लिमिटेड बनाम उड़ीसा राज्य (1961), पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2004) और अन्य सहित कई मामलों का संदर्भ देते हुए यह स्थापित किया कि रॉयल्टी प्रत्यक्ष लाभ के साथ संविदात्मक दायित्व हैं।
- कर: यह करदाता को दिये गए किसी विशेष लाभ के संदर्भ के बिना एक वैधानिक शक्ति के तहत लगाया जाता है। इसे कानून द्वारा लागू किया जाता है और इसके लिये करदाता की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।
- कर सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये लगाए जाते हैं, लेकिन करदाता को कोई विशेष लाभ नहीं होता। ये सभी नागरिकों द्वारा वहन किये जाने वाले सामान्य बोझ का हिस्सा हैं।
- रॉयल्टी के विपरीत करों में कोई लेन-देन व्यवस्था शामिल नहीं होती है। भुगतान अनिवार्य है और यह किसी विशेषाधिकार या लाभ से जुड़ा नहीं है।
- उदाहरण: न्यायालय ने करों की विशेषताओं को उजागर करने के लिये हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम गुजरात अंबुजा सीमेंट लिमिटेड (2005) और जिंदल स्टेनलेस लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य (2017) सहित कई मामलों का उल्लेख किया।
खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 क्या है?
- यह भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कानून है। खनिज क्षेत्र में उभरती ज़रूरतों और चुनौतियों को उजागर करने के लिये इस अधिनियम में कई संशोधन किये गए हैं, ताकि राष्ट्रीय आर्थिक एवं सुरक्षा हितों के साथ इसका संरेखण सुनिश्चित किया जा सके।
- प्राथमिक उद्देश्य खनन उद्योग का विकास करना, खनिज संरक्षण सुनिश्चित करना तथा खनिज दोहन में पारदर्शिता और दक्षता लाना था।
- 2015 का संशोधन: इस व्यापक संशोधन ने कई प्रमुख सुधार प्रस्तुत किये।
- नीलामी पद्धति: आवंटन में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये खनिज रियायतों की अनिवार्य नीलामी।
- ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF): खनन से प्रभावित क्षेत्रों और लोगों को लाभ पहुँचाने के लिये DMF की स्थापना की गई।
- राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET): खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये NMET की स्थापना की गई।
- अवैध खनन के लिये दंड: अवैध खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाने हेतु कड़े दंड लागू किये गए।
- वर्ष 2016 और 2020 संशोधन: इस क्षेत्र के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये छोटे-छोटे मुद्दों का समाधान किया गया।
- 2021 संशोधन:
- कैप्टिव और मर्चेंट खदानों के बीच का अंतर हटा दिया गया।
- कैप्टिव खदानों का संचालन कंपनियों द्वारा विशेष रूप से अपने स्वयं के उपयोग के लिये खनिजों का उत्पादन करने हेतु किया जाता है। कैप्टिव खदानों से निकाले गए खनिज, अंतिम उपयोग संयंत्र की संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक खुले बाज़ार में बेच सकते हैं, जिसके लिये सरकार द्वारा मूल रूप से खनिज ब्लॉक आवंटित किया गया था।
- मर्चेंट खदानों का संचालन खुले बाज़ार में बिक्री के लिये खनिजों का उत्पादन करने के लिये किया जाता है। निकाले गए खनिजों को विभिन्न खरीदारों को बेचा जाता है, जिनमें वे उद्योग भी शामिल हैं जिनके पास अपनी खदानें नहीं हैं।
- केवल नीलामी रियायतें: यह सुनिश्चित किया गया कि सभी निजी क्षेत्र की खनिज रियायतें नीलामी के माध्यम से दी जाएँ।
- कैप्टिव और मर्चेंट खदानों के बीच का अंतर हटा दिया गया।
- वर्ष 2023 का संशोधन:
- खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज और निष्कर्षण को मज़बूत करना है।
- मुख्य संशोधनों में राज्य एजेंसियों द्वारा अन्वेषण तक सीमित 12 परमाणु खनिजों की सूची से 6 खनिजों को हटाना, सरकार को महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये विशेष रूप से खनिज रियायतों की नीलामी करने का अधिकार देना शामिल है।
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने और खनन कंपनियों को गहरे एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज में शामिल करने के लिये अन्वेषण लाइसेंस दिये गए।
- इन महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज और खनन में तेज़ी लाने के लिये आयात पर निर्भरता कम करने एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- भविष्य की प्रौद्योगिकियों के लिये लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों जैसे खनिजों के महत्त्व को मान्यता दी गई एवं वर्ष 2070 तक ऊर्जा परिवर्तन व शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को भी स्वीकार किया गया।
भारत में खनन क्षेत्र का परिदृश्य
- भारत के इस्पात क्षेत्र ने उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया है, जिससे यह विश्व में इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। वित्त वर्ष 2023-24 में देश का कच्चा इस्पात उत्पादन 144.04 मिलियन टन, तैयार इस्पात उत्पादन 138.83 मिलियन टन एवं तैयार इस्पात की खपत 136.65 मिलियन टन थी।
- पिछले वर्ष की तुलना में तैयार इस्पात उत्पादन में 12.68% से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि खपत में 13.9% की वृद्धि हुई
- भारत के पास कुल कोयला भंडार 344.02 बिलियन टन है और यह विश्व में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- कोयला क्षेत्र में, जून 2024 के दौरान उत्पादन 84.63 मिलियन टन था, जो जून 2023 की तुलना में 14.49% की वृद्धि दर्शाता है।
- पिछले वर्ष की तुलना में संचयी कोयला उत्पादन में 11.65% की वृद्धि हुई।
- मैंगनीज़ ओर (इंडिया) लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2023-24 में 17.56 लाख टन मैंगनीज अयस्क का उच्चतम उत्पादन हासिल किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 35% की वृद्धि दर्शाता है। भारत के खनिज उत्पादन में भी अप्रैल-फरवरी, 2023-24 की अवधि के लिये 8.2% की संचयी वृद्धि देखी गई। देश की FDI नीति स्टील और खनन क्षेत्रों के साथ-साथ कोयला एवं लिग्नाइट के लिये स्वचालित मार्गों के माध्यम से 100% FDI की अनुमति देती है।
- सत्र 2021-22 के लिये खनिज उत्पादन सूचकांक (आधार सत्र 2011-12) 113.3 है, जो सत्र 2020-21 की तुलना में 12.17% की वृद्धि दर्शाता है।
- सत्र 2021-22 के लिये खनिज उत्पादन (परमाणु और ईंधन खनिजों को छोड़कर) का कुल मूल्य लगभग 220000 करोड़ रुपए अनुमानित है, जिसमें धातु खनिजों का योगदान लगभग 120000 करोड़ रुपए है।
- भारतीय खनन उद्योग में बड़ी संख्या में छोटी परिचालित खदानें हैं। सत्र 2021-22 में भारत में खनिज उत्पादन (लघु खनिजों, ईंधन खनिजों और परमाणु खनिजों को छोड़कर) की रिपोर्ट करने वाली खदानों की संख्या 1319 थीं, जिनमें सबसे अधिक संख्या मध्य प्रदेश (263) में स्थित थी, इसके बाद गुजरात (147), कर्नाटक (132), ओडिशा (128), छत्तीसगढ़ (114), आंध्र प्रदेश (108), राजस्थान (90), तमिलनाडु (88), महाराष्ट्र (73), झारखंड (45) और तेलंगाना (39) थे।
- सत्र 2021-22 में इन 11 राज्यों की देश में कुल खदानों की संख्या में 93% हिस्सेदारी थी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. खनिज अधिकारों और रॉयल्टी के संबंध में केंद्र व राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन का परीक्षण कीजिये जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय द्वारा स्पष्ट किया गया है। |
और पढ़ें…
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में 'ज़िला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)' का/के उद्देश्य क्या है/ हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) |