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भारतीय राजव्यवस्था

विधेयकों को धन विधेयक घोषित करने की चुनौती पर उच्चतम न्यायालय की सुनवाई

  • 18 Oct 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, धन विधेयक, भारत की समेकित निधि, विधेयकों के प्रकार

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, न्यायिक समीक्षा

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केंद्र द्वारा संसद में धन विधेयक के रूप में महत्त्वपूर्ण संशोधनों को पारित करने के तरीके से संबंधित एक संदर्भ को प्राथमिकता देने के अनुरोध को संबोधित किया।

धन विधेयक के रूप में पारित चुनौतीपूर्ण संशोधन:

  • धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) संशोधन:
    • वर्ष 2015 के बाद से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) में किये गए संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिसमें गिरफ्तारी करने और छापेमारी का अधिकार भी शामिल है।
      • प्राथमिक चिंता इन संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पारित करना है, जिससे उनकी वैधता और संवैधानिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
      • कानूनी विशेषज्ञ और याचिकाकर्त्ता सवाल करते हैं कि क्या इन महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को संसद के दोनों सदनों से जुड़ी मानक विधायी प्रक्रिया का पालन करना चाहिये था।
  • वित्त अधिनियम, 2017:
    • वित्त अधिनियम, 2017 को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत एवं पारित किया गया, जिससे इस विधायी प्रक्रिया के उचित उपयोग के विषय में चिंताएँ बढ़ गईं।
    • आरोप है कि अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण सहित 19 प्रमुख न्यायिक न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों में बदलाव करना है।
      • आरोप है कि वर्ष 2017 अधिनियम को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करना इन न्यायाधिकरणों पर कार्यकारी नियंत्रण बढ़ाने को लेकर जानबूझकर किया गया एक प्रयास था।
    • अधिनियम के पारित होने के साथ-साथ ऐसे बदलाव भी हुए जिनसे इन प्रमुख न्यायिक निकायों में कर्मचारियों के लिये आवश्यक योग्यता और अनुभव को कम कर दिया गया।
  • आधार अधिनियम, 2016:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया था और आधार अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत वैध धन विधेयक के रूप में मंज़ूरी दे दी थी।
      • सरकार ने तर्क दिया था, चूँकि आधार के माध्यम से वितरित सब्सिडी भारत के समेकित कोष से आती है, इसलिये कानून को वैधानिक तौर पर धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया जिसने कानूनी और कार्यविधि संबंधी प्रश्न उठाए।   
        • धन विधेयक केवल लोकसभा के लिये होते हैं और राज्यसभा के प्रभाव को सीमित करते हैं।
      • हाल ही में CJI ने अधिक व्यापक समीक्षा के लिये कहा।

वृहद् पीठ (Larger Bench) के निहितार्थ:

  • PMLA, आधार अधिनियम और ट्रिब्यूनल सुधारों की संवैधानिकता पर स्पष्टता।
    • यह निर्धारित करना कि क्या इन कानूनों को सही तरीके से धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था अथवा राज्यसभा की जाँच को रोकने के लिये इनका प्रयोग किया गया था।
  • इस बात का समाधान करना कि क्या ये वर्गीकरण कानूनी रूप से सही थे या निगरानी से बचने के लिये रणनीतिक चालें थीं।
  • वृहद् पीठ के बीच बहस से इस बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है कि न्यायपालिका धन विधेयक के रूप में उपायों को नामित करने के संबंध में अध्यक्ष के निर्णयों पर किस हद तक जाँच कर सकती है।

धन विधेयक:

  • परिभाषा:
    • धन विधेयक एक वित्तीय कानून है जिसमें विशेष रूप से राजस्व, कराधान, सरकारी व्यय और उधार से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • संवैधानिक आधार:
    • अनुच्छेद 110 (1) किसी विधेयक को धन विधेयक समझा जाता है यदि वह अनुच्छेद 110 (1) (a) से (g) में निर्दिष्ट मामलों, विशेषकर कराधान, सरकार द्वारा उधार लेना और भारत की संचित निधि से धन के विनियोग, से संबंधित है।
      • अनुच्छेद 110(1)(g) के अनुसार "अनुच्छेद 110(1)(a)(f) में निर्दिष्ट किसी भी गतिविधि से जुड़ा कोई भी मामला" धन विधेयक हो सकता है।
    • संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार, “यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं”, तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।
  • प्रक्रिया:
    • धन विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाना चाहिये किंतु राज्यसभा (उच्च सदन) में यह प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
    • राज्य सभा किसी धन विधेयक पर केवल सिफारिशें कर सकती है लेकिन उसमें संशोधन करने या उसे अस्वीकार करने की शक्ति उसके पास नहीं है।
    • राष्ट्रपति किसी धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है लेकिन उसे पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता।
    • इसमें संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. धन विधेयक के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2018)

(a) किसी बिल (विधेयक) को धन विधेयक तब माना जाएगा जब इसमें केवल किसी कर के अधिरोपण, उन्मूलन, माफी,परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान हों।
(b) धन विधेयक में भारत की संचित निधि एवं भारत की आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा से संबंधित उपबंध होते है।
(c) धन विधेयक भारत की आकस्मिकता निधि से धन के विनियोजन से संबंधित होता है।
(d) धन विधेयक भारत सरकार द्वारा धन के उधार लेने या कोई प्रत्याभूति देने के विनियमन से संबंधित होता है।

उत्तर: (C)


प्रश्न. यदि किसी धन विधेयक में राज्य सभा द्वारा पर्याप्त संशोधन किया जाए तो क्या होगा ? (2013)

(a) लोकसभा अभी भी राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए विधेयक पर आगे बढ़ सकती है।
(b) लोकसभा इस विधेयक पर आगे विचार नहीं कर सकती।
(c) लोकसभा इस विधेयक को पुनर्विचार के लिये राज्यसभा में भेज सकती है।
(d) राष्ट्रपति विधेयक पारित करने के लिये संयुक्त बैठक बुला सकते हैं।

उत्तर: (A)

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