भारतीय राजनीति
विधान में धन विधेयक के उपयोग की जाँच सर्वोच्च न्यायालय करेगा
- 18 Jul 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत के मुख्य न्यायाधीश, धन विधेयक, संसद, राज्यसभा, अनुच्छेद 110, न्यायिक समीक्षा, सर्वोच्च न्यायालय, समेकित निधि मेन्स के लिये:भारतीय संविधान, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, न्यायिक समीक्षा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने संसद में विवादास्पद संशोधनों को पारित करने के लिये सरकार द्वारा धन विधेयक मार्ग के उपयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
- यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्यसभा की अवहेलना तथा संविधान के अनुच्छेद 110 के संभावित उल्लंघन से संबंधित है।
धन विधेयक के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?
- राज्यसभा को दरकिनार करना: प्राथमिक चिंताओं में से एक यह है कि विवादास्पद संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने से सरकार को राज्यसभा को दरकिनार करने का मौका मिल जाता है, जिससे संसद की द्विसदनीय प्रकृति कमज़ोर होती है।
- किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने से राज्यसभा को केवल उसमें परिवर्तन की सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है तथा उसे विधेयक को संशोधित करने या अस्वीकार करने का अधिकार नहीं होता।
- उच्च सदन के रूप में राज्यसभा कानून पर अतिरिक्त जाँच करती है। इसे दरकिनार करने से व्यापक बहस और निरीक्षण का अवसर कम हो जाता है।
- अनुच्छेद 110 का उल्लंघन: यह निर्दिष्ट करता है कि धन विधेयक क्या होता है। ऐसी चिंताएँ हैं कि धन विधेयक के रूप में चिह्नित किये गए कुछ संशोधन इन प्रावधानों का सख्ती से पालन नहीं करते हैं।
- अध्यक्ष का प्रमाणन: संविधान के अनुच्छेद 110 के अंतर्गत लोकसभा के अध्यक्ष को किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रामाणित करने का अधिकार है, यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है।
- इससे इस शक्ति के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता उत्पन्न होती है, जिससे विधायी प्रक्रियाओं को दरकिनार करने का अवसर मिल जाता है।
- चिंता को उजागर करने वाले विशिष्ट मामले:
- आधार अधिनियम: आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ तथा सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 को अनुच्छेद 110(1) के तहत धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिसके कारण व्यापक विवाद हुआ।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसमें बहुमत से फैसला दिया गया कि अधिनियम का मुख्य उद्देश्य सब्सिडी और लाभ प्रदान करना था, जिसमें समेकित निधि से व्यय शामिल है तथा इसलिये इसे धन विधेयक के रूप में पारित करने के योग्य माना गया।
- हालाँकि न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (जो उस समय मुख्य न्यायाधीश नहीं थे) ने असहमति जताते हुए कहा कि इस मामले में धन विधेयक की राह अपनाना "संवैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग" है।
- वित्त अधिनियम, 2017: वित्त अधिनियम, 2017 में कई अधिनियमों में संशोधन शामिल थे, जिनमें सरकार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों की सेवा शर्तों के संबंध में नियमों को अधिसूचित करने का अधिकार देना शामिल था।
- कई याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि वित्त अधिनियम, 2017 को पूरी तरह से रद्द कर दिया जाना चाहिये, क्योंकि इसमें ऐसे प्रावधान शामिल थे जिनका अनुच्छेद 110 में सूचीबद्ध विषयों से कोई संबंध नहीं था।
- वर्ष 2019 में रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने धन विधेयक पहलू को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भेज दिया था।
- धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) संशोधन: वर्ष 2015 से धन विधेयक के रूप में पारित PMLA में संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को गिरफ्तारी और छापेमारी सहित व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इन संशोधनों की वैधता को बरकरार रखा, लेकिन यह सवाल कि क्या उन्हें धन विधेयक के रूप में पारित किया जाना चाहिये था, सात न्यायाधीशों की पीठ पर छोड़ दिया।
- इन संशोधनों के माध्यम से दी गई व्यापक शक्तियों ने संभावित दुरुपयोग और विधायी जाँच को दरकिनार करने के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कीं।
- आधार अधिनियम: आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ तथा सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 को अनुच्छेद 110(1) के तहत धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिसके कारण व्यापक विवाद हुआ।
वर्ष 2019 के फैसले के बाद के घटनाक्रम
- सात न्यायाधीशों वाली पीठ (जिसका उल्लेख पहले किया गया है) ने अभी तक वैध धन विधेयक की अवधारणा से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार नहीं किया है, जिसका प्रभाव आगामी विधानों पर पड़ेगा।
- न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों और चुनावी कानूनों से संबंधित मामलों में धन विधेयक के प्रश्न को हल करने से परहेज़ किया है तथा बड़ी पीठ के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है।
धन विधेयकों के गलत वर्गीकरण के संभावित परिणाम क्या हैं?
- कानूनी चुनौतियाँ: विधेयकों को धन विधेयक के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करने से लंबी कानूनी लड़ाई हो सकती है, जिससे विधायी प्रक्रिया में अनिश्चितता बढ़ सकती है।
- विधायी उदाहरण: यदि न्यायपालिका इसे बरकरार रखती है, तो धन विधेयक का अनुचित उपयोग भविष्य की सरकारों के लिये राज्यसभा को दरकिनार करने का एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।
- लोगों का विश्वास: धन विधेयकों से संबंधित विवाद विधायी प्रक्रिया और संसदीय प्रक्रियाओं की अखंडता में जनता के विश्वास को खत्म कर सकते हैं।
- भारतीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव:
- धन विधेयकों के इर्द-गिर्द चल रही बहस और न्यायिक समीक्षा लोकसभा तथा राज्यसभा के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के महत्त्व को रेखांकित करती है।
- यह सुनिश्चित करना कि महत्त्वपूर्ण कानून के पारित होने में पर्याप्त जाँच और बहस शामिल हो, विधायी पारदर्शिता तथा जवाबदेही के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- संवैधानिक प्रावधानों को बनाए रखना और उनका दुरुपयोग रोकना भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता के लिये आवश्यक है।
धन विधेयक क्या है?
- परिचय: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है, जिसमें कहा गया है कि यदि किसी विधेयक में केवल विशिष्ट वित्तीय मामलों से संबंधित प्रावधान हों तो उसे धन विधेयक माना जाता है। इनमें शामिल हैं:
- कराधान संबंधी मामले: किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन।
- उधार विनियमन: केंद्र सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन।
- निधियों की अभिरक्षा: भारत की समेकित निधि (करों और उधार तथा ऋण के रूप में किये गए व्ययों के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त राजस्व) या आकस्मिकता निधि (अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिये धन) का प्रबंधन।
- निधियों का विनियोजन: समेकित निधि से धन का विनियोजन।
- व्यय घोषणा: समेकित निधि पर लगाए गए किसी भी व्यय की घोषणा।
- धन प्राप्ति: समेकित निधि या सार्वजनिक खातों से संबंधित धन की प्राप्ति।
- अन्य मामले: उपरोक्त प्रावधानों से संबंधित कोई भी मामले।
- लोकसभा अध्यक्ष का प्रमाणन: किसी विधेयक को धन विधेयक मानने का निर्णय लोकसभा अध्यक्ष के पास होता है। यह निर्णय अंतिम होता है और इस पर किसी भी न्यायालय या संसद के किसी भी सदन द्वारा सवाल नहीं उठाया जा सकता है तथा न ही राष्ट्रपति द्वारा इसे चुनौती दी जा सकती है।
- प्रमाणन के बाद अध्यक्ष विधेयक को धन विधेयक के रूप में अनुमोदित करते हैं, जब इसे सिफारिशों के लिये राज्यसभा को भेजा जाता है।
- विधायी प्रक्रिया: धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किये जा सकते हैं और राष्ट्रपति द्वारा अनुशंसित किये जाने होते हैं। उन्हें सरकारी विधेयक माना जाता है और उन्हें केवल मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
- लोकसभा में पारित होने के पश्चात् विधेयक को राज्यसभा में भेजा जाता है, जिसके पास सीमित शक्तियाँ होती हैं, जैसे यह धन विधेयक को अस्वीकार या संशोधित नहीं कर सकता है अपितु केवल अनुशंसाएँ कर सकता है और चाहे वह अनुशंसाएँ करे या नहीं 14 दिनों के भीतर विधेयक को वापस भेजा जाना होता है।
- लोकसभा राज्यसभा की अनुशंसाओं को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि लोकसभा किसी अनुशंसा को स्वीकार करती है तो विधेयक को संशोधित रूप में पारित माना जाता है; यदि वह उन्हें अस्वीकार करती है, तो यह अपने मूल रूप में पारित होता है।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: जब धन विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो वह या तो स्वीकृति दे सकता है या उसे विधारित (रोकना) रख सकता है किंतु पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता।
- प्रायः राष्ट्रपति धन विधेयकों को स्वीकृति दे देता है क्योंकि वे उसकी पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किये जाते हैं।
नोट: किसी विधेयक को केवल इस आधार पर धन विधेयक नहीं घोषित किया जा सकता क्योंकि इसमें ज़ुर्माना या आर्थिक दंड अधिरोपित करना, लाइसेंस या सेवाओं के लिये शुल्क की मांग या भुगतान तथा स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये कराधान शामिल है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. प्रतिविरोधात्मक संशोधनों को पारित करने हेतु सरकार द्वारा उन्हें धन विधेयक के रूप में घोषित करने से जुड़ी चिंताओं का मूल्यांकन कीजिये। ये प्रावधान किस प्रकार विधायी जवाबदेहिता को सुनिश्चित या कमज़ोर करते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. धन विधेयक के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2018) (a) किसी बिल (विधेयक) को धन विधेयक तब माना जाएगा जब इसमें केवल किसी कर के अधिरोपण, उन्मूलन, माफी, परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान हों। उत्तर: (c) प्रश्न. यदि किसी धन विधेयक में राज्य सभा द्वारा पर्याप्त संशोधन किया जाए तो क्या होगा? (2013) (a) लोकसभा अभी भी राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए विधेयक पर आगे बढ़ सकती है। उत्तर: (a) |