रेत और धूल भरी आँधी | 22 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD),  रेत और धूल भरी आँधी, कृषि, वनों की कटाई, अरल सागर, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन

मेन्स के लिये:

रेत और धूल भरी आँधी के स्रोत, रेत और धूल भरी आँधी के प्रभाव को कम करने के प्रभावी तरीके

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD) की हालिया बैठक में रेत और धूल भरी आँधियों के दूरगामी परिणामों पर प्रकाश डाला गया तथा उनके प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण नीतिगत सिफारिशें प्रस्तावित की गईं।

रेत और धूल भरी आँधी क्या है?

  • परिचय
    • रेत और धूल भरी आँधियाँ मौसम संबंधी घटनाएँ हैं जो तब घटित होती हैं जब तेज हवाएँ ज़मीन से बड़ी मात्रा में रेत और धूल के कण उठाती हैं तथा उन्हें लंबी दूरी तक ले जाती हैं।
      • वे मुख्य रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं लेकिन अपने स्रोत से दूर के क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
    • प्रतिवर्ष दो अरब टन से अधिक धूल वायुमंडल में प्रवेश करती है जो गहरे प्रभाव वाली एक वैश्विक घटना का निर्माण करती है।
  • रेत और धूल भरी आँधी के स्रोत:
    • UNCCD के अनुसार, रेत और धूल भरी आँधियाँ प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारकों के कारण होती हैं।
      • वैश्विक धूल उत्सर्जन का लगभग 75% दुनिया के शुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न होता है, जैसे अति-शुष्क क्षेत्र, स्थलाकृतिक अवसाद और शुष्क प्राचीन झील तल।
      • शेष 25% का श्रेय मानवीय गतिविधियों, मुख्यतः कृषि को दिया जाता है।
    • रेत और धूल भरी आँधियों के कुछ मानवजनित कारण हैं:
      • अस्थिर कृषि पद्धतियाँ: कृषि एक प्राथमिक मानवजनित स्रोत है, जिसमें जुताई, भूमि साफ करना और परित्यक्त फसल भूमि जैसी गतिविधियाँ धूल उत्सर्जन में योगदान करती हैं।
      • भूमि उपयोग परिवर्तन: वनों की कटाई और शहरीकरण सहित भूमि उपयोग के तरीको में परिवर्तन, सतहों की अस्थिरता में योगदान करते हैं, धूल उत्सर्जन को बढ़ाते हैं।
      • जल प्रवाह की दिशा को मोड़ना: कृषि उद्देश्यों के लिये नदियों से जल के अत्यधिक बहाव के कारण जल निकायों का संकुचन हो सकता है, जिससे रेत और धूल भरी आँधियों के नए स्रोत बन सकते हैं।
        • उदाहरण के लिये कई दशकों में मध्य एशिया की अधिकांश नदियों के जल को कृषि की ओर मोड़ने से अरल सागर सिकुड़ गया है, जो उत्तर में कज़ाखस्तान और दक्षिण में उज़्बेकिस्तान के बीच पहले से मौजूद एक झील है।
        •  यह अब अरलकुम रेगिस्तान बन गया है, जो रेत और धूल भरी आँधियों का एक महत्त्वपूर्ण नया स्रोत है।
    • जलवायु-संबंधित एम्पलीफायर:
      • शुष्कता और न्यूनतम वर्षा: उच्च वायु तापमान, न्यूनतम वर्षा और शुष्क परिस्थितियाँ इसके चालक के रूप में कार्य करती हैं, जो इन तूफानों की संभावना और तीव्रता को बढ़ाती हैं।
      • चरम मौसम की घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ पवन और लंबे समय तक सूखा, रेत एवं धूल भरी आँधियों की गंभीरता व आवृत्ति को बढ़ा देते हैं।
  • प्रभाव: 
    • पर्यावरणीय प्रभाव:
      • मृदा का क्षरण: रेत और धूल भरी आँधियाँ उपजाऊ ऊपरी मृदा को अलग कर देती हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता प्रभावित होती है।
        • इस क्षरण से भूमि की वनस्पति को सहारा देने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे कृषि प्रभावित होती है और मरुस्थलीकरण होता है।
        • उपजाऊ मृदा के नष्ट होने से जल प्रतिधारण और पोषक तत्त्वों की उपलब्धता भी प्रभावित होती है।
      • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: ये तूफान वनस्पति को नष्ट करके प्राकृतिक आवासों को बाधित और वन्य जीवन को प्रभावित करके पारिस्थितिकी तंत्र को बदल सकते हैं।
        • तूफानों द्वारा लाई गई आक्रामक प्रजातियाँ देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जिससे जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिक असंतुलन हो सकता है।
    • सामाजिक आर्थिक प्रभाव:
      • स्वास्थ्य पर प्रभाव: स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव व्यापक होते हैं, जो श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, एलर्जी उत्पन्न करते हैं और अस्थमा जैसी मौजूदा स्थितियों को बढ़ा देते हैं।
        • हाल की घटनाएँ, जैसे कि वर्ष 2021 में मंगोलिया में दो दिवसीय तूफान, मानव जीवन पर विनाशकारी प्रभाव को दर्शाता है, इससे हज़ारों लोग विस्थापित हुए और पशुधन की भारी हानि हुई।
      • आर्थिक हानि: रेत और धूल भरी आँधियाँ बुनियादी ढाँचे को नुकसान, कृषि उत्पादकता में कमी तथा परिवहन को बाधित कर एवं स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि करके आर्थिक नुकसान पहुँचाती हैं।
        • ये घटनाएँ स्थानीय और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हुए पर्यटन एवं व्यापार को भी प्रभावित कर सकती हैं।
      • सामाजिक विघटन: इन आँधियों के कारण दैनिक जीवन बाधित होने से सामाजिक अशांति, प्रवासन और विस्थापन हो सकता है।
    • वैश्विक निहितार्थ:
      • सीमा पार प्रभाव: रेत और धूल भरी आँधियाँ कई देशों को नुकसान पहुँचा सकती हैं क्योंकि वे भू-राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं हैं।
      • जलवायु प्रतिक्रिया: इन आँधियों के कारण विश्व स्तर पर धूल के कणों का परिवहन जलवायु प्रतिक्रिया चक्रों और मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है तथा संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन में योगदान दे सकता है।

नोट: संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) की रिपोर्ट सैंड एंड डस्ट स्ट्रोमस: ए गाइड टू मिटिगेशन, एडाप्टेशन, पालिसी एंड रिस्क मैनेजमेंट मेसर्स इन एग्रीकल्चर के अनुसार, रेत और धूल भरी आंधियाँ भी 17 सतत् विकास लक्ष्यों में से 11 को प्राप्त करने में एक कठिन चुनौती पेश करती हैं।

रेत और धूल भरी आँधियों के प्रभाव को कम करने के प्रभावी तरीके क्या हैं?

  • निवारक उपाय:
    • मृदा की नमी प्रबंधन: मृदा की नमी बनाए रखने और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये प्रभावी जल संरक्षण तरीकों को लागू करना।
    • नियामक ढाँचा: मृदा के क्षरण और धूल उत्सर्जन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों, जैसे- अतिचारण या अनुचित भूमि विकास को रोकने के लिये सख्त भूमि-उपयोग नियमों को लागू करना।
    • पर्यावरण-अनुकूल प्रथाएँ: मृदा की संरचना को संरक्षित करने और पवन के कटाव को कम करने हेतु कृषि वानिकी तथा समोच्च जुताई जैसी टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना।
  • तैयारी हेतु उपाय:
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: रेत और धूल भरी आँधियों का पूर्वानुमान लगाने के लिये प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास और कार्यान्वयन। यह समुदायों को तैयारी करने और आवश्यक सावधानी बरतने की अनुमति देता है।
    • शिक्षा और जागरूकता: समुदायों को रेत और धूल भरी आँधियों के जोखिमों, प्रभावों तथा सुरक्षात्मक उपायों के विषय में शिक्षित करने से भेद्यता को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएँ: प्रभावित समुदायों को आश्रय, चिकित्सा देखभाल व सहायता प्रदान करने सहित रेत और धूल भरी आँधी के दौरान तथा उसके बाद प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने हेतु योजनाएँ स्थापित करना।
  • शमन रणनीतियाँ:
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: धूल और रेत ले जाने वाली पवन की गति एवं प्रभाव को कम करने के लिये विंडब्रेक, बैरियर या ग्रीन बेल्ट जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
    • तकनीकी समाधान: धूल को रोकने तथा मृदा स्थिरीकरण के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों पर शोध एवं निवेश करने की आवश्यकता है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) क्या है?

  • UNCCD मरुस्थलीकरण तथा सूखे के प्रभावों का समाधान करने हेतु स्थापित एकमात्र विधिक रूप से बाध्यकारी ढाँचा है।
    • वर्तमान में इस अभिसमय में 197 पक्षकार हैं, जिनमें 196 पक्षकार देश तथा यूरोपीय संघ शामिल हैं।
  • भागीदारी, साझेदारी तथा विकेंद्रीकरण के सिद्धांतों पर आधारित यह अभिसमय, भूमि क्षरण के प्रभाव को कम करने तथा भूमि की रक्षा करने के लिये एक बहुपक्षीय प्रतिबद्धता है ताकि सभी लोगों को भोजन, जल, आश्रय एवं आर्थिक अवसर प्रदान कर सकें।
  • यह अभिसमय विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क तथा शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों के प्रभावों का समाधान  करता है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, जहाँ कुछ सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र एवं  लोग पाए जा सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)’ का/के क्या महत्त्व है/हैं? (2016)

  1. इसका उद्देश्य नवप्रवर्तनकारी राष्ट्रीय कार्यक्रमों एवं समर्थक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियों के माध्यम से प्रभावकारी कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है। 
  2. यह विशेष/विशिष्ट रूप से दक्षिण एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों पर केंद्रित होता है तथा इसका सचिवालय इन क्षेत्रों को वित्तीय संसाधनों के बड़े हिस्से का नियतन सुलभ कराता है। 
  3. यह मरुस्थलीकरण को रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु ऊर्ध्वगामी उपागम (बॉटम-अप अप्रोच) के लिये प्रतिबद्ध है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020)