सामाजिक न्याय
ऑनलाइन बाल दुर्व्यवहार में वृद्धि
- 13 Feb 2025
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, साइबर सुरक्षित भारत पहल मेन्स के लिये:बच्चों पर साइबरबुलिंग और ऑनलाइन यौन शोषण का प्रभाव, बच्चों से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
विभिन्न क्षेत्रों के 123 अध्ययनों के व्यापक विश्लेषण के आधार पर द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में विश्व भर में बच्चों के समक्ष ऑनलाइन यौन शोषण की बढ़ती चिंता पर प्रकाश डाला गया है।
ऑनलाइन बाल दुर्व्यवहार से संबंधित अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- दुर्व्यवहार की व्यापकता: इसमें बताया गया है कि पिछले दशक में वैश्विक स्तर पर 12 में से एक बच्चे (लगभग 8.3%) को ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है।
- शोषण के प्रकार: इस अध्ययन में ऑनलाइन यौन शोषण के कई उपप्रकारों की पहचान की गई है, जिनमें यौन संबंधी पूछताछ/बातचीत से संबंधित ऑनलाइन प्रलोभन (12.5%), बिना सहमति के छवि साझा करना (12.6%),ऑनलाइन यौन शोषण (4.7%) और सेक्सुअल एक्सटाॅर्शन (3.5%) शामिल हैं।
- लैंगिक गतिशीलता: बालक और बालिकाओं के बीच ऑनलाइन दुर्व्यवहार की दरों में कोई प्रमुख अंतर नहीं है, जिससे इस पूर्वधारणा को चुनौती मिलती है कि लड़कियाँ अधिक असुरक्षित हैं।
- इससे ऑनलाइन वातावरण और व्यवहार में बदलाव का संकेत मिलता है, जिससे लड़कों के लिये जोखिम बढ़ रहा है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: इस रिपोर्ट में ऑनलाइन यौन शोषण को गंभीर मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ा गया है, जिसमें जीवन प्रत्याशा और रोज़गार की संभावनाओं में कमी शामिल है।
ऑनलाइन बाल दुर्व्यवहार बढ़ने के क्या कारण हैं?
- इंटरनेट तक पहुँच में वृद्धि: व्यापक इंटरनेट पहुँच ने बच्चों की ऑनलाइन उपस्थिति (इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं का 1/3) में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे ये शोषण के प्रति संवेदनशील हो गए हैं, विशेष रूप से अनियंत्रित सोशल मीडिया और गेमिंग में।
- महामारी से संबंधित कारक: कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन गतिविधि में वृद्धि ने अपराधियों को बच्चों का शोषण करने में सक्षम बनाया, जिससे दुर्व्यवहार के मामलों में वृद्धि हुई, जिसमें मार्च 2020 से अब तक सेक्टॉर्शन के मामलों में तीन गुना वृद्धि देखी गई।
- प्रौद्योगिकी में उन्नति: बड़ी संख्या में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) उपकरणों और डिजिटल प्लेटफॉर्मों के प्रयोग ने अपराधियों के लिये बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) बनाना और वितरित करना आसान बना दिया है, जिसका पता लगाना मुश्किल है।
- डिजिटल साक्षरता का अभाव: ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में सीमित जागरूकता उपयोगकर्त्ताओं को असुरक्षित बनाती है; केवल 38% भारतीय परिवार डिजिटल रूप से साक्षर हैं।
- अपर्याप्त निगरानी और प्रवर्तन: विधिक प्रवर्तन और प्रौद्योगिकी कंपनियों को तेजी से विकसित हो रहे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के साथ तालमेल बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे निगरानी और प्रवर्तन में अंतराल रह जाता है।
ऑनलाइन बाल शोषण से संबंधित भारत की पहल
- विधायी एवं नीतिगत उपाय:
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 ऑनलाइन शोषण समेत बाल यौन शोषण से निपटने के लिये विधिक ढाँचा प्रदान करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 में बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध से संबंधित प्रावधान हैं।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 ऑनलाइन दुर्व्यवहार सहित बाल संरक्षण मुद्दों को संबोधित करता है।
- संस्थागत तंत्र:
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: बाल दुर्व्यवहार मामलों की ऑनलाइन रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करता है।
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) बाल शोषण समेत साइबर अपराधों के खिलाफ विधिक प्रवर्तन प्रयासों को मज़बूत करता है।
ऑनलाइन बाल दुर्व्यवहार को रोकने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- सशक्त कानून और प्रवर्तन:
- सशक्त कानून: अपराधियों के लिये अधिक दंड के साथ कठोर कानूनी ढाँचे को लागू करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सीमा पार दुर्व्यवहार नेटवर्क को नष्ट करने के लिये इंटरपोल और FBI जैसी एजेंसियों के साथ सहयोग को मज़बूत करना।
- रिपोर्टिंग प्रणाली की सुदृढ़ता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के लिये वास्तविक समय रिपोर्टिंग और निगरानी उपकरणों में सुधार करना, गोपनीय हेल्पलाइन स्थापित करना साथ ही दुर्व्यवहार सामग्री को साझा करने के उभरते तरीकों की रिपोर्ट करने के लिये सोशल नेटवर्क को प्रोत्साहित करना।
- जन जागरूकता और शिक्षा: बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के लिये जागरूकता अभियानों के माध्यम से डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा को बढ़ावा देना।
- बच्चों के लिये समर्पित अनुभाग, सोशल मीडिया और ब्राउज़िंग प्लेटफॉर्म पर "सुरक्षित खोज", कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित सामग्री फिल्टरिंग और अभिभावकीय नियंत्रण जैसी सुविधाओं के माध्यम से ऑनलाइन सुरक्षा बढ़ाने की आवश्यकता है।
- तकनीकी उद्योग के साथ सहयोग: तकनीकी कंपनियों को सामग्री का कठोरता से मॉडरेशन करने, आयु-सत्यापन की बेहतर विधि अपनाने और डार्क वेब प्लेटफार्मों पर CSAM के निर्माण की रोकथाम करने हेतु एथिकल AI साधन विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान की आवश्यकता: साक्ष्य-आधारित नीतियाँ तैयार करने और बाल संरक्षण ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिये, विशेष रूप से विश्व के अल्प प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में व्यापक अनुसंधान और डेटा संग्रह में निवेश करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में साइबर अपराध की स्थिति और बालकों पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। इन खतरों का समाधान करने के उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त, सामान्यतः निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं ? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में, साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिए विधितः अधिदेशात्मक है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक एक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |