सामाजिक न्याय
अंगदान में वृद्धि
- 21 Dec 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंगदान, कोविड-19 महामारी, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मेन्स के लिये:अंगदान में वृद्धि और मृतक दान में वृद्धि की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष के दौरान गिरावट के बाद वर्ष 2021 में अंगदान की संख्या में फिर से वृद्धि देखी गई है।
- भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मानव अंगों को पृथक/अलग करने एवं इसके भंडारण संबंधी विभिन्न नियम प्रदान करता है। यह चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये और मानव अंगों की व्यावसायिकता की रोकथाम हेतु मानव अंगों के प्रत्यारोपण को भी नियंत्रित तथा विनियमित करता है।
भारत में अंगदान की स्थिति:
- भारत में अंगदान की दर प्रति मिलियन जनसंख्या पर लगभग 0.52 है। इसकी तुलना में स्पेन में अंगदान की दर, जो कि विश्व में सबसे अधिक है, प्रति मिलियन जनसंख्या पर 49.6 है।
- भारत में अंगदान संबंधी प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि यहाँ एक व्यक्ति को अंगदाता होने के लिये पंजीकरण करना पड़ता है, मृत्यु के बाद परिवार की सहमति आवश्यक होती है लेकिन स्पेन में यह सहज प्रणाली है जहाँ एक व्यक्ति को स्वतः ही अंगदाता माना जाता है जब तक कि उक्त व्यक्ति द्वारा कुछ अन्य स्पष्ट न किया गया हो।
- अंगदान में वृद्धि तो हुई है लेकिन जीवित व्यक्तियों द्वारा दान की तुलना में मृतक दान में कमी देखी जा रही है।
- मृतक दान से तात्पर्य उन मृतकों के परिजनों द्वारा दान किया गया अंग है, जिन्हें ब्रेन डेथ या कार्डियक डेथ का सामना करना पड़ा।
- वर्ष 2019 में मृतकों के माध्यम से प्राप्त अंग 16.77% फीसदी थे, जबकि वर्ष 2021 में यह मात्र 14.07 फीसदी रहे।
- वर्ष 2021 में प्राप्त 12,387 अंगों में से केवल 1,743 जो कि 14% से थोड़ा अधिक है, मृतक दाताओं से प्राप्त हुए थे। वर्ष 2021 की यह संख्या विगत पाँच वर्षों (2019 में 12,746) में सबसे अधिक थी।
- भौगोलिक स्तर पर मृतक दान में विषमता भी है। इस संदर्भ में शीर्ष पाँच राज्य- तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक हैं जिनका कुल अंगदान में 85% से अधिक का योगदान है। गोवा में एक मृतक दाता से दो अंग प्राप्त हुए।
- भौगोलिक विषमता का एक कारण यह हो सकता है कि अधिकांश अंग प्रत्यारोपण और प्राप्ति (harvesting) केंद्र इन्ही भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित/स्थित हैं।
मृतक दान बढ़ाने की आवश्यकता:
- आवश्यक अंगों की संख्या में अंतर:
- पहला कारण देश में प्राप्त होने वाले अंगों की संख्या और प्रत्यारोपण की संख्या में अंतर है।
- भारत, दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा प्रत्यारोपणकर्त्ता (संख्या के आधार पर) है।
- फिर भी अनुमानित 1.5-2 लाख व्यक्ति जिन्हें हर साल गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, में से केवल 8,000 को ही गुर्दा मिल पाता है।
- 80,000 व्यक्ति, जिन्हें लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, उनमें से केवल 1,800 को ही लिवर मिल पाता है तथा 10,000 व्यक्ति जिन्हें हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, उनमें से केवल 200 को ही हृदय प्राप्त हो पाता है।
- जीवनशैली से संबंधित रोगों की व्यापकता:
- जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बढ़ते प्रसार के कारण मांग बढ़ रही है।
- इसके अलावा हृदय और फेफड़े जैसे अंगों को केवल मृतक दाताओं से ही प्राप्त किया जा सकता है।
- केवल ब्रेन डेड/‘मानसिक मृत’ व्यक्तियों से अंगों को प्राप्त किया जाना:
- दूसरा कारण यह है कि मृतक दान के बिना एक आवश्यक संसाधन नष्ट हो जाता है।
- भारत में हर साल लगभग 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, जिनमें से कई का आदर्श रूप से अंग दान किया जा सकता है।
- हृदय के मृत होने के बाद भी अंगदान संभव है, हालाँकि वर्तमान में लगभग सभी अंगों को ब्रेन डेड व्यक्तियों से ही लिया जाता है।
आगे की राह
- सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमज़ोर वर्ग तक भी पहुँच सकें। इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
- यह सुझाव दिया जाता है कि क्रॉस-सब्सिडी से कमज़ोर वर्ग तक पहुँच बढ़ेगी। निजी अस्पतालों को प्रत्येक 3 या 4 प्रत्यारोपण आबादी के उस हिस्से के लिये निशुल्क करना चाहिये जो अधिकांश अंग दान करते हैं।
- मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 में संशोधन की आवश्यकता है ताकि अस्पतालों की कठोर नौकरशाही प्रक्रियाओं के इतर नागरिकों की स्व-घोषणा द्वारा स्वतः ही सत्यापित कर उन्हें प्रतिस्थापित किया जा सके।