जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रीष्म लहर की घटनाओं में वृद्धि
- 23 Aug 2021
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प्रिलिम्स के लियेग्रीष्म लहर, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, हीट डोम मेन्स के लियेग्रीष्म लहर की अवधारणा एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में अत्यधिक गर्मी के कारण 3,56,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और भविष्य में यह संख्या बढ़ने की संभावना है।
- हाल की ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी ने विश्व को बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) और इससे होने वाले जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रति सतर्क किया है।
प्रमुख बिंदु
ग्रीष्म लहर:
- ग्रीष्म लहर हवा के तापमान की एक स्थिति है जो मानव शरीर के लिये नुकसानदायक होती है।
- भारत में ग्रीष्म लहर सामान्यतः मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है।।
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करती है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को ग्रीष्म लहर के मानक के रूप में निर्धारित किया है। जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है वहाँ 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर सामान्य तथा 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने पर गंभीर ग्रीष्म लहर की घटनाएँ होती हैं।
ग्रीष्म लहर का प्रभाव:
- हीट स्ट्रोक: बहुत अधिक तापमान या आर्द्र स्थितियाँ हीट स्ट्रोक का जोखिम पैदा करती हैं।
- वृद्ध लोग और पुरानी बीमारी जैसे- हृदय रोग, श्वसन रोग तथा मधुमेह वाले लोग हीट स्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने की क्षमता उम्र के साथ कम हो जाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि: अत्यधिक गर्मी के प्रभाव अस्पताल में भर्ती होने, कार्डियो-रेसपिरेटरी (Cardio-respiratory) एवं अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों में वृद्धि, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, प्रतिकूल गर्भावस्था तथा जन्म आदि जैसे परिणामों से भी जुड़े हैं।
- श्रमिकों की उत्पादकता में कमी: अत्यधिक गर्मी श्रमिक उत्पादकता को कम करती है, विशेष रूप से उन 1 अरब से अधिक श्रमिकों की जो नियमित रूप से उच्च गर्मी के संपर्क में आते रहते हैं। ये कर्मचारी अक्सर गर्मी के तनाव के कारण कम काम करते हैं।
- वनाग्नि का खतरा: हीट डोम (Heat Dome) वनाग्नि के लिये ईंधन का काम करते हैं, जो प्रत्येक वर्ष अमेरिका जैसे देशों में काफी अधिक भूमि क्षेत्र को नष्ट कर देता है।
- बादल निर्माण में बाधा: यह स्थिति बादलों के निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे सूर्य विकिरण अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुँच जाता है।
- वनस्पतियों पर प्रभाव: गर्मी के कारण फसलों को भी नुकसान हो सकता है, वनस्पति सूख सकती है और इसके परिणामस्वरूप सूखा पड़ सकता है।
- ऊर्जा मांग में वृद्धि: हीट वेव्स के कारण ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि होगी, विशेष रूप से बिजली की खपत जिससे इसकी मूल्य दरों में वृद्धि होगी।
- बिजली से संबंधित मुद्दे: हीट वेव्स प्रायः उच्च मृत्यु दर वाली आपदाएँ होती हैं।
- इस आपदा से बचना प्रायः विद्युत ग्रिड के लचीलेपन पर निर्भर करता है, जो बिजली के अधिक उपयोग होने के कारण विफल हो सकते हैं।
- नतीजतन, बुनियादी अवसंरचना की विफलता और स्वास्थ्य प्रभावों का दोहरा जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
सिफारिशें:
- शीतलन उपाय:
- प्रभावी एवं पर्यावरणीय रूप से सतत् शीतलन उपाय गर्मी के सबसे खराब स्वास्थ्य प्रभावों से बचा सकते हैं।
- इसमें शहरों में हरियाली को बढ़ावा देना, इमारतों में गर्मी को प्रतिबिंबित करने वाली दीवारों की कोटिंग्स और बिजली के पंखे एवं अन्य व्यापक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत शीतलन तकनीक शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन शमन:
- कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये जलवायु परिवर्तन शमन एवं पृथ्वी को और अधिक गर्म होने से रोकने में भी काफी मदद मिल सकती है।
- प्रभावी रोकथाम उपाय:
- समयबद्ध एवं प्रभावी रोकथाम तथा प्रतिक्रिया उपायों की पहचान करना, विशेष रूप से अल्प-संसाधनों की स्थिति में ये उपाय समस्या को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
संबंधित पहलें
- वैश्विक
- जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने वाले वैश्विक मंच जैसे- ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’, ‘विश्व आर्थिक मंच’, ‘फर्स्ट ग्लोबल फोरम ऑन हीट एंड हेल्थ’ और ‘ग्लोबल फोरम फॉर एन्वायरनमेंट’ आदि भी अत्यधिक गर्मी की स्थिति में जलवायु एवं मौसम की जानकारी हेतु स्वास्थ्य जोखिमों पर अनुसंधान में निवेश करके ‘हीट वेव’ पर ध्यान केंद्रित करते हैं, साथ ही ‘हीट वेव’ से बचने के लिये साझेदारी एवं क्षमता निर्माण तथा संचार और आउटरीच पर सलाह भी प्रदान करते हैं।
- भारत
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) ने ‘लू’ की स्थिति से निपटने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- हालाँकि भारत ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ (2005) के तहत हीटवेव को एक आपदा के रूप में मान्यता नहीं देता है।
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) ने ‘लू’ की स्थिति से निपटने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
आगे की राह
- पेरिस समझौते के अनुरूप इस अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का आह्वान किया गया है, ताकि भविष्य में गर्मी से होने वाली मौतों को रोका जा सके। अत्यधिक गर्मी के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों में कमी लाना एक तत्काल प्राथमिकता है और इसमें गर्मी से संबंधित मौतों को रोकने के लिये बुनियादी अवसंरचना, शहरी पर्यावरण और व्यक्तिगत व्यवहार में तत्काल परिवर्तन जैसे उपाय शामिल होने चाहिये।