भारतीय अर्थव्यवस्था
संशोधित कोयला भंडारण मानदंड
- 10 Dec 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, कोयला मेन्स के लियेकोयला संकट और इसके निहितार्थ, संशोधित कोयला भंडारण मानदंड |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने विभिन्न संयंत्रों में कोयला स्टॉक संकट की स्थिति की पुनरावृत्ति को रोकने के उद्देश्य से ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों में ‘कोल स्टॉकिंग मानदंडों’ को संशोधित किया है।
- केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA), विद्युत अधिनियम 2003 के तहत स्थापित एक संगठन है। इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन के लिये उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु प्रत्येक पाँच वर्ष में एक ‘राष्ट्रीय बिजली योजना’ तैयार करना है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- अक्तूबर 2021 में भारत के ‘थर्मल पावर प्लांटों’ को कोयले की भारी कमी का सामना करना पड़ा था, इस संकट के तहत थर्मल स्टेशनों में कोयले का स्टॉक औसतन चार दिनों तक कम हो गया था।
- मांग में तीव्र वृद्धि, आयातित कोयले की कीमत में वृद्धि और मानसून से पहले विद्युत स्टेशनों द्वारा कम कोयले की खरीद आदि कम स्टॉक की स्थिति हेतु उत्तरदायी कारक थे।
- यह भारत में सबसे बड़े कोयला संकटों में से एक था, जिसने आर्थिक रिकवरी को धीमा कर दिया और कुछ व्यवसायों के उत्पादन में कमी को प्रभावित किया।
- कम कोयला स्टॉक की स्थिति ने कई राज्यों को ऊर्जा एक्सचेंज पर बिजली खरीदने के लिये मज़बूर किया था, अक्तूबर माह में बिजली की औसत बाज़ार समाशोधन कीमत 16.4 रुपए प्रति यूनिट थी, जिसने सरकार को कोयला स्टॉकिंग मानदंडों को संशोधित करने हेतु प्रेरित किया गया था।
- पुराने मानदंड:
- पूर्व में कोयले के स्रोत से संयंत्र की दूरी के आधार पर 15-30 दिनों के कोयला स्टॉक को बनाए रखना अनिवार्य था।
- इससे पहले पिट हेड स्टेशनों (Pit Head Stations) में स्थित बिजली संयंत्रों के लिये 15 दिनों के लिये कोयला स्टॉक रखना अनिवार्य था, जबकि खदानों से 200 किमी. के भीतर स्थित संयंत्रों के लिये इस आवश्यकता को बढ़ाकर 20 दिन, 1,000 किमी के भीतर वाले संयंत्रों के लिये 25 दिन और खदानों से अधिक दूर स्थित संयंत्रों के लिये 30 दिन किया गया था।
- संशोधित मानदंड:
- यह प्रति वर्ष फरवरी से जून तक बिजली संयंत्रों द्वारा बनाए जाने वाले पिट हेड स्टेशनों (Pit Head Stations) पर 17 दिनों और नॉन-पिट हेड स्टेशनों (Non-Pit Head Stations) पर 26 दिनों के कोयले स्टॉक को बनाए रखना अनिवार्य करता है।
- नॉन-पिट हेड प्लांट ऐसे बिजली संयंत्र हैं जो कोयले की खदान 1,500 किमी. से अधिक दूर स्थित होते हैं।
- किसी भी दिन बिजली संयंत्र में कोयले की दैनिक आवश्यकता की गणना 85% प्लांट लोड फैक्टर (Plant Load Factor- PLF) के आधार पर की जाएगी।
- पूर्ववर्ती मानदंडों के तहत पिछले सात दिनों में न्यूनतम 55% PLF पर संयंत्र की औसत खपत पैटर्न के अनुसार कोयला स्टॉक की मात्रा निर्धारित की गई थी।
- PLF, संयंत्र द्वारा उत्पन्न वास्तविक ऊर्जा और अधिकतम संभव ऊर्जा के बीच का अनुपात है जो संयंत्र द्वारा उसकी निर्धारित शक्ति पर कार्य करने हेतु पूरे एक वर्ष की अवधि के लिये उत्पन्न किया जा सकता है।
- नई कार्यप्रणाली का तात्पर्य है कि जिन बिजली संयंत्रों की उपयोगिता दर कम है, उन्हें पहले की तुलना में अधिक कोयले का स्टॉक करना होगा।
- बिजली संयंत्रों को इन मापदंडों का सख्ती से पालन करना होगा, ऐसा न करने पर जुर्माना लगाया जाएगा यह एक ऐसा पहलू है जो CEA के नियमों में अब तक मौजूद नहीं था।
- यह प्रति वर्ष फरवरी से जून तक बिजली संयंत्रों द्वारा बनाए जाने वाले पिट हेड स्टेशनों (Pit Head Stations) पर 17 दिनों और नॉन-पिट हेड स्टेशनों (Non-Pit Head Stations) पर 26 दिनों के कोयले स्टॉक को बनाए रखना अनिवार्य करता है।
- महत्त्व:
- यह ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर अंकुश लगाएगा जिसका सामना हाल ही में देश को करना पड़ा था, जब मानसून के बाद देश में 135 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से कई महत्त्वपूर्ण कोयला स्टॉक स्तर के कम होने के कारण केवल तीन से चार दिनों की आपूर्ति को पूरा करने के लिये पर्याप्त थे।
- कोयले के भंडारण के नियमों में ढील से उत्पादन स्टेशनों के बीच ईंधन का बेहतर वितरण होगा।
- यह कमी को रोकेगा और देश में मांग की स्थिति के बावजूद निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
- यह प्रत्येक बिजली संयंत्र के लिये ईंधन की आवश्यकता को भी कम करेगा और सभी स्टेशनों के बीच बेहतर वितरण को सक्षम करेगा।
कोयला
- यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
- आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) भी कहा जाता है।
- चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में शामिल हैं।
- भारत के प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड का रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।
- कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।