भूगोल
लद्दाख में ग्लेशियरों का पीछे खिसकना
- 14 Aug 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, भूस्खलन मेन्स के लियेग्लेशियरों के पिघलने के परिणाम एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, लद्दाख की ज़ांस्कर घाटी में स्थित पेन्सिलुंगपा ग्लेशियर के तापमान में वृद्धि और सर्दियों के दौरान कम बर्फबारी होने के कारण यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
- यह अध्ययन ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करता है। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने यह भी आकलन किया था कि हिंदूकुश हिमालयन (HKH) पर्वत शृंखलाएँ वर्ष 2100 तक अपनी दो-तिहाई बर्फ से विहीन हो सकती हैं।
- WIHG देहरादून, उत्तराखंड में स्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है।
प्रमुख बिंदु
परिणाम :
- गिरावट की दर :
- ग्लेशियर अब 6.7 प्लस/माइनस 3 मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से पीछे खिसक रहा है।
- हिमनद तब पीछे खिसकते हैं जब उनकी बर्फ अधिक तीव्र गति से पिघलने लगती है, जिसके कारण हिमपात हो सकता है और नई हिमनद बन सकती है।
- मलबे का ढेर लगना:
- विशेष रूप से गर्मियों में ग्लेशियर के समापन बिंदु के द्रव्यमान संतुलन तथा पीछे खिसकने पर मलबे के ढेर का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- इसके अलावा पिछले तीन वर्षों (2016-2019) के दौरान बर्फ के जमाव में नकारात्मक प्रवृत्ति देखी गई तथा यहाँ पर बहुत छोटे से हिस्से में ही बर्फ जमी है।
- ग्लेशियर का द्रव्यमान संतुलन सर्दियों में जमा हुई बर्फ और गर्मी के दौरान बर्फ के पिघलने के बीच का अंतर है।
- विशेष रूप से गर्मियों में ग्लेशियर के समापन बिंदु के द्रव्यमान संतुलन तथा पीछे खिसकने पर मलबे के ढेर का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- हवा के तापमान में वृद्धि का प्रभाव:
- हवा के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण बर्फ पिघलने में तेज़ी आएगी और संभावना है कि गर्मियों की अवधि बढ़ने के कारण ऊँचाई वाले स्थानों पर बर्फबारी की जगह बारिश होने लगेगी, जो सर्दी-गर्मी के मौसमी पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।
प्रभाव :
- मानव जीवन पर प्रभाव :
- यह मृदा अपरदन, भूस्खलन और बाढ़ के कारण मिट्टी के नुकसान सहित पानी, भोजन, ऊर्जा सुरक्षा एवं कृषि को प्रभावित करेगा।
- हिमनद झीलें पिघली हुई बर्फ के जमा होने के कारण भी बन सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और यहाँ तक कि महासागरों में ताज़े पानी को डंप करके यह वैश्विक जलवायु को स्थानांतरित कर सकता है और इस तरह उनके परिसंचरण को परिवर्तित कर सकता है।
- मलबा:
- हिमनदों के पीछे खिसकने से शिलाखंड और बिखरे हुए चट्टानी मलबे तथा मिट्टी के ढेर लग जाते हैं जिन्हें हिमनद मोराइन कहा जाता है।
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिये पहल:
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) : यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) के तहत 8 राष्ट्रीय मिशनों में से एक है।
हिमनद
परिचय:
- हिमनद जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील संकेतक होते हैं। क्रिस्टलीय बर्फ, चट्टान, तलछट एवं जल से निर्मित क्षेत्र, जहाँ पर वर्ष के अधिकांश समय बर्फ जमी होती है, को हिमनद कहते हैं। अत्यधिक भार व गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हिमनद ढलान की ओर प्रवाहित होते हैं।
- पृथ्वी पर कुल जल की मात्रा का 2.1% हिमनदों में बर्फ के रूप में मौजूद है, जबकि 97.2% की उपस्थिति महासागरों एवं अंतःस्थलीय समुद्रों में होती है।
हिमनद हेतु आवश्यक दशाएँ:
- औसत वार्षिक तापमान गलनांक बिंदु के आसपास होना चाहिये।
- सर्दियों में हिमपात से बर्फ की बड़ी मात्रा एकत्रित होनी चाहिये।
- सर्दियों के अलावा शेष वर्ष में भी तापमान इतना अधिक नहीं होना चाहिये कि सर्दियों के दौरान एकत्रित पूरी बर्फ पिघल जाए।
हिमनद भू-आकृतियाँ:
ज़ांस्कर घाटी
- यह एक अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र है जो 13 हज़ार फीट से अधिक की ऊँचाई पर महान हिमालय के उत्तरी भाग में स्थित है।
- ज़ांस्कर रेंज ज़ांस्कर को लद्दाख से अलग करती है और ज़ांस्कर रेंज की औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है।
- यह पर्वत शृंखला लद्दाख और ज़ांस्कर को अधिकांश मानसून से बचाने के लिये जलवायु बाधा के रूप में कार्य करती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मियों में सुखद गर्म और शुष्क जलवायु होती है।
- ज़ांस्कर रेंज के चरम उत्तर-पश्चिम में मार्बल दर्रा, ज़ोजिला दर्रा इस क्षेत्र के दो उल्लेखनीय दर्रे हैं।
- कई नदियाँ इस श्रेणी की विभिन्न शाखाओं से शुरू होकर उत्तर की ओर बहती हैं और महान सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इन नदियों में हनले नदी, खुर्ना नदी, ज़ांस्कर नदी, सुरू नदी (सिंधु) तथा शिंगो नदी शामिल हैं।
- ज़ांस्कर नदी तब तक उत्तर-पूर्वी मार्ग अपनाती है जब तक कि यह लद्दाख में सिंधु में शामिल नहीं हो जाती।