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भारतीय अर्थव्यवस्था

सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर रिपोर्ट

  • 08 May 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर गठित एक तकनीकी समूह ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

  • सितंबर, 2020 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने नाबार्ड (NABARD) के पूर्व अध्यक्ष हर्ष भानवाला की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर तकनीकी समूह का गठन किया था।
  • इससे पूर्व इशात हुसैन की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर एक कार्यकारी समूह (WG) का गठन भी किया गया था, जिसने जून 2020 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रमुख बिंदु

सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के विषय में:

  • संघीय बजट 2019-20 में  पूंजी निर्माण के लिये सामाजिक उद्यम, स्वैच्छिक और कल्याणकारी संगठनों को सूचीबद्ध करते हुए सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) को एक मंच के रूप में गठित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
    • सामाजिक उद्यम को एक ऐसी गैर-लाभांश भुगतान कंपनी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे किसी एक विशिष्ट सामाजिक समस्या को संबोधित करने के लिये स्थापित किया गया हो।
  • इसे SEBI के विनियामक दायरे के तहत गठित करने का प्रस्ताव दिया गया था। 
  • इस पहल का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु इक्विटी या ऋण या म्यूचुअल फंड की एक इकाई के रूप में पूंजी निर्माण कार्यों में संलग्न सामाजिक और स्वैच्छिक संगठनों की सहायता करना हैं।
  • सिंगापुर, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में SSE पहले से ही स्थापित है। ये देश स्वास्थ्य, पर्यावरण और परिवहन जैसे क्षेत्रों में संचालित फर्मों को SSE जे माध्यम से पूंजी निर्माण के लिये अनुमति देते हैं।

समूह की सिफारिशें:

  • संगठन का प्रकार: राजनीतिक और धार्मिक संगठनों, व्यापार संगठनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट समूहों को SSE के माध्यम से पूंजी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये ।
  • यदि लाभकारी उद्यम (FPE) और गैर-लाभकारी संगठन (NPO) दोनों अपने प्राथमिक लक्ष्यों जैसे: सामाजिक धारणा और उन पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाने में सक्षम हैं, तो वे SSE के लाभ के लिये पात्र होंगे।
    • SSE पर सूचीबद्ध संस्थाओं को ‘रणनीतिक धारणाओं और नियोजन, दृष्टिकोण, प्रभाव स्कोर कार्ड’ जैसे पहलुओं के बारे में वार्षिक आधार पर अपने सामाजिक प्रभाव की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
    • गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) को आमतौर पर कंपनी अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठनों के रूप में (ट्रस्ट या सोसाइटी) गठित किया जाता है।
    • एक लाभकारी उद्यम (FPEs)  प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के रूप में, भागीदारियों के रूप में या एकल स्वामित्त्व वाला हो सकता है।
  • पूंजी निर्माण के विभिन्न उपाय:
    • गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) को इक्विटी, ज़ीरो कूपन ज़ीरो प्रिंसिपल बॉन्ड, विकास प्रभाव बाॅण्ड, सामाजिक प्रभाव निधि के साथ-साथ निवेशक म्यूच्यूअल फंड के माध्यम से 100 प्रतिशत अनुदानित या दान से कोष जुटाने में सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज का विचार एक सराहनीय पहल है।
    • लाभकारी उद्यमों के लिये इक्विटी, ऋण, विकास प्रभाव बाॅण्ड और सामाजिक उद्यम निधि के माध्यम से धन का सृजन करना।
  • योग्य गतिविधियाँ: सामाजिक उद्यम निम्नलिखित गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं:
    • भूख, गरीबी, कुपोषण और असमानता का उन्मूलन; स्वास्थ्य देखभाल (मानसिक स्वास्थ्य सहित) तथा स्वच्छता को बढ़ावा देना; और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना।
    • शिक्षा, नियोजिता और आजीविका को बढ़ावा देना।
    • लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण और LGBTQA+ समुदायों को बढ़ावा देना।
    • जलवायु परिवर्तन (शमन और अनुकूलन), वन और वन्य जीव संरक्षण को संबोधित करते हुए पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • गैर-कृषि क्षेत्र में छोटे और सीमांत किसानों और श्रमिकों की आय बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये आजीविका को प्रोत्साहित करना।
    • सतत् और लचीले शहरों के निर्माण के लिये स्लम क्षेत्र के विकास, किफायती आवास और इस प्रकार के अन्य हस्तक्षेपों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

आगे की राह 

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभावों को देखते हुए पूंजी के विभिन्न सार्वजनिक और निजी स्रोतों के लिये यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सामाजिक क्षेत्र में पूंजी प्रवाह पर महामारी का प्रभाव न पड़े और वैश्विक समुदाय के लिये स्थायी प्रभाव उत्पन्न करने हेतु पूंजी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के माध्यम से दिये जाने वाला संस्थागत समर्थन यह सुनिश्चित करता है कि अधिक-से-अधिक निवेशक मात्र वित्तीय विवरणों से आगे बढ़कर विभिन्न उद्यमों के मूल्यांकन के लिये पर्यावरणीय पहलुओं (संसाधन संरक्षण, पर्यावरणीय रूप से स्थायी कामकाजी प्रथाओं), सामाजिक पहलुओं (गोपनीयता, डेटा संरक्षण, कर्मचारी कल्याण) और शासन संबंधी पहलुओं (जैसे बोर्ड विविधता, हितों के टकराव संबंधी मुद्दों के लिये समाधान तंत्र और प्रबंधन की स्वतंत्र निगरानी) आदि को एकीकृत कर सकें।
  • इसके लिये सभी प्रयासों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यकता है कि सोशल स्टॉक एक्सचेंज के गठन के लिये एक सक्षम नियामक वातावरण बनाया जाए, जहाँ उद्यमों, सामाजिक उद्यमियों और निवेशकों के लिये भी न्यूनतम अनुपालन दायित्त्व निर्धारित हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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